Sunday, September 1, 2024
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‘चोर’ राहुल को पुलिस ने लतियाया… सुरक्षा के लिए राहुल गाँधी के पीछे खुद को भगाया: लुटियंस सोच आखिर कब तक?

कॉन्ग्रेस के लिए 'राहुल गाँधी हिताय, राहुल गाँधी सुखाय' ही एकमात्र सूत्रवाक्य है। तभी वो अपने ही बाप-दादा के बनाए कानूनों-संस्थानों के खिलाफ खड़ा हो जाता है। इंदिरा से लेकर संजय गाँधी सबने यही किया था, अभी परंपरा जारी है।

राहुल ने चोरी की। पुलिस राहुल को पकड़ के ले गई। थाने में मरम्मत भी की। जज साहब ने राहुल को जेल भेज दिया। यह है आम… बोले तो देशी-ठेठ जिंदगी।

राहुल गाँधी पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगा। पूछताछ के लिए राहुल गाँधी को बुलाया गया। पूरा कॉन्ग्रेस राहुल गाँधी के नाम पर देश भर में सड़क पर उतर गया। यह है बिंदास… बोले तो लुटियंस जिंदगी।

ऊपर के 2 पैराग्राफ को ध्यान से पढ़िए। राहुल और राहुल गाँधी – दो अलग-अलग आदमी हैं। देशी-ठेठ जिंदगी में राहुल को डायरेक्ट चोर कह दिया जाता है, आरोपित कभी नहीं। भले ही परचून की दुकान से गल्ला चुराने का आरोप कानून की नजर में लगा हो। लुटियंस जिंदगी का मजा लूट रहे राहुल गाँधी के साथ ऐसा कुछ करने/कहने की औकात नेता से लेकर शासन-प्रशासन तक की नहीं… आम लोग तो खैर क्या ही कह पाएँगे!

राहुल गाँधी स्पेशल क्यों?

अपने देश का लोकतंत्र “हम भारत के लोग…” से चलता है। यह लिखना आसान है, पढ़ने-सुनने में अच्छा लगता है। जमीनी हकीकत लेकिन 13 जून 2022 को कॉन्ग्रेस के लोग दिखा-समझा देते हैं। कॉन्ग्रेस यह बता देती है कि वो और उनके लोग “हम” जैसे आम नागरिक नहीं हैं… वो समझा देती है कि वो हमारे माई-बाप हैं, हमारे सर्वेसर्वा हैं, हमसे 100-50 फीट ऊपर हैं।

धोखाधड़ी की साजिश रचने, फंड का गबन करने… आदि-इत्यादि का आरोप राहुल गाँधी पर लगा है। ध्यान दीजिए सिर्फ आरोप लगा है, साबित नहीं हुआ है। क्या करना चाहिए ऐसे में? आरोप का सामना कीजिए। जो भी जाँच एजेंसी है, उसके सामने बिना झुके खड़े हो जाइए। जितना पूछा जाए, सब कुछ खोल कर बता दीजिए… लेकिन नहीं! अपने ही बाप-दादा के बनाए कानूनों-संस्थानों के खिलाफ खड़ा होना है इन्हें। “राहुल गाँधी झुकेगा नहीं, सत्य झुकेगा नहीं” वाला फिल्मी डायलॉग मारना है। नेता यंग हो ना हो, एंग्री यंग मैन बने रहना है।

कॉन्ग्रेस यह कैसे कर लेती है? कोई स्पेशल पावर है उसके पास? या कोई दैवीय शक्ति? नहीं। वो कर लेती है क्योंकि उन्हें यह लगता है कि देश का संविधान कॉन्ग्रेस के द्वारा, कॉन्ग्रेस का और कॉन्ग्रेस के लिए बना है। वो कर लेती है क्योंकि हमारे-आपके जैसे राहुलों की बेहतरी सोच कर वो समय और उर्जा खर्च नहीं करती। उनके लिए राहुल गाँधी हिताय, राहुल गाँधी सुखाय ही एकमात्र सूत्रवाक्य है।

भाजपा वाले मोदी Vs कॉन्ग्रेस वाले गाँधी

गोधरा में कट्टरपंथी मुस्लिमों ने कारसेवकों की ट्रेन जला दी थी। प्रतिक्रिया में गुजरात के कई इलाकों में दंगे हुए। इन दंगों का आरोप तब के गुजरात सीएम रहे नरेंद्र मोदी पर भी लगा। क्या किया था उन्होंने? सड़क पर उतरे थे, चक्का-जाम किया था? BJP ने जाँच करने वाली एजेंसी के ऑफिस को घेर लिया था?

जी नहीं। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। गुजरात दंगों की जाँच के लिए जिस एसआईटी का गठन हुआ था, वहाँ तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब 9 घंटे बिताए थे। हँसी-ठिठोली नहीं की थी, पूछताछ का सामना किया था। सीएम मोदी ने तब सभी 100 सवालों (यह लगभग आँकड़ा है) के जवाब दिए थे। पूरी पूछताछ के दौरान सहज भी रहे थे। यह सब बातें खुद एसआईटी के हेड रहे आरके राघवन ने लिख छोड़ा है।

पूरे राज्य का मुख्यमंत्री, जिसे जनता चुन कर भेजती है… वो एसआईटी के सामने पेश होता है। सवालों को झेलता है, उनके जवाब देता है। आखिर क्यों? क्योंकि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को संविधान-कानून पर भरोसा था। क्योंकि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूछताछ के बाद मीडिया से कहा भी था कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं।

इसके उलट राहुल गाँधी क्या करते हैं? या इंदिरा गाँधी ने क्या किया था? संजय गाँधी को लेकर कॉन्ग्रेसियों ने कितना बवाल काटा था? इन सवालों के 1-2 लाइन में जवाब यह हैं:

  1. ED राहुल गाँधी को पूछताछ के लिए बुलाती है, कॉन्ग्रेसी सड़क जाम कर देते हैं। कोर्ट आदेश कुछ और देती है, इंदिरा गाँधी आपातकाल ही लगा डालती है।
  2. जीप घोटाले का आरोप जब इंदिरा गाँधी पर लगता है तो बवाल इतना कि गिरफ्तारी के बावजूद थाने या जेल में नहीं बल्कि मजबूरन गेस्ट हाउस में रखा जाता है उन्हें।
  3. इंदिरा गाँधी के बेटे संजय गाँधी की तो बात ही निराली है। फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ उन्होंने प्रिंट ही जला दिया था, कोर्ट ने उन्हें जेल भेज दिया था, लेकिन कॉन्ग्रेसियों ने क्या-क्या और कितना बवाल किया होगा… एक उदाहरण से समझिए। तब कमलनाथ नामक नेता (बाद में यह मंत्री-सीएम भी बने) ने तो जज से ही लड़ाई कर ली थी।

कॉन्ग्रेसी सिस्टम अपने नेता (सिर्फ गाँधी पढ़ा-समझा जाए) के लिए जो करता है, शायद वो उनके लिए एकमात्र या आखिरी रास्ता होगा लेकिन झेलना आम नागरिकों को पड़ता है। पुलिस वाले चोरों-अपराधियों के बजाय नेताओं के पीछे भागते-दौड़ते हैं। आखिर क्यों? आपके दुख का बोझ जनता क्यों उठाए?

नेता या नागरिक: दोष किसका?

SPG सिक्यॉरिटी वाला मामला याद है? (सोनिया-राहुल-प्रियंका) गाँधी सबका SPG कवर हटा लिया गया था। इसके बदले Z+ कवर दिया गया था। तब भी कॉन्ग्रेसियों ने बहुत बवाल किया था। सच्चाई जबकि यह है कि Z+ कवर में भी 55 सुरक्षाकर्मी होते हैं।

एक आदमी के लिए 55 सुरक्षाकर्मी! जी हाँ। क्योंकि उस आदमी की जान को खतरा है। यह और बात है कि यह खतरा सटीक नहीं होता है, बस आकलन किया जाता है। बात अगर आकलन की है तो कश्मीर में हिंदुओं की जान को भी तो खतरा है। सुरक्षा उन्हें क्यों नहीं फिर? या यूँ कह लें कि आम नागरिक की जान का आकलन लगाने वाला गणित पैदा नहीं हुआ है… नेताओं की जान कीमती है, ऐसा नासा-इसरो ने साबित कर दिया है?

दरअसल दोष नेताओं या कॉन्ग्रेसियों का है ही नहीं। वो तो अपने फायदे की ही सोचेंगे। जनता को क्या करना है, यह तो जनता को ही सोचना होगा। नदी की धारा जिस विज्ञान पर चलती है, जनता वैसे ही सोचे, वैसा ही आचरण करे – यहीं से समस्या का समाधान निकल कर आएगा। ऊँचाई से नीचे की ओर बहती है नदी। आम नागरिक को ऊँचे पदों पर बैठे लोगों जैसा ही आचरण करना चाहिए। यह थोड़े समय के लिए देश में अशांति ला सकती है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम होंगे और बढ़िया होंगे, इसकी गारंटी है।

चोरी, रेप, हत्या, गबन, अपहरण… अपराध चाहे जो हो, आरोपित को जब भी कोई संस्था (पुलिस वाले भी) पूछताछ के लिए बुलाए या गिरफ्तार करे तो उसके पूरे परिवार, उसके पूरे समाज को सड़क पर उतर जाना चाहिए। समाधान किसी एक के ऐसा करने से आ जाएगा, इस भुलावे में मत रहिएगा। हर गाँव-पंचायत-तहसील-ब्लॉक-जिला-राज्य में हर एक परिवार को यह कदम उठाने के लिए तत्पर रहना होगा। जब कोई आरोप लगे, बिना हिंसा किए फटाक से सड़क जाम। रेल को रोक दीजिए। दफ्तरों में ताला मार दीजिए। शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार सिर्फ कॉन्ग्रेसियों को है, ऐसा संविधान में कहीं नहीं लिखा है।

जान को जरा सा भी खतरा मालूम हो, डीएम-एसपी से सुरक्षा माँगिए। न दे तो उनके ऑफिस को घेर लीजिए। हर वो काम कीजिए, जो-जो काम नेता हर दिन करते हैं, उन्हें अपना अधिकार मानते हैं। उन्हें उनके ही बनाए अधिकारों के शतरंज में मात दीजिए। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो कल को ऐसे नेता “चाय क्यों नहीं मिली” मामले पर भी चक्का जाम कर देंगे और आप लोकतंत्र के सिपाही बन कर तमाशा देखते रह जाएँगे। अगर आप ऐसा करते हैं तो देश में जो शासन-प्रशासन में भूचाल आएगा, उससे शायद ये नेता संसद में बैठ कर अपनी भूलों को सुधारने पर चर्चा करेंगे, अधिकारों को बपौती न मान कर कुछ हमारे-आपके बारे में भी सोचेंगे।

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चंदन कुमार
चंदन कुमारhttps://hindi.opindia.com/
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