Thursday, July 10, 2025
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हिंदुओं की आस्था का केंद्र हैं मंदिर, विधर्मियों को रोजगार देने का स्कीम नहीं: तिरुपति से शनि शिंगणापुर तक ‘मुस्लिम घुसपैठ’

हिंदू संगठनों का मानना है कि मंदिर में सिर्फ हिंदू कर्मचारी होने चाहिए, क्योंकि ये भगवान का घर है। इस मामले ने मंदिर की पवित्रता और कर्मचारी नियुक्ति पर बहस छेड़ दी है।

महाराष्ट्र के अहिल्या नगर (पुराना नाम-अहमदनगर) जिले में शनि शिंगणापुर मंदिर ने शुक्रवार (13 जून 2025) को 167 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया, जिनमें 114 मुस्लिम थे। मंदिर में कुल 114 मुस्लिम काम कर रहे थे और वो सभी इस कार्रवाई में निकाल दिए गए। मंदिर ट्रस्ट का कहना है कि ये लोग अनुशासन नहीं मान रहे थे और कई महीनों से काम पर नहीं आ रहे थे।

ये फैसला तब हुआ जब हिंदू संगठन शनिवार (14 जून 2025) को बड़ा प्रदर्शन करने वाले थे। इसकी वजह एक वीडियो था – जिसमें मुस्लिम कारीगर मंदिर के पवित्र चबूतरे पर काम कर रहे थे।

इस पूरे मामले के बाद सवाल उठते हैं कि आखिर हिंदू मंदिर में 114 मुस्लिम कर्मचारी थे ही क्यों? बतौर हिंदू मेरा मत साफ है कि हिंदू मंदिरों में सिर्फ हिंदू कर्मचारी होने चाहिए। इस लेख में यही बात समझाने की कोशिश की गई है।

शनि शिंगणापुर में क्या हुआ?

शनि शिंगणापुर का मंदिर भगवान शनि का है। ये मंदिर अनोखा है क्योंकि यहाँ कोई दीवार या छत नहीं है, सिर्फ एक काला पत्थर है, जो शनिदेव का प्रतीक है। रोज हजारों लोग दर्शन करने आते हैं, और खास मौकों जैसे अमावस्या पर लाखों लोग पहुँचते हैं। गाँव में घरों के दरवाजे भी नहीं हैं, क्योंकि लोग मानते हैं कि शनिदेव उनकी रक्षा करते हैं।

हाल ही में मंदिर ट्रस्ट ने 167 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। इनमें 114 मुस्लिम थे, जो खेती, कचरा प्रबंधन, और शिक्षा जैसे काम करते थे। ट्रस्ट का कहना है कि ये लोग पाँच महीने से बिना बताए गायब थे और काम में लापरवाही कर रहे थे। लेकिन फैसला 8 और 13 जून 2025 को हुआ, ठीक उस वक्त जब हिंदू संगठन 14 जून को प्रदर्शन की तैयारी कर रहे थे।

बीजेपी के आध्यात्मिक मोर्चे के प्रमुख आचार्य तुषार भोसले ने इसे हिंदुओं की जीत बताया। उन्होंने कहा, “हमने मुस्लिम कर्मचारियों को हटाने के लिए आंदोलन किया। मंदिर प्रशासन को झुकना पड़ा। मैं सभी शनि भक्तों और हिंदू समाज को बधाई देता हूँ।” उनका मानना था कि मुस्लिम कर्मचारियों की मौजूदगी मंदिर की पवित्रता को नुकसान पहुँचाती है।

शनि शिंगणापुर मंदिर से जुड़े विवाद की शुरुआत एक वीडियो से हुई, जिसमें मुस्लिम कारीगार शनि शिंगणापुर के पवित्र चबूतरे पर काम कर रहे थे। मंदिर का ये हिस्सा बहुत पवित्र है, और हिंदू भक्तों को लगा कि ऐसा काम सिर्फ हिंदुओं को करना चाहिए।

हिंदू मंदिर में गैर-हिंदू कर्मचारी क्यों नहीं होने चाहिए

एक हिंदू भक्त के लिए मंदिर सिर्फ इमारत नहीं, बल्कि भगवान का घर है। यहाँ की हर चीज – पूजा, रीति-रिवाज, और माहौल को पवित्र रखना जरूरी है। हिंदू धर्म में मंदिर की पवित्रता बहुत मायने रखती है। अगर कोई गैर-हिंदू जो हिंदू नियमों को न माने, मंदिर के काम में शामिल हो, तो ये भक्तों की आस्था को ठेस पहुँचा सकता है।

