पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के ख़िलाफ़ विपक्षी दलों ने जनता को भड़काने का प्रयास किया। मुस्लिमों के बीच अफवाह फैला कर उन्हें हिंसा के लिए उकसाया गया। इसमें विपक्षी नेताओं के साथ-साथ कई कथित बुद्धिजीवी और पत्रकार भी शामिल रहे। प्रदर्शनकारियों ने जगह-जगह अराजकता फैलाते हुए सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाया। पुलिस के साथ झड़प की और आमजनों को परेशान किया। इसका सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश में देखने को मिला। कई जगह दंगाइयों की हिंसा को रोकने के लिए पुलिस को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी, जिसमें कई उपद्रवी मारे भी गए।
चूँकि, दंगाइयों में अधिकतर मुस्लिम थे, मारे जाने वाले लोगों में भी कई मुस्लिम ही रहे। इसे लेकर तथाकथित पत्रकार राणा अयूब ने सोशल मीडिया पर लोगों को भड़काना शुरू कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लेख लिख कर और बयान देकर भारत की नकात्मक छवि बनाने में जुटीं राणा अयूब ने मरने वालों के नाम गिना कर दावा किया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार सांप्रदायिक है। मरने वालों में आसिफ, अनस, बिलाल, आरिफ, शहरोज़, वकील, नबी आफताब, फैज़, सुलेमान, सैफ, मोढ़िन, रशीद और जशीर शामिल थे।
राणा अयूब ने दावा किया कि इन सभी लोगों को यूपी पुलिस ने मार डाला। हालाँकि, उन्होंने उन दोनों हिन्दुओं का नाम नहीं बताया, जो मारे गए थे। राणा अयूब ने इसे मुस्लिम-विरोधी नरसंहार करार दिया। उन्होंने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार की ओर इशारा करते हुए लिखा कि उसके हाथों में ख़ून के धब्बे हैं। अयूब ने अपनी टाइमलाइन पर उनलोगों की ‘मानवीय संवेदना वाली कहानियाँ’ भी शेयर की, जिसमें बताया गया था कि कैसे मरने वाले एकदम निर्दोष और निर्धन थे। सारा इल्जाम पुलिस पर ही लगा दिया गया।
Names of those killed by cops in Uttar Pradesh ? Tell me this is not communal ? Tell me this was not an anti Muslim carnage ? They have got blood on their hands https://t.co/8FhG5SsX7k
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) December 24, 2019
इससे पहले सुलेमान के मारे जाने को लेकर ये हाइलाइट किया गया था कि उसे यूपी पुलिस ने मार डाला और वो यूपीएससी की तैयारी करने वाला छात्र था। ये घटना बिजनौर की है। सुलेमान ने पुलिस पर गोली चलाई, जो कॉन्स्टेबल मोहित के पेट में लगी। गुंडों ने सब-इंस्पेक्टर आशीष का पिस्टल भी छीन लिया था। कोई रास्ता न देखते हुए आत्मरक्षा में मोहित को फायर करना पड़ा और सुलेमान मारा गया। इसी तरह की घटनाओं में पुलिस का पक्ष छिपाते हुए यूपी सरकार पर ही निशाना साधा गया और दंगाइयों का महिमामंडन किया गया।
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