Saturday, July 27, 2024
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दादा क्यों हो रहे अधीर, न नौ मन तेल होगा न ‘दीदी’ नाचेगी: फिर काहे का अविश्वास, काहे का बाहर से समर्थन

पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 सीटों में से तृणमूल कॉन्ग्रेस को 22 सीटें मिली थीं। वहीं, भाजपा को 18 सीटें मिली थीं। कॉन्ग्रेस को महज दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था। अब अमित शाह ने भी बंगाल की रैली में लोगों से कम से कम 30 सीटों की माँग की है।

एक कहावत है- ना नौ मन तेल होगा और ना राधा नाचेगी। यह कहावत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) की सुप्रीमो ममता बनर्जी के फैसले पर सटीक बैठती है। ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी पार्टी केंद्र में सरकार बनाने के लिए विपक्षी इंडी (INDI) गुट को बाहर से समर्थन देगी।

इसके पहले ममता बनर्जी ने कुछ अलग हटकर बयान दिया था। उस दौरान उन्होंने कहा था, “पश्चिम बंगाल में कोई INDI गठबंधन नहीं है। मैंने विपक्षी INDI गठबंधन के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यहाँ तक कि गठबंधन का नाम भी मेरे द्वारा दिया गया था, लेकिन यहाँ पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) और कॉन्ग्रेस भाजपा के लिए काम कर रहे हैं।”

इस बयान के कुछ ही सप्ताह बाद ममता बनर्जी का हृदय परिवर्तन हो गया और अब वह INDI गठबंधन की सरकार बनने की स्थिति में बाहर से समर्थन देने की बात करने लगी हैं। ममता बनर्जी को लगने लगा है कि INDI गठबंधन केंद्र में बना सकती है। हालाँकि, INDI गठबंधन के प्रमुख घटक कॉन्ग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी की इस उम्मीद पर पानी फेर दिया है।

अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “मैं उन पर भरोसा नहीं करता। वह गठबंधन तोड़ने वाली महिला हैं। अगर बीजेपी का पलड़ा भारी रहा तो उस तरफ भी जा सकती हैं। वह हिंदुस्तान से कॉन्ग्रेस खत्म करने की बात कर रही थीं। कह रही थीं कि 40 सीटें भी नहीं मिलेंगी। कॉन्ग्रेस खत्म हो चुकी है। अब दुहाई दे रही हैं, इसका मतलब कि INDI गठबंधन सत्ता में आ रही है। ये अभी से लाइन लगाना शुरू कर दीं।”

ममता बनर्जी दोनों तरफ ही संभावनाएँ तलाश रही हैं। उन्हें लग रहा है कि INDI गठबंधन शायद सत्ता में आ जाए तो उनके लिए सत्ता के दरवाजे खुले रखें। हालाँकि, अभी तक हुए मतदान में जो आँकड़े सामने आ रहे हैं, उसमें भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है। सिर्फ बहुमत ही नहीं ये आँकड़े 350 के पार जाती हुई भी दिखाई दे रही है। भाजपा अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है।

गृहमंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि अब तक हुए चार चरण के मतदान में भाजपा को बहुमत मिल चुका है। अब सिर्फ 400 के आँकड़े की लड़ाई है। अमित शाह ने कहा, “चार चरणों तक 380 सीटों पर चुनाव पूरा हो चुका है। मैं बता रहा हूँ कि 380 सीटों में 270 सीटें लेकर पीएम मोदी बहुमत प्राप्त कर चुके हैं। आगे की लड़ाई 400 पार करने की है।”

इतना ही नहीं, संदेशखाली और अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा पूरे देश का मुद्दा बन चुका है। इन मुद्दों पर भाजपा ने बंगाल में भी बढ़त बना ली है। ममता बनर्जी के कभी सलाहकार रहे चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी स्पष्ट कर चुके हैं कि इस बार भाजपा बंगाल में चौंकाएगी। उन्होंने कहा था कि भाजपा बंगाल की नंबर वन पार्टी बन सकती है।

बता दें कि पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 सीटों में से तृणमूल कॉन्ग्रेस को 22 सीटें मिली थीं। वहीं, भाजपा को 18 सीटें मिली थीं। कॉन्ग्रेस को महज दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था। अब अमित शाह ने भी बंगाल की रैली में लोगों से कम से कम 30 सीटों की माँग की है। अगर भाजपा 25 के आँकड़े को पार कर जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।

बंगाल में भाजपा को लाभ मिलने का सीधा नुकसान ममता बनर्जी को होगा। अगर भाजपा के दावे को हटा दें तो ममता बनर्जी के नाराज वोटरों का लाभ कॉन्ग्रेस या वामदलों को मिल सकता है। इस समय TMC के 22 सांसद हैं। अगर भाजपा या कॉन्ग्रेस को फायदा मिलता है तो TMC 10 सीटों तक भी सिमट सकती है। ऐसी स्थिति में ममता बनर्जी का राष्ट्रीय राजनीति में हैसियत बेहद कम रह जाएगी।

इसका दूसरा पक्ष INDI गठबंधन को लेकर है। INDI गठबंधन को विशेष फायदा भी मिलने की गुंजाइश नहीं है पीएम मोदी और भाजपा के विरोध में भले सारे दल एक साथ आ गए हों, लेकिन उनकी विचारधारा कहीं से भी आपस में नहीं मिल रही है। अंदर-अंदर एक दूसरे की टाँग खींचने की कवायद अभी भी जारी है।

आम आदमी पार्टी और कॉन्ग्रेस के बीच का ही उदाहरण लें तो दिल्ली में दोनों दल साथ लड़ रहे हैं, लेकिन पंजाब में दोनों पक्ष एक दूसरे का विरोधी है। ऐसी ही स्थिति कमोबेश कॉन्ग्रेस और समाजवादी पार्टी के भीतर गुटबाजी को लेकर भी है। लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया जारी है, लेकिन INDI गठबंधन के दलों में आपसी तालमेल का घनघोर अभाव दिख रहा है।

ममता बनर्जी को भले लग रहो हो कि INDI गठबंधन सत्ता में आ सकता है, लेकिन राहुल गाँधी भी इतने आश्वस्त नहीं हैं। राहुल गाँधी इस बार खुद दो जगहों से चुनाव लड़ रहे हैं। अमेठी से हारने के बाद वे केरल के वायनाड से साल 2019 में सांसद बने। इस बार वे वायनाड के साथ-साथ यूपी के रायबरेली से नामांकन भरा है। इस बार वायनाड से भी उनकी हालत पतली बताई जा रही है।

कुल मिलाकर देश में जो माहौल है, वह पीएम मोदी की लोकप्रियता, भाजपा का विकास और देश का दुनिया में बढ़ता कद महत्वपूर्ण कारक बनकर उभरा है। जनता में भी भाजपा को लेकर भारी उत्साह है। इस उत्साह को देखकर ही भाजपा अपनी भारी जीत को लेकर आश्वस्त है। बाकी राजनीति में खेल कब और कैसे बिगड़ जाए कहा नहीं जा सकता है। ममता बनर्जी को अपनी महत्वाकांक्षा की हकीकत देखने के लिए अब ज्यादा इंतजार करने की जरूरत नहीं है।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
इतिहास प्रेमी

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