Friday, April 19, 2024
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‘मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त नहीं हुए तो हथियार उठाएँगे’: संतों की चेतावनी- मुट्ठी भर किसान अपनी माँग मनवा सकते हैं तो हम भी करेंगे

सद्गुरु जग्गी वासुदेव तमिलनाडु में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने की मुहिम चला रहे हैं। इस समय देश भर के लगभग 4 लाख छोटे-बड़े मंदिर सरकारी नियंत्रण हैं।

देश की राजधानी दिल्ली में एक और आंदोलन की आहट सुनाई देने लगी है। इस बार संत समाज ने मठ-मंदिर मुक्ति के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है। इसके लिए संतों ने दक्षिण दिल्ली के कालकाजी मंदिर में एक बड़ी सभा की। उन्होंने शान्ति और शस्त्र दोनों उठाने का एलान किया। इस दौरान कई मठों, मंदिरों, अखाड़ों और आश्रमों के संत मौजूद रहे। सभा में किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा गया कि जब मुट्ठी भर किसान सरकार से अपनी बात मनवा सकते हैं तो हम क्यों नहीं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह आयोजन अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत के नेतृत्व में किया गया। संभावित आंदोलन की रुप-रेखा बताते हुए एक संत ने कहा कि हमारा आंदोलन बहुत लम्बा नहीं होगा। यह आंदोलन अगले चुनाव से पहले ही खड़ा हो जाएगा। हमारा लक्ष्य अगली सरकार बनने तक मठ-मंदिरों को सरकार के कब्जे से मुक्त करवाना है।

इस बैठक में भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री राजेंद्र दास ने कहा कि वो तन-मन-धन से इस आंदोलन का समर्थन करेंगे। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल के मंदिरों के हालात सबसे खराब हैं। शस्त्रों की उस उक्ति का भी उन्होंने उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि अगर देवधन राजकोष में जाएगा तो कोष कभी नहीं भरेगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में देवस्थानम् बोर्ड के कब्जे में 51 मंदिर हैं, उन्हें मुक्त कराने के लिए संघर्ष चल रहा है।

राजेंद्र दास के अनुसार, उन्हें 30 नवम्बर को आ रहे निर्णय की प्रतीक्षा है, जिसमें देवस्थानम् बोर्ड को लेकर निर्णय किया जाना है। उन्होंने इस मामले में फैसला अपने पक्ष में होने की उम्मीद जताई। राजेंद्र दास के अनुसार, दूसरे देशों में धर्मस्थलों के लिए सरकार पैसे देती है लेकिन भारत में सरकारें मंदिरों के चढ़ावे पर नजर रखती है।

इसी सभा में महामंडलेश्वर बालयोगी अलखनाथ औघड़ ने कहा, ‘हिंदू धर्म में पुरुष साष्टांग दंडवत करते हैं, जबकि महिलाएँ पांचांग प्रणाम और ‘वे’ भी पंचांग प्रणाम करते हैं।’ उनका कहना था कि पुरुष शक्तिशाली होता है, इसलिए दंडवत करता है और स्त्री शारीरिक तौर पर कम शक्तिशाली होती है, इसलिए वह पंचांग प्रणाम करती हैं। पंचांग प्रणाम की भाव-भंगिमा नमाज से काफी मिलती-जुलती है, जबकि साष्टांग दंडवत पूरी तरह से जमीन पर लेटकर किया जाता है।

इसी सभा में एक अन्य संत ने हिन्दुओं को जगाने का आह्वान किया। जय श्रीराम के नारों के साथ उन्होंने लक्ष्य हासिल न कर लेने तक आंदोलन पर अडिग रहने का एलान किया। उन्होंने एक अजगर और इंसान की कहानी के माध्यम से बताने का प्रयास किया कि एक खास वोटबैंक अजगर बन चुका है, जो हिन्दुओं को निगलने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने हिन्दुओं से ऐसे अजगरों को पहचान कर उनसे दूर रहने की अपील की।

इस सांकेतिक सभा को आयोजित करने वाले सुरेंद्रनाथ अवधूत के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी माँगों का पत्र भेजा जा रहा है। यदि माँगें मान ली गईं तो संत समाज उनका धन्यवाद करेगा। माँगों के न माने जाने पर संत समाज सड़कों पर उतरेगा और देश भर के हर गाँव और शहर में मशाल लेकर जाएगा। इसी के साथ संत राजधानी दिल्ली जाने वाले मुख्य रास्तों पर बैठ जाएँ और जरूरी हुआ तो संत हथियार भी उठा लेंगे।

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए।

दिल्ली भाजपा के नेता विक्रम विधूड़ी भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। अपने ट्विटर हैंडल पर उन्होंने कार्यक्रम की तस्वीरें भी शेयर की हैं।

पब्लिक TV ने इस पूरे कार्यक्रम का वीडियो जारी किया है।

गौरतलब है कि वर्तमान समय में सद्गुरु जग्गी वासुदेव तमिलनाडु में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने की मुहिम चला रहे हैं। उनकी इस मुहिम को बड़ा समर्थन भी मिल रहा है। तमिलनाडु समेत पूरे भारत भर में कई ऐसे छोटे-बड़े मंदिर हैं, जो सरकारी नियंत्रण में हैं। ऐसे मंदिरों की संख्या लगभग 4 लाख है, जिनमें तिरुपति बालाजी, श्रीपद्मनाभस्वामी, गुरुवयूर, जगन्नाथ पुरी और वैष्णो देवी शामिल हैं। महाराष्ट्र में लगभग 4,000 से अधिक ऐसे मंदिर हैं, जो सरकार के नियंत्रण में हैं। इनमें पंढ़रपुर के विट्ठल महाराज का मंदिर, सिद्धिविनायक, कोल्हापुर का महालक्ष्मी जैसे बड़े मंदिर शामिल हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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