Saturday, July 27, 2024
Homeदेश-समाजअनुसूचित जाति के व्यक्ति ने सीनियर पर प्रताड़ना का आरोप लगाकर दे दी थी...

अनुसूचित जाति के व्यक्ति ने सीनियर पर प्रताड़ना का आरोप लगाकर दे दी थी जान, अब सुप्रीम कोर्ट रद्द किया केस, एससी/एसटी एक्ट भी किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति के व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में एक व्यक्ति के खिलाफ लगाए गए 22 साल पुराने आपराधिक मामले को रद्द कर दिया। यह आरोप कन्नौज जिले में जिला बचत अधिकारी के रूप में कार्यरत प्रभात मिश्रा नाम के एक व्यक्ति पर लगा था। मृतक प्रभात मिश्रा का जूनियर था। इसके साथ ही आरोपित पर से कोर्ट ने ST-SC कानून की धाराएँ भी हटा दीं।

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति के व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में एक व्यक्ति के खिलाफ लगाए गए 22 साल पुराने आपराधिक मामले को रद्द कर दिया। यह आरोप कन्नौज जिले में जिला बचत अधिकारी के रूप में कार्यरत प्रभात मिश्रा नाम के एक व्यक्ति पर लगा था। मृतक प्रभात मिश्रा का जूनियर था। इसके साथ ही आरोपित पर से कोर्ट ने ST-SC कानून की धाराएँ भी हटा दीं।

दरअसल, दाता राम ने 3 अक्टूबर 2002 को एक सुसाइड नोट लिखकर आत्महत्या कर ली थी। इस सुसाइड नोट में उन्होंने आरोपित मिश्रा पर उत्पीड़न करने और जातिसूचक शब्द कहने का आरोप लगाया था। इस आधार पर पुलिस ने आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया था।

अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में तर्क दिया कि मृतक को आरोपित द्वारा उत्पीड़न और अपमानित किया था, क्योंकि वह एससी-एसटी समुदाय से था। इस मामले को रद्द कराने के लिए आरोपित हाई कोर्ट गया, लेकिन वहाँ उसे राहत नहीं मिली। इसके बाद उसने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इसके बाद जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मामले की सुनवाई कर इसे रद्द कर दिया।

सुसाइड नोट पर गौर करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मृतक काम के दबाव के कारण निराश था और आरोपित द्वारा सौंपे गए अपने आधिकारिक कर्तव्यों को लेकर आशंकित था। सुसाइड नोट में व्यक्त की गई आशंकाएँ किसी भी कल्पना से आरोपित को आत्महत्या के लिए उकसाने के तत्वों के रूप में कार्य करने के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं मानी जा सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इसमें एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(v) के तहत कोई मामला नहीं बनता है। यदि आरोपित द्वारा आईपीसी के तहत अपराध नहीं किया गया है तो इसे जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने मासूमशा हसनशा मुसलमान बनाम महाराष्ट्र राज्य का भी हवाला दिया।

कोर्ट ने कहा, “सबसे पहले हम इस तथ्य पर ध्यान दे सकते हैं कि एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता के खिलाफ मुकदमा चलाना प्रथम दृष्टया अवैध और अनुचित है, क्योंकि यह मामला है ही नहीं। पूरे आरोप-पत्र में अभियोजन पक्ष ने कहा कि आईपीसी के तहत अपराध अपीलकर्ता द्वारा उसकी जाति के आधार पर मृतक पर किया गया था।”

मासूमशा हसनशा मुसलमान मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एसटी-एससी अधिनियम की धारा 3(2)(v) के प्रावधानों को लागू करने के लिए अनिवार्य शर्त पीड़ित का अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का होना है और यह अपराध उस व्यक्ति की जाति के आधार पर किया गया होना चाहिए। इसके अभाव में इस अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

इसके बाद कोर्ट ने कहा, “हमें यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध की आवश्यक सामग्री आरोप पत्र से नहीं बनाई गई है। इसलिए इसलिए दंडनीय अपराधों के लिए अपीलकर्ता के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देना पूरी तरह से अवैध है। आईपीसी की धारा 306 और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत यह कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है।”

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

प्राइवेट सेक्टर में भी दलितों एवं पिछड़ों को मिले आरक्षण: लोकसभा में MP चंद्रशेखर रावण ने उठाई माँग, जानिए आगे क्या होंगे इसके परिणाम

नगीना से निर्दलीय सांसद चंद्रशेखर आजाद ने निजी क्षेत्रों में दलितों एवं पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू करने के लिए एक निजी बिल पेश किया।

‘तुम कोटा के हो ब#$द… कोटा में रहना है या नहीं तुम्हें?’: राजस्थान विधानसभा में कॉन्ग्रेस विधायक ने सभापति और अधिकारियों को दी गाली,...

राजस्थान कॉन्ग्रेस के नेता शांति धारीवाल ने विधानसभा में गालियों की बौछार कर दी। इतना ही नहीं, उन्होंने सदन में सभापति को भी धमकी दे दी।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -