पुरानी फिल्म में एक संवाद है कि ‘भैंस पूँछ उठाएगी तो गाना नहीं गाएगी, गोबर ही करेगी’। ओवैसी नाम के दो लोग हैं, जो राष्ट्रीय परिदृश्य में काफी चर्चित रहते हैं। ये दोनों आपस में गुड ओवैसी-बैड ओवैसी करते रहते हैं। एक भाई मुँह से विष्ठा करता है, दूसरा अपनी छवि समझदारों वाली बनाए घूमता है। लेकिन ऐसा है नहीं, दोनों ही ज़हरीले हैं।
अकबरुद्दीन और असदुद्दीन नाम हैं इनके। पूरी पहचान मजहब विशेष के तथाकथित हक की राजनीति को लेकर है जिसमें इन्हें लगता है कि इनके मजहब वाले इस देश के नागरिक मात्र नहीं हैं, बल्कि कुछ और ही हैं और उन्हें उनका हक नहीं दिया जा रहा। और वो हक क्या है? ‘पंद्रह मिनट के लिए पुलिस को हटा दो’ फिर हम अदरक कर देंगे, लहसुन कर देंगे।
आज फिर एक विडियो घूम रहा है जिसमें अकबरुद्दीन बता रहा है कि उसके 15 मिनट वाले बयान को लेकर लोग अभी तक दहशत में हैं। इसीलिए मॉब लिंचिंग करने वाले और आरएसएस वाले उससे डरते हैं। उसने कहा कि मजहब वालों को शेर बनना होगा, ताकि कोई ‘चायवाला’ उनके सामने खड़ा न हो सके। छुटभैये ओवैसी ने इस्लामी भीड़ से कहा कि उन्हें डरने वाला नहीं, डराने वाला बनना चाहिए।
Agar yeh shahadat ka jazba seeno mai aajayega toh khuda ki kasam koi bhi gau rakshak koi bhi Bajrangdali ya koi bhi RSS wala hamara baal bhi binga nahi karsakta, Duniya usiko darrati hai jho darrta hai: #AIMIM Floor Leader Akbaruddin Owaisi. @asadowaisi pic.twitter.com/8Mff8im9pv
— Shaikh Zeeshan (@iamzzeeshan) July 23, 2019
जाहिर है कि ऐसे मौकों पर भारत के लिबरपंथी और स्वयं को लेनिन-माओ की क्रॉसब्रीड बताने को लालायित कामभक्त वामपंथी अभी या तो गालिब की शायरी करने में मशगूल हैं या मोदी को चिट्ठियाँ लिख कर बता रहे हैं कि ‘जय श्री राम’ तो युद्धघोष बन चुका है। अब इनको ये कौन बताए कि ये तो युद्धघोष हनुमान के समय से है जब वो लंका पर कूद गए थे। साथ ही, संदर्भ सही हो तो ये अभिवादन भी है। वर्साटाइल नारा है। एक नारा और भी बहुत वर्साटाइल है लेकिन वो युद्धघोष नहीं, कामांध आतंकियों के लिए किसी आकाशी वेश्यालय तक पहुँचने का पासवर्ड है। लेकिन उस पर किसी ने चिट्ठी नहीं लिखी।
खैर, रिंकलफ्री शेरवानी पहन कर, भीड़ को उन्मादी और दंगाई बनाने को आतुर ओवैसी यह भूल गया है कि ये 2012 नहीं है, न ही ‘इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का होना चाहिए’ कहने वाली सरकार है। शायद कॉन्ग्रेसियों के इसी बयान को ओवैसी जैसे चिरकुट ने ये सोचा कि पुलिस भी तो संसाधन ही है, और उस पर पहला हक समुदाय विशेष का है तो उसे हटा दिया जाए।
डरा हुआ शांतिप्रिय बनाम डराने वाला शांतिप्रिय
