Saturday, April 20, 2024
Homeविचारमीडिया हलचलभारत में कोरोना की दूसरी लहर में गिद्ध बनी मीडिया, अमेरिका में क्या छिपा...

भारत में कोरोना की दूसरी लहर में गिद्ध बनी मीडिया, अमेरिका में क्या छिपा रही: चीनी वायरस से फिर वही तबाही

अनुमानों और प्रोपेगेंडा के आधार पर भारत के विरुद्ध नैरेटिव बनाने वाले लिबरल-सेक्युलर वैश्विक मीडिया के सामने इस समय आँखें बंद करने की चुनौती दोगुनी है, क्योंकि अमेरिका में चीनी वायरस से उपजे संकट के साथ ही उसे अफगानिस्तान में अमेरिकी असफलता के प्रति भी अपनी आँखें मूँदनी हैं।

अमेरिका में चीनी वायरस की दूसरी लहर से उत्पन्न हुआ संकट बहुत तेज़ है। आश्चर्य यह है कि पिछले लगभग दस दिनों में देश के अधिकतर राज्यों में संक्रमण के नए केस की संख्या में आया उछाल, उसके फलस्वरूप बीमारी की वजह से बढ़ती मृत्यु दर, अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी तथा चरमरा रही स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कहीं कोई हाहाकार नहीं मचा। यहाँ तक कि अमेरिकी प्रशासन की तरफ से चिंता तक व्यक्त करने की कोई खबर नहीं है। अफगानिस्तान में आए संकट ने अमेरिकी मीडिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा होगा पर देखा जाए तो चीनी वायरस से बढ़े खतरे और उसके कारण चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था भी रिपोर्टिंग के नजरिए से कम महत्वपूर्ण विषय नहीं है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से जारी आँकड़े देखे जाएँ तो संक्रमण को तेज़ी से फैलाने वाले चीनी वायरस के डेल्टा वैरिएंट की वजह से इस समय अमेरिका में एक लाख से भी अधिक लोग अस्पतालों में भर्ती हैं जो पिछले आठ महीनों में सबसे बड़ी संख्या है। जारी किए गए आँकड़ों के अनुसार पिछले एक हफ्ते में नए केस की संख्या में औसतन 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और मृत्यु दर में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है। 50 में से 42 राज्यों में संक्रमण के नए केस की संख्या बढ़ी है और 43 राज्यों में मृत्यु दर बढ़ी है। वर्तमान में अमेरिका चीनी वायरस की वजह से फैले सबसे बुरे संक्रमण से जूझ रहा है। संक्रमण की वजह से कम से कम छह राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं की क्षमता वर्तमान संकट से निपटने के लिए काफी नहीं है।

ये आँकड़े और वहाँ वैक्सीन को लेकर उत्पन्न हुई अफरा-तफरी के बावजूद मीडिया में इससे सबंधित ख़बरों पर स्वाभाविक रिपोर्टिंग न होना केवल अमेरिकी ही नहीं, बल्कि पूरी पश्चिमी मीडिया के बारे में एक संदेश देता है। यदि यह मान भी लिया जाए कि अफगानिस्तान में पैदा हुए हालात ने पश्चिमी मीडिया के तमाम कॉलम पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है तब भी यह मानने में कोई कठिनाई नहीं होती कि अमेरिका में चीनी वायरस की वजह से आए आपातकाल पर रिपोर्टिंग को पश्चिमी मीडिया ने एक प्रयास के तहत रोक रखा है।

पश्चिमी मीडिया के इस प्रयास की तुलना यदि अप्रैल और मई महीने में भारत में चीनी वायरस की दूसरी लहर से उत्पन्न हुए संकट से करें तो स्पष्ट हो जाता है कि दोनों देशों से संबंधित रिपोर्टिंग, उससे जुड़ी स्वतंत्रता और प्रोपेगेंडा के स्तर में बड़ा भारी अंतर है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में उत्पन्न हुए संकट की रिपोर्टिंग केवल पश्चिमी मीडिया ने अपने बल पर नहीं किया था। उसने यह काम भारतीय मीडिया के लिबरल-सेक्युलर इकोसिस्टम के साथ किया जिसमें भारत की केंद्र सरकार पर निशाना साधा गया। पश्चिमी और भारतीय लिबरल मीडिया के इस संगठित प्रयास के तहत हिन्दुओं के श्मशान घाट सम्बंधित रिपोर्टिंग इतनी वीभत्स रही कि उसकी भारत में हिन्दुओं द्वारा तीव्र आलोचना हुई।

