Saturday, April 20, 2024
Homeविचारसामाजिक मुद्देCAA से नागरिकता पाने वाले 70-75% SC/ST, OBC गरीब, फिर रावण-कन्हैया जैसे इसका विरोध...

CAA से नागरिकता पाने वाले 70-75% SC/ST, OBC गरीब, फिर रावण-कन्हैया जैसे इसका विरोध क्यों कर रहे

CAA के द्वारा पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के ज़्यादातर दलितों को नागरिकता दिए जाने पर क्यों बौखलाए हुए हैं? जबकि इन बेचारों ने तो अपने मुल्क में रोहिंग्याओं की भाँति किसी समुदाय को न कोई नुकसान पहुँचाया, न कोई अपराध किए। इन्हें तो इनके अल्पसंख्यक होने की सजा मिली थी वो भी उस सरजमीं पर जहाँ मजहब के नाम पर कट्टरपंथी मुस्लिमों की जकड़ थी।

भारत में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। लोग बढ़-चढ़ कर इसे मुस्लिम विरोधी कानून बता रहे हैं और अपने मुस्लिम बंधुओं की सुरक्षा के लिए प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं। हालाँकि, ये बात सब जानते हैं कि सीएए का भारतीय मुस्लिमों से कुछ लेना-देना नहीं हैं। इसका उद्देश्य केवल तीन इस्लामिक देशों की अल्पसंख्यक आबादी को नागरिकता देना है। जिन्हें उनके मुल्क में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किया गया। मगर, फिर भी एनआरसी की उलाहना देकर इसे रोल बैक करवाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। साथ ही मोदी सरकार पर बेबुनियादी इल्जाम मढ़े जा रहे हैं कि वो भारत को हिंदू राष्ट्र बना रहे हैं।

इन इल्जामों के बीच SC/ST कमीशन के चेयरमैन और तीनों देशों से प्रताड़ित होकर भारत आए शरणार्थियों पर गहन शोध कर चुके Ex Dgp बृजलाल ने एक बड़ा खुलासा किया है। बतौर एससी/एसटी कमीशन चेयरमैन उन्होंने बताया है कि भारत में जिन शरणार्थियों को सीएए के तहत नागरिकता मिलने वाली है। उनमें 70 से 75 प्रतिशत दलित, ओबीसी और गरीब है। जिन्हें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भगाया गया था।

अब यहाँ गौर देने वाली बात है कि एक ओर एस/एसटी एक्ट के अध्यक्ष अपने गहन शोध के बाद इस बात को सरेआम बता रहे है कि इस कानून से अधिकांश दलितों, ओबीसी और गरीबों का फायदा होगा। लेकिन फिर भी, दिल्ली के शाहीन बाग, लखनऊ के घंटाघर जैसी जगहों पर इकट्ठा प्रदर्शनकारी इसे मानवाधिकारों के विरुद्ध बताकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं, उनकी मंशा पर सवाल उठा रहे हैं और पूरे देश में बेवजह डर का माहौल बना रहे हैं। यहाँ तक की दलितों के अधिकारों की बात करने वाले रावण और कन्हैया जैसे लोग भी इस विरोध को हवा दे रहे हैं।

अब क्या इन परिस्थितियों को जानते-समझते-देखते हुए मान लिया जाए कि प्रदर्शन पर बैठे ये समुदाय विशेष के लोग और उनके समर्थन में आए तथाकथित सेकुलर लोग सरकार के प्रति अपनी कुँठा में मानवता को ताक पर रख चुके है। जिन्हें अब ये भी होश नहीं है कि एनआरसी (जो अभी तक आया भी नहीं) की आड़ में ये सीएए को वापस लेने के लिए जो रोना रो रहे हैं, वो इनकी उस दलित विरोधी छवि को खुलकर दुनिया के सामने पेश कर रहा है। जिसकी एक झलक सन् 47 में बँटवारे के दौरान भी देखने को मिली थी। क्योंकि पाकिस्तान बनने के बाद दलितों पर अत्याचार करने वाला ‘मजहबी’ भी कभी ‘हिंदुस्तानी’ ही कहलाता था।

भाजपा प्रवक्ता शलबमणि त्रिपाठी ने SC/ST कमीशन चेयरमैन की वीडियो अपने ट्विटर पर शेयर की है। जिसमें वे सीएए के तहत नागरिकता मिलने वाले दलित लोगों के हालात बयान करने के लिए पाकिस्तान के संविधान निर्माता योगेन्द्र मंडल की कहानी भी सुना रहे हैं। जिन्होंने बँटवारे के दौरान बाबा साहेब की बात नहीं मानी और दलित होने के बावजूद पाकिस्तान में बसे रहे। लेकिन, मात्र 3 साल में ही 25 हजार हिंदुओं का कत्लेआम देखकर उन्हें भी समझ आ गया कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति क्या है और वहाँ उनकी कोई सुनवाई नहीं होगी। नतीजतन 8 अक्टूबर 1950 को इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद उन्हें जेल में डालने की पूरी कोशिश हुई। लेकिन वो भारत आ गए और यहाँ गुमनामी में अपना जीवन गुजारा। इसके बाद 5 अक्टूबर 1968 को उनका देहांत हो गया।

इनकी पूरी कहानी आप इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-
जय भीम-जय मीम की विश्वासघात और पश्चाताप की कहानी: पाक का छला, हिंदुस्तान में गुमनाम मौत मरा

सोचिए, एक शख्स जो अगर भारत में रहता तो बाबा साहेब का उत्तराधिकारी बनता। उसने धर्म के नाम पर बने पाकिस्तान को चुना और उसका नतीजा भुगता। हालाँकि, वो बाद में भारत आ गए, लेकिन उनकी स्थिति आज भी जवाब है उन लोगों को जो इन प्रदर्शनों में पाकिस्तान के समर्थन में आवाज़ उठा रहे हैं और भारत सरकार से पूछ रहे हैं कि आखिर वहाँ के अल्पसंख्यकों को देश में लाने की क्या जरूरत है?

इन प्रदर्शनों में शामिल लोगों को जानने समझने की जरूरत है कि योगेंद्र मंडल जैसे सैंकड़ों लोग हैं, जो मुस्लिम लीग द्वारा गुमराह किए जाने के कारण सन 47 से इस्लामिक देश में घुटन का जीवन गुजार रहे थे और उन कट्टरपंथियों को इंसानियत की तर्ज पर तोल रहे थे। लेकिन, अपनों के साथ होती हिंसा और बर्बरता देखकर उन्हें भी योगेंद्र मंडल की तरह समझ आ गया कि ‘समुदाय विशेष’ मुस्लिमों की बहुसंख्यक आबादी उन्हें कभी उनके धर्म के साथ नहीं स्वीकारेगी। जिस कारण वे भारत लौट आए।

अब एक सवाल- मोदी सरकार के आने के बाद अक्सर रोहिंग्याओं को वापस भेजने वाली बात पर बौखला जाने वाला समाज, मानवमूल्यों का पाठ पढ़ाने वाले लोग, उन्हें देश की नागरिकता देने की बात पर ‘सरकार का क्या बिगड़ जाएगा?’ जैसे सवाल करने वाले लोग पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के ज़्यादातर दलितों को नागरिकता दिए जाने पर क्यों बौखलाए हुए हैं? आखिर क्यों? जबकि इन बेचारों ने तो अपने मुल्क में रोहिंग्याओं की भाँति न किसी समुदाय को कोई नुकसान पहुँचाया और न कोई अपराध किए। इन्हें तो इनके अल्पसंख्यक होने की सजा मिली थी, वो भी उस सरजमीं पर जहाँ मजहब के नाम पर कट्टरपंथी मुस्लिमों की जकड़ थी। तो आखिर इनको भारत में नागरिकता क्यों न दी जाए और आखिर क्यों इनका विरोध हो? क्या सिर्फ़ इसलिए कि यहाँ की मुस्लिम आबादी भी पाकिस्तान की मुस्लिम आबादी की तरह नहीं चाहती कि वे यहाँ पर रहें?

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

बच्चा अगर पोर्न देखे तो अपराध नहीं भी… लेकिन पोर्नोग्राफी में बच्चे का इस्तेमाल अपराध: बाल अश्लील कंटेंट डाउनलोड के मामले में CJI चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पॉर्नोग्राफी से जुड़े मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।

मोहम्मद जमालुद्दीन और राजीव मुखर्जी सस्पेंड, रामनवमी पर जब पश्चिम बंगाल में हो रही थी हिंसा… तब ये दोनों पुलिस अधिकारी थे लापरवाह: चला...

चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में रामनवमी पर हुई हिंसा को रोक पाने में नाकाम थाना प्रभारी स्तर के 2 अधिकारियों को सस्पेंड किया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe