Saturday, July 27, 2024
Homeविचारसामाजिक मुद्दे‘हम दो, हमारे दो’ कहने से मजहब विशेष और लिबरलों को अपने ऊपर हमला...

‘हम दो, हमारे दो’ कहने से मजहब विशेष और लिबरलों को अपने ऊपर हमला होता क्यों दिखता है?

समुदाय विशेष और उनके ठेकेदारों के लिए जनसंख्या नियंत्रण तो हमेशा से ही धर्म पर हमला रहा है। लेकिन, जो लिबरल कल तक इसे प्रोग्रेसिव सोच बता रहे थे उनके लिए भी जब से मोदी ने जनसंख्या नियंत्रण की बात की है 'छोटा परिवार, सुख का आधार' नहीं रहा।

सुहागरात की रात। फूल-मालाओं से सजा बिस्तर। चन्दन-टीका लगाया एक शख्स अपनी नई-नवेली दुल्हन के साथ आता है। दुल्हन भी सोलह श्रृंगार किए और सिंदूर से मॉंग भरे हुए। कुछ पल में दूल्हा तकिया सरकाता है तो कंडोम का एक पैकेट नजर आता है।

चलिए अब पर्दा हटाते हैं। यह वीडियो अप्रैल 2006 में आया था। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने परिवार नियोजन यानी फैमिली प्लानिंग के प्रति जागरुकता बढ़ाने के मकसद से इसे तैयार किया था। आपने कभी किसी हिंदू की भावना इस वीडियो से आहत होते सुनी? किसी साधु-संत को इसे धर्म पर हमला बताते हुए सुना? या फिर किसी नेता को गरजते देखा-सुना कि यह वीडियो हिंदुओं के खिलाफ साजिश है?

असल में, किसी ने इस बात पर गौर भी नहीं किया होगा कि इस प्रचार में हिंदू वेशभूषा में ही नवविवाहित जोड़े को क्यों दिखाया गया होगा। यह गौर करने की चीज भी नहीं है। असल चीज है इसके पीछे छिपा संदेश और वह है जनसंख्या नियंत्रण। यह समझना कि छोटा परिवार सुख का आधार होता है।

ऐसे एड वीडियो में हिन्दू परिवार आज से नहीं बल्कि वर्षों से दिखाए जाते रहे हैं

अब सिक्के के दूसरे पहलू को देखते हैं। असम सरकार ने निर्णय लिया है कि दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। इसका विरोध होना शुरू हुआ। एक तो समुदाय विशेष के ठेकेदारों को लगा कि इससे उनके मजहब पर निशाना साधा जा रहा है। दूसरा बड़ा कारण यह कि असम में भाजपा की सरकार है। ‘ऑल इंडिया इस्लामिक डेमोक्रेटिक फ्रंट’ के सुप्रीमो और सांसद बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि केवल दो बच्चे पैदा करना इस्लाम के ख़िलाफ़ है। उन्होंने पूछा कि भला इस दुनिया में आने वाले को कौन रोक सकता है?

इस विवादित बयान के जवाब में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने पूछा कि क्या बदरुद्दीन जैसे लोग इस्लाम को बच्चे पैदा करने की फैक्ट्री समझते हैं? उन्होंने ईरान और इंडोनेशिया जैसे इस्लामिक मुल्क़ों का उदाहरण दिया,जहाँ जनसंख्या नियंत्रण के लिए कारगर उपाय किए गए हैं। अगर असम की ही बात करें तो वहाँ 60% से भी अधिक जनसंख्या हिन्दू है। नया नियम पूरे राज्य की जनता पर लागू होता है। फिर बदरुद्दीन जैसों को ही दिक्कत क्यों हो रही है? अगर एचआईवी एड्स के ख़िलाफ़ अभियान में बनाए गए वीडियो में किसी हिन्दू को दिखाया जाता है तो इसका अर्थ ये थोड़े है कि एचआईवी एड्स केवल हिन्दुओं को होता है, मुस्लिमों को नहीं?

‘छोटा परिवार-सुखी परिवार’, ‘हम दो-हमारे दो’ को लेकर न जाने कितने ही एड बने होंगे। कुछ सरकारी तो कुछ गैर सरकारी संगठनों की ओर से। पाठ्यक्रम में बच्चों को चित्र के माध्यम से छोटे परिवार की महत्ता समझाई जाती रही है। अमूमन ऐसे तमाम वीडियो, चित्रों में दर्शाए गए लोगों की वेशभूषा हिंदुओं जैसी होती है। लेकिन, कभी कोई बवाल नहीं हुआ। ऐसा भी नहीं है कि परिवार नियोजन की बात बीजेपी या मोदी के सरकार के आने से शुरू हुई है। आजादी के बाद ही जनसंख्या विस्फोट से होने वाली समस्या को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी। 1952 में पहला परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू भी हो गया था। साल दर साल इसमें बदलाव भी होते रहे। लेकिन, जब भी जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कानून बनाने की बात होती है या परिवार नियोजन को लेकर कोई बात कही जाए और उसमें भूल से भी समुदाय विशेष के लोगों की तस्वीर हो, तो उसे धर्म विशेष के खिलाफ साजिश मान ली जाती है।

आज तक किसी ने ये तो नहीं पूछा कि ‘दो बूँद ज़िंदगी की’ वाले एड में साड़ी पहने हिन्दू महिलाओं को ही क्यों दिखाया जाता है, बुर्का पहनी महिलाओं को क्यों नहीं? किसी ने ये भी नहीं पूछा कि क्या सिर्फ़ हिन्दू बच्चों को ही पोलियो होता है, या फिर हिन्दू ही पोलियो मिटाने प्रति जागरूक नहीं हैं? ऐसा इसीलिए, क्योंकि ऐसे एड किसी बीमारी अथवा सामाजिक बुराई के प्रति लोगों को जागरूक बनाते हैं और उसके ख़िलाफ़ अभियान में सहायक सिद्ध होते हैं। ख़ास बात यह कि ये बीमारियाँ मजहब देख कर नहीं आतीं।

इसका सीधा अर्थ है कि कुछ लोग सभी चीजों को अपने फायदे के लिए मजहबी चश्मे से देखते हैं और लोगों को उकसाते हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि देश के हित में क्या है। यही कारण है कि असम सरकार के एक फैसले को समुदाय विशेष के विरोध के तौर पर पेश करने की कोशिश हो रही है।

यही कारण है कि असम सरकार के ​फैसले का विरोध करने वाले लोगों की मंश को लेकर भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने पूछा कि बदरुद्दीन जिस विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, क्या मुस्लिम महिलाएँ भी उससे इत्तेफ़ाक़ रखती हैं? स्वामी ने पूछा कि क्या मुस्लिम महिलाएँ, जिनमें बदरुद्दीन की पत्नी भी शामिल है, 7-8 बच्चे 9 महीने कोख में रख कर पैदा करने की इच्छुक हैं? या फिर उनका मत मायने नहीं रखता? उन्हें भी तो इसके लिए काफ़ी दर्द और परेशानी से गुजरना पड़ता है। 13 विधायकों वाली पार्टी के अध्यक्ष बदरुद्दीन का साफ़ मानना है कि सरकार कुछ भी नियम-क़ानून बनाए, इससे मुस्लिमों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला।

वैसे, फैमिली प्लानिंग लिबरलों के लिए कल तक एक प्रोग्रेसिव सोच थी। लेकिन, इस बार स्वतंत्रता दिवस पर मोदी ने लाल किले से देश को संबोधित करते हुए जनसंख्या नियंत्रण की बात क्या कर दी, अब यह लिबरलों के लिए अछूत टॉपिक हो गया। पीएम मोदी ने जनसंख्या विस्फोट को लेकर लोगों को चेताया था। उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण को देशभक्ति से जोड़ते हए कहा था कि इस संकट को समझते हुए जो लोग अपने परिवार को सीमित रखते हैं, वो अभिनन्दन के पात्र हैं। उनका सीधा कहना था कि घर में आने वाले बच्चे को लेकर लोगों को पहले यह सोचना चाहिए कि क्या वो इसके लिए तैयार हैं?

बस तभी से ये प्रोग्रेसिव सोच अचानक से ‘मुस्लिमों पर हमला’ हो गया और पीएम द्वारा इसकी चर्चा करते ही इसका महत्व जाता रहा। ये हमारे देश के इलीट गिरोह की सोच है। खैर, हिन्दू आज तक आहत नहीं हुए तभी पोलियों से लेकर कई बीमारियाँ या तो लगभग ख़त्म हो चुकी हैं या फिर ख़त्म होने की ओर हैं। जो लोग इन चीजों से आहत होकर इसे अपने मजहब पर हमला बता रहे हैं, उनके समाज और समुदाय में ‘तीन तलाक़’ जैसी कई मजहबी कुरीतियाँ पल रही थीं, जिसे हटाने के लिए भी सरकार को ही आगे आना पड़ा। अगर हर सरकारी योजना, पहल और फ़ैसले को मजहब के आधार पर तौला जाएगा और फिर शरिया क़ानून के मुताबिक़ परखा जाएगा तो फिर हो गया विकास!

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘ममता बनर्जी का ड्रामा स्क्रिप्टेड’: कॉन्ग्रेस नेता अधीर रंजन ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र, कहा – ‘दिल्ली में संत, लेकिन बंगाल में शैतान’

अधीर ने यह भी कहा कि चुनाव हो या न हो, बंगाल में जिस तरह की अराजकता का सामना करना पड़ रहा है, वो अभूतपूर्व है।

जैसा राजदीप सरदेसाई ने कहा, वैसा ममता बनर्जी ने किया… बीवी बनी सांसद तो ‘पत्रकारिता’ की आड़ में TMC के लिए बना रहे रणनीति?...

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कुछ ऐसा किया है, जिसकी भविष्यवाणी TMC सांसद सागरिका घोष के शौहर राजदीप सरदेसाई ने पहले ही कर दी थी।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -