झारखंड में लालच देकर धर्मांतरण का खेल ईसाई मिशनरियों द्वारा खेला जा रहा है, जिसमें जनजातीय समूहों को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। गढ़वा स्थित धुरकी प्रखंड के खाला गाँव में ऐसे 2 दर्जन परिवारों ने ईसाई मजहब अपना लिया है। हाल ही में कोरवा समाज की एक बैठक हुई, जिसमें गाँव के 3 परिवारों को ईसाई मजहब अपनाने के लिए समाज से बहिष्कृत किया गया। साथ ही आर्थिक और शारीरिक दंड भी दिया गया।
धर्म परिवर्तन करने वाले परिवार के यहाँ शादी-विवाह, जन्म-मरण व अन्य सामाजिक कार्यों में समुदाय के किसी भी व्यक्ति के हिस्सा लेने पर 25,051 रुपए का आर्थिक व 51 लाठी का शारीरिक दंड निर्धारित किया गया है।
आदिम जनजाति को बहला-फुसला कर, लोभ-लालच देकर और बात न बनने पर धमका कर भी हिंदू धर्म छोड़ कर ईसाई मजहब अपनाने को कहा जाता है। सबसे पहले 4 भाइयों के एक परिवार को यहाँ ईसाई बनाया गया, फिर 5वें पर दबाव डाला जा रहा है।
ईसाई धर्मांतरण की घटनाओं से झारखंड का कोरवा समाज परेशान है। ऐसे तीन परिवारों को पंचायत ने तलब किया। उन्होंने स्वेच्छा से ईसाई मजहब अपनाने की बात करते हुए इसके प्रचार-प्रसार की भी बात कही। इसके बाद पंचायत ने उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया।
SDO ने इस मामले में BDO को गाँव में जाँच के लिए भेजा है। अनुमंडल पदाधिकारी जयमंडल कुमार ने कहा कि मामला गंभीर होगा, तो वो खुद जाएँगे। पंचायत ने हिदायत दी है कि ईसाई मजहब अपनाने वाले परिवारों से सम्बन्ध न रखा जाए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 28, 2021 को ‘मन की बात’ में झारखंड के गढ़वा जिले के रंका पुलिस थाना क्षेत्र स्थित सिंजो गाँव निवासी पारा-शिक्षक हीरामन कोरवा का जिक्र किया, जिन्होंने अपने समुदाय की संस्कृति और पहचान के संरक्षण का बीड़ा उठाया है। उन्होंने कोरवा भाषा में एक डिक्शनरी भी तैयार की है। गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने वाले हीरामन ने ये डिक्शनरी अपनी 12 वर्ष की मेहनत के बाद तैयार की।
कोरवा भाषा अब लगभग विलुप्त होने की कगार पर है, ऐसे में इस समय उसे संरक्षण और पहचान की अत्यधिक आवश्यकता है। गढ़वा में भी इनकी जनसंख्या मात्र 6000 ही बची है। हीरामन को उम्मीद है कि उनकी 50 पन्नों वाली डिक्शनरी इस भाषा के संरक्षण में काम आएगी। उनके पास अपनी डिक्शनरी को प्रकाशित करने के लिए वित्त और संसाधन नहीं थे, जिस कारण पलामू के ‘मल्टी आर्ट एसोसिएशन’ ने इसका बीड़ा उठाया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस कार्य का उल्लेख किए जाने के कारण हीरामन ने ख़ुशी भी जताई और कहा कि केंद्र सरकार का समर्थन जनजातीय समूहों की संस्कृति और भाषाओं के संरक्षण में मददगार होगा, जिसमें कोरवा भी शामिल है। उन्होंने अपने शब्दकोष में दैनिक जीवन से लेकर घर-गृहस्थी में उपयोग में आने वाले शब्दों की परिभाषाएँ लिखी हैं। पीएम के सम्बोधन के बाद कई लोग इस डिक्शनरी को पढ़ना चाहते हैं।
हीरामन ने कोरवा भाषा का बनाया शब्दकोष, पीएम ने सराहा। #MannKiBaat pic.twitter.com/EZiV2pGTRJ
— PMO India (@PMOIndia) December 28, 2020
पारा-शिक्षक हीरामन कोरवा को बधाइयों का ताँता भी लगा हुआ है। बता दें कि कोरवा भाषा में गाँव को ऊंगा, राख को तोरोज, खाना खाएँगे को लेटे जोमाउह और आग को मड़ंग कहते हैं। ऐसे ही कई शब्द अर्थ सहित इस शब्दकोष में समाए हुए हैं। हीरामन बचपन से ऐसे शब्दों को अपनी डायरी में नोट करते रहे हैं। उन्होंने इसके लिए बुजुर्गों से बातचीत की और जानकारी ली। कोरवा के पूर्वज छत्तीसगढ़ से आकर झारखंड में बसे थे।