Thursday, November 14, 2024
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बीजेपी के लिए गृह त्याग करेंगे नीतीश कुमार? अरुणाचल के बाद अब बिहार में निशाने पर तीर

बिहार में बिगड़ती कानून-व्यवस्था पर BJP के बड़े नेता अब CM नीतीश को निशाने पर ले रहे। गृह सचिव आमिर सुब्हानी को हटाने से लेकर खुद नीतीश कुमार से गृह विभाग छोड़ने तक की बात। अमित शाह को लेटर भी!

बिहार में नीतीश कुमार ने नवंबर 16, 2020 में 13 अन्य मंत्रियों के साथ सातवीं बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। बिहार विधानसभा चुनाव में 74 सीटें जीतने वाली भाजपा (BJP) के इसमें 7 मंत्री थे। इनमें दो उप-मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी शामिल हैं। तब से अब तक मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें ही लगाई जा रही हैं। अब इसके डेढ़ महीने बाद संजय पासवान ने नीतीश कुमार से गृह विभाग छोड़ने की माँग कर दी है।

अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र सरकार में मानव संसाधन राज्यमंत्री रहे संजय पासवान ने कहा कि अब गृह विभाग का जिम्मा बिहार में किसी अन्य मंत्री को स्वतंत्र रूप से दे देना चाहिए। ये बड़ी माँग है, क्योंकि जब-जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार चली है, गृह विभाग उन्होंने अपने पास ही रखा है। संजय पासवान का कहना है कि ज़रूरी नहीं कि BJP को ही ये विभाग मिले, जदयू के ही किसी नेता को भी दिया जा सकता है।

जब ऑपइंडिया ने संजय पासवान से संपर्क कर के इस माँग के पीछे के निहितार्थ को समझना चाहा तो भाजपा के विधान पार्षद ने कहा कि किसी पत्रकार को फोन पर ही उन्होंने ये बयान दिया है। हालाँकि उन्होंने कहा कि वो अब भी इस बयान पर कायम हैं। बकौल संजय पासवान, अब समय आ गया है जब नीतीश कुमार किसी अन्य नेता को गृह विभाग सौंपे। हालाँकि, उन्होंने इसे भाजपा और जदयू के बीच मतभेद के रूप में देखने से इनकार कर दिया।

साथ ही उन्होंने बिहार के गृह सचिव आमिर सुब्हानी को भी हटाने की माँग की। आमिर बिहार में नीतीश कुमार के सबसे फेवरिट ब्यूरोक्रेट्स में से एक माने जाते हैं। पिछले 15 वर्षों से नीतीश कुमार का उन पर ही भरोसा रहा है। संजय पासवान ने कहा कि चूँकि वो लंबे समय से इस पद पर बने हुए हैं, इसीलिए उनकी जगह किसी और को मौका दिया जाना चाहिए। बिहार में अभी भी मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर दोनों सत्ताधारी दलों में एकमत नहीं हो सका है।

बिहार में BJP के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल भी खुलेआम राज्य में कानून व्यवस्था पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने अपनी ही सरकार पर निशाना साधते हुए जल्द ही पुलिस महानिदेशक से मुलाकात की बात कही थी। बेतिया से पटना के लिए निकले जायसवाल को सेमरा में लोगों ने घेरा और अपनी शिकायतें सुनाईं। गाँव में आए दिन चोरी की घटनाओं की उन्हें जानकारी दी गई, जिसे लेकर उन्होंने फेसबुक पोस्ट भी लिखा।

बेतिया के भाजपा सांसद जायसवाल का कहना था कि तुरकौलिया के थाना प्रभारी ने शिकायत किए जाने पर उलटा ग्रामीणों को ही धमका दिया। रक्सौल में हुए एक हत्याकांड और अन्य घटनाओं का जिक्र कर उन्होंने बिहार के पुलिस-प्रशासन को अक्षम करार दिया। राज्य में सत्ताधारी गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया का इस तरह से बिगड़ती कानून-व्यवस्था पर बयान देना जदयू को पसंद नहीं आया होगा।

इसके बाद भाजपा सांसद छेदी पासवान भी मुखर हो गए। रोहतास में एक पेट्रोल पम्प मालिक को गोलियों से भूने जाने की घटना और 72 घंटे में जिले में 5 हत्याओं पर उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक को पत्र लिखा। रोहतास में 2 सालों से एक ही एसपी है, इसे लेकर उनकी नाराजगी तो थी ही, साथ ही आम लोगों के मन में भी आक्रोश होने का उन्होंने जिक्र किया था। एसपी सत्यवीर सिंह को उन्होंने कर्तव्यहीन करार दिया।

