पाकिस्तान, कश्मीर और भारतीय मुसलमान
इमरान खान या पाकिस्तान को यह सोचना चाहिए कि जब वो ब्लैक लिस्ट हो जाएँगे, तो देश को चलाने के लिए भारत पर हमला करने के ख्वाब बेच कर पाकिस्तानियों का पेट नहीं भरा जा सकता। फरवरी में कराची की पाकिस्तानी जनता ‘अल्ला खैर करे’ और ‘रहम करना अल्ला’ करने लगी थी जब उसकी ही सेना के जेट उनके ऊपर उड़ान भर रहे थे। और वो बस इसलिए उड़ान भर रहे थे कि भारतीय नौसेना और उसके जेट मुंबई के तटों पर तैयारी में खड़े थे।
पहला भाग यहाँ पढें: जिसका भाग्य गधे के लिंग से लिखा गया हो… उसे कोई चीन या विदेशी मुसलमान काम नहीं आता (भाग-1)
पाकिस्तान की समस्या यह है कि उसका दम्भ भी भीख पर टिका हुआ है और अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों ने उसके कटोरे में सिक्के डालने से मना कर दिया है। अब पाकिस्तान उस कटोरे को बेच कर नान और टिमाटर का जुगाड़ कर सकता है, लेकिन भारत से युद्ध की सोचने पर भी, उसकी हालत यह होगी कि वहाँ की जनता भारत के बमों से नहीं, भूख से मर जाएगी।
ये बात सच है कि जिहादियों को या पाकिस्तानी आतंकियों को इससे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि एक बर्बाद देश की जनता भी उतनी ही निकम्मी है और वो हथियार नहीं तो पत्थर लेकर भी भारत से लड़ने निकल जाएँगे, लेकिन पिछले कुछ सालों में बहुत कुछ बदल चुका है। बदला यह है कि अब सेना के हाथ बँधे नहीं हैं। बदला यह है कि प्रधानमंत्री पाकिस्तान के ऊपर फाइटर भेजते वक्त यह नहीं सोचता कि दुनिया क्या सोचेगी, बल्कि यह सोचता है कि दुनिया को यह देखना चाहिए।
बदला यह है कि चंद वोटों के लिए, जिन भारतीय मुसलमानों को कॉन्ग्रेस, वाम दल और विरोधी पार्टियों के नेताओं ने पाकिस्तानियों से जोड़ रखा था, मोदी को उससे फर्क नहीं पड़ता। भारतीय मुसलमानों की छवि अगर किसी पार्टी ने बर्बाद की है तो वो है कॉन्ग्रेस और बाकी पार्टियाँ जो खुद को मुसलमानों का हिमायती बता कर उनके एकमुश्त वोट पाती रही हैं। किसी ने भी भारतीय मुसलमानों से यह नहीं पूछा कि उनका कश्मीर को लेकर क्या स्टैंड है, क्या वो चाहते हैं कि कश्मीर पाकिस्तान में चला जाए?
भारतीय मुसलमानों को इन पार्टियों ने ही पाकिस्तानी बना कर रख दिया है जहाँ कई बार सोशल मीडिया पर उनके देशप्रेम पर प्रश्नचिह्न उठाया जाता है। वो इसलिए कि इनके तथाकथित नेता कभी भी ऐसे मामलों पर मुखर हो कर नहीं बोलते कि वो कहाँ खड़े हैं। कश्मीर भारत का हिस्सा है और वो आज भी इतना पिछड़ा है, बावजूद इसके कि 2000-16 के सालों की बात करें तो जहाँ उत्तर प्रदेश के प्रत्येक नागरिक पर केन्द्र ने महज ₹4,300 खर्च किए, वहीं कश्मीरी लोगों पर ₹91,000 प्रति नागरिक का खर्च रहा।
फिर भी कश्मीरी नवयुवक पत्थर उठाता है, आतंकी बनता है और अंततः मारा जाता है। ऐसे में भारतीय मुसलमानों के नेता कश्मीर के मुसलमानों को भविष्य भी तो ठीक से नहीं देख पा रहे! क्या वो चाहते हैं कि कश्मीरी मुसलमान पत्थर फेंकता रहे? क्या इससे यह नहीं लगता कि इन तमाम पार्टियों के लिए कश्मीर या कश्मीरी मुसलमान, या मुसलमान कभी मुद्दा रहे ही नहीं। इनका मुद्दा तो एक पार्टी या विचारधारा को सत्ता में पहुँचने से रोकना रहा है, या अगर वो पहुँच भी गए तो पाकिस्तान तक जा कर मोदी को हटाने की भीख माँगना रहा है, या विदेशों में अपने ही देश के खिलाफ प्रपंच फैला कर उसकी छवि खराब करना रहा है।
जनसंख्या के आँकड़े उठा लीजिए और देखिए कि किस मजहब के लोगों का विकास रुका हुआ है; किस मजहब के लोगों की शिक्षा का स्तर सबसे नीचे है; किस मजहब की स्त्रियों में सबसे कम ग्रेजुएट हैं। इन नेताओं ने मुसलमानों को सिर्फ उल्लू बनाया है यह कह कर कि वो ही मुसलमानों के बारे में बेहतर सोच सकते हैं। उसी तरह, कश्मीरी मुसलमानों को वहाँ के नेताओं ने, आतंकी अलगाववादियों ने और चंद लालची नेताओं ने बर्बाद किया है। आप सोचिए कि इन नागरिकों के लिए जो 1.14 लाख करोड़ रुपए जो दिए गए, वो कहाँ गए?
इसलिए, पाकिस्तान का स्टैंड तो समझ में आता है क्योंकि उसके लिए कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाना ही एकमात्र उपाय है सत्ता में बने रहने के लिए, चाहे पार्टी कोई भी हो, लेकिन भारतीय पार्टियों, नेताओं और मजहब देख कर विचार रखने वाले लोगों का स्टैंड समझ में नहीं आता। यहाँ रह कर आप कश्मीरियों के लिए अगर वाकई चिंतित हैं तो, सत्तर साल तक चले एक्सपेरिमेंट का परिणाम आपने एक आंतकी रक्तपात से सने कश्मीर के रूप में देखने के बाद, आप उसकी जगह कुछ और समाधान को क्यों नहीं देखना चाहते? क्या इसलिए कि ये भाजपा सरकार ने किया है? क्या आपको दिखता नहीं कि कॉन्ग्रेस, या बाकी की पार्टियाँ सिर्फ अपना पेट भर रही है, कश्मीरियों को सड़क पर मरने के लिए छोड़ रखा है?
अगर आप एक मुसलमान के तौर पर भी कश्मीरी मुसलमानों का समर्थन करना चाहते हैं तो बेहतर तर्क ले कर आइए कि आखिर ये निर्णय उनका जीवन बेहतर होने से कैसे रोक रहा है? इस बात पर कोई बात नहीं करना चाहता कि सत्तर सालों से एक बंद राज्य बना कर, कश्मीरी नेताओं को लिए, अलगाववादियों के लिए इस देश के नागरिकों के टैक्स का पैसा उनकी जेब में पहुँचाने के अलावा हुआ क्या है वहाँ पर?
क्या कश्मीर के मुसलमान दुनिया में, या भारत में ही, सबसे ज्यादा शिक्षित हैं? क्या उनकी आमदनी अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे अच्छी है? क्या वहाँ अलग स्टेटस होने के बावजूद वो परिणाम हासिल हुए जिसकी आशा थी? या, इसकी आड़ में हिन्दुओं को बेघर किया गया, दलितों को न तो शिक्षा का अधिकार मिल पाया, न ही नागरिकता! क्या पूरे भारत में ‘हमें तो दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है’ कहने वाले मुसलमान नेता कश्मीरी समाज के बारे में भी बोलेंगे कि अगर उनकी बात एक प्रतिशत सत्य भी है, तो कश्मीर में तो एक समाज के लोगों को नागरिकता ही नहीं है।
फिर ये कैसे कहते हैं कि ये गरीबों की बात करते हैं? बाकी भारत में ये भीम-मीम, अदरक-लहसुन करते नजर आते हैं, लेकिन कश्मीर के दलितों की बात आते ही वो नैरेटिव गायब हो जाता है! मतलब तो यही हुआ कि इन्हें प्रोपेगेंडा फेंक कर बस नेता बने रहना है, और नागरिकों को मुद्दों से, उनके पिछड़ेपन से, उनके मुसलमान होने से, दलित होने से, इनको घंटा फर्क नहीं पड़ता।
इसलिए, भले ही आप कश्मीर पूरे जीवन में न जाएँ, लेकिन राष्ट्र की अवधारणा में आपका विश्वास होना चाहिए। आप कश्मीर क्या हिमाचल भी न जाएँ, लेकिन आपको यह याद रखना चाहिए कि पूरे भारत में जितने आतंकी हमले हुए हैं, उसका रास्ता इन्हीं नेताओं ने 370 की आड़ में तैयार किया था। भले ही आपको वहाँ के नेताओं से कोई वास्ता न हो, लेकिन यह याद रखिए ‘ब्लीडिंग बाय अ थाउजेंड कट्स’ में एक-दो जख्म आपके भी शरीर पर आएँगे।