‘मिनी महाराष्ट्र’ के नाम से मशहूर नासिक शहर में 18वीं शताब्दी का एक ऐतिहासिक स्मारक है, जो कभी पेशवाओं के प्रशासनिक मुख्यालय के रूप में काम करता था। पुराने नासिक क्षेत्र के सराफ बाजार में शहर के मध्य में स्थित स्मारक ‘सरकारवाड़ा’ इन दिनों सबका ध्यान अपनी आकर्षित कर रहा है, क्योंकि एक स्थानीय हिंदू समूह से जुड़े कुछ सदस्यों ने परिसर में ‘सैय्यद शाह वल्ली बाबा दरगाह’ होने पर आपत्ति जताई है।
ऋषिकेश दपसे (बापू), एक स्थानीय हिंदू संगठन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनका दावा है कि सरकारवाड़ा में मौजूद दरगाह, जो कभी पेशवाओं का घर था, एक ‘अवैध अतिक्रमण’ है। इसे हटा दिया जाएगा, क्योंकि यह पेशवाओं के गलत इतिहास का प्रतिनिधित्व करता है। बापू ने कहा, “सरकारवाड़ा या पेशवाओं के इतिहास में सैय्यद शाह वल्ली बाबा का कोई संदर्भ नहीं है। उनका पेशवाओं से कोई संबंध नहीं था।
हमारे मराठा नेताओं ने मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्होंने अपने घर के अंदर दरगाह कैसे बनने दी होगी? यह दरगाह कभी भी सरकारवाड़ा का हिस्सा नहीं थी। बाद में इसका निर्माण किया गया था। यह अवैध अतिक्रमण है, क्योंकि सरकार के पास भी दावा किए गए धार्मिक स्थल के बारे में कोई दस्तावेज नहीं है।”
न्यू सिटी सर्वे मैप दरगाह के अलग प्रवेश द्वार को दर्शाता है
ऑपइंडिया की टीम ने इस घटना की पुष्टि करने के लिए नासिक का रुख किया और सरकारवाड़ा के पुराने ब्लूप्रिंट और वर्तमान ब्लूप्रिंट को खोज निकाला। दस्तावेजों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि दरगाह उस सरकारवाड़ा का हिस्सा नहीं थी, जिसे 18वीं शताब्दी में बनाया गया था। ‘सैय्यद शाह वल्ली बाबा दरगाह’, जहाँ कुछ हिंदू भी प्रार्थना करने आते हैं, उसको कई वर्षों के बाद बनाया गया था। हाल के वर्षों में इसे एक अलग प्रवेश द्वार दिया गया है। हालाँकि, राज्य पुरातत्व विभाग ने कहा है कि दरगाह पुरानी है और इसे पहले शहर के सर्वेक्षण मानचित्र में नहीं दिखाया गया था, लेकिन इसे अब दिखाया गया है।
दरगाह साफ है और दिन में कुछ निर्धारित घंटों के लिए इबादत के लिए खुली रहती है। दरगाह पर किसी भी मुस्लिम ट्रस्ट या संगठन का नियंत्रण नहीं है। यह सरकारवाड़ा का हिस्सा है और वर्ष 1995 से राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।
18वीं सदी के सरकारवाड़ा का इतिहास
ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, सरकारवाड़ा का निर्माण रंगनाथ ओढेकर नाम के एक पेशवा सरदार द्वारा किया गया था और बाद में राघोबदादा पेशवा ने इसे अपने कब्जे में ले लिया था। यह भी माना जाता है कि मराठा साम्राज्य की पेशवी गोपिकाबाई पेशवे वाडा का दौरा करती थीं और वहाँ से मराठा प्रशासन को नियंत्रित करती थीं। बाद में, 1818 में पेशवाओं की हार के बाद, सरकारवाड़ा को अंग्रेजों ने अपने कब्जे में ले लिया, जिन्होंने वहाँ से ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवसाय को जारी रखने के लिए महल का भी इस्तेमाल किया। यही कारण है कि इसका नाम ‘सरकारवाड़ा’ पड़ा।
आज, सरकारवाड़ा एक क्षेत्रीय प्राचीन संग्रहालय और राज्य पुरातत्व के सहायक निदेशक के कार्यालय के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। हालाँकि, संपत्ति के बाईं ओर आधिकारिक तौर पर ‘सैय्यद शाह वल्ली बाबा दरगाह’ का कब्जा है, जिसकी मौजूदगी एक बड़ा सवाल है।
हिंदू कार्यकर्ता बापू कहते हैं, ‘दरगाह अवैध है’
बापू ने ऑपइंडिया से बात करते हुए कहा कि दरगाह पर नमाज अदा करने वाले ज्यादातर नमाजी हिंदू हैं और कोई नहीं जानता कि सैय्यद शाह वल्ली बाबा कौन हैं और वह पेशवाओं से कैसे जुड़े थे। उन्होंने कहा, “हम इस शहर में (सराफ बाज़ार इलाके) में कई पीढ़ियों से रह रहे हैं। मेरी चौथी पीढ़ी है। यह दरगाह पुरानी मानी जाती है। लेकिन हाल के दिनों में लोगों ने बाबा के नाम पर सैंडल प्रोसेशन (धार्मिक मेले) आयोजित करना शुरू कर दिया है। बाबा या दरगाह के बारे में कोई नहीं जानता, पुरातत्व विभाग भी नहीं। दरगाह की स्थापना कब और क्यों हुई, यह भी कोई नहीं जानता। इस बीच धार्मिक मेलों और जुलूसों का आयोजन और उस स्थान पर नमाज की अनुमति देना क्या पेशवाओं के गलत इतिहास को नहीं दर्शाता है? पेशवाओं का इन सैय्यद शाह वल्ली बाबा से कोई लेना-देना नहीं था। दरअसल, मराठों ने मुस्लिमों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। लेकिन आने वाली पीढ़ियाँ ये सोच सकती हैं कि पेशवा सैय्यद शाह वल्ली बाबा के उपासक थे, जो कि सच नहीं है।”
Dargah at Sarkarwada illegal, should be removed, demands Hindu activist Bapu Dapse from OpIndia Videos on Vimeo.
