तबलीगी जमात की मेहरबानी से देशवासी अब तीन मई तक अपने घरों में बंद रहने के लिए मजबूर हैं लेकिन औपनिवेशिक दासता का अवशिष्ट BBC और एक ‘स्रोत-विशेष’ यही मानकर चल रहे हैं कि वो कोरोना वायरस के प्रभाव से अक्षुण हैं और रहेंगे। शायद यही वजह है कि वास्तविकता से मुँह मोड़कर प्रोपेगैंडा वायरस और कोरोना वायरस के ये दोनों प्रमुख स्रोत तत्परता से अपने दैनिक क्रियाकलाप में लगे हुए हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट का शीर्षक है- “मैं ब्राह्मण आदमी हूँ, मेरा तबलीगी जमात के लोगों से क्या लेना-देना?”
इस ‘लेख’ में बीबीसी ने यह साबित करने का कुटिल प्रयास किया है कि तबलीगी जमात ही कोरोना वायरस का स्रोत नहीं है और बेहद धूर्तता से एक लाइन को इस लेख के बीच में डालकर यह भी लिखा है कि “हालाँकि, वह (जिस ‘ब्राह्मण’ का हेडलाइन में जिक्र किया गया है) निजामुद्द्दीन रेलवे स्टेशन से जरूर गुजरा था।
ऐसे लेख लिखकर बीबीसी तबलीगी जमात को क्लीन चिट देने का एक निरर्थक प्रयास तो करता ही है, साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि वह ब्राह्मणवाद और हिन्दुफोबिया से सर से पैरों तक ग्रसित है। बीबीसी जैसे घातक मीडिया गिरोहों का मूल उद्देश्य पत्रकारिता करना या फिर सत्य को उजागर करना नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ उलजुलूल आँकड़ों की बात करते हुए पाठक को गुमराह करना होता है।
बीबीसी की इस रिपोर्ट की शुरुआत होती है अदालत के आदेश से जिसमें निज़ामुद्दीन के तबलीगी जमात मरकज़ से छत्तीसगढ़ लौटे 159 लोगों की सूची के आधार पर अदालत ने 52 लोगों का पता लगाने का आदेश जारी किया है। बीबीसी का कहना है कि उसने अपने ‘सूत्रों’ के माध्यम से पता किया है कि उसमें से 108 ग़ैर-मुस्लिम हैं। यहीं पर बीबीसी के लिए अपनी रिपोर्ट में ब्राह्मण के नाम पर खेलना प्राथमिकता हो गया था।
बीबीसी की इस रिपोर्ट के एक हिस्से में लिखा है-
“इस सूची में शामिल बिलासपुर के रहने वाले श्रीकुमार पांडे (बदला हुआ नाम) ने बीबीसी से कहा, ‘मैं ब्राह्रण आदमी हूँ। मेरा भला तबलीगी जमात के लोगों से क्या लेना-देना? मैं मार्च में दिल्ली ज़रुर गया था लेकिन तबलीगी जमात के मरकज़ में तो जाने का सवाल ही नहीं पैदा होगा। हाँ, मैंने बिलासपुर के लिये जो ट्रेन ली, वो ज़रुर निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन से पकड़ी थी। दिल्ली से लौटने के बाद से ही पुलिस और स्वास्थ्य विभाग वालों ने जाँच पड़ताल करने के बाद मुझे घर में ही रहने की हिदायत दी है।”
जरा सा ध्यान देने पर ही स्पष्ट हो जाता है कि इसी एक बयान में बीबीसी पहले स्वयं अपनी इस रिपोर्ट के शीर्षक के अनुसार चलते हुए देखा जाता है और बाद में स्वयं ही अपने शीर्षक के विरोध में खड़ा नजर आता है। क्या बीबीसी इतना मासूम है कि वह कोरोना वायरस के संक्रमण के माध्यम से अभी तक अनजान है? क्योंकि यदि ऐसा न होता तो बीबीसी की इस रिपोर्ट का औचित्य ही समाप्त हो जाता है।
यह कोई छुपी हुई बात नहीं है कि तबलीगी जमात भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी COVID-19 वायरस के कुल संक्रमण का कम से कम साठ प्रतिशत हिस्से में अकेले भागीदारी करते हुए सबसे बड़ा स्रोत बनकर उभरा है।
यह बात अवश्य है कि यदि हम अपनी आँखों पर पट्टी बाँध लें सिर्फ तभी हमें यह आँकड़े गलत नजर आ सकते हैं और बीबीसी की तरह अपने प्रोपेगैंडा पर अडिग रह सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इन आँकड़ों को इस्लामोफोबिक बताने वाले बीबीसी जैसे प्रोपेगैंडा के स्रोत ने तबलीगी जमात की भरपाई करने के लिए किसी ‘ब्राह्मण’ का बयान शीर्षक बनाने का फैसल लिया है।
बीबीसी को वास्तविक निराशा उन लोगों से हाथ लग रही है, जिनके बचाव में वह दिन-रात जुटा हुआ है। हर दिन कम से कम पाँच ख़बरें ऐसी हैं, जिनमें तबलीगी जमात या फिर ‘विशेष-स्रोत’ के लोग इस संक्रमण को बढ़ाने के प्रयास से लेकर सामाजिक अस्थिरता में हिस्सा लेते हुए देखे गए हैं। कल उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में डॉक्टर की टीम पर हुआ हमला इसी का एक छोटा सा उदाहरण है।
