अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की तिथि समीप आ चुकी है। 22 जनवरी को रामलला अपनी जन्मभूमि पर बन रहे मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होंगे। इस मौके पर पूरा देश उन तमाम बलिदानी रामभक्तों को याद कर रहा है जिन्होंने मुगल काल से मुलायम सरकार के बीच अपने-आप को न्योछावर कर दिया। इन बलिदानियों को जिस निर्ममता से बाबर के समय में मारा गया था उस से कहीं अधिक बेरहमी साल 1990 में मुलायम सरकार में दिखाई गई।
राम का नाम लेते निहत्थे कारसेवकों पर गोलियाँ बरसाने और उनकी लाशों तक से निर्दयता दिखाने वालों की ऑपइंडिया ने जमीनी पड़ताल की। इस पूरे मामले में भुल्लर और उस्मान नाम के 2 पैरामिलिट्री अधिकारियों के नाम सबसे अधिक चर्चा में हैं। लेकिन इस पूरे नरसंहार में जो सबसे चौंकाने वाला पहलू सामने आया वो है मुन्नन खाँ का नाम। 4 साल पहले ‘द वायर’ इसी मुन्नन खाँ का बचाव कर चुका है। द वायर ने विक्टिम कार्ड फेंकते हुए अपनी इसी रिपोर्ट में कई और भी झूठी और तथ्यों से परे जानकारियाँ डाली हैं।
प्राइवेट गैंग ले कर किया था नरसंहार
ऑपइंडिया ने सबसे पहले साल 1990 में अयोध्या में तैनात रहे एक पुलिस अधिकारी के हवाले से बताया था कि कहीं न कहीं मुन्नन खाँ की संलिप्तता तब हुए रामभक्तों के नरसंहार में थी। इस खुलासे के बाद अब कई जीवित कारसेवकों और बलिदानी रामभक्तों के परिजनों ने स्वीकार किया है कि उन्होंने 1990 में सुना था कि मुन्नन खाँ नाम का नेता नरसंहार में शामिल था। सुल्तानपुर जिले के बलिदानी रामभक्त राम बहादुर वर्मा के पुत्र काली सहाय का आरोप है कि मुन्नन खाँ को गोलियाँ बरसाने के लिए हेलीकॉप्टर तक दे दिया गया था।
बकौल काली सहाय तब 1990 में आम जनता भी यह जानती थी कि मुन्नन खाँ ने रामभक्तों की हत्या अपनी ‘प्राइवेट गैंग’ से करवाई है। काली सहाय ने रामभक्तों को लगे गोलियों के बोर के भी गैर सरकारी होने की आशंका जताई।
असली पुलिस मारी या नकली, हमें नहीं पता
ऑपइंडिया ने साल 1990 की कारसेवा में शामिल रहे रामभक्त रघुवीर सिंह से बात की। रघुवीर सिंह का सिर लाठीचार्ज में फट गया था। उन्होंने बताया कि तब कारसेवा के दौरान उन्होंने गोंडा के मुन्नन खाँ का नाम सुना था। उन्होंने आगे कहा, “यही सुना था कि वहाँ मुन्नन खाँ पुलिस की वर्दी में गोली चलाने के लिए 2-3 गाड़ियाँ गुंडों को भेजा है। रघुवीर को ये नहीं कन्फर्म है कि उन पर हमला नकली पुलिस ने किया था या असली ने क्योंकि तब अपनी जान बचाना उनके लिए प्राथमिकता थी। बकौल रघुवीर, उस आपाधापी में वो किसी का बिल्ला या नेमप्लेट नहीं पढ़ आए थे।
‘अयोध्या क्यों नहीं चल रहे, वहाँ फल मिलेगा’
साल 1990 में अयोध्या कारसेवा में शामिल रहे रामभक्त राजेश कुमार साहू ने भी ऑपइंडिया से बातचीत में मुन्नन खाँ का नाम लिया। उन्होंने बताया कि जब वो अयोध्या से लौट कर आए तब उन्हें आसपास के लोगों ने बताया कि सामने वाली सड़क से मुन्नन खाँ अपने आदमियों को पुलिस की वर्दी पहना कर ले गया है। आरोप है कि तब मुन्नन सरकारी रोडवेज बस में साथियों सहित उन इलाकों में घूम रहा था जहाँ से कारसेवकों का आना-जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित था। राजेश साहू के पड़ोसियों ने उन्हें बताया कि मुन्नन खाँ कारसेवकों से बोल रहा था, “चलो अयोध्या। वहाँ फल मिलेगा।” राजेश के मुताबिक मुन्नन खाँ के पास हथियार भी देखे गए थे।
नकली PAC की पूरी बटालियन शामिल थी कत्लेआम में
1990 में अयोधा कारसेवा में शामिल रहे मुरारी लाल गुप्ता ने भी ऑपइंडिया से बातचीत में मुन्नन खाँ का जिक्र किया। उन्होंने आरोप लगाया कि तब उन्हें पता चला था कि मुन्नन खाँ ने रामभक्तों की हत्या के लिए नकली PAC की पूरी बटालियन ही तैयार कर ली थी। मुरारी लाल गुप्ता ने यह भी बताया कि वो जिस मुन्नन खाँ की बात कर रहे हैं वो गोंडा का सांसद रह चुका है। बकौल मुरारी लाल, इन्ही नकली PAC वालों ने ही बाद में रामभक्तों पर हनुमानगढ़ी के पास मौजूद मंदिरों की छतों पर चढ़ कर गोलियाँ बरसाईं थीं। इस गोलीबारी में कई कारसेवक बलिदान हो गए थे।
मुन्नन ही पिता का कातिल
2 नवंबर, 1990 को अयोध्या में गोलियों से भून दिए गए कारसेवक राम अचल गुप्ता के बेटे संजय ने ऑपइंडिया से बात की। संजय ने भी दावा किया कि बचपन में उन्होंने मुन्नन खाँ के बारे में सुना था कि वो रामभक्तों का नरसंहार पुलिस की वर्दी पहन के कर रहा था। संजय का दावा है कि उनके पिता भी मुन्नन खाँ द्वारा चलाई गई गोली के शिकार हुए थे।
तब दीवालों पर लिखा गया था मुन्नन का नाम
30 अक्टूबर, 1990 में बलिदान हुए रामभक्त वासुदेव गुप्ता की बेटी सीमा ने ऑपइंडिया से बात की। सीमा ने दावा किया कि पिता को गोली लगने के समय वो काफी छोटी थीं लेकिन उनको अच्छे से याद है कि तब पैरामिलिट्री के स्टाफ जे एस भुल्लर और मोहम्मद उस्मान के अलावा किसी नेता मुन्नन खाँ का नाम कारसेवकों को मारने को ले कर खूब चर्चा में आया था। सीमा गुप्ता ने बताया कि उस समय मुन्नन खाँ का नाम कई जगह दीवालों पर लिखा देखा जाता था।
मुख्यमंत्री कराएँ मुन्नन के कुकृत्य की जाँच
बलिदानी रामभक्त आम अचल गुप्ता के बेटे संजय गुप्ता ने 11 जनवरी 2024 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र प्रेषित किया है। इस पत्र में संजय ने इस बात की पुख्ता जानकारी होने का दावा किया है कि साल 1990 में हुए कारसेवकों के नरसंहार में मुन्नन खाँ भी शामिल था। संजय गुप्ता ने पत्र में लिखा है कि यदि 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा काण्ड की जाँच हो सकती है तो 1990 में कारसेवक नरसंहार की क्यों नहीं।
हाशिमपुरा कांड में 40 साल बाद उन पुलिसकर्मियों को अदालत से सजा दी गई है जिन पर 1987 में मेरठ के मुस्लिम समुदाय के लोगों को गोली मारने का आरोप था। इसमें से कई तत्कालीन पुलिसकर्मियों का देहांत हो चुका था और कई काफी बुजुर्ग हो गए थे।
मुन्नन के रुतबे के आगे सब थे नतमस्तक
ऑपइंडिया ने एक ऐसे पुलिसकर्मी को खोज निकाला जो साल 1990 में अयोध्या में तैनात रहा था। पुलिसकर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि प्रादेशिक पुलिस बल ने रामभक्तों पर अधिकतम लाठीचार्ज किया था जिस से वो भाग जाएँ और गोली खाने से बच जाएँ। पुलिसकर्मी ने बताया कि सरयू नदी के पास मुन्नन खाँ द्वारा साथियों सहित रामभक्तों पर हमले की चर्चा उस समय आम थी। इस हमले की वजह से कई रामभक्त उफनती सरयू नदी में कूद गए थे जिनका शव भी नहीं मिल पाया।
अयोध्या में तैनात रहे पुलिस स्टाफ का यह भी दावा है कि तब शासन और प्रशासन तक बहुत लोगों को मुन्नन खाँ की करतूत की जानकारी थी लेकिन उसका राजनैतिक रुतबा इतना ज्यादा था कि उस पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाई।
कौन था मुन्नन खाँ
मुन्नन खाँ का पूरा नाम फसी उर रहमान था। 7 जनवरी, 1945 में उसका जन्म उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में हुआ था। गोंडा अयोध्या की सीमा से सटा हुआ जिला है। तब बलरामपुर जिला भी गोंडा का हिस्सा हुआ करता था। गोंडा के कई बुजुर्ग बताते मुन्नन खाँ ने 70 के दशक के आसपास ही अपराध का रास्ता चुन लिया था। कुछ ही दिनों में उसका नेटवर्क नेपाल तक फैल गया था। इस बीच साल 1985 में उसने गोंडा जिले के कटरा विधानसभा क्षेत्र से लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उसे जीत मिली। साल 1989 में 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद इसी साल मुन्नन ने बलरामपुर संसदीय सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा। इस चुनाव में मुन्नन खाँ को जीत मिली।