इस तीव्र आलोचना के बावजूद भारत और पश्चिमी देशों और भारत के लिबरल-सेक्युलर मीडिया ने इस रिपोर्टिंग का न केवल बचाव किया, बल्कि उसके लिए एक-दूसरे की पीठ भी थपथपाई। रायटर के पूर्व फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दिकी, जिन्हें अफगानिस्तान में रिपोर्टिंग ड्यूटी के दौरान तालिबान द्वारा मार दिया गया था और बरखा दत्त ने जिस तरह की भूमिका निभाई उसे कई वर्षों तक भुलाया न जा सकेगा। ऐसी रिपोर्टिंग की वजह से भारत में चीनी वायरस की दूसरी लहर से उपजे संकट की न केवल वैश्विक स्तर पर लगातार रिपोर्टिंग की गई, बल्कि भारतीय सरकार से आए आँकड़ों को सिरे से नकार दिया गया। पश्चिमी मीडिया के कुछ अखबारों ने तथाकथित विशेषज्ञों को कोट करते हुए केवल अनुमान के आधार पर ऐसे-ऐसे आँकड़े प्रस्तुत किए जिनका कोई वैज्ञानिक आधार था ही नहीं।

इसकी तुलना में जब अमेरिका में उत्पन्न हुए संकट की रिपोर्टिंग की बात आती है तब सबकुछ लगभग नदारद सा प्रतीत होता है। भारत के परिप्रेक्ष्य में वैश्विक मीडिया ने जो कुछ किया उसके बावजूद भारत ने अपने प्रयासों से आए संकट को न केवल टाला, बल्कि टीकाकरण की अपनी योजना को आवश्यक कार्यकुशलता के साथ आगे बढ़ा रहा है। इन सब के बीच यही प्रतीत होता है कि जब वर्तमान भारत की बात आती है तब पश्चिमी मीडिया न केवल अपने किसी अघोषित एजेंडा पर काम करता हुआ नजर आता है, बल्कि इसके लिए भारत के लिबरल-सेक्युलर मीडिया और मीडियाकर्मियों की सहायता भी लेता है। लेकिन जब अमेरिका या पश्चिमी देशों से संबंधित रिपोर्टिंग में न्यूनतम कर्तव्यों के निर्वाह की बात आती है तब यही पश्चिमी मीडिया बगलें झाँकता नज़र आता है।

अनुमानों और प्रोपेगेंडा के आधार पर भारत के विरुद्ध नैरेटिव बनाने वाले लिबरल-सेक्युलर वैश्विक मीडिया के सामने इस समय आँखें बंद करने की चुनौती दोगुनी है, क्योंकि अमेरिका में चीनी वायरस से उपजे संकट के साथ ही उसे अफगानिस्तान में अमेरिकी असफलता के प्रति भी अपनी आँखें मूँदनी हैं।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘PM मोदी की गारंटी पर देश को भरोसा, संविधान में बदलाव का कोई इरादा नहीं’: गृह मंत्री अमित शाह ने कहा- ‘सेक्युलर’ शब्द हटाने...

अमित शाह ने कहा कि पीएम मोदी ने जीएसटी लागू की, 370 खत्म की, राममंदिर का उद्घाटन हुआ, ट्रिपल तलाक खत्म हुआ, वन रैंक वन पेंशन लागू की।

लोकसभा चुनाव 2024: पहले चरण में 60+ प्रतिशत मतदान, हिंसा के बीच सबसे अधिक 77.57% बंगाल में वोटिंग, 1625 प्रत्याशियों की किस्मत EVM में...

पहले चरण के मतदान में राज्यों के हिसाब से 102 सीटों पर शाम 7 बजे तक कुल 60.03% मतदान हुआ। इसमें उत्तर प्रदेश में 57.61 प्रतिशत, उत्तराखंड में 53.64 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe