Wednesday, November 13, 2024
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न घर आई अस्थियाँ, न अपनों को मिला अंतिम दर्शन: कहानी उस कारसेवक की जो राम मंदिर के लिए दूधमुँही बेटियों को छोड़कर गए थे अयोध्या

संजय कुमार सिंह 30 अक्टूबर 1990 को घर में दो दुधमुँही बच्चियों और अपनी पत्नी को छोड़कर चुपचाप घर से निकल गए थे। वो अपनी दुधमुँही बेटियों स्मृति और कृति को पत्नी के पास छोड़कर चले आए थे। सरकार का पहरा था कि कोई कारसेवक अयोध्या न पहुँच सके।

इस समय हर तरफ अयोध्या के रामलला मंदिर की चर्चा है। 22 जनवरी 2024 को हिंदुओं के आराध्य भगवान राम अपने मंदिर में विराजमान होंगे। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री समेत कई गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया गया है। उनमें उन हजारों कारसेवकों के परिवारों को भी आमंत्रित किया गया है, जिन्होंने भगवान राम के मंदिर के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उन्हीं में से एक नाम है संजय कुमार सिंह का।

संजय कुमार सिंह ने 2 नवंबर 1990 को मुलायम सिंह यादव की सरकार द्वारा किए गए नरसंहार में स्वयं का बलिदान दे दिया था। संजय सिंह का अंतिम दर्शन तक परिवार नहीं कर पाया था। उन्हें उसी सरयू के तट पर मुखाग्नि दे दी गई थी, जिसके किनारे वो भगवान राम के मंदिर के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनके साथी कारसेवकों ने उनकी अस्थियों को पवित्र सरयू में विसर्जित कर दिया था। अयोध्या से लौटा तो सिर्फ संजय सिंह की यादें।

राजस्थान के बाँसवाड़ा के दाहोद रोड पर रहने वाली उनकी 35 साल की बेटी स्मृति को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है। वो उन्हीं संजय सिंह की बेटी हैं, जो 2 नवंबर 1990 को 5 अन्य कारसेवकों के साथ अमर हो गए थे। स्मृति कभी अपने पिता के साथ बिहार के काँटी साइन यानी मुजफ्फरपुर में रहती थी। उनके पिता बीजेपी के मंडल उपाध्यक्ष थे।

भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, संजय कुमार सिंह 30 अक्टूबर 1990 को घर में दो दुधमुँही बच्चियों और अपनी पत्नी को छोड़कर चुपचाप घर से निकल गए थे। वो अपनी दुधमुँही बेटियों- स्मृति और कृति को पत्नी के पास छोड़कर चले आए थे। सरकार का पहरा था कि कोई कारसेवक अयोध्या न पहुँच सके। ऐसे में वो गोंडा पहुँचें और अन्य कारसेवकों के साथ खेत-खलिहानों से होते हुए अयोध्या पहुँचे थे।

अयोध्या में उनके दोस्त नरेश कुमार भी साथ थे। दोनों उमा भारती के नेतृत्व में अयोध्या पहुँचे कारसेवकों के जत्थे में शामिल हो गए। कारसेवकों ने हनुमानगढ़ी की ओर कूच किया। उधर, मुलायम सिंह यादव की सरकार ने गोली चलाने का आदेश दिया। कारसेवकों पर पीठ के पीछे से चलाई गई गोलियों से 5 कारसेवक वीरगति को प्राप्त हुए थे।

उस दिन जिन पाँच लोगों ने वीरगति प्राप्त की थी, उनमें से एक संजय कुमार सिंह भी थे। संजय कुमार सिंह का शव कभी उनके घर नहीं आया। उन्हें सरयू नदी के किनारे ही ससम्मान विदाई दे दी गई। उनकी अस्थियों का विसर्जन कर दिया गया। राम मंदिर के लिए आंदोलन चलता रहा। आखिरकार 6 दिसंबर 1992 को बाबरी को ढहा दिया गया।

अब संजय सिंह की पत्नी भी दुनिया में नहीं हैं। उनकी बड़ी बेटी स्मृति को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में बुलावा आया है। वो पूरे परिवार के साथ इस कार्यक्रम में शामिल होंगी। वो कहती हैं कि छोटी बहन को भी अगर बुलावा आता तो वो भी सपरिवार शामिल होती। अभी संजय सिंह के पैतृक गाँव काँटी साइन में उनकी स्मृति में ट्रस्ट बनाया गया है।

संजय सिंह के गाँव में उनकी प्रतिमा लगी है। पार्क का भी निर्माण किया जा रहा है। राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद इस पार्क का भी लोकार्पण किया जाएगा। संजय सिंह स्मृति ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉक्टर अरविंद कुमार सिंह का कहना है, “मेरे साथी का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।” खुद अरविंद सिंह भी संजय सिंह के साथ राम मंदिर के कारसेवक रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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