Friday, April 19, 2024
Homeराजनीतिजंगलराज का डर ऐसा कि लालू से अपने भी काट रहे कन्नी, 'मोदी के...

जंगलराज का डर ऐसा कि लालू से अपने भी काट रहे कन्नी, ‘मोदी के हनुमान’ कहीं चुस्त तो कहीं सुस्त

लालू यादव इस बार सीन से पूरी तरह गायब हैं। न उनके कथित सामाजिक न्याय की चर्चा हो रही, न विपक्ष उनकी तरह बीजेपी और संघ का 'डर' बेच रहा है।

बिहार का इस बार का विधानसभा चुनाव कई मामलों में अलग दिख रहा है। मसलन, 90 के बाद यह पहला चुनाव है जिसकी चर्चा के केंद्र में लालू प्रसाद यादव नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो 23 अक्टूबर को राज्य में पहली चुनावी रैली करने वाले हैं, उन पर विपक्ष सीधे हमले से बच रहा है।

राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन के उम्मीदवार भी सार्वजनिक रूप से बेरोजगारी, पलायन और विकास की बात कर रहे हैं। वे उस कथित सांप्रदायिकता का डर भी वोटरों को नहीं दिखा रहे हैं, जिसे लालू पहले आडवाणी और बाद में मोदी का ‘डर’ दिखाकर बेचा करते थे। न ही लालू के कथित सामाजिक न्याय की कोई चर्चा हो रही है।

विपक्ष के निशाने पर नीतीश कुमार हैं और एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ रही चिराग पासवान की लोजपा के निशाने पर भी। पर चीजें इतनी भी सुलझी नहीं हुई है। एक सीट पर जो किसी उम्मीदवार की ताकत दिखती है, दूसरी सीट पर उसका लाभ नहीं दिख रहा। मसलन –

  • चकाई से सुमित सिंह बतौर निर्दलीय मैदान में हैं। चकाई ही नहीं आसपास की सीटों पर भी आप उनका नाम सुनेंगे। लोगबाग बताते हैं कि पिछला चुनाव हारने के बाद भी वे लगातार सक्रिय रहे। उनकी चुनावी संभावनाएँ बेहतर बताई जाती है। पर जमुई से रालोसपा के टिकट पर मैदान में उतरे अजय प्रकाश को पिछले चुनाव में हार के बाद भी इलाके में लगातार सक्रिय होते रहने का लाभ नहीं दिखता है। इस सीट पर यह चर्चा है कि उनको वोट देने से बीजेपी को नुकसान हो जाएगा। दिलचस्प यह है कि सुमित और अजय भाई हैं। लेकिन, चकाई के जदयू के खाते में होने की वजह से सुमित के पक्ष में यह काम करता दिख रहा है।
  • लखीसराय से मंत्री विजय कुमार सिन्हा को लेकर बीजेपी के भीतर भी नाराजगी थी। लेकिन उनकी उम्मीदवारी के ऐलान के बाद यह चर्चा आम है कि उनको वोट नहीं देने का नुकसान बीजेपी को हो सकता है।
  • झाझा की सीट पर पिछला चुनाव हार चुके दामोदर रावत को बढ़त दिखती है। चुनाव हारने से पहले रावत नीतीश सरकार में मंत्री हुआ करते थे। उस समय इलाके में कुछ काम हुए थे। उसकी चर्चा लोग करते हैं। हारने के बावजूद जदयू के सरकार में होने का लाभ भी रावत को मिला। यहाँ माई समीकरण प्रभावी है, लेकिन कई मजबूत यादव उम्मीदवारों के कारण उनका वोट बँटने से रावत को फायदा मिलने की बात कही जा रही है।
  • उम्मीदवारों का चेहरा कितना महत्वपूर्ण है यह जमुई में श्रेयसी सिंह का होना बताता है। अरसे से यहाँ की राजनीति जय प्रकाश यादव और नरेंद्र सिंह के बीच बँटी रही है। इस राजनीति से निकलने के लिए मतदाता श्रेयसी को अवसर के तौर पर देख रहे हैं। खासकर, महिलाओं और युवाओं के बीच उनका होना काफी असर डाल रहा है।
  • इसी तरह बीजेपी से लोजपा में आए रवींद्र यादव को वैसा लाभ झाझा में नहीं है, जैसा दिनारा में राजेंद्र सिंह के लिए दिखता है। यादव को दबंग छवि का नुकसान दिख रहा है। बीजेपी और संघ के कैडर भी खुलकर उनके साथ नहीं हैं। लेकिन, राजेंद्र सिंह को जमीन पर बीजेपी और संघ के कार्यकर्ताओं का खुलकर सम​र्थन मिल रहा है।

भले चिराग पासवान खुद को ‘मोदी का हनुमान’ बताए और बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व उनके दावों को खारिज कर रहा है, पर जमीन पर बीजेपी के उम्मीदवार भी मानते हैं कि लोजपा के उम्मीदवार नहीं उतारने का लाभ उन्हें है। लेकिन यह भी सच है कि हर सीट पर जदयू को लोजपा के उम्मीदवार का होना नुकसान भी नहीं पहुँचा रहा।

अब फिर से लौटकर उस सवाल पर आते हैं कि लालू चर्चा से क्यों गायब हैं? रिटायर्ड डॉक्टर और जमुई जिले में महादलितों तथा आदिवासियों के बीच काम करने वाले एसएन झा ने आपइंडिया को बताया, “इसका बड़ा कारण यह है कि लालू यादव की चर्चा होते ही बहस सिमट कर 1990 से 2005 के समय पर आ जाती है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि उनके आने के बाद ओबीसी वर्ग का उभर हुआ था। लेकिन तब विकास का कोई काम नहीं हुआ और गुंडई बहुत बढ़ गई थी। कोई लौटकर फिर से उसी समय में नहीं जाना चाहता है। पर लालू यादव का नाम आते ही जंगलराज की चर्चा होने लगती है। इसलिए इस बार विपक्ष चुनाव नीतीश कुमार के खिलाफ केंद्रित करने की कोशिश में है। नीतीश कुमार के टाइम में काम हुआ है। लेकिन अब लोग विकल्प भी खोजने लगे हैं, क्योंकि उनका ये टर्म बहुत अच्छा नहीं रहा है।”

झाझा के 45 साल के अशोक यादव ने बताया, “नीतीश कुमार ने काम तो किया है। सड़क सब बढ़िया कर दिए हैं। बिजली भी 18-20 घंटे रहता है। पहले रोड चलने लायक नहीं था। शाम होने के बाद झाझा बाजार से कोई अपने गाँव तरफ जाने का हिम्मत नहीं कर पाता था। अब 12 बजे, 1 बजे रात तक आराम से लोग चला जाता है। कोई डर नहीं होता। नल जल वाला पानी भी आना शुरू हो गया है। बहुत काम हुआ है।”

वैसे तो कई चुनावों से यह लग रहा है कि लालू के माई (मुस्लिम+यादव) समीकरण में दरार पड़ चुकी है। तो क्या यह दरार और गहरी हुई है? लखीसराय के सुधांशु श्रीवास्तव कहते हैं, “देखिए मुस्लिम लोग तो आज भी उसी को वोट देगा जो बीजेपी के खिलाफ मजबूत है। लेकिन, यादव भी बाइ एंड लार्ज अभी राजद के साथ ही है। ये लोग भले नीतीश कुमार का प्रशंसा कर दे पर अंत में वोट लालटेन को ही देगा।”

जमुई के ​निवर्तमान विधायक और राजद के उम्मीदवार विजय प्रकाश कहते हैं, “देखिए लालू जी हमेशा हमारे नेता रहेंगे। लेकिन, अभी तेजस्वी जी सब देख रहे हैं। वे भी युवा हैं और युवा लोगों का जमाना है। नीतीश कुमार 15 साल से हैं। लेकिन कोई फैक्ट्री नहीं खुला। नौकरी नहीं है। सबको कमाने के लिए बाहर जाना पड़ता है। युवा लोग ये सब देख रहा। रोड का इतना बात हो रहा आप देहात में जाकर देखिए क्या हाल है। खाली बाहर-बाहर सब चमक रहा है।”

एक चीज तो स्पष्ट है कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता और असर पर इस बार काफी सवाल हैं। लेकिन मोदी की स्वीकार्यता और प्रभाव अब भी बनी हुई है। इसलिए विपक्ष भी इस लड़ाई को नीतीश कुमार के आसपास ही समेट कर रखना चाहता है।

वैसे जमीन के उपर फिलहाल लहर जैसी कोई चीज नहीं दिख रही। विकास की बातें भले हो रही हैं पर निर्णायक उम्मीदवार का चेहरा और जातिगत समीकरण ही हैं। यह चर्चा जमीन पर जोर-शोर से है कि लोजपा के कुछ कैंडिडेट जीतने में सफल रहे और सुमित जैसे कुछ निर्दलीय भी जीत गए तो बीजेपी नीतीश कुमार को छोड़ देगी। मतदाताओं के बीच गहरे तक पैठ कर चुकी इस चर्चा का ही असर है कि सरकार से नाराजगी का सीधा फायदा विपक्ष को मिलता नहीं दिख रहा।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

चंदामारी में BJP बूथ अध्यक्ष से मारपीट-पथराव, दिनहाटा में भाजपा कार्यकर्ता के घर के बाहर बम, तूफानगंज में झड़प: ममता बनर्जी के बंगाल में...

लोकसभा चुनाव के लिए चल रहे मतदान के पहले दिन बंगाल के कूचबिहार में हिंसा की बात सामने आई है। तूफानगंज में वहाँ हुई हिंसक झड़प में कुछ लोग घायल हो गए हैं।

इजरायल ने किया ईरान पर हमला, एयरबेस को बनाया निशाना: कई बड़े शहरो में एयरपोर्ट बंद, हवाई उड़ानों पर भी रोक

इजरायल का हमला ईरान के असफ़हान के एयरपोर्ट को निशाना बना कर किया गया था। इस हमले के बाद ईरान के बड़े शहरो में एयरपोर्ट बंद कर दिए गए

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe