भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में मनोज पुलम्बी माधवन की नियुक्ति का रास्ता साफ कर दिया है। माधवन का झुकाव वामपंथ की ओर रहा है। इसको देखते हुए उनकी नियुक्ति पर केंद्र सरकार के न्याय विभाग ने चिंता जताई थी। इसके बाद भी उनकी हो रही है।
CJI की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम में डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई भी शामिल थे। मनोज पुलम्बी माधवन की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने कहा, “सिर्फ यह तथ्य कि उम्मीदवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है, सभी मामलों में पर्याप्त कारण नहीं हो सकता है।”
न्याय विभाग ने माधवन की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए कहा था कि वे पहले सीपीआई (एम) पार्टी के समर्थक थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने सरकारी वकील के रूप में कार्य किया है और उन्हें केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (LDF) सरकार ने नियुक्त किया था। यह जानकारी उनकी संभावित नियुक्ति के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया के हिस्से के रूप में सामने लाई गई थी।
कॉलेजियम ने इन चिंताओं को ‘बेहद अस्पष्ट’ और अयोग्यता के लिए ‘अपर्याप्त’ बताते हुए खारिज कर दिया। कॉलेजियम ने कहा कि किसी उम्मीदवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि न्यायिक पद के लिए उसकी पात्रता को स्वाभाविक रूप से कमजोर नहीं करती है। कॉलेजियम के अनुसार, सरकार के इस दावे में विस्तृत साक्ष्य का अभाव है और उनकी उम्मीदवारी को अस्वीकार करने का कोई वैध आधार नहीं है।
मद्रास उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति विक्टोरिया गौरी के मामले को मिसाल के रूप में पेश करते हुए कॉलेजियम ने कहा, “उदाहरण के लिए, हाल के दिनों में एक वकील को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है। हालाँकि, वह पदोन्नति से पहले एक राजनीतिक दल की पदाधिकारी थीं।” बता दें कि न्यायमूर्ति गौरी को जज नियुक्त किया गया था।
इसके अलावा, कॉलेजियम ने यह भी तर्क दिया कि सरकारी वकील के रूप में मनोज पुलम्बी माधवन की पिछली भूमिका से उनकी नियुक्ति में बाधा नहीं आनी चाहिए। कॉलेजियम ने कहा कि उनकी पिछली भूमिका को एक मूल्यवान अनुभव के रूप में देखा जाना चाहिए, खासकर राज्य से जुड़े मामलों में।
कॉलेजियम ने कहा कि अनुसूचित जाति (एससी) के उम्मीदवार के रूप में कानूनी अभ्यास का माधवन का व्यापक अनुभव उनके पक्ष में जाता है। यह उन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के योग्य बनाता है। कॉलेजियम ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा उनके प्रदर्शन को देखा गया था, जिन्होंने एक वकील के रूप में उनकी क्षमता और आचरण का निरीक्षण किया। इसलिए उनकी राय को उचित महत्व दिया जाना चाहिए।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मंगलवार (12 मार्च 2024) को केरल उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए केंद्र को छह अधिवक्ताओं के नामों की सिफारिश की। इसके अलावा, न्यायिक अधिकारी मोहम्मद यूसुफ वानी को जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की सिफारिश की।
केरल हाई कोर्ट में जिन छह अधिवक्ताओं को पदोन्नत करके जज बनाने की सिफारिश की गई है, उनमें अब्दुल हकीम मुल्लापल्ली अब्दुल अजीज, श्याम कुमार वडक्के मुदावक्कट, हरिशंकर विजयन मेनन, मनु श्रीधरन नायर, ईश्वरन सुब्रमणि और मनोज पुलम्बी माधवन शामिल हैं।
इसके साथ ही कॉलेजियम ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में पाँच अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी नियुक्ति की सिफारिश की है। ये नाम हैं- न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला, न्यायमूर्ति मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी, ज्योत्सना शर्मा और सुरेंद्र सिंह-प्रथम को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति दी जाएगी।
बॉम्बे उच्च न्यायालय के 11 अतिरिक्त न्यायाधीशों को उस उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए जाने के सिफारिश हुई है। ये 11 जज हैं – जस्टिस उर्मिला सचिन जोशी-फाल्के, भरत पांडुरंग देशपांडे, किशोर चंद्रकांत संत, वाल्मिकी एस ए मेनेजेस, कमल रश्मि खाता, शर्मिला उत्तमराव देशमुख, अरुण रामनाथ पेडनेकर, संदीप विष्णुपंत मार्ने, गौरी विनोद गोडसे, राजेश शांताराम पाटिल और आरिफ सालेह डॉक्टर।