अब बात यह है कि ओवैसी पहले तो यह डिसाइड कर ले कि देश का ‘शांतिप्रिय’ डरा हुआ है या वो पंद्रह मिनट में हिन्दुओं को खत्म करने के लिए तैयार है। क्योंकि उसके भाई समेत कई ‘शांतिप्रिय’ नेता आज कल डरा हुआ ‘शांतिप्रिय’ वाला ही कोरस गा रहे हैं। ये बात और है कि जिस हिसाब से उनके द्वारा किए गए बलात्कारों, मंदिरों को तोड़ने, झूठ बोल कर ‘जय श्री राम’ का एंगल डालने, तलाक देकर भाई/बाप/मामा/जीजा आदि के साथ सो कर हलाला करवाने आदि की खबरें आ रही हैं, उससे ये डरे तो बिलकुल नहीं लग रहे। मजहब विशेष के तीन लोग किसी के घर के आगे गाँजा पीता है, मना करने पर उसको चाकुओं से गोद देते हैं। डरे हुए तो नहीं लगते। काँवड़ियों का अपने इलाके से गुजरने का इंतजार करते हैं और रात के एक बजे उन पर पत्थर फेंकते हैं। ये डरे हुए तो नहीं लगते।
दूसरी बात यह भी है कि ओवैसी को बैठ कर यह सोचना चाहिए कि 2012 से 2019 में ऐसा क्या बदल गया कि पंद्रह मिनट में हिन्दुओं का सफाया करने वाला ओवैसी इस्लामी भीड़ को कह रहा है कि उनमें शहादत का जज्बा होना चाहिए। आखिर इशारा कहाँ है? क्या ओवैसी चाहता है कि उसके सामने बैठे ‘शांतिप्रिय’, और उसको सुन कर स्खलित होने वाले ‘शांतिप्रिय’, भारतीय सेनाओं में जाएँ और राष्ट्र के लिए शहादत दें? क्या ओवैसी जब इस्लामी भीड़ से कहता है कि वो डराने वाले बनें तो उसका मतलब इससे है कि सुनने वाले मजहबी लोग पाकिस्तानियों को, या देश-समाज के दुश्मनों को डराने वाले बनें?
शहादत का जज्बा यानी मर मिटने की चाहत रखना। ऐसा जज्बा इस्लामी आतंकियों में खूब देखा गया है। वो बस इसलिए देह पर बम बाँध कर अपनी बम-बिरयानी बनवा लेते हैं क्योंकि किसी ने कहा है कि ऊपर बहत्तर हूरें बुर्का पहने इंतज़ार कर रही होंगी। यही तो वो जज्बा है कि अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए मर मिटना है। आखिर ओवैसी इन लोगों को शहादत के लिए क्यों तैयार कर रहे हैं? वो भी तब जब भारत के प्रधानमंत्री, जो ओवैसी के समर्थकों के भी प्रधानमंत्री हैं, ‘सबका विश्वास’ जीतने में जी-जान से लगे हैं।
आरएसएस का हौव्वा
चूँकि ओवैसी जैसे दंगाई प्रवृत्ति के लोग बार-बार यह नहीं कह सकते कि हिन्दू तुम्हारा दुश्मन है, इसलिए उन्हें एक विकल्प चाहिए। विकल्प है संघ, जिसके नाम एक भी अपराध नहीं, जिसने कभी भी किसी भी संप्रदाय के खिलाफ कुछ गलत नहीं किया, न कहीं हम फोड़ा, न किसी मार्केट में जा कर ‘जय श्री राम’ कहते हुए फट गया, फिर भी कट्टरपंथियों के लिए एक कॉमन दुश्मन के तौर पर इसे सारे नालायक पेश करते रहे हैं।
चूँकि, इन्होंने एकजुट हो कर, नरेन्द्र मोदी को इस चुनाव में हराने के लिए एड़ी-चोटी का परिश्रम किया लेकिन हुआ कुछ भी नहीं, तो इन्हें चुनने वाले इनकी क्षमता पर सवाल कर रहे हैं कि तुमने तो कहा था कि ये उखाड़ लोगे, और वहाँ से मोदी को भगा दोगे। न्यूज वाले भी इनको भाव नहीं दे रहे, तो इनके नुमाइंदे टिकटॉक से लेकर गलियों के जलसों में पागल कुत्तों की तरह भौंक रहे हैं।
लेकिन भौंकने के लिए एक भागती हुई कार तो चाहिए। आरएसएस वही भागती हुई, चमचमाती कार है जिसे देख कर ये भौंकते हैं क्योंकि इनका एक भी संगठन इस तरह का नहीं बन पाया जो कि अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा को सत्ता तक पहुँचा दे। इनके संगठन बड़ी पार्टियों द्वारा फेंकी गई हड्डियाँ चूसते रहे और अपने समर्थकों को ठगते रहे कि तुम्हारे लिए शहद की नदियाँ बहाने के लिए फंड इकट्ठा हो रहा है। परिणामतः मजहबी नेता रिंकलफ्री शेरवानी पहन कर घूम रहे हैं, और उनके समर्थक ‘नारा ए तदबीर अल्लाहु अकबर’ चिल्ला कर खुश हैं कि उनका मसीहा अब पर्वत को जला कर राख कर देगा। जबकि वो वास्तव में है चिरकुट।
कट्टरपंथियों का आइटम गर्ल है ओवैसी
जैसे फिल्मों में आइटम सॉन्ग हुआ करते थे और उनके आधार पर उनकी मार्केटिंग हुआ करती थी, और अब उन आइटम सॉन्ग्स में भी रीमिक्स का ही सहारा लिया जा रहा है तो ओवैसी का भी कुछ ऐसा ही है। नया है नहीं कुछ कहने को। घर की औरतें भी बुर्का पहन कर मोदी को वोट दे आती हैं, तो बेचारा भीतर से दुखी है।
ऐसे दुखी आदमी की भी जलसों में बुकिंग हो रखी होती है तो निजी दर्द को दरकिनार करते हुए माइक पर बोलना पड़ता है। ओवैसी का हाल उस बच्चे की तरह है जिसे उसका बाप मेहमानों के सामने सीधा ला कर खड़ा देता है और कहता है कि ‘अंकल को वो वाला पोएम सुना दो’। बच्चे को भी रटा हुआ रहता है, उसको पता है कि पिछले बार जो अंकल और आंटी आए थे किस लाइन पर ‘अरे वाह बेटा’ बोले थे, तो वो उस लाइन पर ज़ोर देता है।
ओवैसी को भीतर से पता है कि वो एक टुच्चा आदमी है जिसके विचार टुटपुँजिया हैं लेकिन इस देश में ऐसे लोगों के सामने भी, पंजो पर नितम्ब टिकाए लोग घुटनों पर हाथ रख कर ताली पीटने को बेकरार रहते हैं। उसे याद है कि ‘पंद्रह मिनट’ बोल कर वो अपने जेहनी बवासीर के दर्द से बिना चीर-फाड़ कराए, या अलीगढ़ के लाल कुआँ वाले हकीम के पास बिना जाए ही निजात पा सकता है। इसलिए वो बोलता है और उसके समर्थकों का भी दर्द थोड़ी देर के लिए शांत हो जाता है जो मई की 23 तारीख की सुबह से दोबारा शुरु हुआ है।
इसलिए, मेरी सलाह तो यही रहेगी कि भीड़ के सामने से हिन्दुओं के सफाए की धमकी देने वाले ओवैसी को अपनी स्पीच का प्रिंटआउट निकाल कर ठीक से पढ़ना चाहिए, फिर उसे सिलिंड्रिकल शेप में मोड़ कर स्थान विशेष में छुपा कर रख लेना चाहिए क्योंकि ये 2019 है।