सुशांत सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या मामले ने अब मीडिया के एक ख़ास वर्ग को बिहार के खिलाफ ज़हर उगलने का मौका दे दिया है। जहाँ एक तरफ तो लोग रिया चक्रवर्ती के कारण बंगाल और बंगालियों को बदनाम न करने की सलाह दे रहे हैं (जो सही भी है) लेकिन दूरी तरफ लिबरल ब्रीड के कुछ लोग बिहार को भला-बुरा कह रहे हैं। आश्चर्य की बात तो ये है कि बिहार से आने वाले बड़े पत्रकार भी इसका विरोध नहीं कर रहे।
जिस तरह से रिया चक्रवर्ती के बहाने किसी को पूरे बंगाली समुदाय को लपेटे में लेने का कोई अधिकार नहीं है, ठीक उसी तरह सुशांत सिंह राजपूत के बारे में धारणाएँ बना कर बिहार और बिहारियों को लेकर अपनी हीन भावनाओं को प्रदर्शित करने का भी कोई हक नहीं है। और अगर ऐसा होता है तो कम से कम उन बिहारियों को तो कुछ बोलना ही चाहिए, जो मीडिया मे बड़े पदों पर बैठे हैं।
बात शुरू करते हैं शेखर गुप्ता की वेबसाइट ‘द प्रिन्ट’ के एक लेख से, जिसमें कहा गया है कि ‘विषाक्त’ बिहारी परिवारों में बच्चों पर श्रवण कुमार बनने की जिम्मेदारी होती है। सुशांत सिंह राजपूत के बहाने लिखा गया है कि सासें अपनी बहुओं को ‘डायन’ और ‘गोल्ड डिगर’ तक कहती हैं। साथ ही दावा किया गया है कि युवाओं के शहरी गर्लफ्रेंड को सारी चीजों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
इस लेख में बताया गया है कि परिवार के लोग बड़े होने पर भी युवाओं को ‘मेरा लाड़ला’ समझते हैं और शादी के मामले में उसके विचारों को नहीं मानते। लिखा गया है कि गर्लफ्रेंड या पत्नी पुरुष को उसके परिवार से अलग कर देती है, बिहार में ऐसी धारणा है। साथ ही इसमें बिहारी लोकगीतों को भी लपेटा गया है और बाद में इसका दायरा बढ़ा कर उत्तर बिहार कर दिया गया है। सुशांत सिंह राजपूत के परिवार को भी बदनाम किया गया है।
What happened to Sushant Rajput, if similar happens to you, your parents will also ask for justice, regardless of their state
— Anshul Saxena (@AskAnshul) August 8, 2020
But if you’re from Bihar, liberal media will declare them toxic Bihari family
These liberals who talk against stereotypes themselves create stereotypes
इस लेख को लिखने वाली ने शायद टीवी सिरियल्स नहीं देखे हैं। हमने बचपन में ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ से लेकर अभी ‘कुंडली भाग्य’ तक, साह-बहू के झगड़े अब तक सैकड़ों सीरियलों में दिखाए गए हैं और लड़कियों को ‘गोल्ड डिगर’ कहते हुए भी बताया गया है। लेकिन, इनमें से कितने सीरियल बिहारी परिवारों पर आधारित हैं? बेटे, उसकी गर्लफ्रेंड और माँओं के इस झोलमोल में कितनी कहानियाँ बिहार पर आधारित हैं? न के बराबर।
अब सोचने वाली बात ये है कि अगर बिहारी परिवारों में ही सिर्फ़ ऐसी सोच होती कि ‘लड़कियाँ घर तोड़ देती हैं, गोल्ड डिगर होती हैं, सास द्वारा बहू को अपमानित किया जाता है और बेटा हमेशा लाड़ला रहता है’ तो क्या इन टीवी सीरियलों की कहानियों में अधिकतर बिहारी परिवारों पर नहीं आधारित होते? साहित्य से लेकर सिनेमा तक अनगिनत बार नायक की गर्लफ्रेंड और परिवार में अनबन हुई है, इनमें से कितने बिहार पर आधारित कहानियाँ हैं?
ये तो थी परदे की बात। अब आते हैं वास्तविकता पर। श्रीदेवीं, परवीन बॉबी, गुरुदत्त और दिव्या भारती तक कितनी ही संदिग्ध मौतें हुईं, इनमें से कितनों के राज्यों को इनकी मौत के लिए गाली दी गई? मुंबई से लेकर दिल्ली तक अनगिनत अनसुलझे मामले हैं, क्या उन सभी में राज्यों को गाली दी गई? आरुषि तलवार मामले में पूरी यूपी के माता-पिता को कोसा जा सकता है? इंद्राणी मुखर्जी मामले में पूरे बंगाल को गाली दी गई?
