Wednesday, October 16, 2024
Homeबड़ी ख़बरभारत नहीं, हिन्दू है आतंकियों का निशाना; हिन्दूफोबिया हर जगह विकृत रूप में दिख...

भारत नहीं, हिन्दू है आतंकियों का निशाना; हिन्दूफोबिया हर जगह विकृत रूप में दिख रहा है

हिन्दुओं के प्रतीकों पर लगातार हो रहे हमलों पर जब हम लिखते हैं तो हिन्दुओं का ही एक हिस्सा यह कहने लगता है कि 'हम तो सनातन हैं, हमें ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए'। जबकि, ज़रूरत है ज़्यादा सोचने की क्योंकि आंतरिक हमलों से निपटने के लिए हमारी तैयारी बिलकुल भी नहीं है।

इस बात के तमाम उदाहरणों के बाद भी कि वैश्विक पटल पर मज़हबी आतंकवाद का एक ही चेहरा है, उनके नारों में एक ही नाम है, उनके झंडों पर एक ही मज़हब की बात है, ‘इस्लामोफोबिया’ नामक शब्द मुख्यधारा में प्रचलित हो चुका है। जब ‘आतंक का कोई मज़हब नहीं होता’ जैसे सड़े तर्क को डिफ़ेंड करने से लोग थकने लगते हैं, तब वो हार कर सामने वाले को ‘इस्लामोफोब’ या ‘इस्लाम से नफ़रत करने वाला’ कह कर निकल लेते हैं। 

पुलवामा हमले को देखिए और उसके आत्मघाती आतंकी की बातें सुनिए तो आपको पता चलेगा कि कैसे आतंकियों के हमले का निशाना अब ‘भारत देश’ की जगह ‘गोमूत्र पीने वाले हिन्दू’ हो चुके हैं। अमरनाथ यात्रा पर हुए हमले की यादें भी ताजा ही होंगी। इन्हें पढ़कर ‘हिन्दूफोबिया’ किसी को नज़र नहीं आता। 

कॉन्ग्रेस की सरकारों ने ‘हिन्दू टेरर’ जैसी फ़र्ज़ी बातों को मेन्स्ट्रीम ज़रूर कर दिया था, लेकिन ‘बाप का, दादा का, भाई का, सब का’ बदला लेने वाले फैजल को कोई भी हिन्दूफोब कहने को तैयार नहीं होता! जबकि ऐसे हर आतंकी घटना पर फैजल, अहमद, मोहम्मद, नजीर, बाबर जैसे ही नामों की मुहर लगी होती है। आखिर ‘काफ़िर’ किसे कहते हैं आतंकी, क्या उसकी जड़ में धर्म से घृणा की बात नहीं है? 

पिछले चार सालों में जैसे मोदी सरकार को लोकप्रियता मिली है, और सेना ने जिस बहादुरी से इन पत्थरबाज़ों और आतंकियों को सैकड़ों की तादाद में जहन्नुम में ठूँसा है, उससे इन आतंकियों का निशाना देश और उसकी सेना नहीं, ‘गाय का पिशाब पीने वाले हिन्दू’ और ‘काफ़िर हिन्दुस्तानी’ हो गए हैं। ये लड़ाई अब हिन्दुओं के ख़िलाफ़ है, न कि स्टेट के। 

और वैसे भी, अगर ये आतंकी लड़ाई स्टेट के ख़िलाफ़ थी तो कश्मीरी हिन्दुओं को शिव और सरस्वती की भूमि को छोड़कर भागने को क्यों मजबूर होना पड़ा? जबकि, असल बात तो यह है कि भारत इन इस्लामी आतंकियों के लिए ‘फ़ाइनल फ़्रंटियर’ रहा है। इस पर फ़तह पाने के लिए जो ‘गजवा-ए-हिन्द’ का नारा लगता है, वो क्या पोलिटिकल है या फिर पूरी तरह से मज़हबी आतंकवाद का अश्लील प्रदर्शन?

हिन्दुओं में ग़ज़ब की सहनशीलता है, इसलिए हम इन बातों पर चर्चा भी करते हैं तो दबी आवाज में क्योंकि बुद्धिजीवियों और पत्रकारों का समुदाय विशेष हमें ‘बिगट’ और ‘कम्यूनल’ कहने की फ़िराक़ में बैठा रहता है। जो मानसिकता हमारे समाज में बुरी तरीके से फैली हुई है, उसे स्वीकारने में भी हम नरमी बरतते हैं क्योंकि कोई आकर ‘अदरक-लहसुन तहज़ीब’ का हवाला दे जाता है। 

लेकिन क्या ये आतंक की लड़ाई कश्मीर की पोलिटिकल आज़ादी तक ही सीमित है? फिर मंदिरों को क्यों तोड़ा जाता है? सरस्वती पूजा के जुलूस पर पत्थरबाज़ी क्यों होती है? दुर्गापूजा के विसर्जन पर दंगे क्यों होते हैं? रामनवमी के मौक़े पर मुस्लिम बहुल इलाके से गुज़रते हुए चप्पल क्यों फेंका जाता है? क्या ये महज़ कुछ लोगों की, कुछ ‘मिसगाइडेड यूथ’ का पागलपन है, या इसमें ज़्यादा लोगों की सहमति है? इसकी भर्त्सना की आवाज़ में नमाज़ के लाउडस्पीकर वाली बुलंदी क्यों नहीं?

आखिर ऐसा क्या हो गया है इस समाज में कि मोदी के आने के बाद ‘समुदाय विशेष’ के लोगों में ‘वन्दे मातरम्’ न गाने की, ‘भारत माता की जय’ न बोलने की संक्रामक बीमारी फैलती ही जा रही है? और इसका जस्टिफिकेशन ये कह कर दिया जाता है कि ‘इस तरह’ का राष्ट्रवाद ज़हर है? राष्ट्रवाद ज़हर है? फिर तो राष्ट्र ही ज़हरीला हो गया, यहाँ ऐसे लोग कर क्या रहे हैं? ये ‘इस तरह’ आखिर है क्या? 

इन लोगों को, ये जो भी हैं और जिनसे भी इन्हें समर्थन मिलता है, ये बात स्वीकारने में किस बात की लज्जा आती है कि ये भारत देश के नागरिक हैं। इनकी पहली पहचान वही है। धर्म देश के विचार को कभी भी लील नहीं सकता, ख़ासकर तब जब वो धर्म के आधार पर ही बना देश न हो।

ये हिन्दूफोबिया नहीं तो और क्या है कि केन्द्रीय विद्यालय में हो रही सद्विचारों वाली प्रार्थना में हिन्दू धर्म दिखने लगता है? नफ़रत का भाव तर्क नहीं देखता, वो बस नफ़रत करने लगता है। जब आप हर बात में हिन्दू-मुस्लिम खोज लेंगे तो आपको अच्छी बातें भी इसलिए बुरी लगने लगेंगी क्योंकि वो संस्कृत में है। ये तर्क नहीं, धर्म से नफ़रत करना है।

जबकि जिन हिन्दुओं को इस्लामोफोबिक कह कर ज्ञान दे दिया जाता है वो दिन में पाँच बार, अपनी सुबह की कच्ची नींद टूटने से लेकर रात को सोने तक, लाउडस्पीकर पर दूसरे धर्म का नारा बर्दाश्त करता है। बर्दाश्त इसलिए करता है क्योंकि ‘अदरक-लहसुन’ तहज़ीब का अदरक वाला हिस्सा उसने सर पर उठा रखा है, और लहसुन वाले भूल चुके हैं अपनी ज़िम्मेदारी। 

साथ ही, आप सोशल मीडिया पर खोजते रहिए कि इन आतंकी हमलों पर कितने लोग खुलकर अपनी बातें रखते हैं। आप गिन लीजिए कि ऐसे लोगों का प्रतिशत क्या है जिनका नाम आतंकियों के नाम वाले मज़हब से मिलता है। गिन लीजिए कि ऐसे नाम वाले कितने लोग ऐसे हमलों के बाद ‘हा-हा’ रिएक्शन देकर हँसते हैं। 

ये अश्लील हँसी हमले के समर्थन से ज़्यादा हमलावरों के हिन्दूफोबिक विचारों को हवा देने के लिए है। ये कोई सामान्य बात नहीं है कि किसी देश की बहुसंख्यक जनता के धर्म, प्रतीक चिह्नों, संस्कृति, परम्पराओं का आए दिन मजाक उड़ाया जाता है और एक तय रास्ते से उनके त्योहारों को निशाना बनाया जाता है। 

सोशल मीडिया पर ही कई लोग जब इस तरह की घृणा और हिन्दुओं के प्रतीकों पर लगातार हो रहे हमलों पर लिखते हैं तो हिन्दुओं का ही एक हिस्सा यह कहने लगता है कि ‘हम तो सनातन हैं, हमें ज़्यादा नहीं सोचना चाहिए’। जबकि, ज़रूरत है ज़्यादा सोचने की क्योंकि आंतरिक हमलों से निपटने के लिए हमारी तैयारी बिलकुल भी नहीं है। 

हिन्दुओं ने कभी दूसरे मज़हबों को अपना निशाना नहीं बनाया, बल्कि ऐतिहासिक तौर पर निशाना बनते ही रहे हैं। साथ ही, आज भी निशाने पर वही हैं। चाहे वो सीधे तौर पर संकटमोचन मंदिर में ब्लास्ट हो, अमरनाथ यात्रा पर हमला हो या फिर पुलवामा में सीआरपीएफ़ के जवानों पर, ये हमला अब भारत नहीं, भारत के हिन्दुओं पर है। 

अब उनके विचारों का विषैलापन बढ़ता जा रहा है क्योंकि सीमा पर सेना अपना काम बहुत अच्छे से कर रही है। इसलिए अब आत्मघाती हमले से पहले मरने वाला आतंकी हिन्दुओं को मारकर जन्नत पहुँचने की बातें करता है। इसे हम महज़ आतंकी वारदात मानकर चुप नहीं बैठ सकते, ये तय तरीके से हिन्दुओं तक, और समर्थन देने वाले कट्टरपंथियों तक, पहुँचाने की है कि ये हमला सेना पर नहीं भारत के गाय पूजने वाले हिन्दुओं पर है। 

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

बच्चे के सामने सेक्स करना POCSO का अपराध, नंगा होना माना जाएगा यौन उत्पीड़न के बराबर: केरल हाई कोर्ट का फैसला, जानिए क्या है...

केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी नाबालिग के सामने नग्न होकर सेक्स करना POCSO के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।

कार में बैठ गरबा सुन रहे थे RSS कार्यकर्ता, इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ ने घेर कर किया हमला: पीड़ित ने ऑपइंडिया को सुनाई आपबीती

गुजरात के द्वारका जिले में आरएसएस स्वयंसेवक पर हमला हुआ, जिसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वह अपनी कार में गरबा सुन रहा था।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -