डेमोग्राफी में बदलाव के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं, ये हिन्दुओं को अब समझ में आ रहा है। ऐसा नहीं है कि इतिहास में इसका खामियाजा हमें नहीं भुगतना पड़ा, बल्कि उस इतिहास को हम भूल चुके हैं। पाकिस्तान के रूप में हमारा 8 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र और बांग्लादेश के रूप में डेढ़ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हमसे छिन गया। अफगानिस्तान, जो पहले भारतवर्ष का हिस्सा हुआ करता था, आज उस साढ़े 6 लाख वर्ग किलोमीटर में शरिया चलता है।
यानी, कुल मिला कर ये 16 लाख वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र हमारे हाथों से इस्लाम को फिसल गया। ये कोई छोटा क्षेत्र नहीं है, बल्कि भारत के वर्तमान क्षेत्रफल का लगभग आधा है। अर्थात, आधा भारत हमने खो दिया। वहाँ आज हिन्दू बेहाल हैं। पाकिस्तान में उनकी बहू-बेटियों का अपहरण कर जबरन धर्मांतरण और निकाह करा दिया जाता है, अफगानिस्तान में गुरु ग्रन्थ साहिब सिर पर लाद कर भारत लाना पड़ता है और बांग्लादेश में एक झूठी अफवाह के कारण देश भर में दुर्गा पूजा पंडालों पर हमले होते हैं।
ये होता है जनसांख्यिकी में बदलाव का असर। 1930 के दशक के कराची की तस्वीर देखिए। महाशिवरात्रि के मेले में भीड़ दिखेगी। आम हिन्दू वहाँ आते थे, समृद्ध हिन्दुओं की गाड़ियाँ पार्क हुई दिखेंगी। आज कराची में इस तरह के नज़ारे के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। क्यों? क्योंकि ये मुस्लिम बहुल इलाका है। नेपाल, भूटान, तिब्बत या म्यांमार भी प्राचीन भारत से अलग हुए, लेकिन वहाँ हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं होते। कारण कि वहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक नहीं हैं।
अफगानिस्तान में शरिया लागू है। यहाँ तक कि सिनेमा और गीत-संगीत पर भी प्रतिबंध है। भगवान बुद्ध की प्रतिमा को बम से उड़ा दिया गया। गुरुद्वारों पर हमले होते हैं। बांग्लादेश में क़ुरान के अपमान की झूठी अफवाह से कैसे देश भर के मंदिरों पर हमले और आगजनी हुई, हमने देखा। तीनों देशों में अल्पसंख्यकों, खासकर हिन्दुओं की जनसंख्या पिछले कुछ दशकों में कई गुना कम हो गई। जो बचे-खुचे हैं, डर कर रहते हैं। डर कर रहना पड़ता है।
लेकिन, ये तो इस्लामी कट्टरवाद की बस 33% सफलता है। बाकी की सफलता उन्हें तब प्राप्त होगी, जब उनका ‘गजवा-ए-हिंदुस्तान’ का सपना पूरा होगा। पूरे भारत पर इस्लाम का राज। इसकी एक साजिश हमें तभी देखने को मिली थी, जब देश के बँटवारे के समय बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) से लेकर पाकिस्तान तक एक ‘मुस्लिम पट्टी’ की माँग की गई थी। अर्थात, भारत के बीचोंबीच मुस्लिम जनसंख्या बढ़ा कर देश को और खंडित करना।
ये साजिश अभी भी चल रही है। बांग्लादेश से पाकिस्तान तक एक ‘मुस्लिम पट्टी’ बनाए जाने के आरोप लगते रहे हैं, यानी रास्ते में आने वाले सभी जिलों को मुस्लिम बहुसंख्यक बना दो। इससे न सिर्फ भारत के टुकड़े होंगे, बल्कि हिन्दू भी डर कर रहेंगे। पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है। पूर्व विधान पार्षद हरेंद्र प्रताप के इस मुस्लिम गलियारे के बारे में बताते हुए जानकारी दी थी कि कैसे इससे पाकिस्तान और बांग्लादेश को जोड़ने की साजिश चल रही है।
उन्होंने आँकड़े गिनाए थे कि मुस्लिम बहुल इलाकों मुजफ्फरनगर (50.14%), मुरादाबाद (46.77%), बरेली (50.13%), सीतापुर (129.66%), हरदोई (40.14%), बहराइच (49.17%) और गोंडा (42.20%) से ‘मुस्लिम पट्टी’ बनाने की साजिश है। कैराना से हिन्दुओं के पलायन और पश्चिम बंगाल में रोहिंग्या मुस्लिमों के बढ़ते प्रभाव को उन्होंने इससे जोड़ कर देखा था। चिकेन्स नेक काटने की साजिश की तो शाहीन बाग़ में शरजील इमाम जैसों ने ही पोल खोल दी।
झारखंड की एक हालिया घटना को ही देख लीजिए। गढ़वा के एक विद्यालय में प्रधानाध्यापक पर इसीलिए इस्लामी नियम-कानून लागू करने का दबाव है, क्योंकि वहाँ मुस्लिम 75% हो गए हैं। ये अलग बात है कि देश के 8 राज्यों में अल्पसंख्यक होने के बावजूद हिन्दुओं को इसका फायदा नहीं मिलता और सुप्रीम कोर्ट भी इससे जुड़ी याचिका रद्द कर चुका है। मुस्लिम कहीं 100% हो जाएँ, फिर भी उन्हें सरकारी स्तर पर अल्पसंख्यकों वाली सारी सुविधाएँ मिलती रहेंगी।
गढ़वा में समुदाय के दबाव के चलते स्कूल की प्रार्थना बदल गई है। पहले यहाँ ‘दया का दान विद्या का…’ प्रार्थना करवाई जाती थी। हालाँकि अब ‘तू ही राम है तू ही रहीम’ प्रार्थना स्कूल में होने लगी है। इसके साथ स्कूल में बच्चों को हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने से भी मना कर दिया गया है। गाँव का मुखिया शरीफ अंसारी है। मुस्लिमों के हंगामे के कारण प्रिंसिपल को सलाह दी गई कि उनके कहे अनुसार चलाएँ। क्या आज तक हिन्दुओं ने किसी स्कूल में घुस कर हंगामा किया है कि वहाँ यज्ञ-हवन करवाएँ जाएँ।
ये इस तरह की अकेली घटना नहीं है। राजस्थान के उदयपुर में टेलर कन्हैया लाल तेली का सिर कलम किए जाने का मामला हो या महाराष्ट्र के अमरावती में केमिस्ट उमेश कोल्हे की गर्दन में खंजर घोंप कर उनकी हत्या की घटना, इस्लामी कट्टरपंथ का प्रयास यही है कि हिन्दू डर कर रहें। कश्मीर में दशकों से आम नागरिक निशाना बनाए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में एक छोटी सी घटना पर निकली मुस्लिम भीड़ रेलवे की अरबों की संपत्ति का झटकों में नुकसान कर देती है।
खासकर जहाँ भाजपा की सरकार नहीं है, वहाँ ऐसी घटनाएँ और ज्यादा होती हैं। अव्वल तो ये कि इन्हें तुरंत अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिल जाता है। 50 से अधिक इस्लामी मुल्क हैं दुनिया में, ऊपर से कई देशों में वो बहुसंख्यक हैं और कइयों में प्रभावशाली स्थिति में हैं। फिर भी वो पीड़ित बन कर ही रहते हैं। मीडिया आतंकवाद और कट्टरपंथ के विरोध को ‘इस्लामोफोबिया’ कहता है। किसी हिन्दू का सिर जिहादी काट लें, फिर भी ‘TIME’ जैसे मैगजीन एक तरह से ये पूछते हैं कि ये हिन्दू बिना शोर मचाए क्यों नहीं मर रहे?
As Hindu demographics collapse , islamists will take over the system and ask hindus to either convert, leave or face death..
— Ritu #सत्यसाधक (@RituRathaur) July 5, 2022
There will be calls from mosques for this
& 303 govt is nourishing them
जहाँ मुस्लिमों की जनसंख्या ज्यादा नहीं है, वहाँ भी कई गली-मोहल्लों में ये एक साथ रहते हैं। ये इलाके फिर ‘संवेदनशील’ कहे जाते हैं। वहाँ मस्जिद होता है। सड़क सरकार की होती है, लेकिन वहाँ से हिन्दू त्योहारों के जुलूस नहीं गुजर सकते। डीजे बजाने पर पत्थरबाजी होती है। लेकिन, ये सड़क पर नमाज पढ़ सकते हैं। सार्वजनिक स्थान पर शांतिपूर्ण हनुमान चालीसा पाठ को ‘गुंडई’ बता दिया जाता है। यानी, इनकी मंशा है कि ये जहाँ भी रहें, मर्जी इनकी ही चले। शरिया का पालन मुस्लिम ही नहीं, सभी गैर-मुस्लिम भी करें।
उत्तराखंड में भी डेमोग्राफी बदलने की बात सामने आई है। पर्यटन और हिन्दू तीर्थाटन आधारित इस राज्य के उद्योग-धंधों में बाहरी मुस्लिमों का वर्चस्व हो गया है। पश्चिम बंगाल में तो लगभग एक तिहाई जनसंख्या मुस्लिमों की होने जा रही है। तभी भाजपा कार्यकर्ताओं के नरसंहार पर मुस्लिमों की बदौलत सत्ता में आई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुप रहती हैं। हैदराबाद की सभी विधानसभा और लोकसभा सीटें असदुद्दीन ओवैसी को जाती हैं। बिहार के सीमांचल में मुस्लिम उम्मीदवार ही जीतते हैं। ये होता है डेमोग्राफी में बदलाव का असर।
हम कश्मीर को कैसे भूल सकते हैं। लाखों की संख्या में जहाँ पंडित हुआ करते थे और डल झील के किनारे मंत्र जपते पंडित जिस राज्य की पहचान थे, वहाँ से उन्हें अपनी घर-संपत्ति छोड़ कर भागना पड़ा और अपने ही देश में शरणार्थी बन कर जीना पड़ रहा है। नरसंहार हुआ, बलात्कार हुआ, पलायन हुआ – बदल गई डेमोग्राफी। इसकी कोई गारंटी नहीं कि ये प्रक्रिया भारत के अन्य हिस्सों में नहीं दोहराई जाएगी। गुजरात में एक जैन कॉलोनी का इस्लामीकरण कर दिया गया, जहाँ अहिंसक जैन को कटते हुए पशुओं की चीखें सुननी पड़ती है, बहता खून देखना पड़ता है। यही तो है डेमोग्राफी चेन्ज की प्रक्रिया।