मद्रास हाई कोर्ट ने मंगलवार (11 मार्च) को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मंदिर की जमीन पर मेट्रो स्टेशन बनाने से भगवान हमें माफ कर देंगे। न्यायाधीश ने कहा कि आखिरकार इससे भगवान के भक्तों को भी लाभ होगा। इस टिप्पणी के साथ ही हाई कोर्ट ने चेन्नई मेट्रो रेल लिमिटेड (CMRL) का स्टेशन बनाने के लिए दो हिंदू मंदिरों की जमीन का अधिग्रहण करने की अनुमति दे दी।
न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने कहा कि ऐसी परियोजना, जिससे लाखों लोगों को लाभ हो सकता है, निश्चित रूप से ईश्वरीय कृपा से पूरी होगी। कोर्ट ने कहा कि धार्मिक संस्थाओं की भूमि को सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए अधिग्रहित किया जा सकता है। न्यायाधीश ने कहा, “राज्य के अधिकार क्षेत्र के तहत धार्मिक संस्थाओं की भूमि का अधिग्रहण संविधान के अनुच्छेद 25 या 26 के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है।”
कोर्ट ने बालकृष्ण पिल्लई बनाम भारत संघ मामले में केरल हाई कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। इसमें कहा गया था कि राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए यदि धार्मिक संस्थान प्रभावित होते हैं तो भगवान माफ कर देंगे। न्यायमूर्ति वेंकटेश ने इसे दोहराते हुए कहा कि यदि मंदिर की भूमि का अधिग्रहण मेट्रो स्टेशन बनाने के लिए किया जाता है तो भगवान माफ कर देंगे, क्योंकि इससे मंदिर के भक्तों को भी लाभ होगा।
न्यायाधीश वेंकटेश ने कहा, “यह न्यायालय यह दृढ़ता से मानता है कि ईश्वर मेट्रो रेल स्टेशन बनाने के लिए अपनी दया और कृपा बरसाएँगे, जिससे समाज के सभी वर्गों के लाखों लोगों को लाभ होगा। इनमें से कुछ भक्त भी हो सकते हैं, जो मंदिर में जाते हैं। भगवान हमें माफ कर देंगे। भगवान याचिकाकर्ताओं, अधिकारियों और इस फैसले के लेखक की भी रक्षा करेंगे। भगवान हमारे साथ रहेंगे।”
CMRL मेट्रो स्टेशन बनाने के लिए रतिना विनयागर मंदिर और दुर्गाई अम्मा मंदिर के पास की ज़मीन अधिग्रहित करना चाहता था। इसका मंदिर के भक्तों ने विरोध किया। इसके बाद आलयम कपोम फाउंडेशन ने अधिग्रहण के खिलाफ़ जनहित याचिका (PIL) दायर की। इस पर चेन्नई मेट्रो ने कहा कि वह दूसरी ओर की जमीन अधिग्रहति कर सकता है, जहाँ यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी का मुख्यालय है।
इसके बाद मद्रास हाई की पहली पीठ ने CRL के नए प्रस्ताव को देखते हुए PIL को बंद कर दिया। इसी बीच यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस ने उसकी भूमि के अधिग्रहण के प्रस्ताव का विरोध किया और इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी। उसने तर्क दिया कि वह जनहित याचिका में पक्षकार नहीं है और उसने CMRL से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) लेने के बाद इस मुख्यालय को बनाने में 250 करोड़ रुपए का निवेश किया है।
मद्रास हाई कोर्ट ने इस बीमा कंपनी के तर्क को वाजिब माना और कहा कि वास्तव में 5वें प्रतिवादी (मंदिर भक्तों का प्रतिनिधित्व करने वाला आलयम कपोम फाउंडेशन), CMRL और राज्य प्राधिकारियों ने बिना मुख्य किरदार (यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस) के ही निर्णय ले लिया। दरअसल, बीमा कंपनी ने कहा कि CMRL ने उसकी जमीन के अधिग्रहण की बात कोर्ट में उसकी जानकारी के बिना ही की थी।
न्यायालय ने बीमा कंपनी की जमीन के अधिग्रहण को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ बताया। कोर्ट ने कहा, मूल योजना से दुर्गाई अम्मा मंदिर के भक्तों के लिए केवल कुछ जगह की कमी होगी। साथ ही निर्माण कार्य के दौरान मंदिर के गोपुरम (प्रवेश द्वार) और एक देवता को दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित करना होगा, लेकिन निर्माण पूरा होने के बाद गोपुरम और देवता को बहाल किया जा सकता है।
अंत में, कोर्ट ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस की याचिका स्वीकार कर ली और उसकी संपत्ति के विरुद्ध भूमि अधिग्रहण नोटिस को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति वेंकटेश ने प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन का हवाला देते हुए हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के निरीक्षण के बारे में तर्क को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि सीएमआरएल अपनी मूल अधिग्रहण योजना के साथ आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र है।