‘कोई दस्तावेज नहीं’, आरटीआई के जवाब में राज्य पुरातत्व विभाग की पुष्टि
उन्होंने यह भी कहा कि उनके संगठन के कुछ सदस्यों ने राज्य पुरातत्व विभाग से दरगाह के बारे में जानकारी लेने के लिए एक आरटीआई दायर की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। एक कैलाश देशमुख के नाम पर दायर आरटीआई का जवाब राज्य पुरातत्व निदेशक ने दिया था, जिसमें कहा गया था कि दरगाह के के संबंध में कोई दस्तावेज नहीं हैं। सरकारवाड़ा की पूरी संपत्ति को वर्ष 1995 में पुरातात्विक स्थल के रूप में घोषित किया गया था। दरगाह भी, 1995 से पहले की संपत्ति का हिस्सा होने के नाते, कानून के तहत संरक्षित है।
बापू दपसे ने दरगाह के खिलाफ सख्त कार्रवाई की माँग करते हुए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, सांस्कृतिक मामलों के मंत्री सुधीर मुनगंटीवार और पुरातत्व व संग्रहालय विभाग के निदेशक तेजस गर्ग सहित कई नेताओं को पत्र भेजा हैं। पत्र में यह भी कहा गया है कि पेशवेकालीन सरकारवाड़ा में अतिक्रमण से हिंदुओं की धार्मिक भावनाएँ आहत हुई हैं।
सराफ बाजार के स्थानीय दुकानदारों को दरगाह से कोई दिक्कत नहीं
टीम ऑपइंडिया ने इस बीच कई अन्य दुकानदारों से बात की, जिनकी सराफ बाजार क्षेत्र में दुकान है। इनमें से कई दुकानदार जो हिंदू हैं और अपने माथे पर तिलक लगाते हैं, अपना काम शुरू करने से पहले वे रोजाना दरगाह पर नमाज अदा करते हैं। उनकी दिनचर्या के इस हिस्से को टीम ने देखा और नोट भी किया।
एक सुनार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दरगाह करीब 150 साल पुरानी मानी जाती है और बाजार क्षेत्र में किसी को भी इसके होने से कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा, “इस दरगाह में ज्यादातर हिन्दू आते हैं। पहले इस दरगाह में प्रवेश सरकारवाड़ा के भीतर से होता था, लेकिन इसके जीर्णोद्धार के बाद इसे अलग प्रवेश द्वार दिया गया और तब से यह विवादों में है। कई हिंदू संगठन इसे हटाने की माँग कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि पेशवाओं का सैय्यद शाह वल्ली बाबा से कोई संबंध नहीं था और उन्होंने कभी दरगाह नहीं बनाई। उनका दावा है कि गलत इतिहास बताया जा रहा है और इससे उनकी भावनाएँ आहत हुई हैं, लेकिन बाजार में कोई भी ऐसा महसूस नहीं करता है। वास्तव में, सराफ बाजार में अधिकांश हिंदू रोजाना दरगाह जाते हैं और आशीर्वाद माँगते हैं।”
‘दरगाह को हटाया नहीं जा सकता’
टीम ऑपइंडिया ने राज्य पुरातत्व विभाग, नासिक की प्रमुख आरती अले से भी मुलाकात की, जिन्होंने पुष्टि की कि राज्य पुरातत्व विभाग को दरगाह के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा, “स्थल वर्ष 1995 से पुरातात्विक मानदंडों के तहत संरक्षित है और मानदंडों के अनुसार साइट को संरक्षित किया जाना है जैसा कि यह है। साइट पर कोई निष्कासन, पृथक्करण या विस्तार की अनुमति नहीं दी जा सकती है।”
उन्होंने कहा कि विभाग ने दरगाह के इतिहास की खोज करने की कोशिश की लेकिन नहीं कर सका। अले ने पुष्टि की, “दरगाह इबादत के लिए खुली है। कई लोग, ज्यादातर हिंदू यहाँ आते हैं। हाल के वर्षों में कुछ संगठनों ने दरगाह के इतिहास और पेशवाओं के साथ इसके संबंध का मुद्दा उठाया है, लेकिन हमें भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। हमारे पास दरगाह के संबंध में कोई दस्तावेज और कोई कागजात नहीं है।”
‘No documents about Dargah at Sarkarwada Nashik,’ State Archeology Dept from OpIndia Videos on Vimeo.
हिंदू संगठनों द्वारा रखी गई माँगों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “वे चाहते हैं कि इस दरगाह को हटा दिया जाए। लेकिन यह किसी तरह संभव नहीं है। यह सरकारवाड़ा का हिस्सा है और पूरी संपत्ति पुरातत्व विभाग के अधीन सुरक्षित है। हम इसमें कुछ नहीं कर सकते। इसे हटाया नहीं जा सकता है।”