Sunday, May 5, 2024
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2008 में विष्णु की हत्या, 2016 में RSS के 13 कार्यकर्ता को गुनाहगार बता सुनाई सजा: 2022 में केरल हाई कोर्ट में पूरी कहानी ही निकली फर्जी, सारे बरी

कोर्ट ने कहा कि ये पूरा मामला साफतौर पर राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण है। इस केस में बिन पर्याप्त सबूतों के कार्यकर्ताओं को पकड़ा गया और गवाहों को सिखा-पढ़ाकर केस को एक तय दिशा में मोड़ने की कोशिश हुई।

केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार (12 जुलाई 2022) को 13 आरएसएस कार्यकर्ताओं को हत्या केस से बरी करते हुए पुलिस पर बड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि ये पूरा मामला साफतौर पर राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण है। इस केस में बिन पर्याप्त सबूतों के कार्यकर्ताओं को पकड़ा गया और गवाहों को सिखा-पढ़ाकर केस को एक तय दिशा में मोड़ने की कोशिश हुई। 

कोर्ट ने पूरे केस पर सुनवाई कर कहा कि विष्णु की हत्या के समय लोगों ने चेहरे ढँके हुए थे। मगर जाँच अधिकारियों ने इस संबंध में कोर्ट को कुछ नहीं बतााया। उन्होंने अपनी कहानी के हिसाब से घटना को समझाने के लिए वैसे ही सबूत इकट्ठा किए और गवाहों से भी वही सब बुलवाया।

इसके बाद जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस सी चंद्रन की पीठ ने 13 कार्यकर्ताओं को विष्णु हत्या मामले में बरी कर दिया। इन कार्यकर्ताओं के नामटी संतोष, मनोज, उर्फ कक्कोटा मनो, बीनूकुमार, हरिलाल, रंजीत कुमार, बालू महेंद्र, विपिनस सतीश कुमार, बोस, मणिकांतन, विनोद कुमार, सुभाष, शिवलाल हैं। कोर्ट ने इन्हें रिहा करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष बुरी तरह से ये साबित करने में विफल रहा कि जो आरोप उन्होंने कार्यकर्ताओं पर लगाए वो किस आधार पर हैं।

केरल में वामपंथ और संघ

बता दें कि केरल के कई जिलों (खासकर कन्नर और तिरुनवंतपुरम) के ग्रामीण इलाकों में संघ और सीपीएम कार्यकर्ताओं के बीच आपसी झड़पों के कई मामले सामने आते रहे हैं। 2016 की रिपोर्ट में बताया गया था कि क्षेत्र में तीन दशक में दोनों पक्षों के 200 से अधिक कार्यकर्ता मारे गए थे।

2001 में दोनों पक्षों में झड़पें अचानक बढ़ी और कभी संघ कार्यरकर्ताओं पर तो कभी वामपंथियों पर हमले होने लगे। पहले साल 2001 में एक भाजपा कार्यकर्ता के पिता को मारा गया और उसके बाद खुद भाजपा कार्यकर्ता रमित को भी मौत के घाट उतार दिया गया। भाजपा ने इन हत्याओं को लेकर प्रदर्शन भी किया लेकिन सुनवाई नहीं हुई।

पुरानी रिपोर्ट्स को यदि पढ़ें तो पता चलता है कि विष्णु की हत्या आरएसएस पर हुए एक हमले के बाद हुई थी और पुलिस ने इस पर संदेह जताया था कि चूँकि आरएसएस वाले मानते हैं कि विष्णु 2001 से इलाके में आरएसएस पर होते हमलों के पीछे सक्रिय रूप से था, इसलिए हमला उन्होंने किया।

बता दें कि 1 अप्रैल 2008 से भी पहले आरएसएस कार्यालय पर एक हमला हुआ था। इसके बाद ही विष्णु की हत्या घटना घटी। 1 अप्रैल 2008 को कुछ लोगों ने कैथामुक्कू के पासपोर्ट ऑफिस के पास उसे दिनदहाड़े मारा था। वह चूँकि सीपीएम कार्यकर्ता था तो हल्ला बहुत हुआ। देखते ही देखते ही इस केस में 16 लोग आरोपित बनाए गए और तिरुवनंतपुरम अतिरिक्त सत्र न्यायालय में इसकी सुनवाई चली।

इनमें 13 को साल 2016 में कोर्ट ने दोषी माना और ज्याजातर को आजीवन कारावास की सजा दी। निचली अदालत के इस आदेश के बाद आरएसएस कार्यकर्ताओं ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। जहाँ सुनवाई के बाद कोर्ट ने पूरा केस समझा और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को हत्या का कारण बताया। साथ ही ये भी कहा कि पूरे केस को बरगलाकर एक नैरेटिव गढ़ने की कोशिश हुई।

मालूम हो कि विष्णु की हत्या के बाद क्षेत्र में आरएसएस पर दोबारा हमला हुआ था। 2008 में एक मोहन नाम के कार्यकर्ता पर रंजीत नाम के वामपंथी कार्यकर्ता ने अपने 12 साथियों के साथ हमला किया था। उस समय भी पुलिस ने मामले पर सुनवाई की जगह ये पड़ताल शुरू कर दी थी कि क्या वाकई मोहन विष्णु की हत्या के पीछे था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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