Friday, April 19, 2024
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युद्ध पिपासु शी जिनपिंग: इतनी जल्दी नहीं मानेगा हार, देश को रहना होगा कठिन दिनों के लिए तैयार

अमर होने की चाह में शी जिनपिंग युद्ध पिपासु बन बैठे हैं। हॉन्ग कॉन्ग में निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर दमन, ताइवान पर धावा, दक्षिण चीन सागर के तटवर्ती देशों से पन्गा तो कभी सुकेकु द्वीपों को लेकर जापान पर उग्र नीति। भारत को सीख लेते हुए...

महाभारत के वनपर्व में यक्ष का प्रश्न था कि इस सृष्टि में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर ने यक्ष को उत्तर दिया कि इस धरती पर निरंतर मौत का नृत्य देखते रहने के बावजूद व्यक्ति ऐसा आचरण करता है कि वह कभी यहाँ से जाएगा ही नहीं।

“अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम्।
शेषाः स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ॥”

युधिष्ठिर का यक्ष को दिया गया ये उत्तर शी जिंगपिंग सहित विश्व के सभी तानाशाहों पर एकदम सटीक बैठता है। विश्व को बलपूर्वक अपने कब्ज़े में करने की पिपासा अनंतकाल से धरती पर युद्धों का कारण रही है।

शी जिनपिंग इन दिनों इतिहास में अमर होने की अपनी चाह में युद्ध पिपासु बन बैठे हैं। कभी वह हॉन्ग कॉन्ग में निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर दमन करते हैं, तो कभी ताइवान पर धावा बोल देते हैं। दक्षिण चीन सागर के तटवर्ती देशों से वे रोज़ पन्गा लेते हैं तो कभी वे सुकेकु द्वीपों को लेकर जापान पर चढ़ बैठते हैं।

दुनिया के तकरीबन हर देश से चीन की तकरार हो रही है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपीय देशों यहाँ तक कि चेकोस्लोवाकिया तक को चीन के मंत्री और राजदूत अभद्र अराजनयिक भाषा में धमकियाँ देते हैं।

भारत के साथ तो लद्दाख में नियंत्रण रेखा पर चीन की ज़ोर जबरदस्ती ने युद्ध की स्थिति पैदा कर दी है। प्रतिष्ठित अमेरिकी पत्रिका ‘न्यूज़वीक’ के अनुसार भारत के साथ इस संघर्ष की पटकथा व्यक्तिगत रूप से खुद राष्ट्रपति शी जिंगपिंग ने ही लिखी है।

अन्य कई सूत्र भी इसी तरफ संकेत करते हैं कि शी जिनपिंग ही खुद भारत के साथ इस संघर्ष के जनक है। ये अलग बात है कि अभी तक शी जिंगपिंग ने जैसा चाहा था, वैसा हो नहीं पाया है।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ के तकरीबन हर लेख में भारत को याद दिलाया जाता है कि उसे 1962 को नहीं भूलना चाहिए। चीनी मामलों की जानकार तथा फाउंडेशन फॉर डिफेंस डेमोक्रेसी की विशेषज्ञ क्लियो पास्कल के अनुसार चीन ने सोचा था कि 1962 की हार के बाद से भारतीय नेतृत्व और फौज ‘मानसिक रूप से कमज़ोर और रक्षात्मक’ होंगी।

वे इसके लिए अंग्रेज़ी में ‘psychologically paralysed’ उद्धरण का प्रयोग करती हैं। इसलिए चीन ने गलवान में भारत को ललकारने का दुस्साहस किया। वे कहती हैं कि भारत ‘मानसिक रूप से कमज़ोर नहीं निकला’ बल्कि उसने चीन को मुँहतोड़ जबाव दिया। उनके अनुसार, 15 जून की इस लड़ाई में भारत का हाथ ऊपर रहा और इसमें चीन के 60 सैनिक मारे गए।

इससे शी जिंगपिंग आगबबूला है। उनकी रणनीति तो थी कि वे इस संघर्ष में जीत हासिल करके दुनिया और चीन की जनता को बता देंगें कि एशिया में अब सिर्फ एक ही ताकत है, वह है चीन। दरअसल यहाँ शी जिंगपिंग की मानसिकता को समझने की ज़रूरत है।

उनके दो लक्ष्य साफ़ दिखाई देते हैं। पहला तो चीन में अपने राज को स्थाई बनाना। और दूसरा चीन को विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में स्थापित करना।

बड़े ही अमानुषिक रूप से उन्होंने कोरोना की मानवीय त्रासदी (जो चीन की ही देन है) और अमरीकी चुनावों की आपाधापी का समय चुना। इन दोनों ही लक्ष्यों की पूर्ति के लिए शी जिंगपिंग समझते हैं कि उन्हें दुनिया को अपनी सामरिक ताकत का दबदबा दिखाना ज़रूरी है। भारत उनके इन उद्देश्यों में आड़े आता है।

2012 में शी जिंगपिंग के सत्ता सँभालने के बाद से ही चीन की सेना भारत की सीमा पर बेजा हरकतें करती आई है। डोकलाम इसी कड़ी का एक हिस्सा था। याद कीजिए, शी जिंगपिंग जब सितम्बर 2014 में भारत आए थे, तो उस समय सीमा पर चुमार में भी चीन की तरफ से अतिक्रमण हुआ था।

चीन ने अपनी तरफ के क्षेत्रों में सड़क और पुलों तथा अन्य रक्षा ढाँचे का लगातार निर्माण किया है। लेकिन भारत ने भी पिछले कई साल में रक्षात्मक तौर-तरीके छोड़ कर सड़क, पुल तथा अन्य निर्माण का काम तेज़ किया है। इससे जब चीन ने मई के महीने में लद्दाख में बदनीयती से फौजें और भारी असला जमा करना शुरू किया तो भारत ने भी उसके मुकाबिल अपनी फौजें तैनात कर दीं।

चीन इस दौरान लगातार भारत को गीदड़ भभकियाँ भी देता रहा। ये सही है कि चीन भारत से आर्थिक और सामरिक रूप से ताकतवर दिखता है। चीन की ताकत को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने का काम भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में उसके वामपंथी हितैषी करते आए हैं। पर ये कागज़ पर ही ज़्यादा है।

चीन की सेना ने कोई भी बड़ा युद्ध जीता नहीं है। 1979 में वियतनाम की सेना तक ने उसका घमंड तोड़ दिया था। जबकि भारत की सेना को तो सियाचिन की बर्फीली घाटियों से लेकर कारगिल की उँचाइयों को जीतने का महारत हासिल है। हमारी सेना जम्मू कश्मीर में लगातार पाकिस्तान और उसके जिहादियों से युद्ध कर ही रही है।

क्लियो पास्कल कहती हैं कि खुली ज़मीन पर कब्ज़ा करने में तो चीन की सेना यानी पीएलए को महारत हासिल है, पर जब उसके सामने कोई दूसरी सेना अड़ जाए तो वह पीछे हट जाती है। पास्कल ने पिछले दिनों भारतीय सेना द्वारा ऊँची चोटियों पर कब्ज़ा करने का उदाहरण इसी सन्दर्भ में दिया। उनका मानना है कि पिछले पचास वर्षों में ऐसा जोरदार रक्षात्मक प्रत्याक्रमण भारत ने कभी नहीं किया। इससे पीएलए का नेतृत्व हतप्रभ है।

शी जिंगपिंग क्या इतनी जल्दी हार मानेगें?

2022 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक में वे अपने को देश का चेयरमेन घोषित करना चाहते हैं। चीन में माओ के बाद ये पद खत्म कर दिया गया था। उनकी मंशा खुद को आजीवन चेयरमेन घोषित कर एकछत्र राज करने की है।

शी जिंगपिंग की आलोचना के लिए हाल ही में कम्युनिस्ट पार्टी से निष्काषित बीजिंग की प्रोफेसर काई शिया तो यहाँ तक कहती हैं कि शी जिंगपिंग ‘एक माफिया बॉस’ की तरह इन दिनों अपने देश को चला रहे हैं। उनसे अलग राय रखने वालों को तुरंत बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।

न्यूज़वीक के अनुसार गलवान की अपमानजनक हार की खिसियाहट में शी जिंगपिंग अपनी सेना के कई अफसरों की बलि चढ़ा सकते हैं। लेकिन साथ में ये चेतावनी भी दी कि झल्लाहट में वे सीमा पर बड़ा कारनामा करने की भी सोच सकते हैं।

भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने तनाव घटाने के लिए जो पाँच सूत्रीय फार्मूला दिया है, वह शी जिंगपिंग कितना मानेंगे? भारत के लिए यही यक्ष प्रश्न है।

यक्ष को तो धर्मराज युधिष्ठिर ने प्रश्नों के तर्कसंगत और बुद्धियुक्त उत्तर से शांत कर के सरोवर का जल पी लिया था। पर जब सामने सत्ता और ताकत के नशे में चूर शी जिंगपिंग जैसा क्रूर, निर्मम, दमनकारी और घोर विस्तारवादी तानाशाह हो तो फिर शांति की आशा करना अपने को धोखा देना होगा। कोरोना के इस घनघोर संकट के बीच भारतीय सेना और देश को कठिन दिनों के लिए तैयार रहना होगा।

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