Monday, April 7, 2025
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लालू की लालटेन में तेल भरने को तैयार नहीं राहुल गाँधी, NSUI के लिए PK ने दी कुर्बानी: क्या कन्हैया के बहाने बिहार में तीसरा मोर्चा बनाने चली कॉन्ग्रेस?

कॉन्ग्रेस के जिलाध्यक्षों के चुनाव को लेकर भी राहुल गाँधी दोहरा रहे हैं कि पार्टी ने पिछड़ों को प्राथमिकता दी है। राजद प्रवक्ता भी बार-बार पिछड़ा की रट लगाते रहते हैं। ऐसे में बिहार में उतरकर कॉन्ग्रेस का उसी पिच पर खेलने का अर्थ है सीधे RJD से टकराव मोल लेना।

बिहार में इस वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसकी गहमा-गहमी शुरू हो चुकी है। एक तरफ़ भाजपा है जो महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में जीत के बाद उत्साहित है। वहीं दूसरी तरफ़ राजद है जो जातीय राजनीति खेलकर सत्ता में वापसी की कोशिश में लगी है। मैदान में कॉन्ग्रेस भी है, जो राज्य में एक नए चेहरे को स्थापित करने में जुटी है। इनके अलावा LJP और HAM हैं जो NDA गठबंधन का हिस्सा हैं, यहाँ तक कि वक़्फ़ बिल पर भी भाजपा को इन दोनों दलों का समर्थन था। वामपंथी भी हैं, CPI(ML) का बिहार के कुछ जिलों में अच्छा प्रभाव है।

एक पार्टी VIP भी है जो निषाद समाज के वोटों पर अपना दावा ठोकती है। वहीं अब राज्य की राजनीति में ‘जन सुराज पार्टी’ के नाम से नए दल का भी आगमन हुआ है, जो राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियाँ बटोर रहा है। ये प्रशांत किशोर की पार्टी है, जो कभी लालू-नीतीश दोनों के क़रीबी रहे हैं। बिहार में ताज़ा समीकरण ये है कि कॉन्ग्रेस पार्टी के शक्ति-प्रदर्शन ने राजद को बेचैन कर दिया है। क्या लालू यादव कभी कॉन्ग्रेस के किसी चेहरे को उभरता हुआ देख पाएँगे? फिर तेजस्वी यादव का क्या होगा?

कन्हैया कुमार को राहुल गाँधी का पूरा आशीर्वाद, RJD के लिए खतरा

मामला कुछ यूँ है कि सोमवार (7 अप्रैल, 2025) को राहुल गाँधी ने बेगूसराय में कन्हैया कुमार के साथ पदयात्रा में हिस्सा लिया। इस पदयात्रा का नाम ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ रखा गया है। बेगूसराय में सुभाष चौक से लेकर हर-हर महादेव चौक तक की यात्रा में राहुल गाँधी के साथ उतनी भीड़ तो नहीं उमड़ी, लेकिन वो एक सन्देश ज़रूर देकर गए। जगह-जगह फूल बरसाकर उनका स्वागत किया गया। सोशल मीडिया में भी पार्टी ने बिहार के संघर्ष और आवाज़ की उम्मीद इसी यात्रा को बताया। राजद और लालू परिवार ने इस यात्रा से दूरी बनाई रखी।

बेगूसराय से लौटकर राहुल गाँधी ने राजधानी पटना में 2 कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में ‘संविधान सुरक्षा सम्मेलन’ में उन्होंने हिस्सा लिया, वहीं पार्टी के प्रदेश मुख्यालय ‘सदाकत आश्रम’ में भी पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं से बातचीत की। कॉन्ग्रेस के भीतर बिहार में बड़े दिनों के बाद इतनी गहमा-गहमी दिख रही है। लोकसभा चुनाव 2024 के समय से ही राहुल गाँधी ‘संविधान बचाओ’ का नारा देते रहे हैं, वो लगातार OBC/SC/ST की बातें करते रहे हैं, ऐसे में क्या एक बार फिर से बिहार चुनाव में ये पैंतरे रंग दिखाएँगे?

ये तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा, लेकिन महागठबंधन में ज़रूर इस रंग का असर दिखने लगा है। देशभर में I.N.D.I. गठबंधन तो फुस्स हो गया, लेकिन बिहार में अबतक राजद-कॉन्ग्रेस-वामदलों का गठबंधन चला आ रहा है। लालू यादव कभी किसी कॉन्ग्रेस नेता को बिहार में शक्तिशाली होते हुए नहीं देखना चाहते हैं। लोकसभा चुनाव से पहले पप्पू यादव ने कॉन्ग्रेस में शामिल होने से पहले लालू यादव और तेजस्वी यादव के साथ बैठक की थी, लेकिन पूर्णिया लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव जमकर पप्पू यादव पर ही हमलावर रहे।

पप्पू यादव निर्दलीय लड़कर जीते, लेकिन उन्होंने कॉन्ग्रेस नहीं छोड़ी। अब कन्हैया कुमार के रूप में एक नया और चर्चित चेहरा उभर रहा है। कन्हैया कुमार फरवरी 2016 में JNU में लगे भड़काऊ नारों से ही सोशल मीडिया में चर्चित चेहरा रहे हैं, कॉन्ग्रेस में आने के बाद से ही उन्हें पार्टी की बड़ी बैठकों का हिस्सा बनते हुए देखा गया। वो बिहार के बेगूसराय से आते हैं, मीडिया और जनता के सामने बोलने में बेबाक हैं, ऐसे में पहली बार CM बनने के लिए जद्दोजहद कर रहे 2 बार के डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी यादव शायद ही उन्हें भाव दें।

प्रशांत किशोर के साथ गठबंधन में जा सकती है कॉन्ग्रेस

ऐसे में अगर मोलभाव की मेज पर तेजस्वी यादव कॉन्ग्रेस को भाव नहीं दे रहे हैं, तो फिर अब पार्टी के पास क्या विकल्प होगा? कॉन्ग्रेस पार्टी के पास एक विकल्प ये हो सकता है कि वो PK के साथ गठबंधन में जुड़े। कॉन्ग्रेस पार्टी के पास आज भी हर इलाक़े में कैडर है, पार्टी बिहार में आज़ादी के बाद लंबे समय तक सत्ता में रही है। वहीं, PK के पास सोशल मीडिया हाइप और रणनीति है। प्रशांत किशोर ने पटना में मुस्लिमों का सम्मेलन किया था, वो वक़्फ़ बिल का विरोध कर चुके हैं, ईद-इफ्तारी में भी वो ख़ूब दिखाई दिए थे – ऐसे में कॉन्ग्रेस को उनसे गठबंधन में शायद ही कोई ऐतराज हो।

2024 में 4 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में 2 सीटों पर जसुपा को प्रत्याशी बदलने पड़े थे, फिर भी पार्टी 10% से अधिक वोट पाने में कामयाब रही थी। हाँ, उसके बाद विधान पार्षदी के उपचुनाव में ज़रूर ‘जन सुराज पार्टी’ राजद-जदयू से आगे रही थी। हाल ही में पटना यूनिवर्सिटी में भी छात्र संघ के चुनाव हुए हैं, जिसमें अध्यक्ष पद पर ABVP जीती है। संयुक्त सचिव पद पर जसुपा की प्रत्याशी मात्र 182 वोटों से पीछे रह गई। राजद की करारी हार हुई, वहीं युवाओं में प्रशांत किशोर की पार्टी को लेकर उत्साह दिखा। अध्यक्ष पद पर प्रशांत किशोर ने NSUI को समर्थन दिया था।

हाल के दिनों में कॉन्ग्रेस द्वारा लिए गए कुछ फ़ैसलों को भी देखें तो ऐसा लगता है जैसे पार्टी बिहार में अपना स्वतंत्र जनाधार बढ़ाने की चेष्टा कर रही है। सभी 40 सांगठनिक जिलों में नए अध्यक्ष बनाए गए। साथ ही प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव को पद से हटा दिया गया। अखिलेश यादव UPA काल में राजद नेता थे और केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री भी। उन्हें लालू यादव के क़रीबी नेताओं में गिना जाता था, ऐसे में ये भी माना गया कि उन्हें हटाने के पीछे सोच यही थी कि कॉन्ग्रेस लालू यादव और राजद से अलग अपनी मजबूत पहचान बनाए।

लालू यादव के बारे में ये भी बता दें कि उनकी जो भी डीलिंग होती है, वो सीधे सोनिया गाँधी से फोन पर बात करने के बाद, शायद यही कारण है कि वो कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा राज्य में भेजे गए प्रभारियों को भाव नहीं देते। 2021 में लालू यादव ने कॉन्ग्रेस द्वारा प्रभारी बनाकर भेजे गए भक्त चरण दास को ‘भकचोन्हर’ बता दिया था। अभी हाल ही में कॉन्ग्रेस के वर्तमान प्रभारी कृष्णा अल्लावारु ने बीमार लालू यादव से मुलाक़ात की है। बताया गया था कि वो लालू के स्वास्थ्य की जानकारी लेने गए थे।

क्षेत्रीय साथियों को डरा रही कॉन्ग्रेस, मुस्लिम वोटों पर भी नज़र

ख़ैर, इन तमाम चर्चाओं के बीच एक चीज तो तय लग रही है कि कॉन्ग्रेस और राजद में डील फाइनल नहीं हो पाई है, सीट बँटवारे को लेकर बातचीत आगे नहीं बढ़ पाई है। दिल्ली में AAP की हार का श्रेय भी कॉन्ग्रेस के चुकी है, भले ही आँकड़े इसकी पुष्टि न करते हों। यूपी में अखिलेश यादव ने कॉन्ग्रेस पार्टी को भाव देना बंद करते हुए ये तक कह दिया है कि कॉन्ग्रेस अब ख़त्म हो चली है। ऐसे में कॉन्ग्रेस क्षेत्रीय दलों को ये डर दिखा रही है कि अगर गठबंधन नहीं हुआ तो भले वो ख़ुद जीते न जीते, इन्हें तो हरा ही देगी।

‘हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे’ वाले सिद्धांत पर चल रही कॉन्ग्रेस का PK से पहले भी नाता रहा है। उत्तर प्रदेश और पंजाब में प्रशांत किशोर कॉन्ग्रेस के लिए कार्य कर चुके हैं। एक बार तो उन्हें कॉन्ग्रेस में लेकर अध्यक्ष तक बनाए जाने की चर्च उठी थी, लेकिन फिर सामने आया था कि राहुल गाँधी को वो ख़ास पसंद नहीं हैं। प्रशांत किशोर ने बिहार में पदयात्रा की है, लोगों से दान भी लिया है, मुस्लिमों को भी रिझाया है, लालू और मोदी पर एक साथ हमला बोला है – ऐसे में आश्चर्य न हो अगर दोनों कल को साथ में चुनाव लड़ते हुए दिखें।

दलित-पिछड़ा, संविधान, आरक्षण – RJD से टकराते कॉन्ग्रेस के मुद्दे

कॉन्ग्रेस के जिलाध्यक्षों के चुनाव को लेकर भी राहुल गाँधी दोहरा रहे हैं कि पार्टी ने पिछड़ों को प्राथमिकता दी है, ‘अपर कास्ट’ के लोगों को हटाया है। राजद प्रवक्ता भी बार-बार पिछड़ा की रट लगाते रहते हैं। ऐसे में बिहार में उतरकर कॉन्ग्रेस का उसी पिच पर खेलने का अर्थ है सीधे RJD से टकराव मोल लेना। 9 अप्रैल को गुजरात में पार्टी का अधिवेशन भी होने जा रहा है, बिहार चुनाव से पहले इसे भी शक्ति-प्रदर्शन के रूप में ही देखिए। वहाँ भी संविधान, पिछड़ा और आरक्षण की बातें ही की जाएँगी।

इसका एक कारण ये भी है कि बिहार में नीतीश कुमार दलितों का उपवर्गीकरण कर महादलित का दर्जा बहुत पहले दे चुके हैं, वहीं राज्य में मोदी सरकार की जन-कल्याणकारी योजनाओं का फ़ायदा अधिकतर पिछड़े समाज को ही मिला है, ख़ासकर महिलाओं को। उधर 11 अप्रैल को प्रशांत किशोर पटना के गाँधी मैदान से ‘बिहार बदलाव रैली’ की शुरुआत करेंगे। बिहार की राजनीति अभी उस मोड़ पर खड़ी है जहाँ कोई किसी का दोस्त नहीं दिख रहा, यहाँ तक कि नीतीश कुमार भी भाजपा के लिए मजबूरी ही हैं। उनके हाल के कुछ वायरल वीडियोज ने भाजपा की टेंशन भी बढ़ाई है।

फिर भी, महादलित और महिला वोट बैंक नीतीश कुमार के साथ है और यही उनके चेहरे की ताक़त है। लालू परिवार के भ्रष्टाचार से पीड़ित रहे बिहार में नीतीश कुमार का इस मामले में ‘क्लीन’ नज़र आते हैं। तो क्या इस बार बिहार में एक तरफ भाजपा, जदयू, लोजपा और HAM, एक तरफ कॉन्ग्रेस और PK और एक तरफ राजद व वामदल दिखाई दे सकते हैं? इस त्रिकोणीय लड़ाई में VIP वाले मुकेश सहनी किधर जाएँगे? वो 60 सीटें माँग रहे हैं, कम से कम महागठबंधन में राजद के रहते तो ये संभव नहीं है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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