“फेसबुक यह कहकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकता कि वह केवल एक मंच है जो अपने यूजर के कंटेंट पोस्ट करता है और इन कंटेंट या सूचना को नियंत्रित करने में या उसे रोकने में उसकी कोई भूमिका नहीं है।”
यह टिप्पणी उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय उस बेंच की है जिसके सामने फेसबुक ने दिल्ली विधानसभा की शांति और सामंजस्य कमेटी (Peace and Harmony Committee) से मिले एक समन को रद्द करने की सिफारिश की थी।
कमेटी ने फेसबुक को यह समन 2020 में हुए दिल्ली दंगों के परिप्रेक्ष्य में उसकी भूमिका को लेकर भेजा था। समन में कमेटी ने फेसबुक के प्रबंध निदेशक को उसके समक्ष उपस्थित होकर इस आरोप पर अपना पक्ष रखने के लिए कहा था कि; फेसबुक दंगों के दौरान हिंसा को भड़काने वाली पोस्ट को नियंत्रित करने में विफल रहा।
न्यायाधीशों ने समन को रद्द करने से इनकार करते हुए आगे अपनी टिप्पणी में कहा, “अपने यूजर द्वारा पोस्ट किए संदेश या सूचना को लेकर फेसबुक की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है। उसकी भूमिका इतनी भी सरल नहीं है कि वो अपने मंच पर पोस्ट किए जाने वाली सूचनाओं से खुद को दूर रख सके।”
बेंच ने अपनी टिप्पणी में आगे कहा, “देश की राजधानी ऐसे दंगे फिर देखना नहीं चाहती और इसलिए फेसबुक की भूमिका पर विचार होना ही चाहिए।” न्यायालय ने इस विषय पर विधानसभा की कमेटी द्वारा व्यक्त की गई चिंता को जायज़ ठहराते हुए कहा, “कमेटी की चिंता को केवल इसलिए दरकिनार नहीं किया जा सकता क्योंकि विधानसभा स्थानीय प्रशासन और विधि निर्माण के लिए है।”
न्यायालय की एक और महत्वपूर्ण टिप्पणी के अनुसार, “फेसबुक का यह तर्क मान लेना अब किसी के लिए भी संभव नहीं है कि वह प्रोग्रामिंग और एल्गोरिदम का इस्तेमाल करके यूजर को उसके व्यक्तिगत पसंद के हिसाब से कंटेंट नहीं दिखाता।” न्यायालय ने अन्य देशों में फेसबुक की भूमिका पर भी बात की और उसे याद दिलाया कि म्यांमार और श्रीलंका जैसे देशों में सामाजिक और कानून व्यवस्था को बिगाड़ने में सोशल मीडिया मंचों की क्या भूमिका रही है और इसके लिए उन्हें वहाँ किन समस्याओं का सामना करना पड़ा है।
इसके अलावा न्यायालय ने लोकतंत्र में चुनाव और उससे सम्बंधित प्रक्रियाओं को प्रभावित करने में सोशल मीडिया, खासकर फेसबुक की भूमिका पर बात करते हुए कहा, “आज लोकतांत्रिक सरकार के चुनाव की प्रक्रिया अर्थात मतदान को सोशल मीडिया द्वारा किए जा रहे हस्तक्षेप के कारण बहुत बड़ा खतरा है और इसकी वजह से फेसबुक जैसे सोशल मीडिया मंचों की भूमिका और उनकी बढ़ती ताकत पर सार्वजनिक बहस स्वाभाविक है। न्यायालय ने फेसबुक को यह भी याद दिलाया कि उसके जैसे सोशल मीडिया मंचों के लिए भारत एक बड़ा बाजार है पर इन मंचों को भी अपनी भूमिका का ख्याल रखना पड़ेगा।”
उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई ये टिप्पणियाँ मेरे विचार से सही समय पर आई हैं। केवल भारत ही नहीं, विश्व के अन्य लोकतांत्रिक देशों में चुनावी प्रक्रिया तथा अन्य विषयों पर सोशल मीडिया मंचों, खासकर फेसबुक, ट्विटर और गूगल की भूमिका को लेकर न केवल बहस होती रही है बल्कि इन लोकतांत्रिक देशों में कई बार सरकार या अन्य संस्थाओं द्वारा बनाई गई कमेटियों के सामने इन कंपनियों के पदाधिकारियों और प्रतिनिधियों से विस्तृत रूप से सवाल किए गए हैं। साथ ही पिछले तीन-चार वर्षों में तमाम देशों ने अपने हितों की रक्षा के लिए कानून पर विचार भी किए और उनका क्रियान्वन भी किया है। फ्रांस के साथ ही अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस विषय पर हाल के दिनों में मुखर रहे हैं।
हमारे देश में भी केंद्र सरकार ने नए आई टी नियम बनाकर इन कंपनियों की भूमिका की निगरानी और उन्हें जिम्मेदार बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है पर अभी तक इन कंपनियों की ओर से इन नियमों के पालन की बात पर बार-बार केवल बहाने बनाए गए हैं। ट्विटर एक तरह से सरकार के सामने खड़ा हो गया है, कभी इस बहाने कि; उस पर केवल अमेरिकी कानून और कंपनी की नीतियाँ ही लागू हो सकती हैं तो कभी यह कहते हुए कि वह सरकार के साथ बात कर रहा है।
इस विषय में दिल्ली उच्च न्यायलय की ताज़ी टिप्पणी सबसे महत्वपूर्ण है जिसमें न्यायालय ने ट्विटर को किसी भी तरह की कानूनी सुरक्षा देने से मना करते हुए यह कहा कि उसे भारतीय कानूनों का पालन करना ही होगा और अभी तक वह अपनी इन जिम्मेदारियों से कन्नी काटता रहा है। ऐसे में सरकार अपनी तरफ से कार्रवाई कर सकती है।
उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से आई टिप्पणियाँ यह साफ़ करती हैं कि न्यायालय भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इन तकनीकी कंपनियों की भूमिका को लेकर न केवल चिंतित है बल्कि सतर्क भी है। साथ ही दुनिया के अन्य देशों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सोशल मीडिया की भूमिका को लेकर देश, प्रशासन और नागरिकों में जागरूकता भी बढ़ रही है।
यह इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि पिछले दो-तीन वर्षों में भारतीय लोकतंत्र को किसी न किसी रूप में प्रभावित करने की बाहरी शक्तियों की मंशा की चर्चा सार्वजनिक तौर पर होती रही है। साथ ही अगले वर्ष कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होने वाले हैं जिनका परिणाम अगले लोकसभा चुनावों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। सरकार, प्रशासन और न्यायलय की अभी तक की भूमिका संतोषप्रद रही है और आशा है कि आनेवाले समय में ये संस्थाएंँ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह और प्रभावशाली ढंग से करेंगी।