Friday, March 21, 2025
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‘वेश्या का बेटा’ कहना जातिगत गाली नहीं: केरल हाई कोर्ट ने SC-ST केस से आरोपित को दी बेल, कहा- ये कहना अपमानजनक था, लेकिन अपराध नहीं

जस्टिस सी एस सुधा की सिंगल बेंच ने इस गाली को देने वाले आरोपित को गिरफ्तारी से पहले जमानत देते हुए कहा कि यह शब्द निस्संदेह अपमानजनक था, लेकिन ये ऐसा शब्द नहीं था जिसकी वजह से आरोपित पर एससी-एसटी एक्ट की धारा 3 (1) के तहत अपराध सिद्ध हो।

केरल हाई कोर्ट ने मलयालम भाषा में दी गई गाली- ‘पुलायडी मोने’ जिसका अर्थ हिंदी में ‘वेश्या का बेटा’ होता है- उसे SC/ST एक्ट के तहत जातिवादी गाली मानने से इनकार कर दिया। जस्टिस सी एस सुधा की सिंगल बेंच ने इस गाली को देने वाले आरोपित को गिरफ्तारी से पहले जमानत देते हुए कहा कि यह शब्द निस्संदेह अपमानजनक था, लेकिन ये ऐसा शब्द नहीं था जिसकी वजह से आरोपित पर एससी-एसटी एक्ट की धारा 3 (1) के तहत अपराध सिद्ध हो।

जस्टिस सी एस सुधा ने कहा कि यदि डिक्शनरी में लिखे मतलब पर जाएँ तो इसका अर्थ हुआ- वेश्या का बेटा। ये तो कोई जातिवादी गाली नहीं है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, पूरा मामला 12 नवंबर 2024 को पेरुंबवूर का है। यहाँ पुलाया समुदाय के एक व्यक्ति और उसके साले अबीराज के साथ कथित तौर पर तीन लोगों ने गाली-गलौज और मारपीट की थी। इसके बाद उन लोगों ने मामले में एफआईआर कराई जिसमें कहा गया कि उनके खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल हुआ है।

एफआईआर में अतिक्रमण, स्वेच्छा से चोट पहुँचाने और गंभीर चोट पहुँचाने के आरोपों के साथ-साथ एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(1)(आर) और (एस) के तहत मामला दर्ज किया गया था। जब आरोपित बेल लेने ट्रायल कोर्ट गए तो वहाँ अदालत ने एससी/एसटी अधिनियम की धारा 18 और 18ए के तहत वैधानिक प्रतिबंध का हवाला देते हुए गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार कर दिया।

बाद में आरोपित इस मामले में बेल की अपील लेकर हाईकोर्ट गए। यहाँ पूरे केस की जाँच करने के बाद कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जातिगत गाली नहीं दी गई है। पूरे मामले में न्यायालय ने पाया की अधिनियम की धारा 3(1) एस या आर के तहत प्रथम दृष्ट्या में कोई अपराध नहीं है।

न्यायालय ने पाया कि आरोपित और शिकायतकर्ताओं के बीच झगड़ा वाहन विवाद के कारण हुआ था न कि जातिगत गाली देने से। न्यायालय ने कहा, “किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी देना अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक कि ऐसा अपमान या धमकी पीड़ित के अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने के कारण न हो।”

कोर्ट ने फैसला देते हुए ये भी कहा अधिनियम का उद्देश्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करना है, क्योंकि उन्हें कई नागरिक अधिकारों से वंचित किया जाता है। इस प्रकार, अधिनियम के तहत अपराध तब माना जाएगा जब समाज के कमजोर वर्ग के सदस्य को अपमान, अपमान और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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