मीडिया के गिरोह विशेष से लेकर समाज के समुदाय विशेष की एकजुटता देखिए कि इमाम को क्वारंटाइन करने गए दल पर सिर्फ मुस्लिम पुरुषों ने ही नहीं बल्कि महिलाओं ने भी अपनी तरफ से जमकर भागीदारी करते हुए छतों से पत्थर और ईंटें बरसाईं।
कहीं पर कॉन्स्टेबल इमरान और मोहम्मद पंकज खान पुलिस की गाड़ी से तबलीगी जमातियों को सरहद पार कराते हुए पकड़े जाते हैं तो यहाँ मीडिया में बीबीसी जैसी टुकड़ियाँ उन्हें क्लीन-चिट देते हुए नजर आते हैं।
दिल्ली स्थित निजामुद्दीन मरकज से निकले हुए तबलीगी जमात के लोगों ने देश-विदेश में अपनी ‘गहरी छाप’ छोड़ी है। मुस्लिम ही लोगों पर थूक रहे हैं, जाँच करने गए स्वास्थ्यकर्मियों पर पत्थर बरसा रहे हैं, ‘अल्लाह-हो-अकबर‘ कहकर पुलिस के सामने खड़े होकर उन्हें चुनौती देते नजर आ रहे हैं। ऐसे में बीबीसी अपनी एक ऐसी रिपोर्ट लेकर सामने आता है, जिसमें उनका कोई ‘गुप्त सूत्र’ कहता है कि वह तबलीगी जमात के मरकज से नहीं लौटा लेकिन फिर भी वह कोरोना वायरस से संक्रमित हुआ।
पहला सवाल बीबीसी को स्वयं से यह पूछना चाहिए कि इस मरकज से निकले हुए लोग आखिर किन-किन जगहों पर नहीं गए होंगे? वह हर रेलवे स्टेशन, मेट्रो, सब्जी-मंडी, बाजार गए होंगे जहाँ वह कितने ही ऐसे लोगों के संपर्क में जाने-अनजाने आए होंगे जिन्हें उन्होंने यह संक्रमण दिया होगा। ऐसे में यदि बीबीसी का कोई गुप्त सूत्र नाम न बताने की शर्त पर यह कहता भी है कि उसका तबलीगी जमात से क्या लेना-देना! तो फिर बीबीसी को किसी विधि से यह भी साबित करने में सक्षम होना चाहिए कि उस ‘गुप्त सूत्र’ को यह वायरस किसी मुस्लिम ने नहीं दिया होगा
और फिर इन्हें शंका की दृष्टि से क्यों न देखा जाए जब इनके मौलवी से लेकर टिकटोक पर हिन्दुओं के खिलाफ वीडियो बना रहे मुस्लिम युवा कोरना को अल्लाह का अजाब बताता है? बीबीसी इस तरह से 15-20 साल के उन टिकटोक जिहादियों से भिन्न नहीं है, जो समाज को यह संदेश देते नजर आए कि कोरोना वायरस नमाजियों को नहीं हो सकता या फिर यह काफिरों के लिए अल्लाह की NRC है।
ब्राह्मण और और हिन्दू धर्म के प्रति घृणा से सनी हुई बीबीसी की यह रिपोर्ट कहीं भी यह साबित करती है कि उसका पहला लक्ष्य कोरोना वायरस नहीं बल्कि हिन्दू धर्म हैं, क्योंकि अगर ऐसा नहीं है तो फिर हर ऐसे मौके पर, जब सारा देश एकजुट नजर आता है, बीबीसी उस समस्या को ‘ब्राह्मणवाद, जाति-धर्म’ के आधार पर वर्गीकृत करता हुआ ही नजर आता है और ऐसे में जब समस्या की यह गेंद उन्हीं की दुलारी कौम में गिरती नजर आने लगती है, तब औपनिवेशिक दासता की प्रतीक यह बीबीसी नामक विष्ठा एक बार फिर उसकी भरपाई के लिए मूल विषय त्यागकर ‘ब्राह्मण-हिन्दुओं’ को कोसने लगती है।
बीबीसी पर नियमित रूप से छपने वाले शीर्षक और कार्टून्स निश्चित तौर पर हिंदुत्व-विरोधी या फिर केंद्र की दक्षिणपंथी सरकार-विरोधी होते हैं। यह बात अलग है कि वामपंथी मीडिया के कार्टून्स और शीर्षक वास्तविक तथ्यों के साथ अक्सर ही न्याय नहीं कर पाते हैं, यह उनकी प्राथमिकता में शायद ही होता है। पहला उद्देश्य होता है विरोध और आपत्ति दर्ज करना।
फिलहाल तो बीबीसी को यही करना चाहिए कि पहले जहाँ यह महज अपने आकाओं के खाने और सोने या विदेश प्रवास की खबर देकर ही अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखता था, उसे ऐसी ही किसी जानकारी में व्यस्त रहना चाहिए और अपना बोरिया-बिस्तर बाँधकर कम से कम भारत में होने वाले घटनाक्रमों पर ज्ञान बाँटना बंद कर देना चाहिए क्योंकि यदि बीबीसी भारत में अपनी गतिविधियों पर लगाम लगता है तो यह भी भारत देश की व्यवस्था में उनका एक योगदान ही माना जाएगा। दूसरी बात यह कि भारत को अपनी समस्या के समाधान या उनकी मान्यता के लिए बीबीसी जैसे विदेशी प्रपंची समूहों की भी आवश्यकता भी नहीं है।
यदि वह अपने गुप्त सूत्रों के हवाले से तैयार की गई ऐसी रिपोर्ट लोगों के सामने रखना बंद कर दे तो देशवासियों को शायद ही कोई फर्क पड़ेगा हालाँकि, बीबीसी के अपने राजस्व को लेकर जरुर अन्य आयाम तलाशने होंगे।