हिंदुओं ने करीब 500 साल संघर्ष किया तो एक फैसला नवंबर 2019 में आया। इस फैसले ने उन्हें अयोध्या में अपने अराध्य के पूजन और उनका मंदिर बनाने का अधिकार दिया। साथ ही 5 एकड़ जमीन बतौर मुआवजा मस्जिद के लिए देकर एक तरह हिंदुओं से जुर्माना भी वसूल लिया।
अब अयोध्या में बनने वाली मस्जिद को लेकर एक और जानकारी सामने आई है। यह बताती है कि मस्जिद निर्माण के लिए जो ‘दान’ आया है, उसका 40 फीसदी हिस्सा हिंदुओं का दिया हुआ है। 30 फीसदी कॉरपोरेट से तो इतना ही मुस्लिम समुदाय से भी आया है। यह कोई मनगढ़ंत नंबर नहीं है। दैनिक भास्कर को मस्जिद ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन ने यह बात बताई है। उन्होंने कहा है, “अगस्त, 2020 में हमने मस्जिद निर्माण में सहयोग के लिए बैंक डिटेल जारी किए थे। अब तक हमारे पास 40 लाख रुपए का डोनेशन आ चुका है। डोनेशन का करीब 30% हिस्सा कॉर्पोरेट से आया है, 30% मुस्लिम समुदाय से आया है बाकी 40% हिस्सा हिंदू समुदाय की तरफ से आया है।”
अमर उजाला ने ट्रस्ट के हवाले से बताया है कि ‘गुप्त दान’ करने वाले हिंदुओं की तादाद भी भारी है। कथित तौर पर मस्जिद निर्माण के लिए धन देने वाले जो पहले 11 लोग हैं, वे हिंदू ही हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार इस मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या से सटे धन्नीपुर गाँव में 5 एकड़ जमीन आवंटित की गई है। मस्जिद को मिले दान को लेकर ये तथ्य इसलिए बाहर आ गए हैं क्योंकि मस्जिद निर्माण में देरी हो रही है। नक्शा पास नहीं हुआ है। लैंड यूज बदलने को आवेदन दिया गया है।
यह कैसा संयोग
कन्हैया लाल का सर तन से जुदा होने के बाद जब सहिष्णु हिंदुओं की चेतना जगी तो उन्होंने भी मजारों पर शत-प्रतिशत जाना बंद नहीं किया। इसी साल जुलाई में ऑपइंडिया ने दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर आने वाले जायरीनों का जायजा लिया था। दरगाह के दीवान अली मूसा निजामी ने बताया था कि सालभर में मजार पर आने वाले हिंदू जायरीन 60 फीसदी कम हो गए हैं। मतलब 40 फीसद हिंदुओं की लिबरई कन्हैया लाल का कटा गला देखने के बाद भी नहीं डोला। ऐसे ही अजमेर की ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती दरगाह को लेकर भी देखने को मिला था।
जिस मस्जिद में नमाज भी ‘हराम’, उसके लिए ‘गुप्त दान’
आश्चर्यजनक यह भी है कि जिस मस्जिद निर्माण के लिए हिंदू अपने श्रम का पैसा दान कर रहे, यहाँ तक कि ‘गुप्त दान’ कर रहे हैं, उसको लेकर खुद मुस्लिम भी वैसा उत्साह नहीं दिखा रहे। इसकी वजह शायद उलेमाओं का वह मंतव्य है, जिसके बारे में हैदराबाद के सांसद और AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने जनवरी 2021 में बताया था। उनका कहना था कि अयोध्या में बनने वाली मस्जिद ‘मस्जिद-ए-ज़ीरार’ होगी और उसके लिए चंदा देना हराम होगा। वहाँ नमाज पढ़ना भी हराम होगा।
ओवैसी ने बीदर की एक जनसभा में कहा था, “यह मस्जिद मुनाफ़िकों की मस्जिद है। इस मस्जिद में न केवल चंदा देना, बल्कि नमाज़ पढ़ना भी हराम है। इस्लाम के सभी फ़िरकों के उलेमाओं ने इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ने को हराम क़रार दिया है।”
मुनाफ़िक़ों की जमात जो बाबरी मस्जिद के बदले 5 एकड़ ज़मीन पर मस्जिद बनवा रहे हैं, हकीकत में वो मस्जिद नहीं बल्कि ‘मस्जिद-ए-ज़ीरार’ है। मुहम्मदुर रसूलुल्लाह (PBUH) के ज़माने में मुनाफ़िक़ों ने मुसलमानों की मदद करने के नाम पर एक मस्जिद बनवाई थी,… [1/2] https://t.co/KqKVJg1lpL
— AIMIM (@aimim_national) January 27, 2021
एआईएमआईएम ने ट्वीट कर मुनादी की थी, “मुनाफ़िकों की जमात जो बाबरी मस्जिद के बदले 5 एकड़ ज़मीन पर मस्जिद बनवा रहे हैं, हकीक़त में वह मस्जिद नहीं बल्कि ‘मस्जिद-ए-ज़ीरार’ है। मुहम्मदुर रसूलुल्लाह के ज़माने में मुनाफ़िकों ने मुसलमान की मदद करने के नाम पर एक मस्जिद बनवाई थी। हकीकत में उसका मकसद उस मस्जिद में नबी का खात्मा और इस्लाम को नुकसान पहुँचाना था (कुरान में उसे मस्जिद-ए-ज़ीरार कहा गया है)। ऐसे में मस्जिद में नमाज़ पढ़ना या चंदा देना हराम है।”
यह तो गंगा जमुनी तहजीब का भी अपमान
अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए हिंदुओं का दान देना गंगा-जमुनी तहजीब की वो मिसाल हो सकती है, जिस पर लिबरल लहालोट हो जाएँ। भाई भले चारा हो, लेकिन सेकुलर तो इसी तरह के भाईचारे पर मर मिटते हैं। पर क्या यह गंगा-जमुनी तहजीब की भावना के विपरीत नहीं है कि जो मस्जिद बनने के बाद कुछ मुस्लिमों के लिए ‘मस्जिद-ए-ज़ीरार’ रहेगी, उनके लिए इस मस्जिद में नमाज पढ़ना ‘हराम’ होगा, मस्जिद के लिए चंदा देना ‘हराम’ है, उसके लिए हिंदू सबसे बड़े दानदाता समूह के रूप में उभरे? क्या यह मजहबी भावनाओं का अपमान नहीं है? क्या यह इस्लाम को नीचा दिखाना नहीं है? सवाल यह भी है कि काफिरों के दान से मस्जिद बनाया जा सकता है? क्या यह पाक होगा?
इस लिबरई का इलाज क्या है?
सवाल मस्जिद के लिए 40 प्रतिशत पैसा देने वाले हिंदुओं से भी है। क्या यह उन हुतात्माओं का अपमान नहीं है, जिन्होंने रामलला की जन्मभूमि (जिस पर इस्लामी आक्रांता ने एक मस्जिद खड़ी कर दी थी) को पाने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। मस्जिद ट्रस्ट का तो यहाँ तक कहना है कि उसने राम मंदिर की तरह पैसा जुटाने के लिए कोई अभियान नहीं चलाया है। लोग खुद आकर पैसा दिए जा रहे हैं। खुद जाकर पैसा देना हिंदुओं की वह बीमारी है, जिसमें वह हर बार कहते हैं कि मेरा अब्दुल वैसा नहीं है और हर बार वही अब्दुल उनका गला काट चला जाता है। इसलिए एक बार चेक कर लीजिए ‘सर तन से जुदा’ वाली मजहबी विचारधारा को पोषित करने में कहीं आपका भी तो गुप्त दान नहीं लगा है, क्योंकि कल्कि भी जब अवतार लेंगे तो उनकी ही रक्षा करेंगे जो निज धर्म के लिए खड़े होना जानते हैं।