दिल्ली नगर निगम चुनावों के नतीजे (MCD Election Results) आ गए हैं। न तो आम आदमी पार्टी (AAP) को वह जीत मिली है, जिसके ख्वाब वह 4 दिसंबर 2022 की तारीख करीब आते-आते देखने लगी थी। न उसे वह हार मिली है जो निगम चुनावों के ऐलान के बाद उसे खुद के सर्वे में मिली थी। न नतीजे वैसे आए हैं, जैसे एग्जिट पोल वाले पंडितों ने अनुमान लगाया था। नतीजे निगम चुनावों की ऐलान के साथ बीजेपी के सोच जैसी भी नहीं है। वैसी भी नहीं है जिसके बारे में सोचकर बीजेपी वाले 4 दिसंबर को मतदान के बाद से खौफजदा थे। उस तरह के भी नहीं हैं जो सोच कॉन्ग्रेस ने चुनाव से पहले ही सरेंडर कर दिया था। यानी इन नतीजों में बीजेपी, आप, कॉन्ग्रेस सबके लिए थोड़ा-थोड़ा बढ़िया है। पूरा मजा किसी के लिए नहीं है। यह पूरा मजा न होना ही दिल्ली के लिए सबसे खतरनाक है।
MCD में किसकी कितनी सीटें, कितने वोट
दिल्ली नगर निगम की 250 सीटों के लिए चुनाव हुए थे। आप को 134, बीजेपी को 104, कॉन्ग्रेस को 09 और अन्य को 03 सीटें मिली हैं। इसी तरह आप को 42.05% बीजेपी को 39.09% और कॉन्ग्रेस को 11.68% सीटें मिली हैं।
जीत तो जीत होती है वाला जुमला
एक प्रसिद्ध जुमला होता है कि जीत तो जीत होती है, चाहे एक सीट से मिले या 100 सीट का अंतर हो। भले यह कानों को अच्छा लगता हो, लेकिन दिल्ली नगर निगम में फिट नहीं बैठता। यही कारण है कि दिल्ली नगर निगम चुनावों के रूझान आने के साथ ही यह चर्चा भी शुरू हो गई थी कि आप से पिछड़ने के बाद भी बीजेपी अपना मेयर बनवाने में कामयाब हो सकती है। इसकी दो वजहें हैं। पहली, 12 लोगों को दिल्ली के उपराज्यपाल नगर निगम में मनोनीत करते हैं। माना जा रहा है कि ये बीजेपी के साथ जाएँगे।
दूसरी, एमसीडी चुनावों में दल-बदल कानून लागू नहीं होता। यानी, कोई पार्षद जब चाहे तब उस पार्टी को टाटा-टाटा बॉय-बॉय कर दे जिसके टिकट पर जीतकर आया है। वैसे भी राहुल गाँधी आए दिन रोते रहते हैं कि उनके जीते हुए लोगों को बीजेपी लेकर चली जाती है। निगम चुनावों में बेमन से लड़ी कॉन्ग्रेस के टिकट पर जीते पार्षद उसके प्रति कितने निष्ठावान होंगे आप समझ सकते हैं। इसी तरह केजरीवाल भी गाहे-बगाहे दिल्ली में ऑपरेशन लोटस का डर दिखाते रहते हैं, जबकि विधानसभा में नंबर एकतरफा आप के साथ है। दल-बदल का कानून भी विधानसभा के स्तर पर प्रभावी है। निगम में ऐसा कुछ भी आप के हक में नहीं है। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि एक बार मेयर का चुनाव हो जाए तो अविश्वास प्रस्ताव भी नहीं लाया जा सकता है। ऐसे में आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए कि आप की बहुमत वाली दिल्ली नगर निगम में मेयर बीजेपी से हो।
हर नंबर नेता और पोल पंडित के हक में ही होता है
नेताओं और पोल पंडितों का सबसे बड़ा हुनर यह होता है कि वे किसी भी नंबर को अपने हक में बता देंगे। इसलिए दिल्ली नगर निगम चुनाव नतीजों के भी कई विश्लेषण आपके सामने आएँगे। मसलन दिल्ली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता कहेंगे कि सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया के इलाके में आप साफ हो गई है। लेकिन यह भी सच है कि उनके इलाके में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला है। इसके जवाब में वे कहेंगे कि प्रदेश अध्यक्ष का कोई इलाका नहीं होता। इलाका सांसद और विधायक का होता है। यानी चित भी मेरी, पट भी मेरी।
इसी तरह हारकर भी खुद को विजेता साबित करने के लिए नेता और खुद को जानकार साबित करने के लिए पोल पंडित अलग-अलग चुनावों के डाटा की तुलना करते हैं। बताते हैं कि फलाने का वोट इतना प्रतिशत बढ़ गया। फलाने की इतनी सीटें बढ़ गईं।
इस चुनाव के नतीजों का पिछले निगम चुनाव के नंबरों से तुलनात्मक अध्ययन नहीं होना चाहिए। क्योंकि एक बार फिर से दिल्ली में एक ही नगर निगम किया गया है। नए सिरे से परिसीमन हुआ है। आधी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। कुल मिलाकर एक नए पिच पर यह चुनाव हुआ है। इसी तरह नंबरों की तुलना विधानसभा चुनाव के डाटा से भी नहीं किया जाना चाहिए। फिर यह तुलना लोकसभा चुनाव तक जा सकती है।
इन नतीजों को कैसे समझे
- लगातार दो विधानसभा चुनावों में दिल्ली में आप अपराजेय दिखी है। दिल्ली की जमीन पर भी उसका असर साफ दिखता है। लेकिन ये नतीजे दिखाते हैं कि आप अपराजेय नहीं रही है। उसके हर कहे पर जनता को यकीन नहीं है।
- मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने जिस मंत्री सत्येंद्र जैन को ‘कट्टर ईमानदार’ बताते हैं उनके इलाके में आप साफ हो गई है। मतलब केजरीवाल के कहे की साख नहीं रही। जनता को दिख रहा है कि उसका नुमाइंदा जेल में बंद क्या कर रहा है।
- आम आदमी पार्टी शिक्षा का जो मॉडल बेचती है उसे दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ही देखते हैं। लेकिन उनके इलाके में भी पार्टी को पराजय मिली है। खुद उनके रिश्तेदार तक हार गए हैं। मतलब सिसोदिया की छवि शराब से दागदार हुई है। जनता भी मानती है कि जिसका मॉडल बेचा रहा है उसमें खोट है।
- कॉन्ग्रेस को 9 सीट और वोट डबल डिजिट में मिले हैं। यानी कॉन्ग्रेस दिल्ली के संगठन में ताकत झोंके, नए चेहरे लाएँ तो वह उस वोट बैंक का एक हिस्सा फिर से वापस ला सकती है जो उससे पूरी तरह छिटक कर आप के पास जा चुकी है। खासकर, कुछेक मुस्लिम बहुल सीटों पर उसकी जीत के गहरे मायने हैं।
- लगातार 15 साल से दिल्ली नगर निगम पर काबिज रही बीजेपी को यह नतीजे बताते हैं कि पब्लिक को अपने घर के बाहर जमा कूड़ा दिख रहा था। वो देख रही थी कि कूड़े का ढेर बढ़ रहा है। वो समझ रही थी कि प्रचंड बहुमत से विधानसभा में काबिज आप, बीजेपी शासित नगर निगमों को कूड़ा उठाने से नहीं रोक रही है। यह भी कि 2024 से पहले वह अपने सांसदों का नट-बोल्ट टाइट करे। दिल्ली में कोई ऐसा चेहरा तैयार करे जो अपने प्रभाव से करीबी मुकाबलों को उसके पक्ष में झुका दे।
आज का दिन दिल्ली की आप सरकार की नाकामियों को गिनाने का नहीं है। यह भी बताने का नहीं है कि उसकी कारगुजारियों से जनता कितनी परिचित है। विधानसभा में प्रचंड बहुमत के बावजूद वह अपनी नाकामियों का ठीकरा आए दिन भाजपा शासित एमसीडी और उपराज्यपाल पर फोड़ती रही है। अब निगम वाला बहाना उसके हाथ से निकल गया है। कूड़े की नाराजगी ने भले बीजेपी को दूसरे नंबर पर धकेल दिया है, लेकिन आप को भी ऐसे नंबर नहीं दिए हैं कि कूड़ा उठाना अकेले उसकी जिम्मेदारी ही रहे। उलटे इन नतीजों से आप को मौका दिया है कि वह उन ‘कूड़ों’ का भी निगम के अधीन आने वाले क्षेत्रों में प्रसार करे जो केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के अपने अधीन आने वाले क्षेत्रों में पिछले सात-आठ साल में किया है।
कुल मिलाकर इन नतीजों से दिल्ली ने कूड़े के ढेर, राजनीतिक गंदगी और यमुना में झाग का बढ़ना ही अपने लिए तय किया है। ऐसा उसने केजरीवाल से भंग होते मोह और घर के बाहर लगे कूड़े के ढेर की दुविधा में किया है। दुखद यह है कि ये तथ्य आँकड़ें नहीं बताते। जिस जमीन पर यह सब लिखा होता है, वहाँ चरण धरते ही हमारे पोल पंडितों और नेताओं को रतौंधी हो जाती है।