Saturday, November 2, 2024
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न्याय की ये कैसी रफ्तार: 94 साल बाद जमीन विवाद में SC का फैसला, 60 साल पुराने केस को 16 साल बाद हाईकोर्ट भेजा

हाई कोर्ट में यह मामला 1974 में आया था। हाई कोर्ट ने 11 सितंबर 2009 को अपने आदेश में चकबंदी डिप्टी डायरेक्टर के आदेश को बरकरार रखा था।

आखिर न्याय की यह कैसी रफ़्तार कि फैसले आने में करीब 100 साल लग जाए। यूपी के तीन भाइयों के संपत्ति विवाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए 94 साल पुराने पारिवारिक संपत्ति विवाद को बुधवार (13 जुलाई 2022) को निपटा दिया। यह विवाद उत्तर प्रदेश के गजाघर मिश्रा के तीन बेटों सीताराम, रामेसर और जागेसर से जुड़ा हुआ है, जो 1928 से चला आ रहा था। वहीं दूसरी ओर 60 साल पुराने एक अन्य जमीन बँटवारे के मामले को शीर्ष न्यायालय ने 16 साल बाद वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के पास भेज दिया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीताराम की कोई संतान नहीं थी, जबकि रामेसर के बेटे का नाम भगौती था। वहीं जगेसर के तीन बेटे बासदेव, सरजू और साधू था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट ने चकबंदी अधिकारी के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि हमें ऐसा कोई कारण नहीं दिखता, जिससे कि इसमें दखल दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि रामेसर और सीताराम में पहले किसकी मौत हुई इसको साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है, इसलिए पुनरीक्षण अधिकारी ने कहा था कि रामेसर और जागेसर की संतानों को बराबर-बराबर हिस्सा मिलेगा। हाई कोर्ट में यह मामला 1974 में आया था। हाई कोर्ट ने 11 सितंबर 2009 को अपने आदेश में चकबंदी डिप्टी डायरेक्टर के आदेश को बरकरार रखा था।

मालूम हो कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो भाइयों रामेसर और जगेसर ​को बराबर हिस्सा रखने की इजाजत दी थी। हाई कोर्ट ने चकबंदी डिप्टी डायरेक्टर के उस आदेश को सही ठहराया था, जिसमें परिवार के जोत की जमीन के दो हिस्सों रामेसर और जागेसर को बराबर-बराबर बाँटने का आदेश दिया था।

वहीं दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने मंगलवार (12 जुलाई 2022) को हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका पर फैसला सुनाते हुए 16 साल के बाद इसे वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजने का फैसला लिया। 27 पन्नों के फैसले में न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, “हमारा विचार है कि हाई कोर्ट इस मामले में ठोस सबूतों के आधार पर फैसला नहीं कर पाया। हाई कोर्ट को रिकॉर्ड में उपलब्ध सबूतों की सावधानीपूर्वक जाँच करनी चाहिए और उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए। इस फैसले को रद्द कर दिया जाता है। यह मामला वापस हाई कोर्ट के पास भेजा जाता है। ”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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