Saturday, November 2, 2024
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मोनू मानेसर की गिरफ्तारी के बाद पुलिस की नीयत पर क्यों उठ रहे सवाल, क्या तुष्टिकरण की राजनीति के लिए हो रहा गोरक्षक का इस्तेमाल

मोनू मानेसर की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह के दावे किए जा रहे हैं वह नासिर-जुनैद की कथित की हत्या की तह तक पहुँचने की जद्दोजहद कम और राजस्थान के मौजूदा राजनीतिक आका की तुष्टिकरण की राजनीति को हवा देने की कवायद अधिक दिखती है।

नासिर-जुनैद के परिवारों को कन्हैया लाल के परिवार की तरह मुआवजा क्यों नहीं दिया गया

यह सवाल कॉन्ग्रेस की विधायक साफिया जुबेर ने राजस्थान की अपनी ही पार्टी की सरकार से पूछा था। नासिर और जुनैद भरतपुर के जिस घाटमीका गाँव का रहने वाला था, वहाँ के लोग हों या इनके परिजन, अशोक गहलोत की सरकार पर ‘खामोश रहने’ के लिए दबाव डालने, मोनू मानेसर पर कार्रवाई नहीं करने जैसे आरोप लगा रहे थे।

कुछ महीने पुराने इन तमाशों से आप समझ सकते हैं कि राजस्थान में विधानसभा चुनावों से पहले कॉन्ग्रेस का वोट बैंक उससे किस कदर खार खाए बैठा था। इसने गुटबाजी और सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही कॉन्ग्रेस के लिए इधर कुआँ, उधर खाई वाली स्थिति पैदा कर दी थी। ऐसे में मोनू मानेसर की हरियाणा में हुई गिरफ्तारी और फिर उसका ट्रांजिट रिमांड मिलना राजस्थान की सरकार के लिए एक राहत भरी खबर थी।

अब मीडिया में सूत्रों के हवाले से जिस तरह की खबरें नासिर-जुनैद की कथित हत्या में मोनू मानेसर की संलिप्तता को लेकर आ रही हैं, उससे उन अंदेशों को बल मिल रहा है जो उसकी गिरफ्तारी के बाद से व्यक्त किए जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि चुनावों और वोट बैंक की नाराजगी को कम करने के इरादे से मीडिया में ऐसी बातों को ‘प्लांट’ किया जा रहा है जो शायद ही अदालत में राजस्थान पुलिस साबित कर सके।

वैसे भी मोनू मानेसर की गिरफ्तारी से कुछ दिन पहले ही राजस्थान पुलिस के महानिदेशक (DGP) उमेश मिश्रा ने कहा था कि इस मामले में मोनू मानेसर की ‘सीधी संलिप्तता’ नहीं है। उनकी बातों से जाहिर था कि उसकी अप्रत्यक्ष भूमिका को लेकर भी राजस्थान पुलिस के पास कोई प्रमाण नहीं है।

मीडिया का दावा- नासिर और जुनैद हत्या की प्लानिंग मोनू मानेसर ने कबूली

मीडिया की रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि राजस्थान पुलिस की पूछताछ में मोनू मानेसर ने खुलासा किया है कि नासिर-जुनैद की हत्या का प्लान उनके अगवा होने से आठ दिन पहले ही बन गया था। उल्लेखनीय है कि नासिर और जुनैद के अपहरण का केस 15 फरवरी 2023 को दर्ज हुआ था। अगले दिन हरियाणा के भिवानी में दोनों के शव और जली हुई गाड़ी मिली।

दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर

रिपोर्टों के मुताबिक मोनू मानेसर ने बताया है कि जब नासिर-जुनैद को उठाया गया तो उनके पास गाय नहीं थी। कथित तौर पर अपहरणकर्ताओं ने मोनू मानेसर को फोन किया। इसके बाद दोनों को पीटकर अधमरी हालत में फिरोजपुर झिरका थाने ले जाया गया। पुलिस ने दोनों को लेने से इनकार कर दिया तो जंगल में ले जाकर गाड़ी समेत जला दिया। रिपोर्ट में मोनू मानेसर को इस हत्याकांड का ‘साजिशकर्ता’ बताया गया है। दावा किया गया है कि हत्या में शामिल एक शख्स ने नासिर और जुनैद की डिटेल उसे दी थी। इसके बाद मोनू मानेसर ने अन्य आरोपितों के साथ दोनों को उठाने की साजिश रची।

वोट बैंक को खुश करने के लिए किया जा रहा इस्तेमाल?

दिलचस्प यह है कि मीडिया में ये सारे दावे पुलिस सूत्रों के हवाले से किए जा रहे हैं। 14 अगस्त 2023 को राजस्थान के डीजीपी ने कहा था कि इस घटना में मोनू मानेसर का सीधा हाथ नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि पर्दे के पीछे से उसकी भूमिका थी या नहीं, इसका पता लगाने की पुलिस कोशिश कर रही है। अब ऑपइंडिया को सूत्रों ने बताया है कि राजस्थान पुलिस पर इस घटना में मोनू मानेसर की संलिप्तता बताने का दबाव है। सवाल उठता है कि क्या यह दबाव विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है?

