पूरी दुनिया जब वैलेंटाइन मना रही थी, हमारा देश मातम में डूब गया था। लोग सदमे में थे। जो शहीद हुए, जो ज़ख्मी थे… उनकी पीड़ा पर क्या कहा जाए और क्या लिखा जाए… सोच से परे है, शब्द नहीं है! लेकिन एक ज़ख्म और लगा था उस दिन – ऐसा ज़ख्म जिस पर चर्चा की जा सकती है और हम सबको करनी भी चाहिए। वो ज़ख्म था – भारत की सुरक्षा पर चोट, हर नागरिक के दिल में उठती टीस वाला ज़ख्म। वो ज़ख्म था – आतंकियों का अट्टाहास – हम तुम्हें ऐसे ही मारेंगे और घुस कर मारेंगे।
लेकिन यह हुआ कैसे? यह होता क्यूँ आ रहा है? आख़िर यह रूकेगा कब – क्या कभी नहीं? कुछ सवालों को अपने अंदर खंगालिए, आस-पास की राजनीति से उसे जोड़िए – तो ऐसी हर घटना के पीछे आपको एक विभीषण दिखाई देगा। उस विभीषण का एक्कै मकसद है – वोट-बैंक। उसका एक्कै रास्ता है – मुस्लिम तुष्टिकरण। और उसका एक ही नाम है – कॉन्ग्रेस।
ज्यादा बोल गया! एकदमे भक्त हूँ! झूठा आरोप लगा रहा हूँ? पाठक होने के नाते कुछ ऐसे सवाल आप मुझ पर या हर लिखने-बोलने वाले पर भी जरूर उठाइए। किसी पर भी अंधा भरोसा मत कीजिए। क्योंकि मीडिया का एजेंडा सेट है। चौथे खंभे की आड़ में हर जगह ‘धंधा’ चालू है। ख़ैर! पहले इस स्क्रीनशॉट को देखिए।
मुझ पर दागे गए सवालों का जवाब है यह स्क्रीनशॉट। लेकिन मेरा वजूद कुछ भी नहीं। असल में यह स्क्रीनशॉट है कॉन्ग्रेस की राजनीति का वो काला चिट्ठा, जो वह पिछले 70-72 सालों से खेलती आई है। यह स्क्रीनशॉट है मीडिया की वो बजबजाती गंदगी, जहाँ आतंकी कभी हेडमास्टर का बेटा बन जाता है तो कभी धोनी का फैन! हो सके आपमें से बहुतों को नेशनल हेराल्ड के बारे में नहीं पता हो। क्योंकि यह पता करने और पढ़ने के लायक है भी नहीं। बस जानकारी रखिए कि यह कॉन्ग्रेस की वेबसाइट है। यह वही नेशनल हेराल्ड है, जिसके घोटाले की आँच ‘युवा’ नेता और कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल से लेकर उनकी माता सोनिया तक कब का पहुँच गई है।
पार्टी मुस्लिम-तुष्टिकरण करे और नेताजी लोग चुप बैठें, यह संभव नहीं। लोकसभा चुनाव सर पर हो तब तो नामुमकिन ही। ऐसे में कॉन्ग्रेस की एक पूर्व सांसद हैं – बेगम नूरबानो। उन पर पार्टी से टिकट लेने का (पार्टी को खुश करके) शायद भूत सवार होगा। तभी तो पुलवामा अटैक के लिए सेना को लापरवाह और जिम्मेदार दोनों ही ठहरा दिया। एक सिद्धू हैं, उन्होंने पाकिस्तान को आतंकवादी देश मानने से ही मना कर दिया।
अब जरा सोचिए! जिस पार्टी की ऐसी राजनीतिक सोच रही हो और जिसने लगभग 60 सालों तक इस देश पर राज किया हो, वहाँ की अच्छी-खासी जनता भला क्यों न हाहा करे जवानों की मौत पर! कोई संपादक भला क्यों न संवेदना की जगह व्यक्तिगत घृणा थोपे!