बचपन की स्मृतियों में एक नाम त्रिवेदी का है। पूरा नाम पता नहीं। रात से कई बार कोशिश की लेकिन घोड़े पर बैठे त्रिवेदी का चेहरा याद नहीं कर पाया। एक ही बार उसे देखा था। नौ बरस के करीब उम्र थी। वह बेनीपट्टी थाने का प्रभारी था। वैसे तो यह इलाका शांत था, लेकिन त्रिवेदी की दिलेरी और दबंगई की कई कहानियाँ हवाओं में थी।
त्रिवेदी आज कहाँ होंगे पता नहीं। बाद में कई पुलिस अधिकारियों के नाम सुने। कुछ महिला अधिकारी भी। इनकी पोस्टिंग का मतलब होता था कि उस इलाके में अपराधियों की खैर नहीं। ऐसे ही अधिकारी थे राजस्थान के चुरू जिले के राजगढ़ थाने के प्रभारी विष्णुदत्त विश्नोई।
मैं बुजदिल नहीं था…
विश्नोई शनिवार (23 मई 2020) को अपने सरकारी क्वार्टर से फंदे से लटके मिले थे। पंचतत्व में विलीन हो चुके विश्नोई ने दो सुसाइड नोट भी छोड़े थे। एक में उन्होंने जिले की एसपी तेजस्विनी गौतम को लिखा है,
“आदरणीय मैडम। माफ करना। प्लीज, मेरे चारों तरफ इतना प्रेशर बना दिया गया कि मैं तनाव नहीं झेल पाया। मैंने अंतिम साँस तक मेरा सर्वोत्तम देने का राजस्थान पुलिस को प्रयास किया। निवेदन है कि किसी को परेशान नहीं किया जाए। मैं बुजदिल नहीं था। बस तनाव नहीं झेल पाया। मेरा गुनहगार मैं स्वयं हूँ।”
वह कैसा दबाव होगा जिसका तनाव विश्नोई जैसा अधिकारी झेल नहीं पाया? वह अधिकारी जिससे दुर्दांत अपराधी ही नहीं डरते थे, बल्कि वह जहाँ रहा उस थाने की सूरत बदल गई। इसके लिए वह सरकार के भरोसे नहीं बैठते थे। जनसहयोग से उन्होंने राजस्थान के कम से कम 19 थानों की सूरत बदली थी। यही वह कमाई थी, जिसके कारण अपराध से त्रस्त पब्लिक विश्नोई की पोस्टिंग अपने इलाके में माँगती थी। उनका तबादला हो जाता तो सड़क पर उतर जाती थी।
किस डर से टूटा होगा?
ऐसा दबंग और दिलेर अधिकारी किस डर से टूटा होगा? वो डर इतना भयावह है कि विश्नोई की आत्महत्या के बाद राजगढ़ थाने में तैनात पुलिसकर्मियों ने सामूहिक तबादला माँग लिया। इस डर की परतें तो निष्पक्ष जाँच से ही खुलेंगी। लेकिन इस मामले में कॉन्ग्रेस सरकारों का रिकॉर्ड उत्साहजनक नहीं रहा है। फिलहाल राजनीतिक दबाव में प्रदेश सरकार न्यायिक जाँच के लिए तैयार हो गई है।
इस मामले में सवालों के घेरे में सादुलपुर की कॉन्ग्रेस विधायक कृष्णा पूनिया हैं। बीकानेर के आईजी को सामूहिक तबादले के लिए जो पत्र लिखा गया है कि उसमें भी पूनिया और उनके समर्थकों पर स्पष्ट शब्दों में आरोप लगाया है कि वे झूठी शिकायतें उच्चाधिकारियों से करते थे। थाने में तैनात कुछ लोगों को इन्होंने दबाव डालकर लाइन हाजिर भी करवा दिया था।
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट बताती है कि विश्नोई की सुसाइड का राज थाने की राेजनामचा रपट में दर्ज है। इसके अनुसार “करीब डेढ़ माह पहले एक रपट में उन्होंने लिखा कि शराब का अवैध काराेबार करने वाले बदमाशाें काे पकड़ा ताे छुड़वाने के लिए विधायक ने फाेन पर सिफारिश की। सुसाइड से एक दिन पहले हत्या मामले में हुई बातचीत भी रपट में है।”
हालाँकि पुनिया इसके लिए बीजेपी की ओछी राजनीति को कसूरवार ठहराती हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा है, “मेरी संवेदनाएँ विष्णुदत्त विश्नोई जी के परिवार के साथ है। जिस तरह BJP के नेताओं द्वारा ओछी राजनीति की गई, मैं चाहती हूँ विष्णु दत्त जी की पिछले दिनों की सारी कॉल डिटेल निकलवाकर इस मामले की सम्पूर्ण जाँच की जाए।”
दैनिक भास्कर ने पूनिया से इस मामले में उनका नाम आने को लेकर सवाल किए हैं। जवाब में पूनिया ने कहा है, “विश्नोई से 9 बार फोन पर बात हुई है। कुछ बातचीत 20 से 30 सेकेंड की रही है। बैठकों में आते थे तो देखा है।” साथ ही यह भी कहा है कि दो महीने से लॉकडाउन चल रहा है इस वजह से उनसे कोई खास बात नहीं हुई थी।
क्या झूठ बोल रही हैं कृष्णा पूनिया?
जब भास्कर ने नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ से पूछा कि पूनिया का दावा है कि वे कभी बिश्नोई से मिली ही नहीं, तो उन्होंने कहा कहा कि पूनिया झूठ बोल रही हैं। विष्णुदत्त के पास पूनिया और उनके पति के बैठे होने की तस्वीर भी है। राठौड़ का दावा है कि पूनिया उन्हें हटाने के लिए तीन महीने से दबाव बना रहीं थीं। अपने ओएसडी अमित ढाका के जरिए मुख्यमंत्री कार्यालय में झूठी शिकायतें कर रही थीं। उन्होंने आत्महत्या के एक दिन पहले विश्नोई और उनके मित्र गोवर्धन सिंह वकील के बीच ह्वाटसऐप चैट का भी हवाला दिया है। राजस्थान पत्रिका ने राठौड़ के हवाले से कहा है कि 12 घंटे तक विश्नोई के मृत शरीर को फंदे से लटका हुआ रखा गया। शुरुआत में कहा गया कि तीन पन्ने का सुसाइड नोट है। बाद में दो ही पन्ने थे।
सवाल कई, फर्क कई
सवाल कई और भी हैं, जिनके जवाब तलाशे जाने जरूरी हैं। ऐसा इसलिए कि पूनिया कोई परंपरागत नेता नहीं हैं। वह एथलीट रही हैं। कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदक जीत देश का नाम रोशन किया है। वह खुद भी कहती हैं कि जिन नेताओं की वजह से इस मामले में मेरा नाम आया है उनकी और मेरी हिस्ट्री में फर्क है।
फर्क केवल पूनिया और दूसरे नेताओं के अतीत में ही नहीं है। फर्क इस मामले को लेकर कॉन्ग्रेस विधायकों के नजरिए में भी है। यही कारण है कि हरियाणा के आदमपुर से कॉन्ग्रेस विधायक कुलदीप बिश्नोई ने 23 मई को ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस मामले में पत्र लिखा था। इसमें कहा था कि विष्णुदत्त विश्नोई जैसा अधिकारी सुसाइड नहीं कर सकता। इस मामले की सीबीआई जॉंच कर हत्या प्रकरण का सरकार खुलासा करे।
फर्क मेनस्ट्रीम मीडिया और लिबरल गिरोह की सोच का भी है। यदि ऐसी घटना किसी बीजेपी शासित राज्य में हुई होती तो आज मोमबत्ती कम पड़ गए होते। यदि आज राजस्थान में बीजेपी की सरकार होती तो विश्नोई की आत्महत्या प्राइम टाइम में होती। सब मिलकर सिस्टम का मर्सिया पढ़ रहे होते।
क्या ईमानदार अधिकारियों की जान की कीमत यह देखकर तय की जाएगी कि सत्ता में कौन है? फिर आप पर्दे पर ही सिंघम डिजर्व करते हैं। आपका सिस्टम विष्णुदत्त विश्नोई जैसों के लायक नहीं है।