भारत के उत्तरी छोर पर स्थित जम्मू-कश्मीर। श्रीनगर से उत्तर में मात्र 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गाँव वंधामा (Wandhama)। जनवरी 25, 1998 की रात। किसे पता था कि ये रात अचानक से हिन्दुओं के लिए काल बन जाएगी, पूरा गाँव ही साफ़ कर दिया जाएगा! इसी गाँव में कश्मीरी हिन्दू सो रहे थे। अचानक से इस्लामी आतंकियों ने धावा बोला और हिन्दुओं का ऐसा कत्लेआम (Wandhama Massacre) मचाया गया कि अमेरिका तक इसकी गूँज सुनाई दी।
कश्मीर का वंधामा (Wandhama Massacre): क्या हुआ था उस रात?
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, वंधामा (Wandhama Massacre) के 23 हिन्दू क़त्ल किए जा चुके थे। उन्हें बेरहमी से मारा गया था। कइयों के तो शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे। लाशों को देख कर स्पष्ट पता चलता था कि ये कोई आम कत्लेआम नहीं है क्योंकि कातिलों के मन में हिन्दुओं के प्रति इतनी घृणा थी, जो क्षत-विक्षत लाशों को देख कर ही पता चल रहा था। लेकिन, हमेशा की तरह हिन्दुओं के लिए किसी ने आवाज़ नहीं उठाई।
हिन्दुओं के नरसंहार (Wandhama Massacre) की ये दास्तान इतिहास में छिप कर इसलिए रह गई क्योंकि न तो सरकारों ने इस मामले में दोषियों पर कार्रवाई करने का प्रयास किया और न ही मीडिया ने इसे उठाया। आज इस घटना को 22 वर्ष से भी अधिक बीत गए, मीडिया में अब भी इसके बारे में कुछ नहीं आता। 23 मृतकों में कई महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे। पुलिस ने भी स्वीकारा था कि ये इस्लामी कट्टरपंथियों का कृत्य है।
तब घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार थी। फ़ारूक़ अब्दुल्ला राज्य के मुख्यमंत्री थे। तब राज्य के गृह मंत्री रहे अली मोहम्मद सागर ने कबूल किया था कि हमलावर 50 से भी अधिक की संख्या में थे, जिन्होंने बेरहमी से हिन्दुओं को टुकड़ों में काट डाला था। उन्होंने कहा था कि वंधामा में जो भी हुआ वो अत्यंत निंदनीय है, एक बेशर्मी भरी हरकत है। हिन्दुओं के घरों को भी आग के हवाले कर दिया गया था।
सन्देश साफ़ था, वो जम्मू कश्मीर ही नहीं बल्कि पूरे भारत के हिन्दुओं को डराना चाहते थे। यहाँ तक कि गाँव में स्थित एक मंदिर को भी फूँक दिया गया था। इस नरसंहार की टाइमिंग ऐसी थी, जिससे स्पष्ट पता चलता था कि ये सन्देश पूरे भारतीय गणराज्य को दिया गया है। वो भारत के 48वें गणतंत्र दिवस से मात्र 1 दिन पहले की रात थी। बीबीसी में इस घटना को लेकर प्रकाशित हुई ख़बर में कहा गया था कि ये इस्लामी आतंकी जम्मू कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते हैं।
1989 से उस नरसंहार (Wandhama Massacre) तक एक दशक से भी कम में जम्मू कश्मीर में आतंकियों के कारण 20,000 जानें गई थीं लेकिन उनके लिए न तो कभी न्याय की माँग उठी और न ही उन्हें मीडिया में तवज्जो मिली। आतंकियों और अलगाववादियों ने गणतंत्र दिवस के विरोध-स्वरूप बंद बुलाया हुआ था, ऐसे में वंधामा नरसंहार (Wandhama Massacre) जैसी किसी वारदात को अंजाम देने की वो फ़िराक़ में ही बैठे हुए थे। अब देखिए वहाँ के नेताओं ने कैसे इस नरसंहार का भी अपने पक्ष में इस्तेमाल कर लिया।
कश्मीर के नेताओं ने वंधामा नरसंहार (Wandhama Massacre) की आड़ में खेला था विक्टिम कार्ड
‘जम्मू कश्मीर डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी’ के संस्थापक शाबिर शाह ने इसे कायराना हरकत बताते हुए ‘अपराधियों’ को दोषी ठहराया लेकिन इस्लामी आतंकियों का नाम तक नहीं लिया। उन्होंने इसकी निंदा करते हुए कहा था कि ये हिन्दुओं को ख़ास समुदाय से अलग करने की साजिश है। यहाँ सवाल उठता है कि अगर इसे साधारण अपराधियों ने किया था तो सिर्फ हिन्दुओं को ही क्यों निशाना बनाया गया?
इसी तरह अलगाववादी संगठन ‘फ्रीडम कॉन्फ्रेंस’ के मुख्य प्रवक्ता रहे अब्दुल गनी लोन ने इस नरसंहार के सहारे ख़ुद को और समुदाय विशेष के कश्मीरी को पीड़ित साबित करने की कोशिश की। दुर्भाग्य से पूरी दुनिया में यही सन्देश गया। उन्होंने बयान दिया था कि कश्मीरी किसी भी जाति, मजहब या रंग के हों, वो गोली से ही मरते हैं। पीड़ितों में समुदाय विशेष और आतंकियों को भी शुमार कर उन्होंने अपना प्रोपेगंडा रच दिया।
Does anyone remember the faces of survivors of Wandhama or Nadimarg or Chittisingpora massacres? Or of Mumbai terror attacks? Does anyone remember the faces of bereaved family members of DySP Ayub Pandith or Lt Ummer Fayaz? If not, ask yourself why? Where are their pictures?
— Aarti Tikoo Singh (@AartiTikoo) May 5, 2020
यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने भी अपने बयान में इसे ‘कश्मीरी पंडितों की हत्या’ बताया था लेकिन कश्मीरी नेता इसे हिन्दुओं का नरसंहार कहने से बचते रहे। अमेरिका के बयान के अनुसार, इस पूरे घटना में गाँव में एक ही हिन्दू लड़का बचा था, जो 12 वर्ष का था। नाबालिग ने अपने बयान में बताया था कि हथियारों से लैस कुछ लोग उसके घर में आए और चाय की माँग की। इसके बाद पूरे परिवार और पड़ोसियों पर अचानक से गोलीबारी शुरू कर दी।
मारे गए 23 लोगों में 10 महिलाएँ थीं, 9 पुरुष थे और 4 बच्चे भी थे। सारे मृतक कश्मीरी पंडित समुदाय से आते थे। अमेरिका ने तब जम्मू कश्मीर के सभी आतंकी संगठनों को आतंकवाद का रास्ता छोड़ने की अपील की थी। 2008 में यूपीए काल में केंद्र सरकार ने कह दिया था कि उसे इस मामले की कोई जानकारी ही नहीं है। राज्य सरकार ने तो इस मामले की फाइल ही बंद कर दी थी। केंद्र सरकार इससे अनभिज्ञ बनी रही।
फाइल बंद करने का बचाव करते हुए गंडरबल के सब डिवीजनल पुलिस आफिसर शौकत अहमद ने कश्मीरी टाइम्स को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि कश्मीरी पंडितों की हत्या करने वालों की पहचान नहीं होने की वजह से वंधामा हत्याकांड की फाइल बंद कर दी गई है। बाद में इस सम्बन्ध में एक कश्मीरी पंडित ने RTI दायर की, जिसके जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा था कि उसे वंधामा नरसंहार में शामिल आतंकियों या संगठनों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है।
आखिर इतने बड़े मामले की जाँच सीबीआई को क्यों नहीं सौंपी गई? क्या कॉन्ग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस की नजदीकियों के कारण ऐसा नहीं किया गया? महिलाओं व बच्चों सहित 23 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई लेकिन किसी स्वतंत्र सरकारी एजेंसी को जाँच नहीं सौंपी गई, क्यों? यूपीए के पूरे 10 वर्षों के दौरान सरकार इस पर उदासीन बनी रही। इक्का-दुक्का कश्मीरी पंडितों के अलावा किसी और ने इस मामले को उठाया तक नहीं।
कश्मीर के Wandhama Massacre से प्रेरित 2 फ़िल्में
कश्मीरी भाषा में एक फिल्म आई थी- बब। ये एक ऐसे लड़के की कहानी थी, जिसने आतंकियों के नरसंहार में अपने माँ-बाप को खो दिया था। दिसम्बर 2001 में रिलीज हुई इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड तक मिला। इसे लोकप्रिय टीवी सीरीज ‘बुनियाद’ की निर्देशक ज्योति सरूप ने लिखा व निर्देशित किया था। अनुपम खेर के भाई राजू खेर ने इसमें ऐक्टिंग की थी। या फिल्म उसी वंधामा नरसंहार पर आधारित थी।
लेकिन, जब विधु विनोद चोपड़ा ने ‘मिशन कश्मीर’ बनाया तो इसमें अल्ताफ को पीड़ित दिखा दिया, जिसके परिवार की हत्या हो जाती है। जबकि एकलौता लड़का जो इस नरसंहार में बच गया था और जिसके परिवार को मार डाला गया था, उसका नाम विनोद था। विनोद ने बताया था कि उस रात क्या हुआ था। जैसे ही उसे फायरिंग की आवाज़ सुनाई दी, वो गोबर के एक ढेर के नीचे छिप गया था, जिसे जलावन के लिए रखा गया था।
Wandhama Massacre part 1
— Kashmiri Pandit News कोशूर न्यूज़ चैनल (@kpnewschannel) January 27, 2018
Video courtesy: Bub movie pic.twitter.com/UDJw8Dl5DZ
वहीं से उसने अपने माता-पिता सहित पूरे परिवार को गोली लग कर मरते देखा, यहाँ तक कि 3 साल के एक मासूम बच्चे को भी। अपने बड़े भाई की मौत के लिए विनोद आज भी खुद को जिम्मेदार मानता है। उसका कहना है कि उसने अपने बड़े भाई को उठा दिया था, जिसके बाद वो नीचे गए और आतंकियों ने उन्हें मार डाला। वो कहते हैं कि काश मैंने उन्हें सोते से नहीं जगाया होता। विनोद कहता है कि वो किस दर्द के साथ जी रहा है, इसे सिर्फ वही समझ सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार मुकुल शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘Human Rights in a Globalised World: An Indian Diary‘ में लिखा है कि ऐसे मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वो सच्चाई का पता लगाए, पीड़ितों को न्याय दे और उन्हें हुए नुकसान की भरपाई करे (जो हो सके)। वो लिखते हैं कि वंधामा मामले (Wandhama Massacre) में सरकार इन तीनों की पूर्ति करने में बुरी तरह से विफल रही है।
खुद को पाक-साफ़ बता कर निकल जाते हैं उमर अब्दुल्ला
हालाँकि, जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे उमर अब्दुल्ला ने जनवरी 2014 में इस मामले में खुद को पाक-साफ़ बताते हुए पल्ला झाड़ लिया था। दरअसल, तब ये मामला फिर से उछला था। अभिनेता अनुपम खेर ने उन्हें विनोद शरणार्थी कैम्प जाकर विनोद से मुलाक़ात करने कहा था, जिसके पूरे परिवार की हत्या कर दी गई थी। अब्दुल्ला ने दावा किया था कि इस मामले में हरकत-उल-अंसार के आतंकी शामिल थे और सभी मारे जा चुके हैं।
अब्दुल्ला ने कहा कहा था कि वंधामा नरसंहार (Wandhama Massacre) मामले में उन पर निष्क्रियता के लगे आरोप गलत हैं। उन्होंने दावा किया कि फ़रवरी 1998 और इसके अगले साल हुए ऑपरेशन में सारे आतंकी मारे गए। हालाँकि, कश्मीरी पंडितों ने आरोप लगाया था कि न तो अलगाववादी और न ही किसी मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टी ने कश्मीर में वंधामा नरसंहार के मामले में न्याय के लिए कुछ किया। आज इस घटना को 22 साल हो गए, हालात जस के तस है।
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से कश्मीरी पंडितों को खुल कर अपनी बात रखने का मौक़ा मिला है और उनके पुनर्वास के लिए प्रयास हो रहे हैं। जम्मू कश्मीर में त्राल, डोडा और श्रीनगर के लगभग सारे आतंकियों को मार गिराया गया है। लेकिन, विधु विनोद चोपड़ा जैसे फिल्मकारों ने कश्मीरी पंडितों की व्यथा पर फिल्म बनाने का दावा करने के बावजूद ‘शिकारा’ में इस नरसंहार को स्थान नहीं दिया।