इस तरह से इस एक महीने में भाजपा के 3 बड़े नेता राज्य की बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठा चुके हैं। जहाँ बेतिया के सांसद संजय जायसवाल और सासाराम के सांसद छेदी पासवान ने अपने-अपने क्षेत्रों में बढ़ती आपराधिक घटनाओं को लेकर आक्रोश जताया, वहीं अब संजय पासवान ने गृह विभाग किसी अन्य नेता को देकर गृह सचिव को बदलने की माँग कर दी। भाजपा के नेता अपनी ही सरकार पर सवाल उठा रहे हैं, तो इसके कुछ गहरे कारण जरूर हैं।

ये सब चर्चा तब चल रही है, जब जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को अरुणाचल प्रदेश में बड़ा झटका लगा है और पार्टी के कुल 6 विधायक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं। इनमें से 3 विधायकों को जदयू ने पहले ही पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाते हुए ‘कारण बताओ नोटिस’ भेजा था, इसके बाद उन्हें पार्टी से निलंबित भी किया था। आखिर इन सभी को मिला कर देखा जाए तो क्या निहितार्थ निकलते हैं? क्या ‘BJP की माँग’ पर नीतीश कुमार गृह विभाग छोड़ देंगे?

इस पर हमने जब वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर से बात की तो उन्होंने कहा कि ऐसे किसी भी व्यक्ति के बयान को गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं है, जो किसी निर्णायक पद पर न बैठा हो। उन्होंने बिना नाम लिए कहा कि कई बार कुछ नेता सिर्फ अपना अस्तित्व दर्शाने के लिए ऐसे बयान देते रहते हैं। उन्होंने जानकारी दी कि सीएम नीतीश को खुद बिगड़ती कानून व्यवस्था का भान है और उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक भी की है।

सुरेंद्र किशोर ने कहा, “इन नेताओं को अगर लगता है कि कुछ गलत है तो उन्हें जेपी नड्डा और अमित शाह से बात करनी चाहिए। क्या अमित शाह को नहीं पता होगा कि आमिर सुब्हानी 15 वर्षों से गृह सचिव हैं और नीतीश कुमार इतने ही समय से गृह मंत्रालय रखे हुए हैं। जिन नेताओं की हैसियत नहीं है, उनके बोलने का कोई अर्थ नहीं है। मुख्यमंत्री को परेशान करने के लिए वो बोलते रहते हैं। अगर सचमुच ऐसा है, तो बड़े स्तर पर बात होगी।”

सुरेंद्र किशोर ने इसे सामान्य राजनीति करार देते हुए कहा कि याद किया जाना चाहिए कि चुनाव से पहले भी कई नेता कह रहे थे कि भाजपा को चुनाव में अकेले जाना चाहिए और नीतीश कुमार से सम्बन्ध तोड़ लेना चाहिए, लेकिन क्या भाजपा आलाकमान ने उनकी इच्छा पूरी की? इन बयानों को भी इसी तरह देखा जाना चाहिए। फ़िलहाल अब बिहार में सभी की नजरें मंत्रिमंडल विस्तार पर टिकी हुई हैं।

उधर राजद अब भी नीतीश कुमार के साथ गठबंधन की उम्मीदें पाल कर बैठा है और अरुणाचल प्रकरण पर भी उन्हें घेर रहा है। राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने एक दशक पहले की उस घटना की याद दिलाई, जब मोदी (तब गुजरात के सीएम) के साथ तस्वीर छपने पर नीतीश ने भाजपा नेताओं के सम्मान में आयोजित रात्रिभोज रद्द कर दिया था। तिवारी ने कहा कि मोदी इसे भूलने वाले नहीं हैं।

उन्होंने नीतीश कुमार से पूछा कि भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में पूर्ण बहुमत में होने के बावजूद जदयू को तोड़ दिया तो इसका क्या अर्थ निकाला जाना चाहिए? उन्होंने कहा कि भाजपा शुरू से नीतीश कुमार को छोटा करना चाहती थी, जिसमें वो सफल रही, वहीं अब उसने मुख्यमंत्री को अपमानित करना भी शुरू कर दिया है? इस बयान से साफ़ है कि राजद अब भी नीतीश के चेहरे को अपने पाले में करने को बेताब है।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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