जावेद अख्तर और उनकी पहली पत्नी के बेटे फरहान अख्तर ने एक बार फिर से संशोधित नागरिकता क़ानून (CAA) को लेकर झूठ फैलाया है। ऐसा लगता है जैसे उन्हें व्हाट्सप्प पर कुछ मिला, जिसे उन्होंने बिना जाँच-पड़ताल के ही ट्विटर पर शेयर कर दिया। उन्होंने जो भी जानकारी शेयर की है, वो भ्रामक है, ग़लत है, त्रुटिपूर्ण है और भड़काऊ भी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बार-बार सभी इंटरव्यू में कह रहे हैं कि सीएए का भारतीय मुस्लिमों से कोई लेना-देना नहीं है। यहाँ तक कि इसका भारतीय नागरिकों से भी कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी इससे जुड़ी ऐसी जानकारियाँ शेयर की जा रही हैं, जिससे लगे कि ये मजहब विशेष के ख़िलाफ़ है।
‘डॉन’ और ‘दिल चाहता है’ जैसी फ़िल्मों को निर्देशित कर चुके फरहान अख्तर ने एक फोटो ट्वीट किया। उसमें बताया गया है कि संसद द्वारा पारित किए गए नए क़ानून के अनुसार, पड़ोसी देशों के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के उन लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी, जो वहाँ की प्रताड़ना से बचने के लिए भारत आ गए हैं। इसके बाद उन्होंने दावा किया है कि अगर एनआरसी के साथ इसे जोड़ कर देखा जाए तो ये क़ानून मुस्लिमों को बाहर कर देता है। आइए, बताते हैं कि ये कैसे ग़लत है:
एनआरसी अभी पूरे देश में लागू नहीं किया गया है। ये भारतीय नागरिकों के एक डेटाबेस की तरह है, एक आधिकारिक रिकॉर्ड है, जिसे फिलहाल केवल असम में लागू किया गया है। इसे पूरे देश में लागू करने की बातें ज़रूर हो रही हैं, लेकिन इसके लिए क्या नियम-क़ानून हैं, ये तभी पता चलेगा जब सरकार कोई घोषणा करे। और हाँ, 1951 में हुए जनगणना के बाद इस रजिस्टर को तैयार किया गया था लेकिन उसके बाद से इसे अपडेट नहीं किया गया। इन सबके बावजूद जानबूझकर सीएए के विरोध में एनआरसी को घुसाया जा रहा है, ताकि मुस्लिमों को डराया जा सके। सारे कार्य सिटीजनशिप एक्ट, 1955 के तहत ही हो रहा है।
Here’s what you need to know about why these protests are important. See you on the 19th at August Kranti Maidan, Mumbai. The time to protest on social media alone is over. pic.twitter.com/lwkyMCHk2v
— Farhan Akhtar (@FarOutAkhtar) December 18, 2019
अब सीएए पर आते हैं क्योंकि फरहान अख्तर गैंग की पूरी कोशिश यही है कि सीएए की जगह एनआरसी की बात हो और जनता को भड़काया जा सके। हमने देखा कि फरहान अख्तर ने लिखा कि सीएए में मुस्लिमों को बाहर कर दिया गया है, छाँट दिया गया है। ऐसा नहीं है। इस क़ानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के उन प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी, जो दिसंबर 2014 से पहले से भारत में रह रहे हैं। वहाँ अल्पसंख्यक कौन हैं? हिन्दू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी। मुस्लिम तो इन तीनों देशों में अल्पसंख्यक हैं ही नहीं। फिर जावेद और उनकी पहली पत्नी के बेटे फरहान अपना अल्पसंख्यक-विरोधी रुख क्यों दिखा रहे हैं?
ऐसा भी नहीं है कि इन तीनों देशों से जो भी अल्पसंख्यक यहाँ आएँगे, उन्हें नागरिकता दे दी जाएगी। केवल उन्हीं को मिलेगी, जो दिसंबर 2014 से पहले से भारत में रह रहे हैं। उसके बाद जो आए हैं या आगे जो आएँगे, उनके लिए ये नियम नहीं है। तो क्या मुस्लिमों को नागरिकता नहीं मिलेगी? भारत की नागरिकता के लिए आवेदन करने के अपने नियम-क़ानून हैं और उसके तहत कोई भी ऐसा कर सकता है। ये सरकार फ़ैसला लेती है कि किसे नागरिकता देनी है या नहीं। जैसे, अदनान सामी मुस्लिम हैं, फिर भी उन्होंने आवेदन किया और उन्हें नागरिकता मिली। इसी तरह दरवाजे सबके लिए खुले हैं। ऐसा कोई भी नियम नहीं बनाया गया है, जिसमें ये लिखा हो कि मुस्लिमों को नागरिकता नहीं दी जाएगी।
अब फरहान अख्तर के अगले झूठ पर आते हैं। ‘रॉक ऑन’ और ‘ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा’ के अभिनेता फरहान ने लिखा है कि मुस्लिमों के अलावा इन लोगों को भी छाँट दिया जाएगा और निकाल बाहर किया जाएगा- आदिवासी, महिलाएँ, ट्रांसजेंडर्स, दलित, भूमिहीन, नास्तिक, भूमिहीन और दस्तावेज न रखने वाले लोग। फरहान लिखते हैं कि इन लोगों को जेल में ठूँस दिया जाएगा। इन्हें प्रत्यर्पित कर दिया जाएगा और प्रताड़ना कैम्पों में डाल दिया जाएगा। अब आप सोचिए, सरकार के मंत्रीगण और भाजपा के सांसदों-विधायकों के घर में महिलाएँ नहीं हैं क्या? भाजपा में दलित और आदिवासी नेतागण थोक संख्या में हैं? वो सब जेल जाएँगे, प्रत्यर्पित होंगे और प्रताड़ना कैम्पों में डाले जाएँगे?
वैसे तो जाति की चर्चा करना उचित नहीं है लेकिन इस प्रोपेगंडा का जवाब देने के लिए इसका उल्लेख करना पड़ेगा। भारत के राष्ट्रपति, जो संघ से जुड़े रहे हैं और भाजपा नेता भी हैं, वो दलित हैं। क्या उन्होंने ऐसे क़ानून पर हस्ताक्षर किया, जिससे उन्हें ही जेल में डाल दिया जाएगा? ये बेहूदा लॉजिक है। लेकिन फिर भी, एक-एक झूठ का पर्दाफाश आवश्यक है। दरअसल, असम में जो एनआरसी लाया गया है, उसका धर्म से कोई लेना-देना है ही नहीं। ये तो सभी नागरिकों के लिए है! दलितों, मुस्लिमों व महिलाओं को अलग करने का कोई सवाल ही कहाँ उठता है, जब मजहब, लिंग और जाति का एनआरसी से कोई मतलब ही नहीं है।
इसके बाद फरहान अपने व्हाट्सप्प फॉरवर्ड के माध्यम से समझाते हैं कि एनआरसी क्या है? इसमें बताया गया है कि ये भारत के हर नागरिक को ये साबित करने को कहता है कि वो यहाँ रहने के अधिकारी तभी होंगे, जब उनके पास दस्तावेजी सबूत हों। फरहान लिखते हैं कि आईडी कार्ड और टैक्स स्लिप्स से कुछ साबित नहीं होगा। इसके बाद वो पूछते है कि कितने लोगों के माता-पिता के पास 1971 के पहले का जन्म प्रमाण पत्र या ऐसे दस्तावेज हैं? यहाँ फिर से बताना पड़ेगा कि एनआरसी पूरे देश में लागू नहीं किया गया है और असम में 1971 को समयसीमा तय करनी एक वजह है। असम एकॉर्ड में भी इसी तारीख का जिक्र किया गया है। ये एकॉर्ड केंद्र सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हुआ था। तब केंद्र में कॉन्ग्रेस की सरकार थी।
— Farhan Akhtar (@FarOutAkhtar) December 18, 2019
फिर पूरे देश के लिए 1971 की बात क्यों की जा रही है, जबकि ऐसी कोई बात ही नहीं है? ये तो असम के लिए है। अब फरहान अख्तर के अगले झूठ की ओर आते हैं। फरहान यहाँ सीएए और एनआरसी को लिंक किए जाने की बात करते हैं। उनका कहना है कि सरकार ऐसा करेगी। सच्चाई क्या है? सच्चाई ये है कि एनआरसी को अपडेट करने के लिए सीएए का कोई इस्तेमाल होगा ही नहीं। सरकार ने भी इस बात से पूरी तरह इनकार कर दिया है। जब एनआरसी मजहबी आधार पर किया ही नहीं जा रहा और इसके लिए सीएए का इस्तेमाल हो ही नहीं रहा, तो फिर मुस्लिमों को बाहर किए जाने वाली बात ही फ़र्ज़ी साबित हो जाती है।
सिटीजनशिप एक्ट, 1955 के तहत काम होगा और जो देश का नागरिक नहीं है, उसे देश से बाहर निकाल फेंका जाएगा। इससे फरहान अख्तर या उनके गैंग को समस्या ही क्या है? अब फरहान अख्तर के सबसे बड़े झूठ की तरफ़ आते हैं। ‘सेनोरिटा’ और ‘दिन धड़कने दो’ जैसे गाने गा चुके फरहान को कम से कम एक बार सीएए पढ़ तो लेना चाहिए था। भले ही वो ‘रॉक ऑन’ में ‘सोचा है’ गाते हैं लेकिन खुद उनमें सोचने की क्षमता की कमी दिखाई देती है। उनके अगले झूठ पर नज़र डालिए:
फरहान लिखते हैं कि भारत के हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय से जुड़े लोगों को बिना दस्तावेज दिखाए ही नागरिकता दे दी जाएगी। मज़ाक चल रहा है क्या? किसी व्यक्ति को सिर्फ़ इसीलिए दस्तावेज नहीं दिखाने होंगे क्योंकि वो हिन्दू है? इसके बाद फरहान इसे भेदभाव करार देते हुए कहते हैं कि ये भारत के सेक्युलर संवैधानिक मूल्यों के ख़िलाफ़ है। किसी अनपढ़ व्यक्ति को भी ये पता है कि वो हिन्दू हो या मुस्लिम, उसे राशन लेने के लिए राशन कार्ड और वोट देने के लिए वोटर आईडी कार्ड दिखाना ही पड़ेगा। सरकारी अधिकारी इसके लिए उसका मजहब नहीं पूछेंगे।
एक बात जान लीजिए। जब भी कोई व्यक्ति आपसे कहे कि भेदभाव हो रहा है, आप जवाब दीजिए कि एनआरसी में एक हिन्दू को भी उन्हीं प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ेगा, जिससे एक मुस्लिम को। एक सिख और एक हिन्दू या फिर एक पारसी और एक बौद्ध, किसी भी व्यक्ति को समान नियम-कायदों का पालन करना पड़ेगा। फरहान अख्तर और उनके गैंग के लोग नकारात्मक मानसिकता से भरे पड़े हैं। वो मुस्लिमों को डरा रहे हैं। एनआरसी और सीएए की लिंकिंग की बात ग़लत है। मुस्लिमों को छाँटने की बात ग़लत है। भेदभाव की बात ग़लत है। ये सारे तर्क दीजिए, जब भी कोई ऐसी भ्रामक बातें फैलाए। जाते-जाते बता दें कि फरहान अख्तर ने भारत का जो नक्शा शेयर किया है, वो भी ग़लत है। वो पूरे जम्मू कश्मीर को भारत का हिस्स्सा नहीं मानते।
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