उदाहरण के लिए हिंदू धर्म में कई नियम हैं – जैसे शाकाहारी भोजन, पूजा से पहले स्नान और खास मंत्रों का जाप। मंदिर में काम करने वाले को इनका पालन करना चाहिए। अगर कोई गैर-हिंदू इन नियमों को न माने, तो मंदिर का सात्विक माहौल खराब हो सकता है। शनि शिंगणापुर में जब एक मुस्लिम कर्मचारी मंदिर के चबूतरे पर चढ़ा, तो भक्तों को लगा कि ये गलत है। ऐसे पवित्र काम सिर्फ हिंदुओं को करने चाहिए, जो इन नियमों को समझते हों।

ये सवाल उठता है कि 114 मुस्लिम कर्मचारी वहाँ थे ही क्यों? मंदिर के काम, चाहे वो पूजा हो, रखरखाव हो या कोई और काम.. ये कम हिंदुओं को ही मिलना चाहिए। हिंदू भक्तों का मानना है कि मंदिर की सेवा वही करे, जो उसकी पवित्रता को समझे। गैर-हिंदू कर्मचारी, भले ही वो अच्छे इंसान हों, हिंदू रीति-रिवाजों को पूरी तरह नहीं समझ सकते। इसलिए मंदिरों में सिर्फ हिंदू कर्मचारी रखना सही है।

कानून और परंपरा भी यही कहते हैं

इस सोच को कानूनी समर्थन भी मिला है। जनवरी 2024 में मद्रास हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि तमिलनाडु के हिंदू मंदिरों में गैर-हिंदू लोग ‘कोडिमरम’ (झंडे वाले खंभे) से आगे नहीं जा सकते। कोर्ट ने कहा कि मंदिर हिंदुओं की पूजा के लिए हैं, और गैर-हिंदुओं का पवित्र जगहों पर जाना मंदिर की पवित्रता को नुकसान पहुँचा सकता है। ये फैसला साफ बताता है कि मंदिरों में हिंदू परंपराओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

अगर गैर-हिंदुओं को मंदिर के पवित्र हिस्सों में जाने की इजाजत नहीं, तो उन्हें मंदिर के काम में शामिल करने का क्या मतलब? शनि शिंगणापुर में मुस्लिम कर्मचारी भले ही पूजा न करते हों, लेकिन मंदिर की दीवार या शिखर पर काम करना भी पवित्र काम है। ऐसे काम हिंदुओं को ही करने चाहिए, ताकि कोई विवाद न हो।

ऐसे कई मंदिर हैं, जहाँ गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। जैसे सबरीमाला मंदिर में सख्त नियम हैं। तेलंगाना स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर में ऐसी ही घटना के बाद मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने केवल हिंदू कर्मचारियों की नियुक्ति का आदेश दिया था। शनि शिंगणापुर में भी यही भावना है कि मंदिर का हर काम हिंदू धर्म के हिसाब से हो।

मंदिरों के मैनेजमेंट से खुद को दूर रखें सरकारें

ये विवाद ये भी दिखाता है कि सरकार मंदिरों को अपने कंट्रोल में रखती है। महाराष्ट्र में कई मंदिर ट्रस्ट को सरकारी अधिकारी चलाते हैं। हिंदू संगठन इसका विरोध करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि मंदिरों का पैसा धर्म और संस्कृति के लिए इस्तेमाल होना चाहिए, न कि सरकारी खर्चों में। 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने शनि शिंगणापुर मंदिर को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की थी, लेकिन हिंदू संगठनों ने इसे रुकवाया।

इस बार आचार्य तुषार भोसले और उनके संगठन ने मुस्लिम कर्मचारियों को हटाने की माँग की। कुछ लोग इसे राजनीति कह सकते हैं, लेकिन हिंदू भक्तों के लिए ये मंदिर की पवित्रता की लड़ाई है। जैसे अयोध्या के राम मंदिर में हिंदू अधिकारियों को अहम जगह दी गई, वैसे ही शनि शिंगणापुर में भी हिंदू कर्मचारी होने चाहिए।

