जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद को लगता है कि भारत में इस्लामी आक्रांताओं ने बड़े ही प्यार से धर्मांतरण का काम शुरू किया, जो आज तक चला आ रहा है। कम से कम उनके बयान तो इसी ओर इशारा करते हैं। कॉन्ग्रेस नेता का कहना है कि किसी व्यक्ति के अच्छे काम और चरित्र से ही प्रेरित होकर लोग स्वेच्छा से धर्मांतरण करते हैं, न कि तलवार की नोक पर। उन्होंने जम्मू कश्मीर के उधमपुर में ये बात कही। जाहिर है, वो अपने समुदाय का बचाव करने के लिए ऐसा कह रहे हैं।
गुलाम नबी आज़ाद को थोड़ा इतिहास में जाना चाहिए और देखना चाहिए कि उनके ही राज्य में अगर तलवार की नोंक पर धर्मांतरण नहीं होता तो सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर को बलिदान नहीं देना पड़ता। औरंगजेब के काल में कश्मीरी हिन्दुओं के किए जा रहे जबरन धर्मांतरण के खिलाफ आवाज़ उठाने के कारण ही वो मुग़ल शासन की आँखों में अखरने लगे। अगर तलवार की नोंक पर धर्मांतरण नहीं होता तो हिन्दू राजाओं को अपने समाज की रक्षा के लिए इस्लामी आक्रांताओं से पंगा नहीं लेना पड़ता।
“If anyone is converting people, he is not using a sword”: Senior Congress leader @GhulamNAzad on the ongoing debate on the #AntiConversionBillhttps://t.co/RNrF3ofEMs
— Hindustan Times (@htTweets) December 26, 2021
आज कई राज्यों में ‘लव जिहाद’ के विरुद्ध कानून बन रहे हैं। जिस तरह से भोली-भाली हिन्दू लड़कियों को छद्म हिन्दू नाम से फँसाया जाता है और शादी के बाद बेचारी को जब तक पता चलता है कि उसका पति मुस्लिम है, तब तक एक परिवार का सब कुछ उजड़ गया होता है। फिर उस महिला का जबरन धर्मांतरण करा दिया जाता है और बाद में किसी सूटकेस में उसकी लाश मिलती है। और अधिकतर मामलों में अपराधी का पूरा परिवार इस कुकृत्य में उसके साथ होता है।
क्या गुलाम नबी आज़ाद मानते हैं कि जम्मू कश्मीर बिना तलवार के बल पर इस्लामी धर्मांतरण के ही मुस्लिम बहुल हो गया? पुर्तगालियों ने गोवा की एक बड़ी जनसंख्या को बिना तलवार के बल पर ही ईसाई बना दिया? गोवा में 300 हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त करने वाले पुर्तगालियों ने क्या तलवार का प्रयोग नहीं किया होगा? 1015 ईश्वी में महमूद गजनी ने कश्मीर पर हमला करने के लिए तलवार का प्रयोग नहीं किया? 12वीं सदी में गौरी ने फिर इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।
अगर किसी को लालच देकर या फिर छद्म तरीके से झाँसा देकर मुस्लिम बनाया जाता है तो इसमें तलवार का प्रयोग तो नहीं होता, लेकिन क्या इसे ‘स्वेच्छा से धर्मांतरण’ कह सकते हैं? हिन्दू महिलाएँ अक्सर इसका निशाना बनते हैं। कानपुर के कमिश्नर के पद पर रहते हुए जब कोई IAS इफ्तिखारुद्दीन लोगों को प्रशासन की धमकी देकर या फिर उनके विवाद सुलझाने के लिए उन्हें इस्लाम अपनाने का ऑफर देता है और सरकारी दफ्तर में इस्लामी मुशायरा कराता है, तो क्या ये सब ‘स्वेच्छा से धर्मांतरण’ का ही एक भाग है?
इस्लाम के अलावा भारत आज ईसाई मिशनरियों द्वारा लालच देकर कराए जा रहे धर्म-परिवर्तन से भी जूझ रहा है। छत्तीसगढ़ का जशपुर हो या फिर झारखंड का खूँटी, जिस तरह नक्सलवाद को हवा देकर आदिवासियों का धर्मांतरण कराया जाता है, वो क्या ‘स्वेच्छा से’ होता है? राज्यों को धर्मांतरण के खिलाफ कोई कानून लाने की जरूरत ही नहीं पड़ती, अगर ये तलवार की नोंक पर नहीं होता। फादर स्टेन स्वामी जैसे पादरी सामाजिक कार्यकर्ता बन कर भीमा-कोरेगाँव में दंगा भड़काते हैं, तो क्या इसमें तलवार का प्रयोग नहीं होता?
किसी विधवा के पैर बाँध कर गैंगरेप करने और वीडियो बना लेने वाले इमाम अली को देखिए। किसी हिन्दू लड़की को भगा ले जाने वाले तौसीफ खान को देखिए। किसी मोहम्मद शकील को देखिए, जो लड़की का अपहरण कर ले जाता है और लड़की किसी तरह फोन कर पिता से गुहार लगाती है छुड़ाने की। किसी गरबा कार्यक्रम के बहाने धर्मांतरण कराने वालों को देखिए। 15 साल में 4 हिन्दू महिलाओं को ‘लव जिहाद’ का शिकार बनाने वाले अब्दुल सलाम को देखिए, जो इस काम के लिए ‘विक्की’ या ‘अनिल’ बन जाता था। किसी हिन्दू युवती को गायब कर देने वाले समीर कुरैशी को भी देखिए।
मैनपुरी में जब ग्रामीणों के धर्मांतरण की खबर आती है, तो ये गुलाम नबी आज़ाद को पता नहीं चलता? भरूच के 37 परिवार ईसाई बना दिए जाते हैं। जशपुर में आदिवासी संगठनों को धर्मांतरण के खिलाफ मोर्चा खोलना पड़ता है। धर्मांतरण का विरोध करने पर अभिनेत्री सेवा भास्कर उन्हें ‘गधों की बारात’ बता देती हैं। दरभंगा से दो चचेरी बहनों का अपहरण कर धर्मांतरण करा दिया जाता है। कोरोना के दौरान मुल्ला-मौलवी और मिशनरी इसी काम में लगे ही थे। तभी कर्नाटक जैसे राज्य में इसके खिलाफ कानून बनता है तो पूरा इकोसिस्टम भड़क जाता है।
ये सभी खबरें पिछले 6 महीने के भीतर की हैं, इनके लिए गुलाम नबी आज़ाद को इतिहास नहीं बल्कि समसामयिकी पढ़ने की जरूरत है। या फिर हो सकता है कि इन नेताओं को पता सब होता है, लेकिन ये लगे रहते हैं कि नैरेटिव क्या बनाना है। तलवार की नोंक पर जो मजहब दुनिया भर में फैला, उसके अनुयायी ये कहें कि तलवार की नोक पर धर्मांतरण नहीं हुआ, तो अच्छा नहीं लगता। गुलाम नबी आज़ाद वास्तविकता देखें, ख़बरें पढ़ें और उलटा नैरेटिव बनाने की जगह सच बोलें।
इस लेख में हमने पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे इस्लामी मुल्कों में हो रहे क्रूर धर्मांतरण की बात तो की ही नहीं, जहाँ हिन्दुओं के साथ सरेआम ज्यादती होती है। वहाँ की तस्वीरें और वीडियोज सामने आती रहती हैं, लेकिन दुनिया भर के मानवाधिकार संगठन से लेकर कोई कुछ नहीं कर सकता। सोशल मीडिया पर भी उनकी आवाज़ दबा दी जाती है। इसीलिए, गुलाम नबी आज़ाद को न सिर्फ भारत बल्कि इस्लामी मुल्कों में चल रहे धर्मांतरण के खेल को भी देखना चाहिए।
गुलाम नबी आज़ाद कुछ ही महीनों पहले राज्यसभा सांसदी से एक तरह से ‘रिटायर’ हुए हैं, ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि कोई न कोई पार्टी उन्हें फिर से संसद भेजे। कॉन्ग्रेस में बगावत के कारण वो पार्टी तो ऐसा करने से रही, इसीलिए वो जम्मू कश्मीर में घूम-घूम कर अपना जनाधार बना रहे हैं। और कश्मीर की राजनीति में चमकने के लिए महबूबा-अब्दुल्ला किस किस्म के बयान देते हैं, ये छिपा नहीं है। हो सकता है कि गुलाम नबी आज़ाद भी उसी ढर्रे पर चलना चाहते हों।