मोनू मानेसर को ट्रांजिट रिमांड पर राजस्थान ले जाए जाने के बाद ही विश्व हिन्दू परिषद (VHP) ने इसका अंदेशा जताया था। विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा था, “निर्दोष गौभक्त मोनू मानेसर को राजस्थान पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जबकि कुछ समय पहले ही राजस्थान पुलिस ने निर्दोष माना था। चुनावों में मुस्लिम वोट बैंक के लिए गौभक्त मोनू की गिरफ्तारी हुई है, जो उन्हें बहुत भारी पड़ेगा।”

यहाँ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि गोरक्षा के कार्य से जुड़े होने के कारण इस्लामी कट्टरपंथियों को मोनू मानेसर नहीं सुहाता है। नूहं में हिंदुओं की जलाभिषेक यात्रा पर कट्टरपंथी मुस्लिमों के हमले के बाद भी सारा दोष मोनू मानेसर के मत्थे मढ़ने को लेकर कैंपेन चला था।

मोनू मानेसर का इस्तेमाल विधानसभा चुनाव के दौरान तुष्टिकरण की राजनीति के लिए होने का अंदेशा बीजेपी को भी है। राजस्थान बीजेपी के प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज ने ऑपडिया से बातचीत में कहा, “डीजीपी पहले ही कह चुके हैं कि मोनू मानेसर की इस मामले में संलिप्तता नहीं है। बावजूद इस तरह के दावों का आना बताता है कि कहीं न कहीं ये पोलिटिकल मामला तो है ही। लेकिन पुलिस को निष्पक्ष तरीके से इस मामले की जाँच करनी चाहिए। वैसे भी राजस्थान में डेढ़ महीने बाद सत्ता बदलने वाली है। इस सरकार से किसी के लिए भी न्याय की उम्मीद करना बेकार है। बीजेपी की सरकार आएगी तो वह न्याय करेगी।”

मोनू मानेसर को लेकर किए जा रहे दावों की कोर्ट में प्रमाणिकता कितनी

सुप्रीम कोर्ट के वकील सत्य रंजन स्वैन ने ऑपइंडिया को बताया कि कोर्ट में इकबालिया बयान सबूत नहीं माना जाता है। उन्होंने कहा, “पुलिस रिमांड या पुलिस जाँच अधिकारी के सामने आरोपित द्वारा दिया गया बयान कोर्ट में मान्य नहीं है। सीआरपीसी 1973 के सेक्शन 161 के तहत बयान का इस्तेमाल अनुसंधान के लिए किया जा सकता है।”

उल्लेखनीय है कि सेक्शन 161 के तहत पुलिस केस के सभी गवाहों और सबूतों की जाँच और उनका परीक्षण करती है। जाँच के दौरान पुलिस मामले के गवाहों के बयान भी लेती है। लेकिन धारा-161 के तहत पुलिस को दिया गया बयान शपथ नहीं माना जाता है।

वकील स्वैन ने बताया कि पुलिस अधिकारी के सामने दिया गया इकबालिया बयान आरोपित के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। यदि पुलिस कबूलनामे की वीडियोग्राफी भी करवाए तो भी वह सबूत नहीं माना जाएगा। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि मीडिया रिपोर्टिंग में किए जाने वाले दावों का कोई कानूनी औचित्य ही नहीं होता है।

गौरतलब है कि मोनू मानेसर को हरियाणा पुलिस ने फेसबुक पर भड़काऊ पोस्ट करने के आरोप में 12 सितंबर 2023 को गिरफ्तार किया था। उसे कोर्ट में पेश किया था। कोर्ट ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेजने के निर्देश दिए थे। बाद में ट्रांजिट रिमांड पर राजस्थान पुलिस को सौंप दिया।

हरियाणा पुलिस ने जो कुछ किया है, उसमें कानूनी प्रक्रिया का पालन हुआ है। बावजूद इसके एक धड़ा हरियाणा पुलिस की इस कार्रवाई को लेकर नाखुश भी है। यह स्वभाविक भी है क्योंकि गैर बीजेपी शासित राज्यों में एजेंसियों के कामकाज में बाधा डालने का फैशन भी हम इसी दौर में देख रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कानून के शासन में भरोसा रखने वाली बीजेपी सरकारों के कामकाज को हम विपक्ष शासित राज्यों के रवैए के आधार पर परखें।

मोनू मानेसर का अब तक कानून की गिरफ्त से दूर रहना राजस्थान पुलिस की नाकामी है। इस प्रकरण में राजस्थान पुलिस पर जिस राजनीतिक दबाव में काम करने के आरोप लग रहे हैं, उसका जवाब देना भी राजस्थान पुलिस की ही जिम्मेदारी है। अब सवाल यह है कि क्या राजस्थान पुलिस उसी जिम्मेदारी से काम करेगी जैसा लोकतांत्रिक व्यवस्था में उससे उम्मीद की जाती है या फिर वह इस प्रकरण में पॉलिटकल आकाओं के निर्देश पर उस तरह काम करेगी जैसा उस पर आरोप लग रहे हैं। यह राजस्थान पुलिस भी जानती होगी कि इकबालिया बयान के आधार पर कोर्ट में मोनू मानेसर को दोषी साबित नहीं किया जा सकता। और उसे दोषी मानने योग्य सबूत पुलिस को अब तक नहीं मिले हैं यह पिछले दिनों खुद राजस्थान के डीजीपी बता चुके हैं।

ऐसे में यह मामला नासिर-जुनैद की कथित की हत्या की तह तक पहुँचने की जद्दोजहद कम और राजस्थान के मौजूदा राजनीतिक आका की तुष्टिकरण की राजनीति को हवा देने की कवायद अधिक दिखती है।

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अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

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