केंद्र की मोदी सरकार की सख्ती के बावजूद जमीयत उलेमा हिंद ने आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के उस फतवा का समर्थन किया है, जिसमें अहमदिया समाज को ‘गैर मुस्लिम’ और ‘काफिर’ घोषित किया गया है। जमीयत ने अहमदिया समाज को मुस्लिमों का दुश्मन और गैर इस्लामी बताया है।
जमीयत ने 25 जुलाई 2023 को इस संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया है। इसमें कहा है कि वक्फ बोर्ड की स्थापना मुस्लिमों की वक्फ संपत्तियों और उनके हितों के संरक्षण के लिए की गई है। जो समुदाय मुस्लिम नहीं हैं उसकी संपत्तियाँ और इबादत के स्थान बोर्ड के दायरे में नहीं आते हैं। ऐसे में इस मामले में केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री का एक अलग दृष्टिकोण पर जोर देना अनुचित और अतार्किक है।
उल्लेखनीय है कि केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश सरकार को लिखे पत्र में कहा था कि वक्फ बोर्ड के पास अहमदिया सहित किसी भी समुदाय की धार्मिक पहचान निर्धारित करने का अधिकार नहीं है। वक्फ अधिनियम 1995 के तहत बोर्ड को भारत में वक्फ संपत्तियों की देखरेख और उनका मैनेजमेंट का अधिकार है। राज्य वक्फ बोर्ड को किसी समुदाय के खिलाफ आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं है।
जमीयत ने आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के फतवे को उम्मत की राय बताई है। कहा है कि इस्लाम दो बुनियादी मान्यताओं पर आधारित है। पहला, तौहीद यानी अल्लाह एक हैं और दूसरा, रिसालत यानी पैगंबर मुहम्मद अंतिम नबी हैं। ये दोनों मान्यताएँ इस्लाम के पाँच बुनियादी स्तंभों के अभिन्न अंग हैं। लेकिन मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी का मत इसके बिल्कुल उलट है। इस्लाम की बुनियादी मान्यताओं के खिलाफ है।
जमीयत ने कहा है कि ऐसे समुदाय को इस्लाम में शामिल करने का कोई आधार और औचित्य नहीं है। आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के फैसले से मुस्लिम समाज के सभी तबके एकजुट हैं। जमीयत ने 10 अप्रैल 1974 को आयोजित इस्लामी संगठन राब्ता आलम-ए-इस्लामी (मुस्लिम वर्ल्ड लीग) के सम्मेलन का भी हवाला दिया है। तब 110 देशों से आए मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने अहमदिया समुदाय को इस्लाम से बाहर बताते हुए मुसलमानों का दुश्मन घोषित किया था।
जमीयत उलेमा के इस प्रस्ताव पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय के एक अधिकारी का बयान आया है। TOI से बात करते हुए अधिकारी ने कहा कि इससे लगता है कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड भारत की संसद के बजाय जमीयत उलेमा के आधीन काम करता है। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड के पास ये अधिकार नहीं है कि वो किसी को मुस्लिम या गैर मुस्लिम घोषित करें।
गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड फतवे पर केंद्र की मोदी सरकार ने सख्त नाराजगी जताई थी। इस फतवे के जरिए अहमदिया समाज को ‘गैर मुस्लिम’ और ‘काफिर’ घोषित किया गया था। केंद्र ने इसे घृणा फैलाने वाली हरकत बताते हुए राज्य सरकार से पूछा था कि किस ‘आधार’ और ‘अधिकार’ से यह फतवा जारी किया गया है। अहमदिया मुस्लिमों ने इसके खिलाफ केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय से शिकायत की थी।
इस पूरे मामले की शुरुआत साल 2012 में हुई। आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने अहमदिया को गैर-मुस्लिम घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। वक्फ बोर्ड के इस फैसले को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी। बावजूद आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने इसी साल फरवरी में एक और प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में कहा गया कि 26 मई, 2009 को जमीयत उलेमा द्वारा जारी किए फतवे को देखते हुए ‘कादियानी समुदाय’ को ‘काफिर’ घोषित किया जाता है। ये मुस्लिम नहीं हैं। बता दें कि अहमदिया मुस्लिमों को कादियानी भी कहा जाता है।
पंजाब के लुधियाना जिले के कादियान गाँव में मिर्जा गुलाम अहमद ने साल 1889 में अहमदिया समुदाय की शुरुआत की। मिर्जा गुलाम अहमद खुद को पैगंबर मोहम्मद का अनुयायी और अल्लाह की ओर से चुना गया मसीहा बताते थे। मिर्जा गुलाम अहमद ने इस्लाम के अंदर पुनरुत्थान की शुरूआत की थी। इसे अहमदी आंदोलन और इससे जुड़े मुस्लिमों को अहमदिया बोला गया। अहमदिया मुस्लिम गुलाम अहमद को पैगंबर मोहम्मद के बाद का एक और पैगंबर या आखिरी पैगंबर मानते हैं। इसी कारण अन्य मुस्लिम उनका विरोध करते हैं। चूँकि गुलाम अहमद कादियान गाँव से थे। इसलिए अहमदिया मुस्लिमों को कादियानी भी कहा जाता है।