Saturday, July 27, 2024
Homeराजनीतिबिहार में 10 नवंबर को क्या होगा? उलझे समीकरणों के बीच जमीन के संकेत...

बिहार में 10 नवंबर को क्या होगा? उलझे समीकरणों के बीच जमीन के संकेत स्पष्ट हैं

इस चुनाव में किसी की लहर जमीन पर नहीं। लिहाजा, हर सीट के अपने-अपने समीकरण हैं। 40 की करीब सीटें ऐसी हैं, जहाँ NDA या RJD के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत लोजपा, जाप, रालोसपा और निर्दलीय तय करेंगे या यूँ कहें कि इनमें से कुछ सीटें अन्य के खाते में जानी तय है।

बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए तीन चरणों में हो रहा चुनाव अब अंतिम दौर में है। आखिरी चरण का मतदान 7 नवंबर को होना है। 10 नवंबर को नतीजे आएँगे। ऐसे में एक सवाल जो बार-बार लोग पूछ रहे हैं और जिसकी हम भी लगातार तलाश कर रहे हैं, वह है- किसकी सरकार बनने वाली है?

कितनी सीटें फँसी हैं?

असल में इस चुनाव में किसी की लहर जमीन पर नहीं दिखती। लिहाजा, हर सीट के अपने-अपने समीकरण हैं। 40 की करीब सीटें ऐसी हैं, जहाँ एनडीए या राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन की जीत लोजपा, जाप, रालोसपा और निर्दलीय तय करेंगे या यूँ कहें कि इनमें से कुछ सीटें अन्य के खाते में जानी तय है। मसलन, जमुई की चकाई सीट पर निर्दलीय सुमित सिंह। सीतामढ़ी की सुरसंड सीट से लोजपा के अनिल चौधरी। बेनीपुर में लोजपा के ही कमल सेठ। हसनपुर में पप्पू यादव की जाप के अर्जुन यादव। शिवहर में जाप के मोहम्मद वामिक और बसपा के संजीव कुमार गुप्ता। हरलाखी में निर्दलीय मंदाकिनी चौधरी वगैरह, वगैरह…

चुनाव के तीन पिच

क्रिकेट की भाषा में कहें तो यह चुनाव तीन पिच पर लड़ी जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण किसी के पक्ष में लहर नहीं होना है। पहली पिच तेजस्वी यादव की है। वे चुनाव को रोजगार के मुद्दे पर केंद्रित करने की लगातार कोशिश करते रहे हैं पर अभी तक इसमें पूरी तरह सफल नहीं हुए हैं। नीतीश कुमार इसे लालू-राबड़ी शासनकाल के कथित जंगलराज की पिच पर लड़ना चाहते हैं, लेकिन अब उनके खिलाफ नाराजगी भी दिखती है। बीजेपी इसे मोदी सरकार के कामकाज के इर्द-गिर्द केंद्रित रखने की कोशिश में है। लेकिन यह फॉर्मूला भी हर सीट पर कारगर नहीं है।

यानी, जमीन पर उम्मीदवार का निजी प्रभाव और छवि इस बार सबसे असरकारी है। जो लगातार 10-15 साल से विधायक हैं, उनमें से ज्यादातर मुश्किल मुकाबले में फँसे हैं। चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें कई जगह वोटरों का विरोध झेलना पड़ा है। जिन जगहों पर प्रमुख दलों ने फ्रेश चेहरे या पिछली बार हार गए उम्मीदवार को मौका दिया है, वे थोड़ी बेहतर स्थिति में हैं। इसका कारण यह है कि नीतीश सरकार के इस 5 साल को हर कोई निराशाजनक मान रहा है।

मोदी, नीतीश और तेजस्वी का कितना प्रभाव है?

यादव और मुस्लिम मतदाता ज्यादातर सीटों पर राजद के पीछे गोलबंद हैं। वे मानकर बैठे हैं कि यह फिर से सत्ता में प्रभाव में आने का अवसर है और तेजस्वी यादव का मुख्यमंत्री बनना तय है। तेजस्वी यादव अपनी सभाओं के लिए ऐसी जगह भी चुन रहे हैं, जिसके आसपास इन मतदाताओं का बाहुल्य हो। इसका असर उनकी सभाओं में भीड़ के तौर पर दिख भी रहा है। लेकिन, इस वर्ग के लोगों को भी उनके रोजगार के वादे पर भरोसा नहीं है।

नीतीश कुमार को लेकर नाराजगी दिखती है। लेकिन, उन्होंने जो अपना वोट बैंक इन सालों में बनाया है, वह ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में है। ये वोटर साइलेंट हैं। महिलाओं में अब भी उनका असर बना हुआ है। महादलित और अतिपिछड़ों के बीच उनकी पकड़ थोड़ी कमजोर हुई है।

मोदी का प्रभाव बना हुआ है। बिहार सरकार में बीजेपी के कोटे से मंत्री रहे कई उम्मीदवारों ने भी हमें ऑफ द रिकॉर्ड बताया कि उनकी उम्मीदें मोदी की सभा पर टिकी है। कोरोना के कारण पैदा हुए संकट के दौरान ग्रामीण इलाकों में लोगों को जो सरकारी सहायता मिली है, उसका भी असर है। मोदी का चेहरा कई सीटों पर वोटरों को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर भी लामबंद कर रहा है।

बची हुई 200 सीटों पर क्या हो सकता है?

अन्य के प्रभाव वाली 40 सीटों को छोड़ दें तो इस चुनावी लड़ाई में बीजेपी सबसे आगे दिखती है। राजद और जदयू उसके पीछे। एनडीए के लिए अच्छी बात यह है कि नीतीश से नाराजगी के बावजूद जदयू का प्रदर्शन कॉन्ग्रेस के स्तर तक गिरने की कोई संभावना नहीं दिखती। राजद और कॉन्ग्रेस 2015 के नंबर के आसपास पहुँचती नहीं दिख रही।

तेजस्वी की इतनी चर्चा होने की एक बड़ी वजह यह है कि कुछ महीने पहले तक यह चुनाव एकतरफा लग रहा था, जिसे उन्होंने लड़ाई में बदल दी है और जदयू से राजद स्पष्ट तौर पर आगे दिखती है। राजद के पक्ष में लहर नहीं होने की बात इससे भी समझी जा सकती है कि हसनपुर से लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव की जीत इस सीट पर मतदान के बाद भी पक्की नहीं बताई जा रही। इसी तरह सुरसंड सीट पर लालू परिवार के खासमखास अबू दुजाना को इलाके में विरोध तक झेलना पड़ा है और वे भी मुश्किल में हैं। मुस्लिम बहुल केवटी सीट पर बीजेपी प्रत्याशी मुरारी मोहन झा की छवि के आगे माई समीरकण टूटता दिख रहा है और मतदान तक यही ट्रेंड बना रहा तो राजद के बड़े नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के लिए जीत मुश्किल हो जाएगी।

ई बिहार छै, थाह नै लागत

कल 3 नवंबर को बिहार की जिन सीटों पर मतदान हुआ, उसमें एक मधुबनी भी थी। शहर में सन्नाटा पसरा था और इक्का-दुक्का दुकानें ही खुली थीं। राजद के समीर महासेठ को यहाँ मतदान से पहले बढ़त दिख रही थी। मतदान के बाद वीआईपी के सुमन महासेठ के जीतने की भी चर्चा होने लगी है।

3 नवंबर को ही मधुबनी जिला मुख्यालय से कुछ किलोमीटर दूर कलुआही में चहल-पहल थी। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय की सभा हुई। लेकिन, इसी दिन इसी जिले के हरलाखी में नीतीश कुमार को विरोध झेलना पड़ा।

कलुआही से सटे ढंगा गाँव के काली मंदिर के पास सत्यनारायण मिश्र मिले। वे कहते हैं, “उम्हर जरैल, दामोदरपुर सब आ इम्हर हरिपुर ढंगा सब युगेश्वर झा का बनायल इलाका छै।” उनके कहने का मतलब था कि बेनीपट्टी विधानसभा क्षेत्र के जरैल, दामोदरपुर, ढंगा जैसे इलाके युगेश्वर झा का गढ़ रहा है। दिवंगत युगेश्वर झा इस सीट से कॉन्ग्रेस की टिकट पर लड़ रहीं निवर्तमान विधायक भावना झा के पिता थे। पिछली बार उन्होंने बीजेपी के विनोद नारायण झा को करीबी मुकाबले में इसी इलाके में मिले इकतरफा वोट की बदौलत हराया था।

सत्यनारायण मिश्र ने अपने आँगन में ‘हर घर नल जल’ योजना के तहत लगा नल दिखाया, साथ ही बताया कि इसमें पानी अभी नहीं आता। मैंने उन्हें बगल के गाँव में पानी आने का हवाला दिया तो उन्होंने बताया कि कई बार सुना है कि अब पानी शुरू हो जाएगा लेकिन आज तक यहाँ पानी नहीं आया। मिश्र का दावा है कि वे मोदी समर्थक हैं और बीजेपी को ही वोट देंगे। पर वे आश्वस्त नहीं हैं कि बीजेपी यह सीट निकाल ही लेगी।

हालाँकि उनका मानना है कि अब उनके गॉंव में एकतरफा कॉन्ग्रेस वाला माहौल नहीं रहा। उनके गाँव के ज्यादातर ब्राह्मणों का झुकाव भावना झा की तरफ है। लेकिन, अन्य जतियाँ बीजेपी उम्मीदवार विनोद नारायण झा का खुलकर समर्थन कर रही हैं। इसकी वजह कोरोना के कारण पैदा हुए संकट के दौरान मिली सरकारी सहायताएँ हैं।

मंदिर के पास ही मिले महेंद्र झा कहते हैं, “ई बिहार छै बाबू, थाह नै लागत। लोग किछ कहत वोट ककरो द देतै।” यानी, ये बि​हार है। लोग बात किसी की करते हैं और वोट किसी को देते हैं।

उनकी बातें आसानी से खारिज नहीं की जा सकतीं। मोतिहारी के गाँधी मैदान में कैमरे के सामने जो युवा रोजगार और बदलाव की बातें कर रहे थे, उनमें से कई कैमरा बंद होते ही हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी का समर्थन करने की बात करने लगे थे। ग्रामीणों इलाकों में लोग कैमरे के सामने आने से बचते हैं। बिना कैमरे के उनसे बात करिए तो वे आपको जंगलराज की याद दिलाने लगते हैं। इससे समझा जा सकता है कि बदलाव और रोजगार का विपक्ष का वादा उन्हें नहीं लुभा रहा। इसी तरह खासकर, यादव विकास के दावों को खारिज कर लालू प्रसाद यादव को फँसाने की बात करने लगते हैं।

…तो क्या होगा?

असल में मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया में जो बातें आ रही हैं, वह मुखर वोटरों का है। ये शहरों में रहते हैं। अगड़ी जातियों अथवा यादव होते हैं। इनकी गोलबंदी साफ दिखती है। पर ग्रामीण इलाकों में जहाँ वोटिंग ज्यादा होती है, वहाँ के वोटर साइलेंट हैं। बीजेपी के एलजेपी के साथ सरकार बना लेने की कोई संभावना नहीं दिखती। एनडीए ही बहुमत के करीब पहुँचती फिलहाल दिख रही है। अन्य के निर्णायक वाली सीटों के अंतिम नतीजे ही तय करेंगे कि एनडीए को मजबूत बहुमत मिलेगा या या फिर बहुमत से दूर नजर आ रहा विपक्ष और मजबूत होगा।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

बांग्लादेशियों के खिलाफ प्रदर्शन करने पर झारखंड पुलिस ने हॉस्टल में घुसकर छात्रों को पीटा: BJP नेता बाबू लाल मरांडी का आरोप, साझा की...

भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ प्रदर्शन करने पर हेमंत सरकार की पुलिस ने उन्हें बुरी तरह पीटा।

प्राइवेट सेक्टर में भी दलितों एवं पिछड़ों को मिले आरक्षण: लोकसभा में MP चंद्रशेखर रावण ने उठाई माँग, जानिए आगे क्या होंगे इसके परिणाम

नगीना से निर्दलीय सांसद चंद्रशेखर आजाद ने निजी क्षेत्रों में दलितों एवं पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू करने के लिए एक निजी बिल पेश किया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -