Saturday, October 12, 2024
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‘तीन तलाक’ जैसा नहीं ‘तलाक-ए-हसन’, औरतों के पास भी खुला का विकल्प: बेनजीर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के कमेंट से नई बहस, अब 29 अगस्त को सुनवाई

"जो अधिकार संविधान उनकी हिंदू, सिख या ईसाई महिलाओं को देता है, उससे वह वंचित हैं। अगर उन्हें भी कानून का समान संरक्षण हासिल होता तो उनके शौहर इस तरह एकतरफा तलाक नहीं दे सकते थे।"

मुस्लिमों में मान्य तलाक-ए-हसन (Talaq-e-Hasan) पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे बैन करने की माँग की गई है। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज मंगलवार (16 अगस्त, 2022) को कहा कि मुस्लिमों में ‘तलाक-ए-हसन’ के जरिए तलाक देने की प्रथा तीन तलाक की तरह नहीं है और महिलाओं के पास भी ‘खुला’ का विकल्प है। वहीं इस मामले में कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 29 अगस्त तय की है। याचिकाकर्ता ने इस्लामिक तलाक़ की इस व्यवस्था को एकतरफा मामला बताते हुए कोर्ट में चुनौती दी है।

क्या है तलाक-ए-हसन

तलाक-ए-हसन इस्लाम में तलाक का एक रूप है जिसके द्वारा एक मुस्लिम शौहर तीन महीने की अवधि में हर महीने एक बार तलाक का बोलकर अपनी बीबी को तलाक दे सकता है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्या उन्हें व्यक्तिगत राहत चाहिए? वहीं कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि तीन तलाक की तरह ‘तलाक-ए-हसन’ भी तलाक देने का एक तरीका है, लेकिन इसमें तीन महीने में तीन बार एक निश्चित अंतराल के बाद तलाक बोलकर रिश्ता खत्म किया जाता है। इस्लाम में पुरुष ‘तलाक’ ले सकता है, जबकि कोई महिला ‘खुला’ के जरिए अपने शौहर से अलग हो सकती है।

रिपोर्ट के अनुसार, शौहर से तलाक-ए-हसन के 3 नोटिस पा चुकीं गाजियाबाद की बेनजीर हिना ने पुरुषों को तलाक का एकतरफा अधिकार देने वाले प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है लेकिन आज कोर्ट ने कहा कि मामले में आगे बढ़ने से पहले वह कुछ बातों को स्पष्ट कर लेना चाहते हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या बढ़ी हुई मेहर की रकम के साथ याचिकाकर्ता अपने शौहर से आपसी सहमति से तलाक लेना चाहेंगीं। बेंच ने इस मामले में यह भी कहा, “हम याचिकाकर्ता की समस्या को हल करना चाहेंगे। हम यह नहीं चाहते कि इसमें किसी और तरीके का एजेंडा बने।”

वहीं इस मामले में रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता ने कहा, “जो अधिकार संविधान उनकी हिंदू, सिख या ईसाई महिलाओं को देता है, उससे वह वंचित हैं। अगर उन्हें भी कानून का समान संरक्षण हासिल होता तो उनके शौहर इस तरह एकतरफा तलाक नहीं दे सकते थे। वह सिर्फ अपनी नहीं, देश की करोड़ों मुस्लिम लड़कियों की लड़ाई लड़ रही हैं।”

बता दें कि जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक बोलने की व्यवस्था को असंवैधानिक करार दिया था लेकिन तलाक-ए-हसन यानी एक 1 महीने में अलग-अलग तीन बार तलाक बोलने की व्यवस्था उससे अलग है। जजों ने यह भी कहा कि मुस्लिम कानूनों में महिला को भी ‘खुला’ और ‘मुबारत’ जैसे अधिकार दिए गए हैं। ऐसे में पहली नजर में यह नहीं लगता कि महिलाओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है।

वहीं इस मामले में वकील अश्विनी उपाध्याय ने बेनजीर की तरफ से दाखिल याचिका में बताया है कि बेनजीर की 2020 में दिल्ली के रहने वाले यूसुफ नकी से निकाह हुआ। उनका 8 महीने का बच्चा भी है। पिछले साल दिसंबर में पति ने एक घरेलू विवाद के बाद उन्हें घर से बाहर कर दिया। 5 महीने से उनसे कोई संपर्क नहीं रखा। अप्रैल में अचानक अपने वकील के जरिए डाक से एक चिट्ठी भेज दी। इसमें कहा गया कि वह तलाक-ए-हसन के तहत पहला तलाक दे रहे हैं।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में तलाक-ए-हसन को लेकर याचिका दाखिल होने से मामला सुनवाई के लिए लगने तक बेनजीर के शौहर ने बाकी चिट्ठी के जरिए दो और बार तलाक़ बोल दिया था। इस तरह से मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक पूरा हो चुका है लेकिन जजों ने यह प्रस्ताव दिया है कि अगर याचिकाकर्ता चाहे तो बढ़े हुए मुआवजे के साथ आपसी तलाक ले सकती है। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि निकाह के समय तय मेहर की रकम कम थी। इसलिए उसे बढ़ा कर कोर्ट के माध्यम से या कोर्ट के बाहर ‘मुबारत’ जैसी व्यवस्था से तलाक हो सकता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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