Wednesday, April 24, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्देअवैध कब्जे हटाने के लिए नैतिक बल जुटाना सरकारों और उनके नेतृत्व के लिए...

अवैध कब्जे हटाने के लिए नैतिक बल जुटाना सरकारों और उनके नेतृत्व के लिए चुनौती: CM योगी और हिमंता ने पेश की मिसाल

जब देश के प्रधानमंत्री देश को अपने संबोधन में बताते हैं कि; देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार है तो वह बात देश के पास बाद में पहुँचती है और कब्ज़ा ग्रुप के पास पहले पहुँचती है। जब अवैध घुसपैठियों को देश के संविधान और कानून के तहत अपराधी नहीं बल्कि वोटर समझा जाता है तो उसके दूरगामी परिणाम होते हैं।

इतिहास देखें तो असम के दरांग जिले के धोलपुर में गत बृहस्पतिवार (23 सितंबर) को सरकारी जमीन पर से अवैध कब्जा हटाने की प्रक्रिया में जो हिंसा हुई वह पूरी तरह से अप्रत्याशित नहीं थी। इसलिए नहीं कि राज्य सरकार इसके लिए तैयार थी बल्कि इसलिए क्योंकि सरकारी संपत्ति पर से कब्ज़ा हटाने की प्रक्रिया ऐसी ही होती रही है जिसमें हिंसा का एक पूरा सिलसिलेवार इतिहास रहा है और यह किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है। रेलवे की जमीन, राज्य सरकारों की जमीन, केंद्र सरकार के किसी विभाग की जमीन हो, ऐसी हिंसा समय-समय पर कई जगहों पर देखने को मिली है। इस बात के भी उदाहरण हैं जब सरकारों या उनके विभागों द्वारा चलाए गए ऐसे बेदखली अभियान असफल भी रहे हैं। 

हिंसा अप्रत्याशित नहीं रही हो पर जो बात ध्यान देने योग्य है वह ये है कि बेदखली के इस अभियान के पहले राज्य सरकार और अवैध कब्ज़ा करने वालों के बीच एक न्यूनतम समझौता हुआ था जिसके अनुसार कब्ज़ा हटाने के परिणामस्वरूप विस्थापितों को राज्य सरकार के नियमों के तहत जमीन दी जानी थी। ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि पहले से तयशुदा प्रक्रिया के बावजूद असम पुलिस पर इस तरह का हमला क्यों हुआ और इसके पीछे अवैध कब्जाधारकों की क्या मंशा थी? साथ ही यह प्रश्न भी उठता है कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा हिंसा के पीछे जिस षड्यंत्र की बात कर रहे हैं, उसे क्या बिना छानबीन के नजरअंदाज किया जा सकता है? अवैध घुसपैठियों द्वारा इतनी बड़ी सरकारी जमीन और संसाधनों की ऐसी लूट क्या कोई देश चुपचाप सहन कर सकता है? 

असम के बाद ही एक मामला उत्तराखंड में हुआ जिसमें टिहरी बाँध पर बनी एक मस्जिद को हटाने की माँग को लेकर प्रशासन और स्थानीय लोगों में एक झड़प हुई और उसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। थोड़ा पीछे जाएँ तो इस महीने के शुरुआत में दिल्ली के फ्लाईओवर पर एक छोटी सी मस्जिद हटाने की माँग करने वाले स्थानीय लोगों और उस इलाके के पुलिस अफसर के बीच एक झड़प हुई थी और उसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। आज गुरुग्राम में सार्वजनिक जगह पर लगातार नमाज पढ़ने को लेकर स्थानीय लोगों ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि नमाज पढ़ने वालों के जुटने की वजह से इलाके में महिलाओं का आना-जाना दूभर हो गया है। इस तरह की तमाम घटनाएँ आये दिन सोशल मीडिया पर न केवल रिपोर्ट होती हैं बल्कि उन्हें लेकर लोगों की प्रतिक्रियाएँ भी देखने और पढ़ने को मिलती हैं। 


