ब्रिटिश राज में भारत में लगभग 6 करोड़ लोगों की असामयिक मौत हुई। अंग्रेजों की नीतियों के चलते भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वालों के जीन तक बदल गए। उन्होंने भारत में जाति व्यवस्था को भी खूब बढ़ावा दिया और इसका रूप विकृत कर दिया।
इसके अलावा अंग्रेजों ने भारत में कई इलाकों में अफीम उगा कर उन्हें शैक्षणिक क्षेत्र में बर्बाद कर दिया। यहाँ तक भारत की स्थानीय बोलियों को भी शिक्षा व्यवस्था से बाहर करवा दिया। यह सारी बातें अंतरराष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम ने एक रिपोर्ट में बताई है।
ऑक्सफैम एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो विश्व में गरीबी और अन्याय के खिलाफ काम करने का दावा करती है। यह इससे सम्बन्धित रिपोर्ट भी समय-समय पर प्रकाशित करती है। रिपोर्ट ‘टेकर्स, नॉट मेकर्स’ (लूटने वाले, ना कि बनाने वाले) नाम से प्रकाशित हुई है।
स्थानीय भाषाओं को अंग्रेजों ने किया खत्म
ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उपनिवेशवादी ताकतों ने शिक्षा को अपना हथियार बताया। उन्होंने शिक्षा का उपयोग लोगों में यूरोपियन मान्यताओं को डालने के लिए किया। इस उत्पीड़न के चलते कई देशों ने उनको गुलाम बनाने वालों की ही भाषा को अपना लिया और उनकी संकृति तक मानने लगे।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के एक तिहाई लोग आज भी वह भाषा बोलते हैं, जो उनको गुलाम बनाने वालों की थी। भारत में भी स्थानीय भाषाओं का अस्तित्व मिटाने में बड़े तौर पर हाथ अंग्रेजों के शासन का रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में भारत में 0.14% मातृभाषाएँ ही शिक्षा में माध्यम में उपयोग की जाती हैं। इनको 1% विद्यालयों में भी नहीं पढ़ाया जाता।
इतना लूटा कि बदल गए जीन
अंग्रेजों ने भारतीयों को शिक्षा ही नहीं बल्कि खाने से भी दूर कर दिया। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, अंग्रेजों की नीतियों की वजह से 1891 से लेकर 1920 के बीच भारत में 5.9 करोड़ असामयिक मौतें हुईं। अंग्रेजों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में अनाज का अकाल होने दिया।
उन्होंने अपनी सेना का पेट भरने के लिए नस्लभेदीसोच के तहत अनाज के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इसके चलते बंगाल के अकाल में 30 लाख (अनुमान) लोग मारे गए। यह ऐसा अकाल था कि जिसका असर अब बांग्लादेश और भारत में रहने वाले इससे प्रभावित लोगों की पीढ़ियों में हो रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस अकाल ने लोगों के जीन में बदलाव कर दिया। रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस अकाल के चलते यहाँ रहने वाले लोगों में मोटापे और डायबिटीज की समस्या आज भी बनी हुई है, क्योंकि जीन में अकाल को सहने की क्षमता उस समय विकसित हुई थी। अब वह जीन सामान्य खानपान के साथ तालमेल नहीं बिठा पाता।
जातीय भेदभाव भी अंग्रेजों की ही देन
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में बताया गया है कि अंग्रेजों ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए हर तरह के सामाजिक बँटवारे को इस्तेमाल किया। धर्म, जाति, नस्ल और रंग, हर प्रकार के हथकंडे समाज को बाँटने के लिए अपनाए गए। उन्होंने पहले से चले आ रहे भेदभावों को खत्म करने के बजाय अपने इस्तेमाल में लिया और उन्हें मजबूत कर दिया।
रिपोर्ट कहती है कि अंग्रेजों औपनिवेशिक काल के दौरान, जाति व्यवस्था को कानूनी और प्रशासनिक माध्यम से एकदम औपचारिक रूप दे दिया। इसके चलते इसकी सीमाएँ और भी कठोर हो गईं। इससे समाज में भेदभाव का स्थान भी पक्का हुआ। गौरतलब है कि अंग्रेज ही मार्शल रेस थ्योरी लाए थे।
भारत में अफीम उगा चीन को किया बर्बाद
अंग्रेजों ने सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि चीन को भी दशकों तक प्रताड़ित किया। चीन के लोगों को अफीम की लत अंग्रेजों ने ही लगवाई। यह अफीम उगाने के लिए उन्होंने भारत में किसानों को मजबूर किया। ऑक्सफैम की रिपोर्ट में बताया गया है कि 19वीं सदी आते-आते में, अफीम ब्रिटिश राज के लिए जमीन के लगान और नमक के टैक्स के बाद सबसे ज्यादा कमाई दे रहा था।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन इलाकों में अंग्रेजों ने अफीम उगाना चालू किया, वह शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पीछे होते गए। रिपोर्ट में बताया गया कि इस अफीम उगाने का असर आज तक देखा जा रहा है और यह इलाके आज भी शिक्षा के क्षेत्र में पीछे हैं।