Friday, November 15, 2024
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अब अफगानिस्तान में फँसे सिखों की चिंता, तब CAA का किया था विरोध: कॉन्ग्रेसी जयवीर शेरगिल के भीतर का ‘जिम्मेदार सिख’

ये कैसा दोहरा रवैया है कि एक तरफ (9 अगस्त, 2021) वो विदेश मंत्रालय को पत्र लिख कर कहते हैं कि भारतीय मूल के अल्पसंख्यक तालिबानी आतंकियों के लिए आसान निशाना होते हैं, जबकि दूसरी तरफ (16 दिसंबर, 2019) वो CAA को 'सांप्रदायिक परमाणु बम' बताते हैं?

कॉन्ग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने खुद को ‘सिख समुदाय का एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक’ बताते हुए अफगानिस्तान से 650 सिखों व 50 हिन्दुओं को सुरक्षित निकाले जाने के लिए केंद्रीय विदेश मंत्रालय को पत्र लिखा है। ये अलग बात है कि वो अपनी पार्टी के अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पत्र लिख कर कभी ये नहीं कह पाएँ कि वो नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का समर्थन करें।

CAA क्या है? इसके तहत दिसंबर 2014 से पहले भारत आए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के सिखों, हिन्दुओं, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है। ये तीनों ही इस्लामी देश हैं, जो अल्पसंख्यकों के साथ क्रूरता के लिए कुख्यात हैं। पाकिस्तान में हिन्दू व सिख महिलाएँ सुरक्षित नहीं। बांग्लादेश में आए दिन मंदिर तोड़े जाते हैं। अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों को समूह में ही मार गिराया जाता रहा है।

ऐसे में जयवीर के भीतर का सिख तब नहीं जागा, जब भारत सरकार CAA लेकर आई थी। उनके अंदर का सिख तब क्या ‘गैर-जिम्मेदार’ हो गया था? अब खुद को भारतीय नागरिक बता कर केंद्रीय विदेश मंत्रालय से 650 सिखों के लिए स्पेशल वीजा की व्यवस्था की गुहार लगा रहे जयवीर शेरगिल की माँग एकदम उचित है, लेकिन वो और उनकी पार्टी ही इसके मार्ग में अक्सर रोड़े अटकाती रही है।

आइए, थोड़ा पीछे चलते हैं। 16 दिसंबर, 2019 को। शाहीन बाग़ के उपद्रवियों का उत्पात चरम पर था। देश भर में कई शाहीन बाग़ बना कर भड़काऊ भाषणबाजी हो रही थी। दिल्ली दंगों की स्क्रिप्ट रची ही जा रही थी। कॉन्ग्रेस माहौल का मजा लूट रही थी। उस दिन 10:03 में जयवीर शेरगिल का ट्वीट आता है – ‘CAB = Communal Atom Bomb’, जिसका अर्थ है – ‘नागरिकता संशोधन विधेयक = सांप्रदायिक परमाणु बम।’

बता दें कि CAA ही जब कानून न होकर बिल हुआ करता था तो इसे CAB कहते थे, क्योंकि तब ये संसद के दोनों सदनों में पास नहीं हुआ था। इसलिए, इस CAA और CAB को एक ही समझा जाए। यानी, जब केंद्र सरकार प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए संरक्षण की व्यवस्था कर रही थी, तब यही जयवीर शेरगिल अपनी पार्टी के सुर में सुर मिला कर इसका तगड़ा विरोध करने में लगे थे। अब उनके अंदर का सिख जाग गया है।

वो ‘सिख समुदाय का एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक’ तब कहलाते, जब वो कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पत्र लिख कर कहते कि चूँकि ये मामला प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को अधिकार देने से जुड़ा है, दलितों को धर्मांतरण व महिलाओं को क्रूरता से बचाने से जुड़ा है, इसीलिए वो इसका विरोध न करें। लेकिन अफ़सोस, इस्लामी मुल्कों से प्रताड़ना सह कर आए इन्हीं सिखों व हिन्दुओं के लिए तब उनकी आवाज़ नहीं निकली।

निकली भी तो विरोध में। पंजाब के जालंधर से आने वाले जयवीर शेरगिल तब मीडिया के माध्यम से CAA के खिलाफ प्रोपेगंडा फैलाने में लगे थे। तब उन्होंने ‘द हिन्दू’ में एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक ही था – ‘बिना सोचे-समझे लिया गया निर्णय’। उनका कहना था कि केंद्र सरकार के इस निर्णय से उत्तर-पूर्व में अशांति या गई है। उन्होंने CAA को भारत की विदेश नीति की भारी गलतियों में से एक करार दिया था।

उन्होंने CAA को एक ‘संकीर्ण निर्णय’ बताते हुए लिखा था कि इसकी वजह से भारत को दुनिया भर में संदेह की दृष्टि से देखा जाएगा। भारत सरकार को इसे लेकर काफी सफाई देनी पड़ेगी। उन्होंने भारत की ‘विविधता और समावेशी’ चरित्र की बात करते हुए बात करते हुए कहा था कि ऐसे निर्णयों से निवेशकों का विश्वास देश में डिगेगा। उन्होंने इसे ‘चुने हुए देशों के शरणार्थियों के लिए मजहब आधारित कानून’ करार दिया था।

अब? अब उन्हें पता चल है कि भारत का हिन्दू या सिख होने के कारण अफगानिस्तान जैसे मुल्कों में तालिबान जैसे इस्लामी आतंकी संगठन उन्हें निशाना बनाते हैं? उन्होंने अपने पत्र में 2018 की एक घटना का जिक्र किया है। तब जलालाबाद में हुए आत्मघाती आतंकी हमले में 19 हिन्दुओं व सिखों को मार डाला गया था। ये सब राष्ट्रपति अशरफ गनी से मिलने जा रहे थे। मृतकों में अवतार सिंह खालसा चुनावी उम्मीदवार भी थे।

इसका सीधा मतलब है कि अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ क्रूर बर्ताव व उनके नरसंहार की घटनाओं से जयवीर शेरगिल अनजान नहीं थे, लेकिन फिर भी उन्होंने तब अपनी पार्टी के स्टैन्ड को आगे बढ़ाना उचित समझा। आज जब अफगानिस्तान में 650 सिख फँसे हुए हैं तो उन्हें ये घटनाएँ याद आ रही हैं। उनकी नौकरी जाने व आय की चिंता हो रही है। सिख समाज के लिए उनका प्रेम उमड़ आया है।

ये कैसा दोहरा रवैया है कि एक तरफ वो केंद्रीय विदेश मंत्रालय को पत्र लिख कर कहते हैं कि भारतीय मूल के अल्पसंख्यक तालिबानी आतंकियों के लिए आसान निशाना होते हैं, जबकि दूसरी तरफ वो इन्हीं अल्पसंख्यकों के लिए लाए गए कानून का बढ़-चढ़ कर विरोध करते हैं? 2018 की घटना का जिक्र बताता है कि इसके बावजूद उन्होंने 2019-20 में CAA का विरोध किया और इन्हीं अल्पसंख्यकों को अधिकारी मिलने की राह में रोड़े अटकाए।

उनके पास अब भी समय है। ‘सिख समुदाय से तालुक रखने वाले एक जिम्मेदार भारतीय नागरिक’ होने के नाते वो राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी को पत्र लिख कर कह सकते हैं कि वो NRC की राह में रोड़े अटकाने बंद करें। वरना अगर असम में जब नॉन-मुस्लिमों के साथ अत्याचार की खबरें आएँगी और उनमें सिख भी होंगे, तब फिर वो केन्द्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिख कर कहेंगे कि अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।

राहुल गाँधी असम में NRC विरोधी गमछा पहन कर जाते हैं, ‘No CAA’ वाला रूमाल दिखाते हैं और रैली में कहते हैं कि अगर उनकी सरकार आई तो वो CAA को लागू ही नहीं होने देंगे। इस पर जयवीर शेरगिल चूँ तक नहीं करते। उनके ही पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी कहा था कि वो किसी भी कीमत पर पंजाब में CAA को लागू नहीं करने देंगे। पार्टी में, अपने आसपास चल रहे इन बयानों से शेरगिल अनजान थे, ये पचने वाली बात नहीं है।

बताते चलें कि जयवीर शेरगिल ने इस पत्र में ध्यान दिलाया है कि अमेरिका की सेना की वापसी के बाद तालिबान बंदूक की नोंक पर अफगानिस्तान को अपने कब्जे में लेने के लिए युद्ध कर रहा है। एक बार फिर से अफगानिस्तान के आतंकी चंगुल में जाने की आशंका है। उन्होंने अफगानिस्तान में हुई हालिया हिंसा की भीषण घटनाओं की तरफ ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि ये मानवता के लिए संकट पैदा करने वाली समस्या है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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