Thursday, April 25, 2024
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मुफ्ती मोहम्मद नहीं चाहते थे, जल्दी रिहा हो बेटी रूबैया, सरकार गिराने के लिए रची थी साजिश: अपहरण कांड की कहानी

उधर मुफ्ती परिवार भी खुश और आतंकी भी खुश, लेकिन अब्दुल्ला पर इस रिहाई के दाग लग गए। आतंकियों की रिहाई का जश्न श्रीनगर में जमकर मनाया गया। लोग उन्माद में सड़कों पर उतर आए और घाटी अलगाववाद और देश विरोधी नारों से गूँज उठी। सड़कों पर खुलेआम नारे लगाए जा रहे थे- "हम क्या चाहते! आजादी" और "जो करे खुदा का खौफ, वो उठा ले क्लाश्निकोव"।

जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) की बहन और केंद्रीय गृहमंत्री रह चुके दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद (Mufti Mohammad Sayeed) की बेटी डॉक्टर रूबैया सईद (Dr. Rubaiya Sayeed) ने 32 साल पुराने अपने चार अपहरणकर्ताओं को कोर्ट में पहचान लिया है। रूबैया के अपहरणकर्ताओं में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) से जुड़ा यासीन मलिक (Yasin Malik) भी था।

साल 1989 के इस हाई प्रोफाइल अपहरण कांड ने देश को झकझोर कर रखा दिया था और सरकार घुटने पर आकर पाँच खूंखार आतंकियों को इसके बदले में रिहा कर रूबैया सईद को छुड़ाया था। इसके बाद से जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के हौसले इस कदर बुलंद हुए कि घाटी के हिंदुओं का खुलेआम नरसंहार हुआ और लाखों लोगों को अपनी घर-संपत्ति घाटी में ही छोड़कर जान बचाने के लिए पलायन करना पड़ा।

इस अपहरण कांड को लेकर शुरू से सवाल उठाए जाते रहे हैं। केंद्रीय गृहमंत्री की बेटी का खुलेआम अपहरण हो जाना कोई साधारण बात नहीं थी। जिस राज्य में आतंकवाद अपना सिर उठा रहा था, वहाँ केंद्रीय गृहमंत्री की बेटी अकेली घूमे, इस पर भी सवाल उठाए गए और इसके पीछे गहरी साजिश बताया गया।

ऐसे ही एक राजनेता और लेखक ने अपनी किताब में इस साजिश के बारे में विस्तार से लिखा है। इंजीनियर हिलाल वार के आरोप को थोथा इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वे हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के प्रमुख घटकों में शामिल रहे हैं।

पीपुल्स पोलिटिकल पार्टी के चेयरमैन इंजीनियर हिलाल वार ने अपनी किताब ‘द ग्रेट डिस्क्लोजर, सीक्रेट अनमास्क्ड’ (The Great Disclosure, Secret Unmasked) में लिखा है कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में फारूक अब्दुल्ला को कमजोर करने के लिए पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के नेता और तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने अलगाववादी यासीन मलिक के साथ मिलकर अपनी ही बेटी के अपहरण की कहानी रची थी।

दरअसल, भाजपा के सहयोग से विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh) की सरकार को सत्ता सँभाले हफ्ता भी नहीं बीता था। 8 दिसंबर 1989 की दोपहर गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद मंत्रालय में पहली बार अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे थे। ठीक उसी वक्त उनकी बेटी रूबैया सईद अपनी मेडिकल इंटर्नशिप की ड्यूटी खत्म कर एलडी हॉस्पिटल से अकेली बस स्टॉप पर पहुँची और एक मिनी बस में सवार हो गई।

वैन लाल चौक से श्रीनगर के बाहरी इलाके नौगाम की तरफ जा रही थी और वह चानपूरा चौक के पास जैसे ही पहुँची, वैन में सवार तीन लोगों ने गन प्वॉइंट पर वैन को रोकने के बाद रूबैया सईद को नीचे उतारकर मारुति कार में बैठा लिया। इस कार में JKLF का डॉ. गुरु पहले से बैठा था। उसके बाद मारुति कार रूबैया को लेकर चली गई। वह कहाँ गई, ये किसी को नहीं पता। उस दौरान प्रत्यक्षदर्शियों ने दावा किया था कि गन प्वॉइंट पर होने के बाद बावजूद रूबैया के चेहरे पर डर या घबराहट के कोई निशान नहीं थे।

इंजीनियर हिलाल वार कहना है कि अपहरण के बाद रुबैया सईद को कहाँ रखना इसके बारे में तत्कालीन डीजीपी और मुफ्ती मोहम्मद सईद को पता था। दिसंबर 1989 की शुरुआत में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने JKLF के कमांडर मियाँ सरवर की तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (DGP) गुलाम जिलानी पंडित के मकान पर एक गुप्त बैठक कराई थी। इस बैठक में ही रुबैया सईद के अपहरण साजिश रची गई।

हिलाल वार का सवाल वाजिब है कि जिस समय कश्मीर में आतंकी हिंसा लगातार बढ़ रही थी, उस समय देश के गृहमंत्री की बेटी बिना किसी सुरक्षा के अकेली ही अस्पताल से पैदल बस स्टॉप जाती है। मिनी बस में बैठती है और फिर कुछ आगे जाकर उसे अगवा कर लिया जाता है। यह सब प्री-प्लान्ड था।

जब रूबैया सईद रास्ते से गायब हुईं तो बवाल मच गया। अपहरण का आरोप JKLF के यासीन मलिक और एथलिट से चरमपंथी बने अशफाक वानी पर लगा। बाद में जावेद मीर नाम के चरमपंथी ने स्थानीय मीडिया को फोन कर अपहरण की जिम्मेदारी ली। उसने 20 आतंकियों को छोड़ने के बदले रूबैया को रिहा करने की माँग रखी।

इस दौरान हर तरफ चिंता और बेचैनी थी, लेकिन मुफ्ती मोहम्मद सईद के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। वह शांत रहते थे और कुछ भी नहीं बोलते थे। लोगों में इस बाद को लेकर खुसर-फुसर भी थी कि सईद जानते थे कि उनकी बेटी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जाएगा और उसका अच्छे से ख्याल रखा जाएगा।

नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) के पूर्व मेजर जनरल ओपी कौशिक ने भी साल 2012 में कहा था कि मुफ्ती मोहम्मद सईद नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी जल्द रिहा हो। कौशिक ने दावा किया था कि अपहरण की सूचना मिलने के पाँच मिनट के भीतर एनएसजी ने मालूम कर लिया था कि रूबैया को कहाँ रखा गया है।

जब कौशिक ने सईद को बताया था कि रूबैया को कुछ ही देर में सुरक्षित रिहा करा लिया जाएगा तो सईद भड़क गए और उन्हें तुरंत मीटिंग से बाहर निकलने के लिए कह दिया। इसके साथ ही उन्होंने इस मामले से एनएसजी को अलग रखने को कहा।

दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने रूबैया को रिहा कराने के लिए डॉ. गुरु को एक चैनल बनाया। इसके अलावा भी कई माध्यमों से JKLF के आतंकियों से मध्यस्थता जारी रही। केंद्र की सरकार ने जम्मू-कश्मीर के फारूक सरकार पर आतंकियों को छोड़ने का दबाव बनाया।

इंजीनियर हिलाल वार कहना है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद जम्मू-कश्मीर की फारूक अब्दुल्ला सरकार गिराने को किसी भी कीमत पर गिराना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जगमोहन (Jagmohan) को राज्यपाल भी बनवाया। अब वह अपनी बेटी के अपहरण की साजिश को मोहरा बना रहे थे। फारूक अब्दुल्ला कई मौकों पर कह चुके हैं कि अगर उस समय वे आतंकियों को नहीं छोड़ते तो उनकी सरकार गिरा दी जाती।

बाद में लगभग सप्ताह भर विभिन्न मध्यस्थों के माध्यम से हुए समझौतों में JKLF पाँच आतंकियों की रिहाई पर राजी हुआ। जम्मू-कश्मीर की फारूक अब्दुल्ला सरकार ने पाँच आतंकियों को छोड़ दिया। इधर, 5 आतंकियों को रिहा किया और उधर रूबैया दिल्ली पहुँच गईं।

उधर मुफ्ती परिवार भी खुश और आतंकी भी खुश, लेकिन अब्दुल्ला पर इस रिहाई के दाग लग गए। आतंकियों की रिहाई का जश्न श्रीनगर में जमकर मनाया गया। लोग उन्माद में सड़कों पर उतर आए और घाटी अलगाववाद और देश विरोधी नारों से गूँज उठी। सड़कों पर खुलेआम नारे लगाए जा रहे थे- “हम क्या चाहते! आजादी” और “जो करे खुदा का खौफ, वो उठा ले क्लाश्निकोव”।

हिलाल वार का कहना है कि अपहरण में सहयोग के लिए मुफ्ती मोहम्मद सईद ने यासीन मलिक को प्रमुख अलगाववादी नेता के रूप मे प्रचारित कराया और बरसों तक इस मामले को अदालत में लटकाए रखा। उन्होंने कहा कि मुफ्ती मोहम्मद दो बार राज्य के मुख्यमंत्री बने, लेकिन इस कार्रवाई करने की कभी जहमत नहीं उठाई।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
इतिहास प्रेमी

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