जहाँ तक बिहारी लोकगीतों की बात है, उसमें तो शादी के मंडप पर बैठे दामाद को भी गाली दी जाति है? तो क्या इसके लिए लेख लिख दिया जाएगा कि शादी के लिए गए बेचारे दूल्हे को टॉक्सिक महिलाएँ मिल कर गाली दे रही हैं? लोकगीतों और रीति-रिवाजों में किसी के मरने की बात भी कह दी जाती है, तो क्या इसे सचमुच का मान कर गाली बकी जाएगी? ऐसा वही कर सकते हैं जिन्हें इन चीजों की समझ ही नहीं।
#Warriors4SSR
— Urvi Sharma (@sHuRvi2127) August 7, 2020
From now…. Never… Never make fun of a Bihari… Sushant’s case has proved that Bihar has far better people than in bollywood pic.twitter.com/XFEp0xR8t4
जहाँ तक गर्लफ्रेंड पर आरोप लगने पर आउटरेज मचाने की बात है, बिहार तो छोड़िए बल्कि पूरी दुनिया में ऐसी न जाने कितनी ही घटनाएँ सामने आती रहती हैं जहाँ लड़की द्वारा उसके बॉयफ्रेंड का, या उसके पति की हत्या की गई। इसी तरह किसी पुरुष द्वारा भी उसकी गर्लफ्रेंड या पत्नी की हत्या का मामला सामने आता रहता है। अगर अमेरिका से ऐसी घटनाएँ आ गईं तो क्या वहाँ भी बिहारियों ने जाकर ये सब सिखा दिया?
सुशांत सिंह राजपूत की माँ कि मौत तभी हो गई थी, जब वो टीनेजर थे। उनके वृद्ध पिता मुंबई में उनके साथ नहीं रहते थे। अब शेखर गुप्ता की वेबसाइट के ‘मेरा लाड़ला’ वाली थ्योरी को सही मानें तो उन्हें तो मुंबई में रहना चाहिए था और अपने बेटे के हर काम में हस्तक्षेप करना चाहिए था? लेकिन, वो तो पटना में रहते थे। क्या एक बाप को अपने बेटे की मौत के बाद मिले सबूतों के आधार पर शिकायत तक दर्ज कराने का अधिकार नहीं है?
दिशा सालियान तो बिहारी नहीं थीं? उनकी माँ का कहना है कि उन्हें किसी खास आदमी पर शक तो नहीं है लेकिन बॉलीवुड एक डार्क इंडस्ट्री है जहाँ कुछ भी हो सकता है। अपनी बेटी की संदिग्ध मौत पर शक तो उन्हें भी है। लेकिन, मीडिया और लिबरालों का एक वर्ग चाहता है कि अगर मृतक के पीड़ित परिजनों के पास सबूत हों फिर भी उन्हें चुप रहना चाहिए, राज को दफन कर देना चाहिए, किसी पर शक भी हो तो बोलना नहीं चाहिए।
सुशांत सिंह राजपूत एक बिहारी थे और इस हिसाब से बॉलीवुड में आउटसाइडर थे। यही कारण है कि बिहार में उनकी मौत एक बड़ा मुद्दा बनी हुई है। विवाद में सलमान खान का नाम आने पर उन्हें गाली देते हुए भोजपुरी गाने भी बने और राज्य में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए। ये सब इसके बावजूद हुआ कि बिहार सलमान खान के बड़े बाजारों में से एक है। बिहार की भावनाएँ उबाल पर हैं।
हैरानी वाली बात ये भी है कि रवीश कुमार जैसे पत्रकार भी चुप हैं जबकि वो बार-बार अपने गृह प्रदेश बिहार की बात करते हुए गर्व करते रहे हैं। शेखर गुप्ता की वेबसाइट पर बिहारी परिवारों को गाली देते हुए लेख छपते हैं और रवीश चूँ तक नहीं करते? खाली नंगे पाँव ‘छठ का दउरा’ उठा कर चलने की तस्वीर डाल खुद के जमीनी बिहारी होने का एहसास दिलाने वाले रवीश को अब तो बोलना चाहिए?