पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (WBSSC) के तहत साल 2016 में की गई शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती अब एक बड़े घोटाले के रूप में सामने आई है। ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल काॅन्ग्रेस सरकार की निगरानी में हुए इस भर्ती घोटाले ने न केवल शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि राज्य सरकार की विश्वसनीयता पर भी गहरा असर डाला है।
साल 2016 में कक्षा 9 से 12 के लिए सहायक शिक्षक और ग्रुप C एवं D के अंतर्गत गैर-शिक्षण स्टाफ की नियुक्तियों के लिए लिखित परीक्षाएँ और इंटरव्यू आयोजित किए गए थे। इस प्रक्रिया में ऑप्टिकल मार्क रिकॉग्निशन (OMR) शीट की स्कैनिंग और मूल्यांकन का जिम्मा ‘Nysa Communications’ नामक एक निजी कंपनी को दिया गया था। उसने इस घोटाले को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
चयन प्रक्रिया की शुरुआत से ही कई गड़बड़ियाँ सामने आईं। आयोग ने न तो प्राथमिक और न ही अंतिम चरण में अभ्यर्थियों की पूरी सूची जारी की और ही उनके अंक सार्वजनिक किए। इससे पारदर्शिता को लेकर संदेह गहराया। इसके अलावा भर्ती मानदंडों का उल्लंघन करते हुए योग्य अभ्यर्थियों को आयु में छूट नहीं दी गई, जिससे कई उम्मीदवारों को अदालत का रुख करना पड़ा।
इस मामले में पहली आवाज उठाने वाली थीं बैशाखी भट्टाचार्य, जिन्होंने साल 2016 में आयोग के खिलाफ सबसे पहला केस दर्ज कराया था। साल 2021 तक यह सामने आया कि कुल 25,753 नियुक्तियों में कई विसंगतियाँ हैं। इन नियुक्तियों में नियमों की अनदेखी, भ्रष्टाचार और सिफारिशों की भूमिका की आशंका जताई गई है।
मुख्य आरोपों में शामिल हैं –
रैंक जंपिंग – मेरिट लिस्ट में निचले स्थान पर रहे उम्मीदवारों को उच्च अंक वाले उम्मीदवारों की तुलना में वरीयता दी गई।
उम्मीदवारों के चयन में पिक एंड चूज़ पद्धति को अपनाया गया।
जो उम्मीदवार न तो मेरिट लिस्ट में थे और न ही वेटिंग लिस्ट में थे, उन्हें नियुक्त किया गया।
गैर-दागी उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र जारी किए गए, लेकिन उन्हें नौकरी में शामिल होने नहीं दिया गया।
समिति ने WBSSC अधिकारियों की धोखाधड़ी का पर्दाफाश किया
यह घोटाला केवल एक भर्ती प्रक्रिया की विफलता नहीं है, बल्कि यह राज्य की शिक्षा प्रणाली की नींव पर लगे उस दाग की तरह है, जिसे मिटाना आसान नहीं होगा। अब देखना यह है कि अदालत और जाँच एजेंसियाँ इस मामले में कितनी तेजी और पारदर्शिता से कार्य करती हैं, और दोषियों को कब तक न्याय के कठघरे में लाया जाता है।
सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रंजीत कुमार बाग की अध्यक्षता में समूह सी और डी के तहत गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियों को सत्यापित करने के लिए 4 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। समिति में WBSSC के प्रतिनिधि, पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और एक अधिवक्ता भी शामिल थे।
समिति ने अपनी जाँच में गंभीर विसंगतियाँ पाईं और केंद्रीय आयोग के अधिकारियों पर आपराधिक साजिश (आईपीसी धारा 120 बी), जालसाजी (आईपीसी धारा 465 और 468), धोखाधड़ी (आईपीसी धारा 417) और कर्तव्य के प्रति घोर लापरवाही का आरोप लगाया। समिति ने यह पाया गया कि केंद्रीय आयोग ने उम्मीदवारों के रैंक में बदलाव किया।
इतना नहीं, आयोग ने उम्मीदवारों के रैंक में हेरफेर का सहारा लिया और ग्रुप सी एवं डी के तहत गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियों में अवैध प्रक्रिया को शामिल किया। 4 सदस्यीय समिति ने 5 अधिकारियों, अर्थात् सौमित्र सरकार, अशोक कुमार साहा, डॉ. शांति प्रसाद सिन्हा, डॉ. कल्याणमय गांगुली और समरजीत आचार्य के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई/एफआईआर की सिफारिश की।
सीबीआई द्वारा जाँच
बाद में यह मामला सीबीआई के हाथ में पहुँचा। सीबीआई की जाँच में बड़ा खुलासा हुआ है कि पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (WBSSC) ने टेंडर प्रक्रिया में नियमों को दरकिनार करते हुए ‘न्यासा कम्युनिकेशंस’ को चुन लिया। ‘न्यासा कम्युनिकेशंस’ ने आयोग से लिखित अनुमति लिए बिना ही ‘डेटा स्कैनटेक’ नाम की एक अन्य एजेंसी को हायर किया।
इस एजेंसी को ओएमआर शीट स्कैनिंग का काम सौंप दिया, जो स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन है। ओएमआर शीट की स्कैनिंग पूरी होने के बाद न्यासा कम्युनिकेशंस ने सारे डेटा को हार्ड ड्राइव में डालकर अपने साथ नोएडा कार्यालय ले गई। वहीं, ओएमआर शीट की कॉपियों को WBSSC कार्यालय में ही छोड़ दिया गया।
सीबीआई ने 2016 की भर्ती परीक्षाओं से जुड़े WBSSC सर्वर का डेटा जब्त कर लिया है और 2022 में की गई एक छापेमारी में ‘न्यासा कम्युनिकेशंस’ के पूर्व कर्मचारी पंकज बंसल के घर से तीन हार्ड डिस्क भी बरामद की है। इन सब साक्ष्यों के आधार पर भर्ती घोटाले की परतें धीरे-धीरे खुलने लगी हैं और इसमें गहरी साजिश के संकेत मिल रहे हैं।
सीबीआई की रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाले को लेकर चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं। एजेंसी ने बताया कि पंकज बंसल की हार्ड डिस्क में मौजूद डेटा और आयोग के जब्त सर्वर डेटा का मिलान किया गया, जिसमें साफ तौर पर गड़बड़ी पाई गई। रिपोर्ट के अनुसार, कई अयोग्य उम्मीदवारों के लिखित परीक्षा अंकों को जानबूझकर बढ़ाया गया, ताकि उन्हें योग्य दिखाया जा सके।
यह अंतर इस बात का प्रमाण है कि अंकों में बड़े पैमाने पर हेरफेर किया गया। सीबीआई ने यह भी खुलासा किया कि डब्ल्यूबीएसएससी के अधिकारियों, न्यासा कम्युनिकेशंस के कर्मचारियों और अन्य संबंधित लोगों के बीच हुए ईमेल आदान-प्रदान से यह पुष्टि हुई कि उम्मीदवारों के डेटा में हेरफेर योजनाबद्ध तरीके से किया गया था।
रिपोर्ट में यह भी गंभीर आरोप लगाए गए कि साल 2019 में आयोग ने न केवल मूल ओएमआर शीट्स को नष्ट कर दिया, बल्कि उनकी स्कैन की गई तस्वीरों को भी नष्ट कर दिया था। इससे जाँच एजेंसी को यह आशंका हुई कि यह कदम डेटा में की गई हेरफेर को छुपाने के उद्देश्य से जानबूझकर किया गया था।
सबसे अहम बात यह रही कि सीबीआई ने यह पाया कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने न्यासा कम्युनिकेशन का पूर्व कर्मचारी और इस भर्ती घोटाले का मुख्य क्रियान्वयनकर्ता निलाद्री दास को कई अन्य सरकारी भर्ती परियोजनाओं का काम सौंप दिया। इससे यह संकेत मिलता है कि घोटाले में केवल तकनीकी ही नहीं, बल्कि राजनीतिक संरक्षण की भी भूमिका रही है।
निम्नलिखित 4 मामलों में ओएमआर शीट में हेराफेरी पाई:
कक्षा 9 और 10 के लिए 952 सहायक अध्यापक
कक्षा 11 और 12 के लिए 907 सहायक अध्यापक
ग्रुप सी से संबंधित 3481 गैर-शिक्षण कर्मचारी
ग्रुप डी से संबंधित 2823 गैर-शिक्षण कर्मचारी
WBSSC द्वारा कवरअप की की कोशिश
पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग नियुक्त उम्मीदवारों की मूल ओएमआर शीट प्रस्तुत करने में विफल रहा, उसने दावा किया कि उन्हें नष्ट कर दिया गया था। इसने 2018 से 2023 तक आरटीआई आवेदकों को ओएमआर शीट की स्कैन की गई प्रतियाँ प्रस्तुत की थीं, लेकिन बाद में अदालत में दावा किया कि उन्हें बरकरार नहीं रखा गया है।
इतना ही नहीं, WBSSC ने सहायक शिक्षकों (कक्षा 9-12) और ग्रुप सी एवं डी में गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए उपलब्ध रिक्तियों की तुलना में 2,355 अधिक नियुक्तियाँ कीं। बाद में इन अवैध नियुक्तियों को समायोजित करने के लिए ‘अतिरिक्त पद’ सृजित करने की आयोग से अनुमति माँगी।
सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह है कि WBSSC ने उन उम्मीदवारों को भी नियुक्त कर दिया, जिन्होंने परीक्षा में खाली खाली OMR शीट जमा की थी या जिनकी रैंक काफी नीचे थी। इतना ही नहीं, आयोग ने भर्ती पैनल की वैध अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी अवैध रूप से नियुक्तियाँ जारी रखीं। साथी OMR शीट को नष्ट करके नियमों का भी उल्लंघन किया गया।
WBSSC (पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग) ने अपने कई अदालती हलफनामों में भर्ती प्रक्रिया में हुई गंभीर अनियमितताओं को स्वीकार किया है। आयोग ने माना है कि-
कई मामलों में रैंक जंपिंग हुई, यानी मेरिट सूची में पीछे रहने वाले उम्मीदवारों को ऊपर के स्थान पर नियुक्त किया गया।
पैनल में शामिल न होने वाले 1,498 उम्मीदवारों को अवैध रूप से नियुक्त किया गया।
926 उम्मीदवारों को जानबूझकर रैंक जंपिंग के ज़रिए नियुक्त किया गया।
4,091 उम्मीदवारों को उनके OMR स्कोर में गड़बड़ी के बावजूद नियुक्ति की सिफारिश की गई।
239 उम्मीदवार ऐसे थे, जिनके मामले में OMR में बेमेल और अन्य गड़बड़ियाँ दोनों पाई गईं।
इन सभी मामलों को जोड़ने पर अब तक कुल 6,276 अवैध नियुक्तियों की बात सामने आई है। हालाँकि, ये आँकड़ा अंतिम नहीं कहा जा सकता, क्योंकि आयोग ने OMR शीट्स की भौतिक प्रतियाँ नष्ट कर दी हैं और स्कैन की गई प्रतियों को भी बचाकर नहीं रखा है। इससे सत्यापन की प्रक्रिया अधूरी रह गई है।
कलकत्ता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
अप्रैल 2024 में कलकत्ता हाई कोर्ट की डिविजन बेंच ने पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (WBSSC) द्वारा 2016 में की गई 25,752 शिक्षकों की नियुक्तियों को पूरी तरह रद्द कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि ये नियुक्तियाँ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करती हैं, जो समानता और सार्वजनिक नौकरी में समान अवसर की गारंटी देते हैं।
इस ऐतिहासिक फैसले में केवल एक उम्मीदवार सोमा दास को मानवीय आधार पर नौकरी जारी रखने की अनुमति दी गई है। सोमा दास कैंसर सर्वाइवर हैं। इस मामले में कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सभी अपात्र उम्मीदवारों को अपने अब तक के वेतन और लाभ 12% ब्याज के साथ चार सप्ताह के भीतर राज्य सरकार को लौटाने होंगे।
इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले को सीबीआई के हवाले करते हुए इसकी गहराई से जाँच करने का आदेश भी दिया। अदालत ने WBSSC को निर्देशित किया है कि वह जल्द से जल्द एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया के तहत नई भर्तियों की शुरुआत करे, ताकि योग्य उम्मीदवारों को न्याय मिल सके।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी नियुक्तियों को रद्द करने के कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की सीबीआई जाँच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “सार्वजनिक नौकरियाँ बहुत कम हैं। अगर जनता का विश्वास खत्म हो जाए तो कुछ नहीं बचेगा। यह व्यवस्थागत धोखाधड़ी है। अगर नियुक्तियाँ गलत तरीके से होती हैं तो सिस्टम में क्या बचेगा?” सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, “या तो आपके पास डेटा है या नहीं है, दस्तावेजों को डिजिटल रूप में बनाए रखना आपका कर्तव्य था।”
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 3 अप्रैल 2025 को कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा [pdf] और 2016 के WBSSC भर्ती मामले में व्यवस्थागत अनियमितताओं, विसंगतियों/धोखाधड़ी का उल्लेख किया। भर्ती प्रक्रिया की समग्र अखंडता में समझौता होने के कारण इसे पूरी तरह से रद्द कर दिया गया।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “हमारे विचार में यह ऐसा मामला है, जिसमें पूरी चयन प्रक्रिया को दूषित कर दिया गया है और इसे सुलझाया नहीं जा सकता। बड़े पैमाने पर हेरफेर और धोखाधड़ी, साथ ही इसे ढकने के प्रयास ने चयन प्रक्रिया को इतना नुकसान पहुँचाया है कि इसे आंशिक रूप से भी सुधारा नहीं जा सकता। चयन की विश्वसनीयता और वैधता समाप्त हो गई है।”
WBSSC ने तर्क दिया था कि पूरी भर्ती प्रक्रिया को रद्द नहीं किया जाना चाहिए। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने तर्क में कोई दम नहीं पाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम इस तर्क को स्वीकार कर सकते थे यदि WBSSC के पास मूल भौतिक OMR शीट या OMR शीट की फोटो कॉपी होती। हालाँकि, WBSSC स्वीकार करता है कि उनके पास OMR शीट नहीं हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, “…क्योंकि उन्हें कक्षा IX और X और कक्षा XI और XII नियमों के नियम 21 के अनुसार नष्ट कर दिया गया था, जिसके अनुसार OMR शीट को केवल एक वर्ष तक रखना आवश्यक है।” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्रुप C और D कर्मचारियों के लिए OMR शीट नष्ट करने के पीछे कोई तर्क नहीं था, क्योंकि भर्ती पैनल की वैधता समाप्त होने के बाद भी भर्ती चल रही थी।”
सर्वोच्च न्यायालय ने भर्ती पैनल के विस्तार में अवैधता को भी रेखांकित किया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि कक्षा IX-X और XI-XII के लिए सहायक शिक्षकों के पद पर काउंसलिंग प्रक्रिया और नियुक्तियाँ पैनल की समाप्ति के बाद की गई थीं। यह अवैध और नियमों के विपरीत है।”
(यह रिपोर्ट दिबाकर दत्ता ने मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी है। इसे आप इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।)