जनप्रतिनिधि होने के बावजूद मुन्नन के आपराधिक कारनामें बदस्तूर जारी रहे। जमीन कब्ज़ाने और दंगे करवाने जैसे आरोप उस पर समय-समय पर लगते रहे। बावजूद उसके राजनैतिक संरक्षण के चलते उसके नाम पर न सिर्फ गोंडा जिले में चौराहे बल्कि गाँव तक के नाम रख दिए गए। मुन्नन खाँ 5 बेटे और 2 बेटियों का अब्बा भी था। उसका बेटा कासिम भी हिस्ट्रीशीटर अपराधी है। मुन्नन और उसके परिवार के आपराधिक और काले कारनामों की चर्चा हम जल्द ही एक अलग रिपोर्ट प्रकाशित करेंगे।
मुन्नन खाँ की ढाल बना था ‘द वायर’
वामपंथी न्यूज़ पोर्टल ‘द वायर’ ने इसी मुन्नन खाँ को क्लीन चिट देते हुए 2019 में उसकी शान में कसीदे गढ़े थे। तब ‘द वायर’ के पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह ने मुन्नन खाँ के नाम को महज कुछ पत्रकारों के मन की उपज करार दिया था। साल 1990 में मुन्नन खाँ की करतूत उजागर करने वाले तात्कालिक मीडियाकर्मियों को द वायर ने 9 नवंबर 2019 को प्रकाशित लेख में ‘हिन्दू पत्रकार’ बताया है। इसी रिपोर्ट में द वायर ने मुन्नन खाँ को मुलायम का करीबी ‘दबंग समाजवादी नेता’ को माना है लेकिन उसे हर तरह के अपराध से क्लीन चिट दे डाली है।
अपनी पूरी मनगढ़ंत रिपोर्ट में द वायर ने कभी भी किसी जीवित कारसेवक या बलिदान हुए रामभक्त के परिजन से जमीन पर उतर बात करने की जहमत नहीं उठाई।
मुस्लिम-हिन्दू के नाम पर ‘द वायर’ का एक और झूठ
‘द वायर’ के वामपंथी लेखक कृष्ण प्रताप ने बड़ी चालाकी से फायरिंग, मुन्नन और तत्कालीन सरकार से सभी आरोप ट्रांसफर कर के तत्कालीन पत्रकारों के सिर पर मढ़ दिए हैं। इसी रिपोर्ट में उन्होंने बताया है कि 1990 में हुई फायरिंग के दौरान अयोध्या में कोई भी मुस्लिम अधिकारी तैनात नहीं था। द वायर की खबर प्रकशित होने के लगभग सवा महीने बाद TV 9 भारतवर्ष के पत्रकार हेमंत शर्मा ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि कारसेवकों पर गोलियाँ बरसाने वालों में CRPF का उप कमांडेंट उस्मान भी शामिल था।
दबी सच्चाई के खिलाफ ‘द वायर’ की एडवांस तैयारी
द वायर ने एक दावा और किया है कि मुन्नन खाँ अपनी दबंग छवि के चलते विश्व हिन्दू परिषद की आँखों में खटक रहा था। हालाँकि द वायर ये नहीं बता पाया कि दूर गोंडा जिले के निवासी मुन्नन खाँ के ही समय में तत्कालीन फैज़ाबाद (अब अयोध्या) जिले के ही अजीमुल हक उर्फ़ पहलवान और नजदीकी जिले सुल्तानपुर में ज़ुल्फ़िक़ारूल्लाह जैसे मुस्लिम नेताओं का भी अच्छा प्रभाव था। विश्व हिन्दू परिषद या किसी राष्ट्रवादी पत्रकार को अयोध्या या उस से नजदीकी जिले के बजाय दूर किसी जनपद के मुस्लिम नेता का नाम लेने की जरूरत क्यों पड़ेगी?
हालाँकि, माना जा रहा है कि 2019 के आसपास सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर केस अपने चरम और निर्णायक मोड़ पर था। ऐसे में दफन किए जा चुके सच और तथ्य बाहर आने की संभावना देख कर ‘द वायर’ जैसे संस्थानों ने अपने चहेतों के लिए एडवांस तैयारी कर ली थी।
फिलहाल द वायर के चेहते मुन्नन खाँ से जुड़े अभी कई दबे मामले सामने आने बाकी है। बलिदान हुए रामभक्तों के परिजनों की भी इच्छा है कि नेता मुन्नन खाँ ही नहीं उस्मान जैसे अधिकारियों की 1990 नरसंहार मामले में भूमिका की निष्पक्षता और गहनता से जाँच की जाए। मुन्नन खाँ का नाम लेने वाले तमाम भुक्तभोगी कारसेवक अभी जीवित हैं। तत्कालीन समय के कई पत्रकार भी अभी मौजूद हैं। ये सभी इस जाँच में पूरा सहयोग करने की भी बात कह रहे हैं। जनमानस की भी अपेक्षा है कि 3 दशक से भी पुराना वो सच अब बाहर आना चाहिए जिस दौरान सरयू नदी के पानी के लाल हो जाने का दावा किया जाता है।