Wednesday, September 11, 2024
Homeदेश-समाजजिसे सुनाई गई थी सज़ा-ए-मौत, उसे सुप्रीम कोर्ट ने 28 साल बाद रिहा किया:...

जिसे सुनाई गई थी सज़ा-ए-मौत, उसे सुप्रीम कोर्ट ने 28 साल बाद रिहा किया: 2 बच्चों और गर्भवती महिला की हत्या का मामला, कहा – घटना के वक्त नाबालिग था आरोपित

जितेंद्र नैनसिंह गहलोत की दया याचिका को देखते हुए राष्ट्रपति ने उसकी सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदल दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा पाए एक व्यक्ति को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पाया कि आरोपित नारायण चेतनराम चौधरी वारदात के समय महज 12 वर्ष का था। उम्र के आधार पर उसे ऐसी सजा नहीं दी जा सकती। वह बीते 28 साल से जेल में बंद है। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सोमवार (27 मार्च, 2023) को सुनाया।

दरअसल, महाराष्ट्र के पुणे में साल 1995 में राठी परिवार के दो बच्चों और एक गर्भवती महिला की हत्या कर दी गई थी। चेतनराम को इस मामले में निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने फाँसी की सजा सुनाई थी। हत्या के इस मामले में नारायण चेतनराम चौधरी और जितेंद्र नैनसिंह गहलोत ने साल 2016 में राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की थी।

जितेंद्र नैनसिंह गहलोत की दया याचिका को देखते हुए राष्ट्रपति ने उसकी सजा-ए-मौत को उम्रकैद में बदल दिया था। लेकिन, इस बीच नारायण चेतनराम चौधरी ने अपनी दया याचिका वापस लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की। इस याचिका में उसने दावा किया कि हत्या के समय वह नाबालिग था। वहीं, सजा सुनाए जाने के दौरान कोर्ट में उसकी उम्र 20-22 साल के बीच में दर्ज थी।

खुद को नाबालिग साबित करने के लिए नारायण चेतनराम चौधरी ने राजस्थान में हुई उसकी पढ़ाई का रिकॉर्ड कोर्ट में पेश किया। उसने कोर्ट में बताया कि राजस्थान के जिस स्कूल में उसने पढ़ाई की थी, उसका रिकॉर्ड उसे साल 2015 में मिला। कोर्ट में पेश किए गए इस रिकॉर्ड के अनुसार, राठी परिवार की हत्या के समय वह 12 साल का था। इससे पहले वह खुद को नाबालिग इसलिए साबित नहीं कर पाया क्योंकि उसके ऊपर हत्या का आरोप महाराष्ट्र में लगा था। नारायण ने महाराष्ट्र में डेढ़ साल ही पढ़ाई की थी।

जनवरी 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने पुणे के प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश को नारायण की उम्र और उसके द्वारा पेश किए दस्तावेजों की जाँच करने का आदेश दिया। इसके बाद न्यायधीश ने जाँच कर अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी। इसके बाद कोर्ट ने मई 2019 में ही उसे नाबालिग मान लिया। लेकिन रिहाई का आदेश देने में सुप्रीम कोर्ट को 4 साल का लंबा वक्त लग गया। मामले की सुनवाई सुप्रीम के जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने की।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

राहुल गाँधी ने भारत के लोकतंत्र पर उठाए सवाल, सीरिया-इराक से की तुलना: अमेरिका में भारत विरोधी पत्रकार और उस महिला से भी मिले...

सरिता पांडे अजीत साही की पत्नी हैं, जो इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन ‘इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC)’ के एडवोकेसी डायरेक्टर हैं।

शिमला में हिंदुओं पर बरसी लाठियाँ: अवैध मस्जिद को बचाने के लिए दमन पर उतरी हिमाचल की कॉन्ग्रेस सरकार, खुद के मंत्री ने भी...

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में पुलिस ने अवैध मस्जिद पर कार्रवाई की माँग कर रहे हिन्दू प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज किया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -