Saturday, April 20, 2024
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TikTok में पोर्न, रेप, हिंसा: पूर्व कर्मचारी ने चाइनीज कम्पनियों की गुलाम बनाती मानसिकता का किया पर्दाफाश

चायनीज कंपनियों को बस एक ही बात की चिंता रहती है और वो ये है कि उनके एप्लीकेशन पर कितने करोड़ यूजर हैं और इंगेजमेंट रेट क्या है। इंगेजमेंट टाइम को बढ़ाना, ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करना और उन्हें इस एप्लीकेशन पर समय व्यतीत करने के लिए प्रेरित करना- इन चक्करों में बाकि चीजें उनके लिए कोई मायने नहीं रखती।

‘तुमसे बेहतर जानते हैं’ – चायनीज कंपनी में काम कर रहे चीनियों की यह खास पहचान है। इसी विश्वास के साथ वे बाजार में उतरते हैं। बाजार भी ऐसा, जहाँ की संस्कृति अलग है, जहाँ की भाषाएँ उनके समझ से परे हो या फिर किसी तरह की अन्य समस्या हो। लेकिन उनकी यह खास पहचान बनी रहती है। मैंने दो चायनीज कंपनियों के लिए काम किया है, बाइटडांस (टिकटॉक की मालिकाना कंपनी) उनमें से एक है। कुछ मेरे दोस्त हैं, जो अन्य चीनी कंपनियों के साथ काम कर चुके हैं।

एक बात मैं शुरुआत में ही स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि पूर्व कर्मचारी होने के नाते मैं किसी नकारात्मक इरादे से उन्हें बदनाम नहीं करूँगा। और ना ही मैं उनके किसी व्यापारिक गोपनीयता का उल्लंघन करने जा रहा हूँ क्योंकि ये अवैध और अनैतिक है। मैं बस अपना और अपने दोस्तों का अनुभव लिख रहा हूँ।

जैसा कि पहले ही बता दिया हूँ कि चाइनीज कंपनियों की आदत होती है कि वो किसी विदेशी कर्मचारी पर भरोसा नहीं करते, उनकी बात नहीं मानते। हाँ, कॉन्फ्रेंस मीटिंग में आपको बोलने का मौका दिया जाएगा, आपकी बातों को नोट करने का दिखावा भी किया जाएगा लेकिन अमल नहीं किया जाएगा। किया जाएगा तभी, जब उन्हें लगेगा कि यह करने लायक है।

सोचिए, किसी क्षेत्र में आपका 10 साल का अनुभव हो। आपके साथी कर्मचारी भी इतने ही वर्षों का अनुभव लेकर काम कर रहे हों। और आपके टीम लीडर 20 साल से उस फील्ड के जाने-माने नाम हों… लेकिन इस पूरे टीम का निर्णय वो लेगा, जिसके पास मुश्किल से 5 साल का भी अनुभव नहीं है।

उनकी समझ के बारे में एक उदाहरण देकर समझा देता हूँ। वे हिंदी भाषा के लिए बीजिंग यूनिवर्सिटी से इस भाषा में B.A. पास किए किसी लड़के पर निर्भर रहते हैं। नवभारत टाइम्स से लेकर दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण तक में काम करने वालों को तवज्जो देने के बजाय वो बीजिंग वाले B.A. हिंदी के लड़के पर भरोसा करते हैं। एक बार हुआ यूँ कि वो चायनीज लड़का नेपाली को हिंदी समझ कर कन्फ्यूज हो गया क्योंकि दोनों ही भाषाओं की स्क्रिप्ट समान है। लेकिन काम ऐसे ही चलता है वहाँ।

चायनीज मैनेजमेंट को लगता है कि उनके प्रोडक्ट्स या कम्पनी को लेकर उनकी समझ दूसरों से कई गुना बेहतर है। अपनी इसी सनक भरी सोच के साथ वो विभिन्न बाजारों में दखल देते हैं। वहाँ पाँव पसार लेते हैं। टिक-टॉक (TikTok) तो बस उदाहरण भर है।

कैसे विदेशी बाजारों पर कब्ज़ा करती हैं चाइनीज कम्पनियाँ

ये लोग जैसे ही किसी विदेशी बाजार में क़दम रखते हैं, वो किसी सफल प्रोडक्ट के 3-4 क्लोन्स बना लेते हैं और उसे टेस्ट करते हैं। उनकी कई टीमें इन प्रोडक्ट्स की पसंद के बारे में जनता की नब्ज टटोलने में व्यस्त रहती हैं। जैसे ही इनमें से कोई प्रोडक्ट उन्हें सफल होता दिखता है या फिर सफलता की उम्मीद भी दिखती है, सारी टीमों को उस पर लगा दिया जाता है।

अगर भारतीय यूजर शेयरचैट का फैन है तो वो ये भी नोट करेंगे कि क्या उन्हें अलग-अलग प्रकार के कीबोर्ड्स का उपयोग करना पसंद है। उनके ‘सर्वे’ में ये सब नोट होगा। अपना अलग कीबोर्ड होने का फायदा ये है कि वो ये भी देख सकते हैं कि आप क्या लिख रहे हैं- यहाँ तक कि आपका कार्ड नंबर और पासवर्ड सहित अन्य व्यक्तिगत डिटेल्स भी।

तकनीकी चीजों को चीनी मुख्यालय से ही देखा जाता है। यूआई का काम उनके निर्देशन में भारतीयों से कराया जाता है।

कुछ ही हफ़्तों में ये टीमें पता लगा लेती हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे लोगों की पसंद क्या है। या फिर वो किसी बड़े अंतरराष्ट्रीय संस्था से भी इस प्रकार की सूचनाओं को ग्रहण कर लेते हैं। वो बड़े स्तर पर मार्केटिंग के साथ अपने डुप्लीकेट एप्लीकेशन को ही इतना लोकप्रिय बना देते हैं कि वो जिसका ओरिजिनल होता है, वही धीरे-धीरे लुप्त हो जाता है।

आर्थिक ताक़त के बल पर ऐसा किया जाता है। ज्यादा से कर्मचारियों को भर्ती किया जाता है। कॉपी प्रोडक्ट बड़ा होता चला जाता है और ओरिजिनल गायब हो जाता है।

उनकी कम्पनी में 10 से 20 साल तक के अनुभव वाले भारतीय लोग हायर किए जाते हैं। अपने क्षेत्र और समाज में इतना लम्बा अनुभव रखने वाले ये लोग भी एक चाइनीज बॉस के अंतर्गत काम करते हैं, उनसे आदेश लेते हैं। उस बॉस की एकमात्र ‘काबिलियत’ यही होती है कि वो चाइनीज है। हो सकता है कि वो अभी-अभी किसी कॉलेज से पासआउट होकर निकला/निकली हो लेकिन वो भारत में काम कर रहे एक अनुभवी कर्मचारी के बॉस का बॉस होगा/होगी।

चाइनीज कंपनियों का मकड़जाल: समझिए इनमें काम कर चुके एक कर्मचारी से

बाइटडान्स में एक साल काम कर चुके एक कर्मचारी से हमने बात की तो पता चला कि चीनी कम्पनियों को भारतीय समाज की संवेदनाओं से खास फर्क नहीं पड़ता। नाम न छापने की शर्त पर बात करते हुए उन्होंने कहा,

“चाहे शेयर चैट जैसे भारतीय एप्प की पूरी तरह से कॉपी कर के Helo एप्प बनाना हो, या उस पर किस तरह के कंटेंट को चलने दें, इसमें ये लोग तब तक इंतजार करते हैं जब तक कोई बड़ी संस्था इन पर कोर्ट में केस न कर दे। हेलो एप्प पर जब शेयरचैट ने केस किया तो कोर्ट में पेशी होने से पहले रातोंरात उन्होंने पूरा UI (एप्प का हर स्क्रीन कैसा दिखता है, कौन से बटन हैं, किस रंग के हैं) बदल दिया। हेलो एप्प पर भी इतने अश्लील पोस्ट आते थे कि मानवीय रूप से उन्हें खत्म करना संभव नहीं था। 4-5 लोगों से आप लाखों पोस्ट को ऑडिट नहीं कर सकते।”

“हमने बार-बार यह बात मैनेजमेंट के साथ उठाई, वो आराम से सुन लेते लेकिन कुछ करते नहीं थे। वही हाल आज टिकटॉक में देखने को मिल रहा है। चीन में इस तरह की समस्या नहीं है क्योंकि वहाँ इन लोगों ने तकनीक का प्रयोग किया है और हर चीज सरकार की देखरेख में सेंसर हो कर ही ‘पोस्ट’ हो पाती है। जाहिर है कि हम भारत में उस तरह की सेंसरशिप नहीं चाहते, लेकिन तकनीक के प्रयोग से मजहबी उन्माद, घृणा, लड़कियों को लेकर अभद्रता, अश्लील बातें और हिंसक पोस्ट्स को रोका जा सकता है।”

जब हम टिकटॉक के कंटेंट को देखते हैं तो समझ में आ जाता है कि वाकई चीनी कम्पनियाँ तब तक कुछ नहीं करतीं जब तक पानी उनकी नाक में न घुसने लगे। यहाँ भी इतने बवाल होने के बाद ही इन्होंने एक बयान जारी किया है।

टिकटॉक वालों ने अभी भी यह नहीं बताया कि कम्यूनिटी गाइडलाइन्स को लागू कैसे करेंगे? क्या ये बाकी लोगों के सहारे बैठे हैं कि कोई रिपोर्ट करेगा, तब वो एक्शन लेंगे? यह तो वही बात हुई कि जो चल रहा है, चलने दो, जब कुछ होगा तो देखा जाएगा।

चाइनीज कंपनियों में सब कुछ चीनियों द्वारा ही डिसाइड किया जाता है, भारतीयों की नहीं सुनते वो

यह तो मेरा निजी अनुभव है कि मेरे बॉस (जिनका पत्रकारिता में करीब 20 साल का अनुभव था), उनकी रिपोर्टिंग मैनेजर एक लड़की थी जिसकी उम्र 32 साल की थी, और अनुभव के नाम पर कॉलेज से निकलने के बाद के 5 साल। आप इन लोगों को समझा नहीं सकते क्योंकि ये सुनते सब कुछ हैं, मानते वही हैं जो इनके मैनेजमेंट में तय होता है और जिसका भारतीय संवेदनाओं से कोई वास्ता नहीं होता।

आख़िर किसी भी कम्पनी में अनुभवी कर्मचारी क्या करते हैं? वो प्रोडक्ट्स को अच्छा बनाने के लिए काम करते हैं और साथ ही विभिन्न पहलुओं को लेकर प्रबंधन को सलाह भी देते रहते हैं। चीनी कंपनियों में ये सब नहीं चलता।

उनकी सोच है कि वो फलाँ अनुभवी कर्मचारी के समाज, इलाक़े और पसंद-नापसंद को उससे बेहतर समझते हैं, भले ही उसने अपनी पूरी ज़िंदगी ही क्यों न इन सबका अनुभव लेने में ही खपा दी हो। उनका स्पष्ट मोटो होता है- “अनुभवी हो? ठीक है, अपना अनुभव अपने पास रखो।” इसी सोच पर वो काम करते हैं।

इन तौर-तरीकों के कारण भारतीय लोगों की पसंद-नापसंद पर भी चीनी प्रभाव और सोच का असर पड़ने लगता है। इसका अर्थ ये हुआ कि एक तानाशाही शासन के अंतर्गत रहने वाला व्यक्ति जो एक संस्कृति, एक सरकार और एक बच्चे वाली क़ानून के बीच पला-बढ़ा है, अपने विचार और सोच उस लोकतान्त्रिक व्यवस्था में रह रहे लोगों पर थोप रहा है, जो दर्जन भर धर्म-मजहब, सैकड़ों भाषाओं, दसियों सभ्यताओं और कई राजनीतिक विकल्पों के बीच जीवन-व्यापन करने के अभ्यस्त हैं।

TikTok विवाद: अश्लीलता को जानबूझ कर नज़रअंदाज़ कर रही कम्पनी

टिक-टॉक (TikTok) जैसों की भी यही कहानी है। भले ही कम्पनी में ऑडिटर्स भारत से हों लेकिन सम्पूर्ण दिशा-निर्देश हमेशा चीन से ही आएगा। हो सकता है कि इन चीनियों के लिए एसिड अटैक कोई नई चीज हो, उन्हें ‘हैदर के तलवार’ का अर्थ न पता हो या फिर ये भी नहीं मालूम हो कि हिजाब न पहनने पर किसी लड़की को थप्पड़ मारे जाने का क्या मतलब है। लेकिन, नियम-क़ानून चीन से ही आएँगे, सारे निर्णय वहीं लिए जाएँगे, जिनका पालन यहाँ होना होता है।

जब उनसे पूछा जाएगा तो वो कहेंगे, “अरे नहीं, ये सब करने के लिए तो हमारे पास भारतीय कर्मचारी हैं ही।” उन्हें मेरा ये जवाब होगा- “मैं भी एक भारतीय कर्मचारी हूँ, जिसने 2 चीनी कंपनियों के लिए काम किया है। ‘चीता मोबाइल’ और ‘बाइटडांस’ जैसी कंपनियों में 46 महीने काम करने के बाद मुझे पता है कि इन कंपनियों में क्या होता है और क्या नहीं। मुझे उनके कामकाज की समझ है क्योंकि मैंने सब कुछ क़रीब से देखा है।

दरअसल, भारतीय कर्मचारी तो बस उनके लिए मुखौटे से ज्यादा कुछ नहीं हैं। या फिर व्यापारिक ज़रूरतों के लिए उन्हें रखा जाता है। एक तो इन चीनियों को अंग्रेजी ठीक से आती नहीं और ऊपर से भारत में तमाम तरह के करार और बिजनेस सम्बंधित अन्य कामकाज में अंग्रेजी की ज़रूरत पड़ती ही है, इसीलिए ये उनकी मज़बूरी भी बन जाती है।

यहाँ मैं उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश नहीं कर रहा। ये तो वास्तविकता है कि भारत में अधिकतर चीनी कर्मचारियों को ठीक से अंग्रेजी में एक वाक्य तक बोलने नहीं आता।

यही तो कारण है, जिससे आज ये टिक-टॉक (TikTok) वाला पूरा विवाद शुरू हुआ है। यही कारण है कि अगर किसी वीडियो में काफिरों का सिर काट कर लाने की बात की जाती है तो उसे भी अनुमति दे दी जाती है।

ये कोई अपवाद नहीं है, ये उनके लिए सामान्य है। ‘हैदर की तलवार’ वाला वीडियो तो इतना वायरल है कि इसे लेकर रोज कई वीडियो अपलोड किए जाते हैं। यहाँ तक कि टिक-टॉक (TikTok) पर किसी लड़की के बनाए कंटेंट का दुरूपयोग करना भी आम बात है।

टिक-टॉक (TikTok) जैसे एप्प तब तक इस मामले में कुछ एक्शन नहीं लेंगे, जब तक कोई क़ानूनी आदेश न आ जाए। हाँ, वो एआई का इस्तेमाल करेंगे लेकिन अपने हिसाब से। जैसे चीन के विरुद्ध कुछ हो या फिर कुछ तिब्बत या दलाई लामा के समर्थन में हो।

अब तो ऐसा हो चुका है कि ऐसे अश्लील वीडियो अधिकतर बच्चों और किशोरों द्वारा पोस्ट किए जा रहे हैं। क्या वो तकनीक के इस्तेमाल से उम्र का पता नहीं लगा सकते? ऐसे अश्लील और महिला-विरोधी कंटेन्ट्स को रोक नहीं सकते?

भारत में सैकड़ों भाषाएँ बोली जाती हैं, इससे कोई अनभिज्ञ नहीं है। ‘हेलो’ की ही बात करें तो ये दर्जन भर से भी ज्यादा भाषाओं में काम करता है। अब इन सभी भाषाओं के कंटेंट्स को फ़िल्टर करना हो तो ये कैसे हो पाएगा?

फ़िलहाल तकनीकी दुनिया अंग्रेजी में ऐसा करने को संघर्ष कर रही है। चीन में वो ज्यादा से ज्यादा कर्मचारियों को भर्ती कर के ये काम कर लेते हैं। वहाँ के तो कंटेंट्स भी सरकार से फ़िल्टर होने के बाद ही सार्वजनिक किए जाते हैं।

सिर्फ़ यूजरों की संख्या बढ़ाओ, बाकि सब कुछ इग्नोर करो: TikTok जैसी चाइनीज कंपनियों का मोटो

TikTok कम से कम वायरल ऑडियो को तो चेक कर ही सकता है कि ये किस प्रकार का कंटेंट है, जो वायरल हो रहा है। उसे हटाया जा सकता है या फिर यूजर को आगे से उसे अपलोड न करने की हिदायत दी जा सकती है। कम से कम इसके लिए तो प्रोग्रामिंग की ही जा सकती है लेकिन वो ऐसा नहीं करते।

किसी लड़की ने कोई वीडियो अपलोड किया। अब लोग उस वीडियो को आधी स्क्रीन में डाल कर बाकी की आधी में कैसी भी हरकतें कर के उसे अपलोड कर देते हैं। रेप का महिमामंडन, ‘ब्लो-जॉब’ का दिखावा हो या फिर उसके चरित्र हनन के लिए आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करना- ये अजीबोगरीब हरकतें लगातार चलती रहती हैं।

इसीलिए, टिक-टॉक का अचानक नींद से जाग कर ये कहना है कि वो क्रिएटिविटी को बढ़ावा दे रहा है और कम्युनिटी गाइडलाइन्स के अनुसार ही काम हो रहा है, यह एक पाखंड के सिवा और कुछ भी नहीं।

उन्हें तो बस एक ही बात की चिंता रहती है और वो ये है कि उनके एप्लीकेशन पर कितने करोड़ यूजर हैं और इंगेजमेंट रेट क्या है। इंगेजमेंट टाइम को बढ़ाना, ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करना और उन्हें इस एप्लीकेशन पर समय व्यतीत करने के लिए प्रेरित करना- इन चक्करों में बाकि चीजें उनके लिए कोई मायने नहीं रखती।

वो तब तक चुप्पी साधे रहते हैं, जब तक कोई बड़ा विवाद न उठ खड़ा हो। पोर्न, अश्लील हरकतें, कामोत्तेजक पोस्ट्स, आपत्तिजनक यौन हरकतों वाले वीडियो- ये सब से तो उनका एंगेजमेंट रेट बढ़ता ही है। उनके एप्लीकेशन पर ज्यादा से ज्यादा लोग समय व्यतीत कर रहे हैं। इससे विभिन्न ब्रांड्स को दिखाने के लिए प्रभावशाली आँकड़े आ जाते हैं।

इसके बाद टिक-टॉक (TikTok) पर ‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर’ पैदा होते हैं। इन्हें यूट्यब, फेसबुक अथवा इंस्टाग्राम के लोगों से बेहतर दिखाया जाता है। इसके बाद किसी कॉमेडी नाटक के मसखरे की तरह बाल रखने वाले कोई बेहूदा अजीबोगरीब हरकतें करता है, रेप और एसिड अटैक का महिमामंडन करता है।

और अव्वल तो ये कि उसके 1.35 करोड़ की संख्या में फॉलोवर्स होते हैं। कोई 15 सेकंड में स्कर्ट पहन कर कुछ अजीब सी हरकतें कर देगा और उसके बाद कोई पेड व्यक्ति आपको ये समझाएगा कि इस एक पोस्ट से उसे कितने फॉलोवर्स मिले, कमेंट्स आए। या फिर ये बताएगा कि कैसे उसके कुत्ते ने उसे प्यार करना शुरू कर दिया है।

आप सबको देर रात आने वाले टेलीब्रांड प्रचारों के बारे में पता ही है। लोग रोज हज़ारों एमबी डेटा इन ऐप्स पर खपा देते हैं। एक तरह से ये लोग बिना कुछ जाने-समझे उन चाइनीज कंपनियों के शिकार बन जाते हैं, जिनका उद्देश्य ही है कि किसी बाजार में घुस कर उस पर कब्ज़ा कर लेना।

ठीक है, टिक-टॉक (TikTok) मनोरंजन के लिए ठीक है। लोगों की आवाज़ और क्रिएटिविटी को दिखाने का यह एक जरिया हो सकता है या फिर भले ही ये उनकी आवाज़ हो, जिन्हें कभी अपना हुनर दिखाने-सुनाने का मौका नहीं मिला, लेकिन इससे कहीं ज्यादा इसके नकारात्मक प्रभाव हैं।

जिस तरह से यहाँ कामोत्तेजक वीडियो, अश्लील हरकतों, सेक्सिज्म, नारीद्वेष, पोर्न, कसी के कंटेंट का दुरूपयोग, मजहबी कट्टरता, झूठी सूचनाओं और घरेलू हिंसा को बढ़ावा दिया जाता है, ये सब बर्दाश्त से बाहर है। इसे प्रतिबंधित करना एकमात्र समाधान दिख रहा है। ऐसे प्लेटफॉर्म्स को बैन करना ही पड़ेगा, जहाँ कंटेंट ऑडिट इतनी घटिया तरीके से की जाती है। मुझे तो लगता है कि उनके पास ऐसे कंटेंट्स को रोकने के लिए कोई तकनीक भी नहीं है।

अगर उनके पास ऐसी तकनीक है, तो उन्हें उससे अवगत कराना चाहिए। ऐसा इसीलिए, ताकि ऐसी कंटेंट्स का विश्लेषण कर के उन्हें लाखों लोगों तक पहुँचने से रोका जा सके। सार्वजनिक होने से पहले उस कंटेंट की समीक्षा की जा सके। अगर आप ऐसा नहीं कर सकते हो फिर इस मीठे जहर को जनता को परोसने से बचिए।

अंत में बात डेटा की। एक और चीज जिसमें चीनी कम्पनियाँ दक्ष हैं, वो है डेटा की चोरी करना। आप खुद एप्लीकेशन को डाउनलोड कीजिए और आप ये देख सकते हैं। उन्हें आपके सिम कार्ड से लेकर कॉन्टेक्ट्स और फोटोज तक के एक्सेस चाहिए होते हैं। यहाँ तक कि प्राइवेसी को लेकर भी तमाम तरह की समस्याएँ क्रिएट की गई हैं।

क्या आपको पता है एंड्राइड फोन्स में काम करने वाले ‘स्पीड बूस्टर’ या ‘क्लीनर’ टाइप के एप्स कैसे काम करते हैं?

सबसे पहले तो वो आपके फोन के एक-एक डिटेल्स का पता लगाते हैं, सभी चीजों का एक्सेस ले लेते हैं। वो आपको बताएँगे कि इतने जीबी का डेटा क्लीन करने की ज़रूरत है और साथ ही रॉकेट उड़ते हुए दिखाया जाएगा, जिससे आपको लगे कि आपका फोन ख़ासा फ़ास्ट हो रहा है। दरअसल, ये एक डेटा चोरी की प्रक्रिया है। आपके सारे डेटा को चुरा कर अलीबाबा, अमेजन और अन्य कंपनियों को बेच दिया जाता है।

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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