Friday, March 29, 2024
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पालघर में साधुओं की हत्या और मीडिया: ‘3 लोगों’ की मॉब लिंचिंग, ‘चोर’ का भ्रम – हेडलाइन से पाठकों को यूँ बरगलाया

रेप की घटनाओं में मौलवियों की संलिप्ता पर जो मीडिया अपनी फीचर इमेज में साधुओं की प्रतीकात्मक तस्वीर लगाता था, दीन मोहम्मद व आसिफ के दोषी होने पर उनके लिए शीर्षक में ‘गॉडमैन’ शब्द का प्रयोग करता था... अफसोस, आज पालघर में साधुओं की हत्या होने पर उसी मीडिया की आर्काइव गैलरी और शब्दावली में भारी कमी आ गई।

भारतीय मीडिया का दोहरा स्वरूप इन दिनों अपनी चरम पर है। मीडिया चैनलों से लेकर अखबारों तक हर जगह ये केवल अपने पाठकों/दर्शकों को बरगलाने का काम कर रहा है। बीते दिनों द टेलीग्राफ और इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों की ओछी हरकतें हमने देखी ही कि आखिर किस तरह एक तबलीगी जमात के किए धरे का ठीकरा उन्होंने आरएसएस के मत्थे फोड़ दिया। अपने इसी रवैये पर आगे बढ़ते हुए इन मीडिया हाउस ने महाराष्ट्र के पालघर में हुई साधुओं की हत्या पर जो रिपोर्टिंग की, वो न केवल निंदनीय है, बल्कि शर्मसार करने वाली भी है।

एक ऐसी घटना जहाँ स्पष्ट तौर पर भीड़ ने साधुओं की मॉब लिंचिंग की और उन्हें क्रूरता से मार दिया, उस घटना को हमारे ‘निष्पक्ष मीडिया’ ने किस प्रकार अपने पाठकों को पेश किया, इसे प्रमाण सहित देखिए।

महाराष्ट्र के पालघर में 16 अप्रैल को हुई घटना निस्संदेह ही झकझोरने वाली थी। लेकिन इसको लेकर सोशल मीडिया पर आक्रोश कल यानी 19 अप्रैल को देखने को मिला। इस बीच ऐसा नहीं था कि हम तक मीडिया ने ये खबर नहीं पहुँचाई। लेकिन जिस प्रकार उन्होंने इसे संप्रेषित करने का तरीका चुना, उसने पाठकों को कुछ देर के लिए ही सही, इस पर प्रतिक्रिया देने से रोके रखा।

वामपंथी मीडिया संस्थानों ने 17 अप्रैल को इस खबर को कवर तो किया लेकिन उस तरह नहीं जैसे वो अन्य मामलों पर अपनी रिपोर्टिंग करते हैं। उदाहरण देखिए। जिस इंडियन एक्प्रेस ने अभी हाल में आरएसएस को बदनाम करने के लिए अपनी एक खबर में हिंदू दंपत्ति की तस्वीर लगाई, उसी ने घटना पर केवल ये लिखा कि पालघर में चोरी के संदेह में 3 लोगों की मॉब लिंचिग कर दी गई।

द हिंदू ने भी अपनी रिपोर्ट के शीर्षक में किसी जगह पर साधू शब्द का इस्तेमाल करना उचित नहीं समझा। इन्होंने भी 3 लोगों की लिंचिंग को ही अपनी खबर में प्राथमिकता दी।

इसी प्रकार टाइम्स ऑफ इंडिया की भी खबर इसी एंगल पर चली। इसके बाद हिंदुस्तान टाइम्स ने भी 200 लोगों की भीड़ का उल्लेख कर पूरी घटना की भर्त्सना को जरा सा दर्शाया लेकिन मुख्य बात यानी साधुओं की हत्या की बात उनके शीर्षक से भी नदारद रही।

यहाँ हैरानी की बात है कि ये वही मीडिया है, जो मुस्लिम के पीड़ित होने पर या तो अपनी हेडलाइन में मुस्लिम शब्द का प्रयोग विशेषत: करता है या फिर उस भीड़ को हिंदुओं की भीड़ जरूर बताता है, जो मॉब लिंचिंग की आरोपित होती है।

इस बात को समझने के लिए बहुत दूर उदाहरणों को देखने मत जाइए। पिछले साल हुए तबरेज की खबरों को खँगाल कर पढ़ लीजिए, समझ आ जाएगा कि भारतीय मीडिया धर्म/मजहब के बीच फर्क करते-करते किस गर्त में जा गिरा है कि इनके लिए मुस्लिम युवक यदि आरोपित हो तो वो शीर्षक के लायक नहीं है, मगर यदि वो पीड़ित हो तो उसकी पूरी कुंडली वे कोशिश करते हैं कि हेडलाइन में ही पेश कर दें।

भारतीय मीडिया का ये रवैया हाल में इतना नहीं बदला है। इसने एक लंबे समय तक इसी प्रकार कभी भ्रामक तस्वीर तो कभी भ्रामक शीर्षक के जरिए लोगों को बरगलाया है। साल 2018 में भी एक खबर आई थी। जहाँ एक मुस्लिम रेप का आरोपित था। मगर, रेप जैसी घटनाओं में मौलवियों या मुस्लिमों की संलिप्ता देखकर इसी मीडिया ने अपनी फीचर इमेज में साधुओं की प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई थी और दीन मोहम्मद व आसिफ नूरी के दोषी होने पर उनके लिए अपने शीर्षक में ‘गॉडमैन’ शब्द का प्रयोग किया था।

अफसोस! आज जब वास्तविकता में रिपोर्ट में साधू शब्द और उससे जुड़ी प्रतीकात्मक तस्वीरों की जरूरत पड़ी तो इन्ही संस्थानों की आर्काइव गैलरी और शब्दावली में भारी कमी आ गई। इन्होंने साधुओं की हत्या को मात्र 3 लोगों की लिंचिंग बताया, वो भी यह कहकर कि उन पर चोरी करने का संदेह था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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