Thursday, May 2, 2024
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अब DM की अनुमति के बिना बौद्ध नहीं बन सकेंगे हिंदू, गुजरात सरकार ने जारी किया सर्कुलर: जैन और सिख को भी अलग बताया

बताते चलें कि गुजरात में दलितों के बीच बौद्ध धर्म अपनाने की प्रवृत्ति प्रचलित है। गुजरात बौद्ध अकादमी (जीबीए) उन प्रमुख संगठनों में से एक है, जो राज्य में नियमित रूप से ऐसे धर्मांतरण कार्यक्रम का आयोजन करते रहता है। जीबीए के सचिव रमेश बैंकर ने सर्कुलर का स्वागत करते हुए कहा कि इससे स्पष्ट हो गया है कि बौद्ध एक अलग धर्म है और इसका हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।

बौद्ध धर्म अपनाने वाले हिंदुओं को भी अब अनुमति लेने की जरूरत होगी। गुजरात सरकार ने एक सर्कुलर जारी करके कहा है कि बौद्ध और जैन धर्म हिंदू धर्म से अलग हैं। इसलिए अगर कोई हिंदू अपना धर्म बदलकर बौद्ध, जैन या सिख धर्म अपनाता है तो उसे गुजरात धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2003 के प्रावधानों के तहत संबंधित जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी।

गुजरात सरकार के गृह विभाग द्वारा 8 अप्रैल 2024 को परिपत्र जारी किया गया। दरअसल, सरकार के संज्ञान में आया था कि बौद्ध धर्म में धर्मांतरण के लिए आवेदन में प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है। उपसचिव (गृह) विजय बधेका के हस्ताक्षर वाले इस सर्कुलर में कहा गया है कि ये देखने में आया है कि जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय गुजरात धर्म स्वतंत्रता अधिनियम की मनमाने ढंग से व्याख्या कर रहे हैं।

इसमें कहा गया है, “यह देखने में आया है कि हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में धर्मांतरण की अनुमति माँगने वाले आवेदनों में नियमों के अनुसार प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा, कभी-कभी आवेदकों और स्वायत्त निकायों से अभ्यावेदन प्राप्त हो रहे हैं कि हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में धार्मिक परिवर्तन के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है।”

सर्कुलर में आगे कहा गया है, “ऐसे मामलों में पूर्व अनुमति के लिए जहाँ आवेदन दायर किए जाते हैं, वहाँ का संबंधित कार्यालय ऐसे आवेदनों का निपटान यह कहते हुए कर रहे हैं कि संविधान के अनुच्छेद 25 (2) के तहत सिख धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म हिंदू धर्म के भीतर शामिल हैं। इसलिए आवेदक को ऐसे धर्मांतरण के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।”

इसमें कहा गया है कि यह संभव है कि कानूनी प्रावधानों के पर्याप्त अध्ययन के बिना धार्मिक रूपांतरण जैसे संवेदनशील विषय में आवेदकों को दिए गए जवाबों के परिणामस्वरूप मुकदमेबाजी हो सकती है। इसलिए गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट के संदर्भ में बौद्ध धर्म को एक अलग धर्म माना जाएगा। बता दें कि गुजरात में हर साल दलित समुदाय के बहुत सारे लोग सामूहिक रूप से बौद्ध धर्म अपनाते हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, परिपत्र में यह भी कहा गया है कि इस अधिनियम के अनुसार, जो व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म/सिख धर्म/जैन धर्म में परिवर्तित करा रहा है, उसे निर्धारित प्रारूप में जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति लेनी होगी। साथ ही धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को निर्धारित प्रारूप में जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होगी।

बताते चलें कि गुजरात में दलितों के बीच बौद्ध धर्म अपनाने की प्रवृत्ति प्रचलित है। गुजरात बौद्ध अकादमी (जीबीए) उन प्रमुख संगठनों में से एक है, जो राज्य में नियमित रूप से ऐसे धर्मांतरण कार्यक्रम का आयोजन करते रहता है। जीबीए के सचिव रमेश बैंकर ने सर्कुलर का स्वागत करते हुए कहा कि इससे स्पष्ट हो गया है कि बौद्ध एक अलग धर्म है और इसका हिंदू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।

उन्होंने कहा, “प्रशासन द्वारा कानून की गलत व्याख्या करते हुए भ्रम पैदा किया गया। हमारा शुरू से ही मानना था कि बौद्ध धर्म हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है और बौद्ध धर्म में परिवर्तन के लिए निर्धारित प्रारूप में जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति अनिवार्य है। ऐसा स्पष्टीकरण जारी करने की हमारी माँग थी, जो पूरी हो गई है।”

बैंकर ने कहा कि साल 2023 में कम-से कम 2,000 लोग, जिनमें मुख्य रूप से दलित शामिल थे, वे बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए। पिछले साल 25 अक्टूबर को अहमदाबाद में करीब 400 लोगों ने बौद्ध धर्म अपना लिया था। अक्टूबर 2022 में गिर सोमनाथ में करीब 900 लोगों ने बौद्ध धर्म अपनाया था साल 2011 की जनगणना के अनुसार, गुजरात में 30,483 बौद्ध हैं, जो राज्य की आबादी के 0.05 प्रतिशत हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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