फैसले पर सवाल उठाने वालों को जवाब

शनि शिंगणापुर देवस्थान के सीईओ गोरक्षनाथ दरंदाले ने बताया कि करीब 2400 कर्मचारी यहाँ काम करते हैं। इनमें से कई काम पर नहीं आते। ऐसे लोगों की सैलरी भी रोकी गई है। इसके बाद ही ये कार्रवाई की गई। कईयों की सैलरी 5-5 माह से रुकी है। कुछ लोग कहते हैं कि 114 मुस्लिम कर्मचारियों को निकालना भेदभाव है। ट्रस्टी अप्पासाहेब शेटे का कहना है कि धर्म की वजह से नहीं, बल्कि खराब काम और गैर-हाजिरी की वजह से ऐसा हुआ। लेकिन 167 में से 114 मुस्लिम कर्मचारियों का निकाला जाना और फैसले की टाइमिंग सवाल उठाती है।

हालाँकि हिंदू भक्तों का मानना है कि मंदिर का काम कोई साधारण नौकरी नहीं। ये सेवा है, जो आस्था और परंपरा से जुड़ी है। भले ही कर्मचारी पूजा न करते हों, लेकिन मंदिर के हर काम में पवित्रता का ध्यान रखना जरूरी है। अगर गैर-हिंदू कर्मचारी मंदिर की दीवार पेंट करें या शिखर पर चढ़ें, तो ये भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुँचाता है। इसलिए मंदिर में सिर्फ हिंदू कर्मचारी रखना ही सही है।

मद्रास हाई कोर्ट का फैसला भी यही कहता है कि मंदिरों में हिंदू परंपराओं को प्राथमिकता मिले। गैर-हिंदुओं को दूसरी नौकरियों में मौका मिल सकता है, लेकिन मंदिरों में हिंदुओं को ही काम करना चाहिए।

पहले भी बदले हैं नियम

शनि शिंगणापुर मंदिर पहले भी विवादों में रहा है। 2016 में महिलाओं को मंदिर के गर्भगृह में जाने की इजाजत नहीं थी। तब कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने आंदोलन किया, और बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि कोई कानून महिलाओं को मंदिर में जाने से नहीं रोक सकता। इस फैसले के बाद 400 साल पुराना नियम टूटा। ये दिखाता है कि समय के साथ मंदिरों के नियम बदल रहे हैं।

हिंदू भक्तों का मानना है कि मंदिरों में गैर-हिंदू कर्मचारियों को रखने का कोई मतलब नहीं। अगर मंदिर हिंदुओं का है, तो उसका हर काम हिंदुओं के हाथ में होना चाहिए। इससे न विवाद होगा, न किसी की भावनाएँ आहत होंगी।

मद्रास हाई कोर्ट का फैसला हर जगह हो लागू

शनि शिंगणापुर का ये मामला साफ करता है कि हिंदू मंदिरों में सिर्फ हिंदू कर्मचारी होने चाहिए। इसके लिए साफ नियम बनने चाहिए। पूजा, रखरखाव या कोई भी काम, जो मंदिर से जुड़ा हो, हिंदुओं को ही करना चाहिए। मद्रास हाई कोर्ट का फैसला इसकी शुरुआत है, लेकिन इसे हर मंदिर में लागू करना होगा।

सरकार को मंदिरों से अपना कंट्रोल हटाना चाहिए। मंदिरों को हिंदू समाज चलाए, ताकि उनकी पवित्रता बनी रहे। हिंदू संगठनों को भी अपनी बात रखते वक्त ध्यान रखना चाहिए कि कोई तनाव न बढ़े।

एक हिंदू भक्त के लिए मंदिर की पवित्रता सबसे ऊपर है। इसलिए शनि शिंगणापुर में 114 मुस्लिम कर्मचारियों का होना गलत था। ऐसे में मंदिर का हर काम हिंदुओं के हाथ में होना चाहिए, ताकि भक्तों की आस्था बनी रहे। ये फैसला सही दिशा में है और इसे हर हिंदू मंदिर में लागू करना चाहिए।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
I am Shravan Kumar Shukla, known as ePatrakaar, a multimedia journalist deeply passionate about digital media. Since 2010, I’ve been actively engaged in journalism, working across diverse platforms including agencies, news channels, and print publications. My understanding of social media strengthens my ability to thrive in the digital space. Above all, ground reporting is closest to my heart and remains my preferred way of working. explore ground reporting digital journalism trends more personal tone.

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