ये घटनाएं हमारे समय का दस्तावेज हैं और हमें किसी तरह का संदेश दे रही हैं। उस संदेश को समझना हमारे लिए चुनौती है पर उससे भी बड़ी चुनौती यह है कि संदेश समझने के बाद हम क्या करते हैं। यदि हम असम की घटना को ही देखें तो यह हमसब के लिए आश्चर्य की बात होगी कि जब देश के छोटे किसानों (करीब 65 प्रतिशत) के पास औसत रूप से एक एकड़ से भी कम जमीन है तब असम के एक जिले में प्रति व्यक्ति करीब 200 बीघे जमीन पर घुसपैठियों ने न केवल अवैध कब्ज़ा कर रखा है बल्कि उसे छोड़ने के एवज में जमीन की माँग भी करते हैं।

इस अवैध कब्ज़े को हटाने के लिए लगभग दो महीने से सरकार और कब्ज़ाधारकों के बीच बातचीत हो रही थी। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे तमाम अवैध कब्ज़े होंगे जिन्हें हटाने के लिए सरकारों को बड़ी मेहनत करने की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए अधिकतर सरकारें इस मेहनत से बचती रहती हैं जिसका परिणाम यह होता है कि अवैध कब्ज़े की जमीन बढ़ती जाती है। 

यही कारण है कि दशकों की यथास्थिति को बदलने की मंशा और वादे करके आई सरकारों के लिए ऐसे अवैध कब्ज़े बहुत बड़ी चुनौती है। यह आम भारतीय के लिए ख़ुशी की बात होनी चाहिए कि वर्तमान की असम और उत्तर प्रदेश सरकार ऐसे अवैध कब्ज़े हटाने का प्रयास तो करती हैं। ऐसा करने के लिए केवल संविधान और कानून लागू करना चुनौती है और इसके लिए जिस नैतिक बल की आवश्यकता है वह अधिकतर राज्य सरकारों और उसके नेतृत्व में नहीं मिलता। दशकों के अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का परिणाम यह है कि देश के बहुत बड़े हिस्से पर अवैध कब्जा हो गया है और उसे हटाना केवल सरकारों के लिए कानून व्यवस्था की चुनौती नहीं बल्कि राष्ट्रीय सभ्यता के लिए भी चुनौती है। 

भारतवर्ष पर अवैध कब्ज़े केवल देश के बंटवारे और विस्थापितों का परिणाम नहीं है। यह परिणाम है अवैध घुसपैठ, राजनीतिक तुष्टिकरण और योजनाबद्ध धार्मिक विस्तारवाद का। जब देश के प्रधानमंत्री देश को अपने संबोधन में बताते हैं कि; देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार है तो वह बात देश के पास बाद में पहुँचती है और कब्ज़ा ग्रुप के पास पहले पहुँचती है। जब अवैध घुसपैठियों को देश के संविधान और कानून के तहत अपराधी नहीं बल्कि वोटर समझा जाता है तो उसके दूरगामी परिणाम होते हैं। जब विपक्ष में रहने वाला नेता अवैध घुसपैठ पर सत्ता में आने के बाद यू-टर्न लेता है तब उससे अवैध कब्ज़ा ग्रुप को बल मिलता है। यथास्थिति को बदलने के लिए प्रयासरत सरकारें क्या कर पाती हैं, इस प्रश्न का उत्तर भविष्य के गर्भ में छिपा है।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

माली और नाई के बेटे जीत रहे पदक, दिहाड़ी मजदूर की बेटी कर रही ओलम्पिक की तैयारी: गोल्ड मेडल जीतने वाले UP के बच्चों...

10 साल से छोटी एक गोल्ड-मेडलिस्ट बच्ची के पिता परचून की दुकान चलाते हैं। वहीं एक अन्य जिम्नास्ट बच्ची के पिता प्राइवेट कम्पनी में काम करते हैं।

कॉन्ग्रेसी दानिश अली ने बुलाए AAP , सपा, कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता… सबकी आपसे में हो गई फैटम-फैट: लोग बोले- ये चलाएँगे सरकार!

इंडी गठबंधन द्वारा उतारे गए प्रत्याशी दानिश अली की जनसभा में कॉन्ग्रेस और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता आपस में ही भिड़ गए।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe