Tuesday, April 23, 2024
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11 पॉइंट्स में समझिए सच्चाई: CAA के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने के लिए फैलाए जा रहे ये सारे झूठ

असम में हिंसा भड़काए जाने के पीछे कई आतंकी संगठन भी। पूर्वोत्तर में भाजपा के लगातार बढ़ते प्रभाव के कारण चिंता में डूबी ताक़तें साज़िश रच रहीं। झूठ क्या है और क्या है सच, इसके बीच की महीन रेखा को जानने के लिए...

उत्तर-पूर्वी राज्यों में हिंसा हो रही है। सीएए और एनआरसी के नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है। जिस क़ानून से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से भाग कर भारत आए प्रताड़ित शरणार्थियों को नागरिकता मिलने जा रही है, उसे लेकर अनेकों-अनेक भ्रम फैलाए जा रहे हैं। यहाँ हम 11 पॉइंट्स में उन सभी सवालों के जवाब देंगे, जिनका इस्तेमाल कर के पूर्वोत्तर में हिंसा भड़काई जा रही है। झूठ क्या है और क्या है सच, इसके बीच की महीन रेखा को हम आपके समक्ष लेकर आए हैं, ताकि आपके सामने अगर कोई झूठ फैलाए तो आप सच के हथियार से उसे जवाब दे सकें।

1.) झूठ: नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) असम एकॉर्ड का उल्लंघन करता है।

सच: सीएए में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे असम एकॉर्ड का उल्लंघन होता हो। इसमें मार्च 24, 1971 की जो कट-ऑफ तारीख दी गई है, वो भी असम एकॉर्ड के अनुरूप ही है। कुछ भी ऐसा नहीं है, जो इस समझौते में लिखी बातों के विपरीत हो।

2.) झूठ: बंगाली हिन्दू असम के लिए बोझ बन जाएँगे।

सच: सीएए पूरे देश में लागू होता है। तीनों पड़ोसी इस्लामिक देशों से प्रताड़ित अल्पसंख्यक जो भारत में शरणार्थी बने हुए हैं, उन्हें केवल असम में ही नहीं बसाया जा रहा है। वो लोग भारत के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं। लेकिन, झूठ फैलाया जा रहा है कि उन्हें केवल असम में ही बसाया जाएगा।

3.) झूठ: सीएए से उन डेढ़ लाख बंगाली हिन्दुओं को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी, जो असम में रह रहे हैं।

किसी भी विदेशी नागरिक को इस क़ानून से अपने-आप नागरिकता नहीं मिल जाएगी, चाहे वो किसी भी धर्म का हो। अधिकारीगण इस बात की पूरी पड़ताल करेंगे कि नियमों के तहत उक्त व्यक्ति को नागरिकता दी जाए या नहीं, इसके बाद ही फ़ैसला लिया जाएगा।

4.) झूठ: इससे असम के अल्पसंख्यकों के हितों को नुकसान होगा।

सीएए तो विदेशी अल्पसंख्यकों (पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश) के लिए है। फिर भारतीय अल्पसंख्यकों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ने की बात कहाँ से आ गई? इस पर और स्पष्ट होने के लिए गृह मंत्री अमित शाह का संसद में दिया गया भाषण सुनें।

5.) झूठ: इससे पूर्वोत्तर में बांग्लाभाषियों की संख्या अचानक से बढ़ जाएगी।

असम के बराक वैली में पहले से ही बंगालियों की बड़ी तादाद है, जहाँ बंगाल को दूसरी आधिकारिक भाषा की मान्यता भी दी गई है। ब्रह्मपुत्र की घाटी में रह रहे बंगाली तो असम के अनुरूप ढल गए हैं और वो असमिया बोलते हैं। ऐसा आज से नहीं, वर्षों से हो रहा।

6.) झूठ: ‘इनर लाइन परमिट (ILP)’ के तहत आने वाले क्षेत्रों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा।

आईएलपी के तहत कुछ दिनों पहले तक तीन राज्य आते थे- अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड। भारत सरकार ने हाल ही में मणिपुर की चिंताओं को देखते हुए उसे आईएलपी वाले चौथे राज्य की मान्यता प्रदान की। सबसे बड़ी बात कि सीएए के तहत आईएलपी में आने वाले क्षेत्रों को बाहर रखा गया है।

7.) झूठ: सीएए के लागू होने के बाद नागरिकता पाने की लालच में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी हिन्दू पूर्वोत्तर में आ जाएँगे।

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ प्रताड़ना की घटनाओं में भारी कमी आई है। अब ऐसी कोई सम्भावना दिखती नहीं कि हज़ारों-लाखों की संख्या में बांग्लादेश से भारत की तरफ हिन्दुओं का एकमुश्त पलायन हो। और हाँ, सीएए के तहत दिसंबर 31, 2014 का कट-ऑफ डेट भी तो तय किया गया है। उसके बाद आने वाले लोग इस क़ानून के तहत लाभ के अधिकारी नहीं होंगे।

8.) झूठ: सीएए घुसपैठियों को बढ़ावा दे रहा है।

सबसे पहले तो घुसपैठियों और शरणार्थियों के बीच अंतर होता है, ये जान लेना चाहिए। सीएए तो संवैधानिक तरीके से उन्हें अधिकार दे रहा है, जिन्हें पिछले 70 सालों से हर प्रकार के लाभ से वंचित रखा गया और जिन्होंने भारी प्रताड़ना झेली। ये क़ानून वैध शरणार्थियों के लिए है, अवैध घुसपैठियों के लिए नहीं।

9.) झूठ: ये असम के मूल बाशिंदों के ख़िलाफ़ है।

असम के मूल बाशिंदों के हितों की रक्षा के लिए ही तो एनआरसी लाया गया है। सीएए तो पूरे देश के लिए है।

10.) झूठ: सीएए नॉर्थ-ईस्ट के ट्राइबल एरियाज में भी लागू होगा।

असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के ट्राइबल क्षेत्रों में तो सीएए लागू होगा ही नहीं। पूर्वोत्तर के हितों का पूरा ध्यान रखा गया है। संविधान की छठी अनुसूची का ध्यान रखते हुए इसे तैयार किया गया है।

11.) झूठ: ये आर्टिकल 370 का उल्लंघन करेगा (इसके तहत पूर्वोत्तर के राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है।)

सरकार ने बार-बार कहा है कि नॉर्थ-ईस्ट की सांस्कृतिक और भौगोलिक पहचान को अक्षुण्ण रखा जाएगा। साथ ही अनुच्छेद 371 को हटाने की बातें भी फ़र्ज़ी है।

असम में हिंसा भड़काए जाने के पीछे कई आतंकी संगठनों के नाम भी सामने आ रहे हैं। पूर्वोत्तर में भाजपा के लगातार बढ़ते प्रभाव के कारण चिंता में डूबी ताक़तें साज़िश रच रही हैं। जैसे जामिया सहित अन्य विश्वविद्यालयों में छात्रों को भड़काया जा रहा है, उसी तरह नॉर्थ-ईस्ट में लोगों को सड़क पर उतरने को कहा जा रहा है। पश्चिम बंगाल में अलग तरीके से हिंसा भड़काई जा रही है। अर्थात, अलग-अलग इलाक़ों में विरोध के लिए अलग-अलग बहाने खोजे जा रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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